मणिपुर में हिंसा थम नहीं रही है। दो समुदायों के अधिकारों की लड़ाई में अब तक 100 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। कर्फ्यू और हजारों सुरक्षाबलों की तैनाती के बावजूद हालात पर काबू नहीं पाया जा सका है। मणिपुर के अलग-अलग इलाकों से रोज हिंसा की खबरें सामने आ रही हैं। लेकिन इस हिंसा में कुकी आदिवासियों के जान-माल को ज्यादा नुकसान हो रहा है। मैतेई समुदाय का सत्ता का संरक्षण प्राप्त है और वह पुलिस और सशस्त्र बलों के सहारे कुकी आदिवासियों पर घातक हमले कर रहा है। कुकी समुदाय को अब बाहरी बताने का षडयंत्र शुरू हो गया है। केंद्र और राज्य सरकार सांप्रदायिक कार्ड खेल रहे हैं।
बुधवार की रात हुई हिंसा में एक बार फिर कई लोगों की जान चली गई। मामला इतने पर ही नहीं रुका। गुरुवार की रात उपद्रवियों ने केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री आरके रंजन सिंह के कोंगबा स्थित आवास को पेट्रोल बम मार कर आग के हवाले कर दिया। केंद्रीय मंत्री घटना के समय केरल में थे। इससे पहले कुछ उपद्रवियों ने बुधवार को इंफाल पश्चिम के लाम्फेल क्षेत्र में मंत्री नेमचा किपजेन के घर में आग लगा दी थी।
मणिपुर की एन. बीरेन सिंह सरकार हिंसा पर काबू नहीं कर पा रही है। कुकी समुदाय पर लगातार हमले हो रहे हैं। राज्य सरकार पूरी तरह मैतेई लोगों के साथ है। पुलिस और सशस्त्र बलों के सहारे कुकी-जोमी समुदाय पर हमले किए जा रहे हैं। सरकार पूरी तरह मैतेई समुदाय को संरक्षण दे रही है और कुकी समुदाय पर हमले करा रही है।
इस बीच जिस मुद्दे को लेकर राज्य में जातीय हिंसा शुरू हुई, मणिपुर की एन बीरेन सिंह सरकार ने उससे अपने कदम पीछे नहीं खींचे हैं। राज्य सरकार ने गुरुवार को एक बार फिर मणिपुर उच्च न्यायालय से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) सूची में शामिल करने या न करने पर फैसला लेने से पहले कुछ समय मांगा है। दरअसल, सरकार इस मुद्दे का समाधान करने की बजाए और उलझा रही है।
किसी समुदाय को ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग में शामिल करने का निर्णय नीतिगत होता है। किसी जाति और समुदाय को एससी और एसटी वर्ग में शामिल किया जायेगा कि नहीं इसका निर्णय केंद्र सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति करता है। लेकिन मणिपुर में इस मामले को हाई कोर्ट में लेकर जाकर राज्य और केंद्र सरकार राजनीति कर रहे हैं।
जस्टिस अहंथेम बिमोल सिंह और ए गुनेश्वर शर्मा की खंडपीठ वर्तमान में ऑल मणिपुर ट्राइबल यूनियन (एएमटीयू) द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही है। एकल न्यायाधीश के 27 मार्च के आदेश के खिलाफ अपील दायर की गई है, जिसने राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को एसटी सूची में शामिल करने के लिए निर्देश दिया था।
27 मार्च के आदेश ने कुकी-ज़ोमी और नागा लोगों (पहले से एसटी) को उद्वलेति कर दिया और वे विरोध पर उतर आए। चुराचांदपुर जिले में एक विरोध मार्च के बाद हिंसा शुरू हुई, जो जल्द ही राज्य के बाकी हिस्सों में फैल गई। एक हफ्ते तक चली हिंसा में कम से कम 100 लोग मारे गए, सैकड़ों अन्य घायल हुए हैं, और हजारों आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं।
