मणिपुर पर सिविल सोसाइटी ने कहा- पीएम मोदी चुप्पी तोड़ें और विभाजनकारी राजनीति से बाज आए बीजेपी

Estimated read time 1 min read

देश के नागरिक संगठनों और एक्टिविस्टों ने मई, 2023 की शुरुआत से मणिपुर में मेइती समुदाय तथा आदिवासी कुकी और जो समुदायों के बीच जारी जातीय हिंसा के बारे में गहरी चिंता व्यक्त की। इस समूह ने एक बयान जारी किया है जिसमें  प्रधानमंत्री से देश में चल रहे गृहयुद्ध (मणिपुर) पर अपनी विचलित कर देने वाली चुप्पी को तोड़ने का आह्वान किया। मणिपुर के पहाड़ी और घाटी क्षेत्रों में चल रही हिंसा पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है। क्योंकि इसके चलते बड़े पैमाने पर जीवन, आजीविका और संपत्ति का नुकसान हो रहा है और लोगों के बीच असुरक्षा और आतंक का भाव बढ़ता जा रहा है। अब तक 50,000 से अधिक लोग  300 शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। इस हिंसा के चलते लाखों पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को विस्थापन का सामना करना पड़ा है। और हिंसा अभी भी जारी है।

इस बयान में जोर देकर कहा गया है कि, ‘मणिपुर आज केंद्र और राज्य में भाजपा और उसकी सरकारों द्वारा चलाई जा रही विभाजन कारी राजनीति के कारण जल रहा है। और उन पर इस चल रहे गृहयुद्ध को रोकने की जिम्मेदारी है, इससे पहले कि और जानें चली जाएं।’ इसमें स्पष्ट तौर बताया गया है कि राज्य ने अपने राजनीतिक लाभ के लिए दोनों समुदायों के सहयोगी होने का नाटक किया है, जबकि सच यह है कि केवल ऐतिहासिक तनाव की खाई को चौड़ा किया है। भाजपा सरकार ने मौजूद संकट के समाधान की दिशा में बातचीत को सुगम बनाने का कोई प्रयास नहीं किया।

इस बयान में हिंसा पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गई है और जीवित बचे लोगों और शोक संतप्त लोगों से मिलने के लिए स्वतंत्र, गैर-पक्षपातपूर्ण नागरिक समाज के सदस्यों को भेजने के लिए कहा गया है। जिन लोगों की हत्या हुई है और जिन महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ है, उसके जांच की मांग की गई है।

हस्ताक्षरकर्ताओं ने निम्न मांगें की हैं:

– प्रधानमंत्री को ज़रूर अपना मुंह खोलना चाहिए और मणिपुर की मौजूदा स्थिति की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।

-तथ्यों को सामने लाने के लिए अदालत की निगरानी में एक ट्रिब्यूनल का गठन किया जाना चाहिए। मणिपुर के समुदायों को विभाजित करने वाले घावों को भरना चाहिए, ताकि विभाजन और नफरत को कम किया जा सके।

-राज्य से जुड़े और राज्य से सीधे नहीं जुड़ने वाले दोनों पक्षों द्वारा की गई यौन हिंसा के सभी मामलों के लिए एक फास्ट ट्रैक अदालत की स्थापना की जानी चाहिए। जैसा कि वर्मा आयोग ने सिफारिश की थी, ‘संघर्ष क्षेत्रों में यौन अपराधों के दोषी व्यक्तियों पर सामान्य आपराधिक कानून के तहत मुकदमा चलाया जाना चाहिए।’

-पलायन के लिए मजबूर लोगों को सरकार द्वारा राहत का प्रावधान और उनके गांवों में उनकी सुरक्षित वापसी की गारंटी। हिंसा के शिकार लोगों के घरों को फिर से बनाया जाए और उनके जीवन की गारंटी दी जाए। जिन लोगों ने प्रियजनों को खोया है, जो लोग घायल हुए हैं और जिनके घर, अनाज, पशुधन आदि को नुकसान पहुंचा है, उन लोगों को मुआवजा दिया जाए। घर वापसी, पुनर्वास और मुआवजे की इस प्रक्रिया की देखरेख सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के एक पैनल द्वारा की जानी चाहिए, जो इस क्षेत्र को करीब से जानते हैं। ऐसे न्यायाधीश उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त किया जाना चाहिए।

