हमारे समय के क्रांतिकारी योद्धा का नाम है कृपाशंकर 

अपने समय के अन्यायी सत्ता को चुुनौती देने वाले क्रांतिकारी योद्धा हर युग पैदा होते हैं, हर तरह के शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष करने वाले हमेशा होते हैं, सबके लिए स्वतंत्रता, समता, न्याय और समृद्धि के समान बंटवारे का स्वप्न देखने वाले और उस स्वप्न को जमीन पर उतारने के लिए संघर्ष करने वाले भी हर युग में होते हैं, बस ऐसे लोगों की संख्या थोड़ी कम या अधिक होती रहती है। 

आज के समय में भी ऐसे लोग हैं। हर युग की सत्ता और शासक वर्ग ऐसे लोगों को अलग-अलग नाम देता है, मिथकों में ऐसे बहादुर योद्धाओं को असुर-राक्षस कहा गया, कभी इन्हें धर्मद्रोही कहा गया, कभी राष्ट्रद्रोही, कभी कम्युनिस्ट, कभी नक्सली, कभी आतंकी और आजकल ऐसे लोगों के लिए नक्सली-माओवादी या अर्बन नक्सल नाम दे दिया गया है। यह नाम देकर अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाले कितने लोगों का मार दिया गया या जेल भेजा गया। 

यही नाम देकर स्टेन स्वामी को जेल में डालकर उनकी हत्या कर दी गई, कवि वरवर राव को लंबे समय तक जेल के सलाखों के पीछे रखा गया, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईं बाबा, पत्रकार प्रशांत राही, हेम मिश्रा, महेश तिर्की, विजय तिर्की, नारायण सांगलीकर और पांडु नरोटे करीब एक दशक तक नक्सली-माओवादी के नाम पर जेल में रखे गए। महाराष्ट्र हाईकोर्ट के नागपुर बेंच ने उन्हें पूरी तरह निर्दोष करा दिया। लेकिन इन लोगों ने कितनी यातना सही, जीवन का कितना अनमोल समय जेल के सलाखों के पीछे हर तरह की यातना सहते बिताया यह दुनिया जानती है।

इसके पहले सु्धा भारतद्वाज और गौतम नौलखा जैसे लोग लंबे समय तक इसी नाम पर जेल काट चुके हैं। हमारे समय के बड़े लेखक आनंद तेलतुंबडे इसी नाम पर लंबे समय तक जेल में रहे। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हनी बाबू आज भी जेल की सजा इसी नाम पर काट रहे हैं। सीमा आजाद, विश्वविजय, मनीष आजाद और अमिता जैसे लोग इसी नाम पर प्रताड़ित-उत्पीड़ित किए गए और जेल की सजा काटे। पत्रकार रूपेश कुमार वर्षों से जेल काट रहे हैं, इसी नाम पर। कई सारे अन्य लोग।

ये लोग हमारे समय के महान क्रांतिकारी योद्धा हैं, हमारे समय के इन योद्धाओं की इस कड़ी में एक महत्वपूर्ण योद्धा कृपाशंकर भी हैं। 5 मार्च 2024 की सुबह इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता कृपा शंकर और इलाहाबाद हाईकोर्ट के बाहर टाइपिंग करने वाली कृपा शंकर की पत्नी बिंदा सोना को एटीएस के लोग गिरफ्तार करके ले गए। अखबारों में आई खबर के मुताबिक एटीएस ने उन्हें 2019 के उस मुकदमे में गिरफ्तार किया, जिसमें उन दोनों से 2019 जुलाई में ही पूछताछ करके छोड़ा जा चुका था। और अब 2024 में अचानक ये कहकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया कि उनके खिलाफ पुख्ता सुबूत मिले हैं।

उन्हें लखनऊ के एटीएस कोर्ट में तलब कर 7 दिन के लिए पुलिस रिमांड पर लिया गया है। आखिर इतने पुराने मुकदमे में उन्हें गिरफ्तार करने का कारण क्या है। कृपा शंकर ने कोर्ट में अपने अधिवक्ता को बताया कि कल पूरे दिन उनसे पूछताछ में उन्हें एटीएस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक में घसीट लेने के लिए उन्हें धमकाया जाता रहा। उनकी गिरफ्तारी दरअसल इसी से जुड़ी है।

