Saturday, April 27, 2024

महिलाओं ने किया एक सुर में एनपीआर का विरोध, पत्र लिखकर राज्यों के मुख्यमंत्रियों से की लागू न करने की अपील

नई दिल्ली। एक अप्रैल से देश भर में एनपीआर की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। इस संदर्भ में देश के कई महिला संगठनों ने मिलकर 17 मार्च को दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक प्रेस कान्फ्रेंस का आयोजन किया और इस मौक़े पर एक पत्र जारी किया जिस पर एक हजार से ज़्यादा महिलाओं ने हस्ताक्षर किए हैं। हस्ताक्षर करने वालों में कार्यकर्ता, लेखक, शिक्षाविद, किसान, वकील, डॉक्टर, पेशेवर लोग, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और 20 से ज़्यादा राज्यों की महिलाएं शामिल हैं। इस पत्र को देश भर के सभी मुख्यमंत्रियों के भेजा गया है। उसमें इस बात पर विशेष जोर दिया गया है कि देश की महिलाएं क्यों साझे तौर पर राज्यों के मुख्यमंत्रियों से आग्रह कर रही हैं कि एनपीआर पर रोक लगाई जाए। पूरे भारत वर्ष की 1000 से ज़्यादा महिलाएं राज्य मुख्यमंत्रियों को लिखती हैं कि “एनपीआर महिलाओं के ऊपर स्पष्ट रूप से खतरा उत्पन्न कर रहा है, एनपीआर को जनगणना के सूचीकरण से अलग करो।”

पत्र में लिखा है गया है कि “ हम भारत की महिलाओं के रूप में लिख रही हैं जो राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के खिलाफ़ है। भारत की 50% जनसंख्या महिलाओं की है और यह मुखालफत हमारे जीवन के अनुभवों से स्पष्ट साक्ष्य रखती है।”

सहेली संगठन की वाणी सुब्रमण्यम ने कार्यक्रम को मॉडरेट किया।

भारतीय महिला फेडरेशन की अध्यक्ष एनी राजा ने प्रेस कान्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि “ अधिकतर महिलाओं के नाम ज़मीन या संपत्ति नहीं होती है। महिलाओं की साक्षरता दर भी कम होती है। शादी के बाद वो बिना किसी कागजात के माता-पिता का घर छोड़ देती हैं। असम में 19 लाख की बड़ी तादाद में जो एनआरसी से छूटी हैं वह महिलाएं हैं। यही सच्चाई है।”

प्रगतिशील महिला संगठन दिल्ली की महासचिव पूनम कौशिक ने कहा कि “ हमने तमाम महिला आंदोलन की तरफ से तमाम मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखकर माँग की है कि न सिर्फ़ प्रस्ताव पास करके विरोध दर्ज करवाइए बल्कि इसे लागू करने के लिए अपने स्टेट की ब्यूरोक्रेसी को आप ऑर्डर पास कीजिए। विशेष दिशा निर्देश दीजिए कि आपके प्रांत में एनपीआर की कोई एक्सरसाइज नहीं की जाएगी। सीएए को रिपील किया जाना चाहिए। देश के अंदर भारत की संविधान की आत्म के खिलाफ़ जो ये कानून पास किया गया है संसद द्वारा ये संविधान के मूल्यों के खिलाफ़ है। ये उन तमाम रिफ्यूजी जिसमें तमाम औरतें हैं उन्हें आप सीएए कानून के तहत लैंगिक, धार्मिक भेदभाव करके नहीं हटा सकते। एनपीआर बिल्कुल महिलाओं के खिलाफ है। मैं दिल्ली सरकार से विशेष तौर पर मांग करती हूँ कि वो दिल्ली के अंदर एक्जीक्यूटिव ऑर्डर पास करे और आर्टिकल 131 के तहत सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दाखिल करे। जैसा कि दो राज्यों ने पहले ही किया है। 

शादी के चलते इंस्टीट्यूशनल माइग्रेशन होता है एक परिवार से दूसरे परिवार में। ऐसे में आधी आबादी के पास कोई कागज नहीं होता। आप इन्हें यूँ बेदखल नहीं कर सकते। जब बेटी इस देश की नागरिक ही नहीं रहेगी तो बचेगी क्या पढ़ेगी प्रधानमंत्री जी। प्रधानमंत्री मोदी से मैं अपील करती हूं कि आप भारत की महिलाओं की भावनाओं का सम्मान कीजिए जो तीन महीने से विपरीत परिस्थितियों में अनशन पर बैठकर आपसे संवाद करना चाहती हैं। आप उनकी बात सुनिए और एनपीआर, सीएए, एनआरसी को रद्द कीजिए।”