इस बयान का समर्थन कई अधिकार आधारित और नागरिक समाज समूहों द्वारा किया गया है, जिनमें शामिल हैं: पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, झारखंड जनाधिकार महासभा, सहेली महिला संसाधन केंद्र, हजरत ए जिंदगी मामूली, बगाइचा, यूनिटी इन कंपैशन, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय गठबंधन (एनएपीएम), नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वीमेन, इंडियन क्रिश्चियन वीमेन मूवमेंट, ह्यूमन राइट्स फोरम, वीमेन एगेंस्ट सेक्सुअल वायलेंस एंड स्टेट रिप्रेशन, ANHAD, फेमिनिस्ट्स इन रेजिस्टेंस, कर्नाटक जनशक्ति कोआर्डिनेशन ऑफ डेमोक्रैटिक राइट्स आर्गेनाइजेशन, पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रैटिक राइट्स आर्गेनाइजेशन, पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स, राष्ट्रीय धर्मनिरपेक्ष आंदोलन सतारा महाराष्ट्र इंडिया, बेबाक कलेक्टिव, विमोचना, भगत सिंह अंबेडकर छात्र संगठन, अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा (एआईकेकेएस), एचएक्यू: सेंटर फॉर चाइल्ड राइट्स, विमोचना, अनन्या महिला ओक्कुट्टा, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स पंजाब, प्रजस्वामिका रचयित्रुला वेदिका, इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन, कैंपेन अगेंस्ट फैब्रिकेटेड केसेज, स्वराज अभियान, जस्टिस कोलिशन ऑफ रिलीजियस – पश्चिम भारत, अखिल भारतीय क्विर एसोसिएशन, प्रगतिशील किसान मंच, समाजवादी जन परिषद, दिल्ली एनसीआर के कैथोलिक संघों का संघ, भारत न्याय परियोजना, ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फारेस्ट वर्किंग पीपुल, ऑल इंडिया डेमोक्रैटि वीमेन एसोसिएशन, नारी समता मंच

मुख्य हस्ताक्षरकर्ताओं में शामिल हैं:

सांसद: मनोज कुमार झा, बिहार से राज्यसभा के सांसद

सेवानिवृत्त नौकरशाह और पुलिस अधिकारी: मीना गुप्ता (सिविल सर्वेंट), पी गंगटे (आईपीएस), मीरान बोरवंकर (पुलिस अधिकारी)

एक्टिविस्ट: कविता श्रीवास्तव, मीरा संघमित्रा, बृंदा अडिगे, सेड्रिक प्रकाश, पीएम टोनी, बिश्वप्रिया कानूनगो, होलीराम तेरांग, मरियम धवले, मैमूना मोल्ला, खालिदा परवीन, डॉ. अजिता राव, हसीना खान, शबनम हाशमी, वरलक्ष्मी, सागरी रामदास, कविता कृष्णन, मीनाक्षी सिंह, कोरिने कुमार, वी. सल्दान्हा, अम्मू अब्राहम, राम पुनियानी, जगमोहन सिंह, ललिता रामदास, राघवेंद्र प्रसाद, कनीज़ फातिमा, जोसेफ मथाई, परमजीत सिंह, इरफ़ान इंजीनियर, अशोक चौधरी, दीपिका टंडन, सिराज दत्ता, चयनिका शाह, अनुराधा कपूर, मधु भूषण।

पत्रकार, फिल्म निर्माता और लेखक: आनंद पटवर्धन, जॉन दयाल, सिंथिया स्टीफन, पामेला फिलिपोस, राजश्री दासगुप्ता, रंजना पाधी, सुजाता मधोक, सोनल केलॉग, टीना गिल, शुद्धब्रत सेनगुप्ता।

वकील: शालिनी गेरा, यूसुफ मुच्छला, सुमिता हजारिका, प्योली स्वातिजा, ईशा खंडेलवाल, शालू निगम, लारा जेसानी

5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

You May Also Like

More From Author