नई दिल्ली। ब्रिक्स सम्मेलन में पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद भारत-चीन सीमा विवाद एक बार फिर से चर्चे में आ गया है। हालांकि केंद्र सरकार अभी तक यहीं कहती रही है कि एलएसी को पार कर चीन का कोई सैनिक भारतीय सीमा में नहीं आया है और न ही उसने जमीन के किसी हिस्से पर कब्जा किया है। लेकिन विपक्ष लगातार सरकार पर भारतीय जमीन को गंवाने का मोदी सरकार पर आरोप लगा रहा है।
इस बातचीत में दोनों नेताओं ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दोनों देशों बीच तनाव मुक्त करने के प्रयासों को तेज करने पर सहमति जाहिर की है। इसके साथ ही दोनों पक्ष उस दिशा में आगे बढ़ने के लिए सहमत हो गए हैं जिससे सैनिकों को अपने स्थानों से पीछे हटने की रूपरेखा बनायी जा सके। इस लिहाज से कमांडर और उसके उच्च स्तर पर व्यवस्थित वार्ता को पहली प्राथमिकता बतायी गयी।
सैनिकों को सीमा से कितना पीछे हटना पड़ेगा और वो सीमा एलएसी पर कहां होगा ये अभी तय नहीं हुआ है। सूत्रों की मानें तो अभी स्पष्ट आदेश का इंतजार किया जा रहा है। यह सब कई चरणों में पूरा होना है। चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ने वाली इस प्रक्रिया में ऐसे बहुत तौर-तरीकों को तैयार करने की जरूरत पड़ सकती है जिसमें यह तय करना होगा कि दोनों पक्षों को कितनी एरिया को छोड़ना पड़ेगा।
द इंडियन एक्सप्रेस ने पहले ही इस खबर की पुष्टि कर दी है कि इस महीने की शुरुआत में बातचीत के 19वें दौर के बाद सैन्य कमांडर आपस में कुछ एक ऐसे बिंदुओं पर चर्चा कर सकते हैं जिसमें जमीन के उन हिस्सों को एक दूसरे के लिए छोड़ने की एक सीमित समझ पर पहुंचा जा सके, जिन पर एक दूसरे का कब्जा है।
दोनों देशों के बीच बातचीत को प्रगति की दिशा में एक कदम के तौर पर देखा जा रहा है। अब दोनों पक्ष गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो के उत्तरी और दक्षिणी तटों और गोगरा और हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में गश्त बिंदुओं से अपने सैनिकों को वापस बुलाने और अस्थायी संरचनाओं को खत्म करने पर विचार कर सकते हैं।।
आखिरी बार दोनों देशों की तरफ से ऐसा कदम सितंबर 2022 में उठाया गया था जब दोनों सेनाओं ने कई दौर की बातचीत के बाद गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में पीपी-15 से पीछे हट गई थीं।
हालांकि, इसके बाद अधिकांश क्षेत्रों में सैनिकों के लौटने से एक बफर जोन का निर्माण हुआ, इससे दोनों देशों के सैनिकों के लिए उस जगह तक पहुंच पाना मुश्किल होने लगा जहां तक वो पहले गश्त लगाते थे।
इन टकराव वाले बिंदुओं के अलावा देप्सांग और डेमचक के पुराने मुद्दे, जो चीनी पीएलए द्वारा 2020 की घुसपैठ से पहले के हैं वो अभी भी बने रहेंगे।
देप्सांग के मैदानों में स्थित पीपी 10 से 13 तक के इलाके में भारतीय सेना के जाने के रास्ते को चीनी सैनिकों अवरुद्ध कर दिया है। इस तरह से वाई मुहाने से शुरू होकर 972 वर्ग किमी में फैले इस इलाके पर चीनी सैनिकों का कब्जा है। डेप्सांग मैदान, भारतीय रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण दौलत बेग ओल्डी के करीब स्थित है।
डेप्सांग मैदानी हिस्से में यह समस्या 2013 में शुरू हुई जब चीन ने इस क्षेत्र में 18 किलोमीटर तक घुसपैठ कर दिया था। उस समय दोनों देशों के बीच सहमति बनी थी कि दोनों पक्ष अपनी स्थिति से पीछे जाएंगे बावजूद इसके पीएलए सैनिक क्षेत्र को पूरी तरह से खाली नहीं किए थे।
डेमचोक में, जो पूर्वी लद्दाख के दक्षिणी भाग में है, समस्या मुख्य रूप से चार्डिंग निंगलुंग नाला (सीएनएन) जंक्शन पर है। कई उदाहरणों में पीएलए ने सीएनएन जंक्शन के पास स्थित सैडल पास पर भारतीय चरवाहों को भी रोका, भारत के अनुसार इस देश का हिस्सा था।
इस महीने 19वें दौर की वार्ता के बाद, मौजूदा मुद्दों को हल करने की बारीकियां तय करने के लिए मेजर जनरल स्तर की वार्ता आयोजित की गई, जिसमें एलएसी से जुड़े पुराने मुद्दे भी शामिल थे, साथ ही एलएसी के साथ 2020 से पहले के सभी गश्त बिंदुओं तक पहुंच प्राप्त करना भी उसका हिस्सा था।
कमांडरों ने कई मुद्दों पर चर्चा की जैसे पारस्परिक रूप से यह सुनिश्चित करना कि एलएसी के करीब कोई नई पोस्ट नहीं बनाई जाए और गश्त की विशिष्ट सीमाओं की पहचान की जाए।
(द इंडियन एक्सप्रेस की खबर पर आधारित।)
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