Saturday, April 27, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: मॉनसून की बेरुखी और प्यासे बांध, क्या चंदौली बचा पाएगा धान के कटोरे का ताज?

चंदौली। एक कहावत है कि आषाढ़ में किसान चूक गया तो फिर उसे किसानी संवारना मुश्किल हो जाता है। आषाढ़ तो दूर सावन ने भी किसानों को धोखा दे दिया है। आषाढ़-सावन की हल्की बारिश को छोड़ दिया जाए तो अभी तक तेज बारिश नहीं हुई है। जुलाई भी दबे पांव निकल गया। दुनियावी जिम्मेदारियों के बोझ तले दबे जीवटता के धनी किसानों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है और अगस्त पर भी दांव खेला है।

साल 2022 में मानक से भी कम बारिश के चलते तकरीबन 30 सालों का रिकार्ड टूट गया था। तब लाखों किसानों के खेत परती रह गए थे। इससे किसानों को बंटाई और लीज की राशि व्यर्थ चली गई। रबी सीजन में मौसमी मार झेलने के बाद अभी किसान संभले भी नहीं थे कि सुखाड़ जैसे हालात से सामना हो गया। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि सूबे में धान के कटोरे के रूप में सुविख्यात चंदौली बंपर धान उत्पादन का ताज कैसे बचा पाएगा?

नहीं हो पाई है आधे रकबे की रोपाई

मॉनसून सीजन में सावन की अधूरी बारिश धरती की प्यास भी नहीं बुझा पाई है। लिहाजा, सीमांत, लघु और बंटाईदार किसानों की आंखें पथराई हुई हैं। खेतों में फावड़ा चलाने पर धूल उड़ रही है। इन्हें धान रोपाई के पीक सीजन में कुछ सूझ नहीं रहा कि, कैसे रोपाई करें? डीजल जलाकर और किराए के पंप से पानी लेकर यदि रोपाई कर भी ली तो फसल कैसे काटकर खलिहान तक पहुंचाएंगे?

बरसात नहीं होने से परती पड़ा खेत।

हालांकि निजी पंप और जहां नहरों में पानी है, वहां नहरों से सटे जोत के किसान जैसे-तैसे रोपाई कर चुके हैं। आज एक अगस्त गुजरने को है, अब तक धान के कटोरे चंदौली के आधे रकबे की भी रोपाई नहीं हो पाई है। जबकि, जुलाई के अंत तक यह आंकड़ा 80 फीसदी हो जाना चाहिए था।

सूख रही रोपी गई फसल 

चंदौली सदर के कांटा-जलालपुर गांव के किसान धनंजय प्रसाद लगभग तीन बीघे में धान की खेती करते हैं। इस बार बारिश के लेट लतीफ़ होने के चलते निजी पंप से धान की रोपाई कर लिए हैं। इससे भी इनकी समस्या ख़त्म नहीं हुई है। वे “जनचौक” को बताते हैं कि “किसी तरह धान की रोपाई कर पाया हूं। तीन बीघे में खाद, जुताई, खर-पतवार नाशक रसायन और मजदूरी आदि पर अब तक 15,000 रुपये खर्च कर चुका हूं”।

वो कहते हैं कि “बिजली पम्प का पानी भी बारिश का सहारा नहीं मिलने से कारगर साबित नहीं हो रहा है। जिस भी खेत में रोपाई भी हो रही है, वह सूखने लग रहा है। कुछ ही दिनों में पानी की कमी से फसलों में बेहिसाब खर-पतवार उग आएंगे। वहीं, देर से धान की बुआई के चलते फसल में रोग लगने की आशंका भी है। हम लोगों के गांव में नहर है, लेकिन वह भी हांथी का दांत बनी हुई है।”

पानी की कमी से किसान धनंजय के खेत में पड़ी दरार।

करें भी तो क्या?

चंदौली जिले में लगे आधा दर्जन पंप कैनाल पहले से भ्रष्टाचार और लापरवाही के शिकार हैं। भूपौली और नरवन इलाके में चलने वाले पंप कैनाल का पानी खेतों तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दे रहा है। कई सरकारी नलकूप भी लो वॉल्टेज के चलते धूल फांक रहे है। धान बेल्ट सैयदराजा, बहरनी, नरवन, सकलडीहा, मानिकपुर सानी, तेजोपुर, नौगढ़, चकिया, नियामताबाद, ताजपुर, शिकारगंज, बौरी, खुरहुजा, सरने, कमालपुर, भतीजा, जलालपुर, चहनियां, बगही, नौबतपुर, सोगाई, भुजना समेत कई दर्जनों गांव में पानी की कमी के कारण किसान परेशान हैं, इनको कुछ सूझ ही नहीं रहा है कि करें भी तो क्या?