एडवा कि मरियम धावले ने प्रेस कान्फ्रेंस में कहा कि “राज्य सरकारों को एनपीआर लागू करने में जल्दबाज़ी नहीं दिखानी चाहिए। ये जोर क्यों दे रही हैं इस देश की महिला संगठन। क्योंकि ये हकीकत है कि देश भर की हाशिये की औरतों के पास कोई भी डॉक्यूमेंट नहीं है। तहसीलदार, कलेक्टर और मंत्रियों को हम इस बात को बताने के लिए ज्ञापन दे रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस मुल्क के 38% लोगों के पास जन्म प्रमाणपत्र नहीं है। अनाथ बच्चों को तो अपने मां-बाप तक नहीं पता है।

प्रवासी मजदूर जो काम की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं उनके पास न तो घर होता है, न डॉक्यूमेंट्स। कंस्ट्रक्शन वर्कर जिसमें महिलाओं की बड़ी संख्या है, के पास कोई काग़ज़ नहीं है। क्योंकि दूसरों का घर बनाने वाला यह हिस्सा अपना घर कभी बना ही नहीं पाता है। आदिवासियों के पास नहीं है कागज। हमारे देश में कागज सहेजकर रखने की परंपरा ही नहीं है। ऐसे हालात में महिला आंदोलन कह रही है कि बड़े पैमाने पर औरतों को तकलीफ होने वाली है। आप इतनी बड़ी संख्य़ा में डिटेंशन कैम्प बना रहे हो तो आपकी मंशा क्या है। आंगनवाड़ी वर्करों को कागज मांगने की ट्रेनिंग दी जा रही है। आप करोड़ों रुपए इस पर फूँक रहे हो।”

एनएपीएम की मीरा संघमित्रा ने कहा, “ ट्रांसजेंडर्स के प्रतिनिधियों के तौर पर मैं यहां हूँ। महिलाओं के आंदोलन ने बहुत कुछ साबित किया है। ये महिला आंदोलन का प्रभाव ही है कि एनआरसी, सीएए एनपीआर के खिलाफ़ कई राज्यों में रिसोल्यूशन पास करना पड़ा। एक तरफ डिजिटाइजेशन औऱ डेटाबेस का पूरा मैक्रो प्रोजेक्ट कैसे सभी समुदायों पर पड़ रहा है इसका उदाहरण हमने आधार के समय देखा है। हम संविधान आने के इतने साल बाद भी नागरिकता और समानता के हक के लिए लड़ रहे हैं। और ये उसे छीनने के लिए ढाँचा तैयार कर रहे हैं। विस्थापन की सबसे ज्यादा पीड़ा स्त्रियों को भुगतना पड़ता है इसे हम कई बार कई प्रोजेक्ट में देख चुके हैं।”

लेखक कार्यकर्ता फराह नकवी ने प्रेस कान्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि “ सब महिलाएं जाति और धर्म से निरपेक्ष इस एनपीआर, एनआरसी नागरिकता जैसी व्यवस्था से प्रभावित होंगी। नागरिकता की यह परीक्षा सरकार द्वारा मनमानी और डराकर लिए जाने की तैयारी है। महिलाएं और बच्चे जो आदिवासी समुदाय से हैं, दलित महिलाएं, मुस्लिम महिलाएं, प्रवासी श्रमिक, छोटा किसान, भूमिहीन, घरेलू कार्मिक, यौनकर्मी और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को नागरिकता साबित करने को कहा जाएगा। इन सभी पर बेदखली का जोखिम है।”

सतर्क नागरिक संगठन की अंजली भारद्वाज ने कहा, “ नागरिकता कानून की धारा 14 और 2003 नियम में साफ-साफ एनपीआर सामग्री को भारतीय नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरआईसी) के साथ जोड़ने की बात कही है और स्थानीय रजिस्ट्रार को शक्ति दी है कि वह लोगों को संदिग्ध नागरिक बना सकें। उन्होंने कहा कि गृहमंत्री ने 12 मार्च को जो संसद में कहा था कि किसी को भी संदिग्ध नहीं बनाया जाएगा उसकी कोई कानूनी गुणवत्ता नहीं होगी जब तक कि उचित कानूनों और नियमों में संशोधन नहीं किए जाएंगे।”

बता दें कि केरल और पश्चिम बंगाल ने एनपीआर को अलग रखने के लिए आदेश जारी किए हैं जबकि राजस्थान और झारखंड ने 1 अप्रैल से सिर्फ़ जनगणना का आदेश दिया है।

(अवधू आज़ाद की रिपोर्ट। आप संस्कृति और नाट्यकर्मी हैं। आजकल दिल्ली में रहते हैं।)  

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles