चंदौली। उत्तर प्रदेश के वाराणसी मंडल में स्थित भारत के अति पिछड़े जिले में शामिल चंदौली जनपद में मनरेगा (जॉब कार्ड धारक) मजदूरों की केवाईसी जनपद के हालत की तरह बहुत पिछड़ी हुई है। अभी आधार से लिंक बैंक खाते से काम चल जा रहा है। बरहनी विकासखंड के मानिकपुर सानी के अस्सी फीसदी से अधिक के मजदूरों को केवाईसी के बारे में जानकारी ही नहीं है। कुछ मजदूरों ने बताया कि केवाईसी करने के लिए कहा गया था, लेकिन हमलोग कैसे और कहां जाकर कराएंगे ? कई जागरूक मजदूर अपने खाते की केवाईसी कराने के लिए बैंक गए भी तो उन लोगों ने बैंककर्मियों द्वारा बहाने बनाकर लौटाए जाने पर फिर बैंक गए ही नहीं। अब इनकी मांग है कि केवाईसी गांव में ही की जाए, या फिर हमलोग मनरेगा में मजदूरी करना छोड़ देंगे।
मनरेगा मजदूरी ग्रामीण जीवन की आधार रेखा जब रही होगी तब रही होगी, अब यदि मनरेगा मजदूर इसके भरोसे रहेगा तो स्वयं और हमलोगों का परिवार भूखों मर जाएगा। उक्त बातें और एक मजदूर की पीड़ा “जनचौक” से बताते हुए लगभग दो दशक से अधिक समय से मनरेगा में मजदूरी करने वाले रामकेसी कहते हैं “ मनरेगा के तहत काम मिलता है 365 दिन में सिर्फ सौ दिन. शेष 265 दिन हमलोग क्या करेंगे ? कैसे परिवार चलेगा, अब बैंक केवाईसी क्या तुगलकी फरमान है ?”
“राशन, तेल, दवाई, कपड़ा और बच्चों की फ़ीस का इंतजाम तो साल के बारह महीनों ही करना पड़ता है। यह बात क्या ग्रामीण विकास मंत्रालय के जिम्मेदारों को पता नहीं है ? मनरेगा में मजदूरी के बाद आज तक कभी भी समय पर मजदूरी (रुपए) का भुगतान नहीं हुआ है। तिसपर कभी आधार कार्ड बैंक खाते से लिंक कराने का निर्देश तो अब खाते की केवाईसी कराने का फरमान। ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र\राज्य सरकारें मजदूरों के हित को भूल-विसार चुकी हैं। करोड़ों मजदूरों को मनरेगा से दूर धकेलने के लिए कभी आधार का जुड़ाव तो कभी केवाईसी झमेला हमलोगों के गले में डाला जा रहा है।”
वह आगे कहते हैं “मैं या अन्य मजदूर दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए मनरेगा में खटते हैं। मजदूर कोई व्यापारी या मोटा आमदनी का असामी तो है नहीं। 14-14 दिन के काम का मस्टररोल बनाकर मजदूरी के भुगतान के लिए भेजा जाता है। यह भुगतान आगामी दो से ढाई महीने के बाद खाते में पहुंचता है। 237 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से 14 दिन की मजदूरी 3318 रुपए हुई। यह पैसे हाथ में आते ही दुकान, फ़ीस, दवा और कर्ज चुकाने में चला जाता है। फिर भी पूरा नहीं हो पाता। यह रुपए जीवन की जरुरत में ऊंट के मुंह में जीरा के समान हैं। कपड़े और अन्य जरूरतें वैसे की वैसे ही अधूरी रह जाती है।”
बेशक देश में मनरेगा, दूरस्थ हासिए पर पड़े ग्रामीण जीवन आधार को श्रम के बदले आर्थिक रूप से रोजगार के अवसर उपलब्ध करने के एक दमदार विकल्प के रूप में लाया गया है। इसमें समय पर पर सुधार और बदलाव भी किये जाते रहे, लेकिन हालिया निर्देश कि, “मजदूरों की मजदूरी तबतक रोका जाए, जबतक की उनके बैंक खातों की केवाईसी नहीं जाती है। मालूम हो कि ग्रामीण विकास मंत्रालय ने राज्य सरकारों से कहा था – मनरेगा लाभार्थियों भुगतान अनिवार्य रूप से आधार आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) हो। अब मनरेगा जॉब कार्ड धारकों को उनके बैंक खाते को केवाईसी कराने की निर्देश दिया गया है।
बहरहाल, कायदे से तो यह होना चाहिए कि “देश भर में मनरेगा जॉब कार्ड धारकों केवाईसी करने के लिए गांव-गांव कैंप लगाकर मजदूरों का केवाईसी कराया जाए। इस संबंध में सभी मजदूरों की स्वीकृति और मांग भी है। क्योंकि, अनपढ़ मजदूर जब काम छोड़कर सिर्फ केवाईसी करने बैंक जाता है तो वह हैरान और परेशान होता है। इतना ही नहीं बैंककर्मी अपने काउंटर पर मजदूरों को खड़े देखते ही कहते हैं – फिर आ गए ! क्या है बताओ, केवाईसी कराना है कहने पर, बैंककर्मी कहते हैं – आज सर्वर डाउन है, कल आना और सभी दस्तावेज लेकर आना। आदि-आदि परेशानियां है मजदूरों। ऐसा मजदूरों ने जनचौक को बताया।
जॉबकार्ड धारक मनरेगा मजदूर गुलाबचंद्र कहते है कि “साहब, पहले तो दो महीने पर भुगतान होता है। ऐसे समझे जून माह में हमलोग खटे हैं, तो इसकी मजदूरी अगस्त महीने में मिलती है। यह किसकी जिम्मेदारी है कि मजदूरी समय से भुगतान किया जाए। आज के महंगाई के हिसाब से कम से कम एक दिन की मजदूरी 500 रुपए होनी चाहिए। उसमें भी सिर्फ 100 दिन काम मिलता है, शेष दिनों में हमलोग क्या करेंगे ? यदि एक मनरेगा मजदूर साल बाहर में सौ दिन काम करता है तो उसे लगभग 20 हजार रुपए का भुगतान देर-सवेर मिलता है, जबकि पूरे साल जरुरी खर्च, परिवार, दवा, फ़ीस, बीमारी, शादी-विवाह आदि के लिए रुपए की जरूरत होती है। पेट काटकर जीना पड़ता है। रही बात केवाईसी की तो आधार कार्ड जुड़वाने में बहुत पापड़ बेलने पड़े थे। अब केवाईसी भी अनपढ़-गरीब मजदूरों के लिए गले की फांस ही है।”
गुलाब आगे बताते हैं “एक बार मान लेते हैं कि यह ठीक है तो मेरी भी सरकार से मांग है कि केवाईसी करने का काम मनरेगा की साइट पर कैंप लगाकर किया जाए, ताकि अनावश्यक परेशान नहीं होना पड़े। यहां के मजदूरों के खाता नौबतपुर के बैंक ऑफ़ बड़ौदा और सैयदराजा स्थित यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में है। इस दोनों बैंकों में पैर रखने की जगह नहीं होती है। कई बार किराया-भाड़ा खर्च करके जाने के बाद भी बैंक के अधिकारी-कर्मचारी नहीं सुनते। इसके चलते इस दिन काम की दिहाड़ी भी खाली गई। किराया-भाड़ा (75 रुपए) भी खर्च हो गए और बैंक का काम भी नहीं हुआ। मतलब चौतरफा नुकसान। आप ही बताइये, एक मजदूर, परिवार का पेट पालने के लिए कमायेगा या बैंक-बाजार की फालतू भाग-दौड़ करेगा। इसमें भी सबसे अधिक महिला श्रमिकों को उठानी पड़ती है।”
बतौर जॉबकार्ड धारक मनरेगा मजदूर, अन्य नागरिकों की तरह मजदूरों का भी मनरेगा की साइट पर मेडिकल कैंप लगाकर इनके स्वास्थ्य की जांच और जरूरी दवाएं मुफ्त में दी जाए, क्योंकि अधिकतर श्रमिक वर्ष भर खांसी, जुकाम, बुखार, थकान, दिल, सिरदर्द, एलर्जी, कमजोरी, मानसिक तनाव आदि का सामना करते हैं। ऐसे में इनको उचित समय पर चिकित्सा व सलाह से किसी गंभीर बीमारी के चंगुल से बचाया जा सकता है। वैसे भी श्रमिक परिवार में जीवन स्तर पैमाने के मुख्य लक्ष्य जैसे -पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा, सफाई, कुपोषण, अनाज सुरक्षा आदि नियती की क्रूर अट्ठहास करते मिलेंगे।