कुशीनगर के एक गांव के रहने वाले कृपा शंकर इससे पहले भी 2010 में UAPA की कई धाराओं में गिरफ्तार किए जा चुके हैं। 6 साल जेल में रहने के बाद वे इलाहाबाद हाईकोर्ट से मिली जमानत पर बाहर आए। जेल में रहते हुए उन्होंने कैदियों के लिए इतने एप्लीकेशन लिखे और चार्जशीट पढ़कर सुनाया, इस कारण जेल में उन्हें सब “वकील भईया” कहते थे।

जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने लॉ की विधिवत पढ़ाई की और रजिस्ट्रेशन के पहले से ही केसों में मदद करने लग गए। जेल में बंद ऐसे लोग उनके मुवक्किल हैं, जिन्हें छुड़ाने वाला कोई नहीं है। कई अधिवक्ताओं के साथ मिलकर उन्होंने ऐसे लोगों को बाहर निकालकर उन्हें नई जिंदगी दी। 2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में रजिस्ट्रेशन हो जाने के बाद इस काम को और बढ़ चढ़ कर किया। उनका एडवोकेट रोल AOR नंबर A/K 0985/2022 (कृपा शंकर सिंह) है।

जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने जिन मुकदमों की पैरवी की उसमें सबसे प्रमुख है, जेल में 16 साल से बंद आशीष नाम के एक व्यक्ति की जमानत, जिसका कोई पैरोकार नहीं था। उसकी पैरवी के कारण वह हाई कोर्ट से बरी हो गया।

एक व्यक्ति जो कि 13 से अंडर ट्रायल अभियुक्त था और जिसका कोई घर का पैरोकार नहीं था, कृपाशंकर ने जेल से ही उसका एफिडेविट कराकर हाईकोर्ट से जमानत दिलवाई।

जेल में ही बंद एक अभियुक्त की दो बार बेल कराई। एक बार अंडर ट्रायल रहते हुए, दूसरी बात सजायाफ्ता होने पर अपील में। इसके अलावा ऐसे ही कई और मुकदमे उनके पास अभी भी थे।

इस क्रम में वे UAPA मामलों में सिद्धहस्त होते गए। अपने इस मामले में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट जाकर  तकनीकी आधार पर अपने ट्रायल पर स्टे ले लिया, इसमें भी विरोधी पार्टी एटीएस ही है। सितंबर 2023 में जब उनके घर पर एनआईए की रेड हुई तो भी पूछताछ में इसके बाबत सवाल किए गए, UAPA मुकदमे ही वे क्यों देखते हैं, इस तरह का गैरकानूनी सवाल भी पूछा गया। अक्टूबर 2023 में देवरिया से कृपा और बिंदा सोना के परिचित प्रभा और बृजेश को एटीएस ने 2019 के केस में गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के बाद प्रभा का 5 माह का गर्भ खराब हो गया।

एटीएस के इस कृत्य के खिलाफ भी कृपा शंकर सुप्रीमकोर्ट में जीवन के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए केस किया हुआ है, जिसकी दो तारीखें लग चुकी है और एटीएस के लोग इससे परेशान हैं।प्रभा के जमानत की पैरवी भी इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में कृपाशंकर ही कर रहे हैं। यही वजह है कि अचानक उन्हें उनकी पत्नी सहित गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी के वक्त उनसे हुई पूछताछ, जिसके बारे में कृपाशंकर ने अपने अधिवक्ता को बताया, उससे भी यह स्पष्ट होता है।

कृपाशंकर और मैने देश में आमूल-बदलाव का रास्ता करीब एक ही समय और एक साथ ही चुना। मेरी, मनीष और कृपाशंकर की एक तिकड़ी थी। हमारे आंखों में हर तरह के अन्याय के खात्में का एक स्वप्न था। हमें उसे क्रांतिकारी बदलाव का रास्ता कहने में कोई हिचक नहीं है। हम इस देश में इंकलाब चाहते थे, आज भी चाहते हैं। हर तरह के अन्याय और शोषण-उत्पीड़न  खात्मा चाहते थे। हमें अन्याय, दासता और गैर-बराबरी का कोई रूप स्वीकार नहीं था। हमने जी-जान लगाकर कर पूरी ताकत से संघर्ष किया। इंकलाब के सपने को जमीन पर उतारने की हर संभव  कोशिश की। समय के साथ हमारे रास्ते थोड़े अलग-अलग हुए। स्वप्न एक था, अन्याय के हर रूप के खिलाफ संघर्ष। हमने से किसी ने भी इस स्वप्न के साथ कभी दगा नहीं किया।

आज मुझे लगता है कि मेरे मित्र कृपा का रास्ता ज्यादा जोखिम भरा और ज्यादा साहस की मांग करता था, तय ज्यादा कुर्बानी भी। वह कुर्बानी कृपा ने दी भी। वह भरी जवानी में 6 सालों तक जेल काटा। कृपा एक गरीब किसान का बेटा था। जहां मेहनत-मजदूरी ही जीवन जीने का एकमात्र रास्ता था। इस परिवार के लिए कृपा एक उम्मीद की किरण था। वह पढ़ने में तेज था, उसने पॉलिटेक्निक किया, ताकि जल्दी नौकरी मिल सके। वह परिवार के दुख-दर्द को कम कर सके। उसे रेलवे में नौकरी भी मिल गई। लेकिन जहां परिवार उसकी ओर ताक रहा था, वहीं अन्याय-उत्पीड़न के शिकार जन भी  उसको पुकार रहे थे। उसने उनकी आवाज सुनी।

भारी मन से परिवार की तरफ से मुंह मोड़ा।भारतीय जन की पुकार को सुना, न्याय की आवाज बनने का निर्णय लिया। उसने न्याय के लिए संघर्षरत एक लड़की अपना जीवन-साथी सुना। दोनों के आंखों में एक ही स्वप्न पलता है। हर तरह के अन्याय का खात्मा। न्याय के लिए संघर्ष। कृपाशंकर जेल में रहते ही वकालत की डिग्री ली। वह जेल में ही वकील भईया बन चुका था। वह जेल की बंदियों के लिए एक रोशनी बन चुका था। उनके लिए अर्जी लिखता, उनके वाजिब हकों के लिए संघर्ष करता रहा। 6 वर्षों के बाद जेल से छूटने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकील के तौर पर प्रैक्टिस शुरू किया। वहां उन लोगों की केस लेता, जिनकी केस आमतौर वकील नहीं लेते। पैसे के कारण या अन्य कारणों से।

जेल से छूटने के बाद यदि कृपाशंकर ने अन्याय के खिलाफ संघर्ष से मुंह मोड़ लिया होता। निजी जीवन में सिमट गया होता, धन-कैरियर बनाने में लग गया होता, चुप्पी साध लिया होता, क्रांति या क्रांतिकारी बदलाव ( विशेषकर नक्सलवाद-माओवाद) को गालियां देने लगा होता या सिर्फ क्रांतिकारी लफ्फाजी करता तो शेष जीवन राज सत्ता के उत्पीड़न या जेल  जाए बिना काट सकता था, लेकिन  वह चुप नहीं रह पाया, अन्याय के खिलाफ संघर्ष से मुंह नहीं मोड़ पाया, न्याय के लिए संघर्ष से खुद को रोक नहीं पाया। वह एक क्रांतिकारी योद्धा रहा है, वह क्रांतिकारी योद्धा है, वह क्रांतिकारी योद्धा ही रहेगा। मैं उसके नस-नस से वाकिफ भी हूं। उसे हर तरफ के अन्याय और शोषण-उत्पीड़न से नफरत है, वह मर सकता है,लेकिन न्याय के पक्ष में खड़े हुए बिना नहीं रह सकता।

अतीत के क्रांतिकारी नायकों के साथ खड़ा होना आसान है, अतीत के क्रांतिकारी संघर्षों के गीत गाना भी आसान है, इससे शोहरत मिलती है, इज्जत मिलती है, कैरियर बनता है, महान होने का गौरव हासिल होता है, लेकिन अपने समय के क्रांतिकारी योद्धाओं और क्रांतिकारी संघर्षों के साथ खड़ा होना जोखिम मोल लेना है, खुद को संकट में डालना है।ऐसा जोखिम कृपा ने लिया, खुद को संकट में डाला। कृपाशंकर हमारे समय का एक क्रांतिकारी योद्धा है, क्रांतिकारी संघर्षों का एक सिपाही है। आज की तारीख में ऐसे योद्धाओं देश और दुनिया को बहुत-बहुत-बहुत जररूरत है। कृपा मेरा मित्र था, है और रहेगा। ऐसा बहादुर योद्धा मेरा मित्र है, मुझे इस पर नाज है। क्रांतिकारी सलाम मेेरे मित्र कृपा।

(डॉ. सिद्धार्थ लेखक और पत्रकार हैं।)

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