मॉनसून के भरोसे खेती अब संभव नहीं

धान बेल्ट बरहनी विकासखंड के प्रगतिशील किसान कुबेरनाथ मौर्य को पिछले साल मॉनसून की लेट-लतीफी से जबरदस्त नुकसान पहुंचा था। एक एकड़ स्वयं के व तक़रीबन 40,000 हजार रुपये से पांच बीघा खेत लीज पर लिए था। इतना ही रकबा बंटाई पर लेकर धान की फसल लगाने के लिए सोचा था। लेकिन मॉनसून की बेरुखी से वे अपने आधे जोत को भी रोप नहीं पाए। ऐसे में लीज की राशि और बहुत सारे संसाधन की बर्बादी ने वृद्ध किसान कुबेरनाथ की कमर तोड़ दी। चालू खरीफ सीजन में फिर से 10 बीघे की खेती के लिए अच्छी बारिश की राह ताक रहे हैं।

प्रशासन भी जिम्मेदार

किसान कुबेर नाथ “जनचौक” से कहते हैं कि “रबी के सीजन में आंधी और बारिश ने फसलों को काफी नुकसान पहुंचाया। अब मॉनसून सीजन में बारिश न होने से खेती भी पिछड़ रही है। अभी तक जनपद और गांवों में आधे से अधिक किसानों के खेत परती हैं। गांव में नहर है, लेकिन खरीफ के सीजन में कभी पानी की एक बूंद नहीं आती है। खेती-किसानी दिनों-दिन घाटे का सौदा होती जा रही है।”

वृद्ध किसान कुबेरनाथ मौर्य।

वो कहते हैं कि “ऐसे ही चलता रहा तो बड़े पैमाने पर धान की खेती करना बंद कर दूंगा। प्रशासन को चाहिए कि, जब मॉनसून की बारिश नहीं हो रही है तो नलकूप, कैनाल और नहरों के द्वारा पानी की व्यवस्था सुनिश्चित करें। किसानों की बदहाली के लिए अकेले मॉनसून ही जिम्मेदार नहीं है, जिला प्रशासन, सिंचाई और नहर विभाग भी दोषी हैं।”

वे आगे बताते हैं “मानिकपुर-भुजना पंप कैनाल आठ सालों से बन ही रहा है। किसानों को उम्मीद थी कि धान की रोपाई तक यह चालू हो जाएगा, लेकिन यह उम्मीद जाती रही। जबकि, इस पंप कैनाल के चालू हो जाने से हजारों किसानों की लगभग 750 हेक्टेयर उपजाऊ भूमि की सिंचाई की व्यवस्था हो जाती। लंबे इंतजार के बाद भी पानी नहीं निकलने से किसान टूट चुके हैं और इनकी मुट्ठी भर जमीन को दो बूंद पानी मयस्सर नहीं हो सका है।”

बांधों को मूसलाधार बारिश का इंतज़ार

चंदौली जनपद में विंध्याचल पर्वतीय श्रृंखला में आधा दर्जन बड़े-छोटे बांध हैं। सिंचाई विभाग के अधिकारियों का मानना है कि अब भी अच्छी बारिश होने पर बांधों से नहरों में पानी छोड़ा जा सकता है। पिछले वर्ष भी कम बारिश से बांध का जल ग्रहण कम हुआ। इससे मुसाखाड़ और नौगढ़ जैसे बड़े बांध भी पानी की कमी से जूझ रहे हैं। सिंचाई विभाग के अनुसार वर्ष 2022 में 01 जून से 20 जुलाई के बीच मुसाखाड़ बांध क्षेत्र में 40 मिलीलीटर, नौगढ़ में 10 मिलीलीटर, लतीफशाह में 160 मिलीलीटर, चन्द्रप्रभा में 10 मिलीलीटर और मुजफ्फरपुर बांध में 10 मिलीलीटर ही मात्र बारिश हुई थी। इस बार बारिश नहीं होने से सभी परेशान हैं।

सफ़ेद हाथी बना मानिकपुर-भुजना पंप कैनाल।

पंप कैनाल भी प्यासे

अरंगी गांव के किसानों ने कुछ दिन पहले कर्मनाश नदी में बेड़ा लगा कर लिफ्ट कैनाल को चलाने का प्रयास किया लेकिन उसके बाद भी लिफ्ट कैनाल नहीं चल पाया। कर्मनाशा नदी के तटवर्ती गांवों नौबतपुर, चारी, चिरईगांव, मुड्डा, धनाइतपुर, अरंगी, अदसड़, ककरैत और करौती गांव के किसानों की खेती कर्मनाशा नदी में लगे लिफ्ट कैनालों के भरोसे होती है। लिहाजा, पानी की कमी के चलते कर्मनाशा सिस्टम के कमांड पर स्थित तकरीबन 20,500 एकड़ कृषि भूमि पानी के लिए तरस रही है।

नहरों में पानी टेल तक पहुंचाने और किसानों समस्याओं पर बात करने के लिए ‘जनचौक’ ने चंदौली के कृषि विभाग से संपर्क किया, लेकिन जवाब नहीं मिला। एक तरफ जनपद के लाखों किसान मॉनसून में मूसलाधार बारिश की कमी, बेपानी नहरें, लो वोल्टेज की समस्या, कैनाल पंपों की बदहाली आदि परेशानियों का सामना कर रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ ऐसा प्रतीत होता है कि जिम्मेदार व विभागीय अधिकारी दफ्तर में बैठकर सिर्फ कागजों में किसानों के खेत सींच रहे हैं। 

(उत्तर प्रदेश के चंदौली से पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट।)

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