मनरेगा श्रमिक भिखारी राम का खाता सैयदराजा स्थित यूनियन बैंक में है। वह बैंक के बारे में अपने कड़वे अनुभव इस प्रकार साझा करते हैं “बैंक का नाम सुनते ही मुझे घबराहट और बेचैनी होती है। आम दिनों में बैंक जाने पर बैंक कर्मी चेहरा देखकर कहता है- आज सर्वर नहीं चल रहा, कोई भी काम हो कल समय से आ जाना। जाओ यहाँ भीड़ मत लगाओ। ग्राम प्रधान और रोजगार सेवक से कोई लेना-देना नहीं है।”
जॉबकार्ड के पन्ने दिखते हुए श्रमिक भिखारी आगे कहते हैं-रोजगार सेवक या उसके समकक्ष कर्मी की लापरवाही का ही नतीजा है कि मार्च 2023 के बाद अपडेट ही नहीं हुआ है। इतना ही नहीं मजदूरी के बाद हाजिरी भुगतान के लिए नियन 7-7 दिन का है, लेकिन ये लोग 14-14 दिन की मजदूरी हाजिरी भेजते हैं। इसमें सिर्फ और सिर्फ हमलोगों का नुकसान होता है। उनका क्या वे लोग तो खाये-अघाये हैं। ”
श्यामलाल का कहना है कि “सरकार केवाईसी अपडेट के लिए गांव स्तर पर ही व्यवस्था करे अन्यथा मैं तो बैंक जाकर केवाईसी कभी नहीं कराऊंगा।”
श्यामलाल और उनकी पत्नी लक्ष्मीना की परेशानी ये है कि दोनों को 50-50 दिन काम करने को मिलते हैं। इसमें भी लक्ष्मीना के मजदूरी का भुगतान उनके पति यानी श्यामलाल बैंक खाते में होता है। वे चाहती हैं कि उनकी मजदूरी के पैसे उनके कहते में आये। इसके लिए रोजगार सेवक, सचिव व पंचायत सहायक से अपनी अर्जी लगा चुकी हैं, लेकिन कुछ नहीं हुआ। मनरेगा साइट पर काम करने में कई तरह की चुनौतियां रहती हैं। महिलाओं को सरकार और सहूलियत दें। हमलोगों के स्वास्थ्य और कठिन दिनों के बारे में भी सरकार सोचे। दुनियां कहां से कहां जा रही है। हमलोग वहीं के वहीं ठहरे हुए हैं।”
शिकायत के स्वर में विधवा सुंदरी देवी कहती हैं कि “मुझे बिना बताये ही मेरा नाम मनरेगा मजदूर की सूची से हटा दिया गया है. जबकि डेढ़-दो बरस पहले लगभग एक दशक तक से मेरे पास जॉब कार्ड था। इससे मैं मजदूरी अपने परिवार का पेट पालती थी। अब परिवार चलाने में आर्थिक तंगी की वजह से कई प्रकार की मुश्किलें हो रही हैं. कई बार प्रधान और पंचायत सहायक से जॉबकार्ड बनाने के लिए कह चुकी हूँ, लेकिन कोई ध्यान नहीं दे रहा है।”
इसी प्रकार जॉबकार्ड धारक रामलखन, रामगहन, रामायन प्रसाद, अंबिका, मुरली और मदन समेत कई श्रमिक केवाईसी के अल्टीमेटम से परेशान हैं।
श्रमिकों को केवाईसी से होने वाली परेशानियों पर दृष्टिपात करते हुए त्रिलोकी राम “जनचौक” से कहते हैं कि “कोई भी किसी भी सूरत में 100 दिन के मजदूरी से अपने परिवार को पूरे साल भरण-पोषण नहीं कर सकता है। सरकार द्वारा केवाईसी मुझे तो मनरेगा से श्रमिकों की छंटाई करने का एक टूल जान पड़ता है। अनपढ़, लाचार, गरीब मजदूर कमाने और परिवार को जिलाने में मर-खाप रहा है। ऐसे में उसके मनरेगा मजदूरी को बढ़ने के बजाय बैंक के नियम कानून में उलझाया जा रहा है, ताकि उसकी आजीविका प्रभावित हो और निराश भाव से स्वयं ही मनरेगा से दूर हो जाए।”
साथ ही मनरेगा की प्रतिदिन की दिहाड़ी 237 रुपए है, जिसके लिए दिनभर काम और तीन बार ऑनलाइन हाजिरी का जंजाल। इससे बेहतर गांव, क़स्बा और नगर में दिहाड़ी है। इसके समय से प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी 400 से 500 रुपए समय से मिल जाते हैं। आप इतने बगैर समझदारी के कठोर नियम बनाएंगे तो बढ़ाए, सताये और अनपढ़ मजदूर के पास अन्य रोजगार\दिहाड़ी ढूंढने के अलावा और क्या विकल्प है?”
(पवन कुमार मौर्य चंदौली\वाराणसी के पत्रकार हैं)