6 जून को हुई पिछली सुनवाई में भी राज्य सरकार के अधिवक्ता ने निर्देश सुरक्षित करने के लिए समय मांगा था कि राज्य अपील का विरोध करेगा या नहीं। गुरुवार को राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता एम. देवानंद खंडपीठ के समक्ष पेश हुए और फिर से और समय मांगा। कार्यवाही के रिकॉर्ड से पता चलता है कि देवानंद को एक सप्ताह पहले एएमटीयू द्वारा दायर एक अतिरिक्त हलफनामे पर निर्देश लेने के लिए समय चाहिए था।
इस बीच, मैतेई ट्राइब्स यूनियन (MTU) का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ताओं ने कहा कि उन्होंने पहले ही अपील पर अपनी आपत्ति दर्ज करा दी थी, जिसे अदालत ने रजिस्ट्री को सत्यापित करने का निर्देश दिया। एमटीयू वह संगठन था जिसने शुरू में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था और 27 मार्च के विवादित आदेश को हासिल किया था। उच्च न्यायालय ने शुक्रवार (16 जून) को अगली सुनवाई के लिए मामले को सूचीबद्ध किया।
अतिरिक्त हलफनामे में, एएमटीयू ने मैतेई लोगों के लिए अनुसूचित जनजाति के मौजूदा विरोध के लिए विस्तृत कारण प्रस्तुत किया। हलफनामे में तर्क दिया गया है कि मैतेई हमेशा से शासक वर्ग रहे हैं और राज्य की आबादी का 50 प्रतिशत से अधिक हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि अगर मैतेई को एसटी का दर्जा दिया जाता है, तो वे पहाड़ी जिलों में जमीन खरीद सकेंगे, जो विशेष रूप से एसटी के लिए है, जिससे आदिवासियों को उनकी जमीन से वंचित होना पड़ेगा। इसमें यह भी कहा गया है कि यदि मैतेई को एसटी का दर्जा दिया जाता है, तो वे केवल मौजूदा एसटी व्यक्तियों को आरक्षण और अन्य लाभों से शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से आगे बढ़ने से रोकेंगे।
दूसरी ओर, मैतेई ने तर्क दिया है कि एक समुदाय के रूप में उनकी पारंपरिक विशेषताओं के कारण उन्हें एसटी के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए। इसके अलावा, उन्होंने कहा है कि बहुसंख्यक आबादी होने के बावजूद, वे घाटी क्षेत्रों में बसने तक ही सीमित थे, वे भी पहाड़ियों में बसने के योग्य हैं। एमटीयू ने यह भी प्रस्तुत किया है कि उन्हें स्वतंत्रता-पूर्व सर्वेक्षणों में एक जनजाति के रूप में गिना गया था लेकिन बिना स्पष्टीकरण के हटा दिया गया था।
एमटीयू और उसके सदस्यों का अदालत में प्रतिनिधित्व करने वाले वकील अजॉय पेबम ने कहा कि एमटीयू ने 27 मार्च के आदेश के खिलाफ एक समीक्षा आवेदन भी दायर किया है, जो उनके पक्ष में था।
“प्रारंभिक याचिका में हमने केवल यह मांग की थी कि राज्य सरकार को 2013 के केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय के पत्र का जवाब देने के लिए निर्देशित किया जाए। इसलिए समीक्षा में हमने प्रस्तुत किया है कि हम आदेश में किसी भी संशोधन को स्वीकार करेंगे।”
अब सवाल यह उठता है कि मणिपुर की सरकार राज्य में हिंसा को खत्म करके में असफल साबित हुई है। पुलिस-प्रशासन और सशस्त्र बलों की भारी मौजूदगी के बावजूद मैतेई कुकी समुदाय पर हमला बोल रहे हैं। कर्फ्यू लागू होने के बावजूद कुकी समुदाय अपने को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। हिंसा में मारे गए लोगों का अभी तक अंतिम संस्कार नहीं किया जा सका है। दरअसल, इस मामले में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह मोदी सरकार के इशारे पर सांप्रदायिक कार्ड खेल रहे हैं। मैतेई समुदाय हिंदू है तो कुकी समुदाय ज्यदातर ईसाई है। अब मणिपुर सरकार उन्हें मणिपुर का नागरिक मानने से इंकार करते हुए म्यांमार का बता रही है।
(जनचौक की रिपोर्ट।)
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