Friday, March 24, 2023

झारखंड: जंगल बचाने उतरीं गांव की महिलाएं, बनाई महिला वनाधिकार समिति

विशद कुमार
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महिला वनाधिकार समिति से जुड़ी महिलाएं रोज जंगल जाकर देखती हैं कि कोई जंगल को नुकसान तो नहीं पहुंचा रहा है। इसी क्रम में बांडी खजूरी गांव की 10 महिलाएं साल की लकड़ी काटकर लाते हुए पकड़ी गईं, जिन्हें समिति ने चेतावनी देकर और समझाकर छोड़ दिया। दूसरी तरफ जंगल में लगी आग की सूचना भी गांव वालों को दी, जिसके बाद गांव के लोगों ने आग बुझाई।

झारखंड। गढ़वा जिला के बरगढ़ प्रखंड के कला खजुरी गांव की महिलाओं ने वन संरक्षण यानी जंगल बचाने को लेकर एक महिला वनाधिकार समिति का गठन किया है। वैसे तो यह समिति पंजीकृत नहीं है कि इसको किसी भी स्तर से वित्तीय संरक्षण प्राप्त हो, लेकिन समिति से जुड़ी महिलाएं किसी तरह की आर्थिक आवश्यकता को खुद ही पूरा करती हैं।

इसकी वजह से बिना किसी बाधा के इन महिलाओं की पहल पर वन सुरक्षा का काम जारी है। समिति की सदस्य रोजाना वन कटाई को रोकने के लिए जंगल का भ्रमण करती हैं।

इसी क्रम में पिछले दिनों समिति ने बांडी खजूरी गांव की 10 महिलाओं को प्रतिबंधित साल की लकड़ी काटकर लाते हुए पकड़ा। उनकी तस्वीर खींची और ग्राम सभा में जुर्माना भरने की बात कही। इस बावत कला खजुरी के ग्राम प्रधान विश्राम बखला के द्वारा बांडी खजूरी गांव के ग्राम प्रधान बसंत नागेसिया को एक पत्र जारी कर संबंधित मामले की जानकारी दी गई।

जंगल की निगरानी कर रही महिला समिति में फोरकीला तिर्की, चौंठी बखला, सूली बखला, बंधनी बखला, चरकीना तिर्की, सस्ती बखला, मार्था तिर्की, सकींता तिर्की, सुसंती देवी, प्रेमशिला बखला, हीरामणि कुजूर, सावित्री बखला और कांति पन्ना प्रमुख रूप से शामिल हैं।

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ग्राणीणों के साथ महिलाओं की बैठक

इस समिति ने गत 14 मार्च 2023 को जंगल भ्रमण के दौरान जंगल में लगी हुई आग को देखा और उसकी सूचना ग्राम प्रधान को दी। ग्राम प्रधान ने 15 मार्च को जंगल में लगी आग को बुझाने के बावत डाकुआ (नगाड़ा) के माध्यम से डुगडुगी बजाकर इसकी सूचना गांव तक भिजवाई।

डाकुआ द्वारा सूचना देने के बाद ग्राम प्रधान विश्राम बखला, उप प्रधान विश्वनाथ बखला, वनाधिकार समिति के अध्यक्ष नोवेल तिर्की, ग्राम सभा के सचिव आनद बखला, सूचित बखला, कुलदीप बखला, राजेश बखला, किस्मत केरकेट्टा, हिरान बखला, बंधन किसान, जेठू कच्छप, अनुराग बखला, सुनीता कच्छप, फुलमत बखलदीप रंजन बखला, रमेश तिर्की, फिलकस बखला और सुनील मिंज आदि चटनिया जंगल में एकत्र हुए और उनके द्वारा वहां आग बुझाने की रणनीति बनाई गई।

रणनीति के तहत सभी ने ग्रामीणों के साथ झपटादार लकड़ी पकड़ी और चटानिया जंगल से आग बुझाते हुए हरियर टोंगरी, सेखवन, मथानी, भट्ठीकुड़ा और जहाजी पहाड़ में लगी आग को बुझाते हुए चटनियां में एकत्रित हुए। आग बुझाने में ग्रामीणों को 5 घंटे का समय लगा। चटानिया में ही रणनीति बन गई कि दिन के दूसरे पहर वन की कटाई और जंगल में आग लगाने को लेकर कला खजुरी के आंबा टांड़ में एक आकस्मिक बैठक का आयोजन किया जाएगा।

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जंगल में लगी आग बुझाते ग्रामीण

ग्राम प्रधान की अध्यक्षता वाली इस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि पड़ोस वाले गांव के लोग अगर साल के पेड़ की कटाई करते पकड़े गए तो उनसे प्रति पेड़ 1,000 रुपये बतौर जुर्माना लिया जाएगा। आग लगाने वाले व्यक्तियों पर भी आर्थिक दंड लगाने की बात कही गई।

महिला वनाधिकार समिति के गठन पर समिति की फ्रोकिला तिर्की कहती हैं कि जल, जंगल, जमीन हमारे हैं, जिन्हें बचाना हमारा कर्तव्य है। इसलिए हम महिलाओं ने मिलकर जंगल बचाने का संकल्प लिया और महिला वनाधिकार समिति का गठन किया।

वो आगे कहती हैं कि हम महिलाएं रोज जंगल जाकर देखती हैं कि कोई जंगल को नुकसान तो नहीं पहुंचा रहा है। इसी क्रम में बांडी खजूरी गांव की 10 महिलाएं साल की लकड़ी काटकर लाते हुए पकड़ी गईं, जिन्हें हमने चेतावनी देकर और समझाकर छोड़ दिया। दूसरी तरफ हमने जंगल में लगी आग की सूचना भी गांव वालों को दी, जिसके बाद गांव के लोगों ने आग बुझाई।

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जंगल में लगी आग बुझाते लोग

पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता सुनील मिंज बताते हैं कि कला खजुरी ग्राम का यह जंगल 872.42 एकड़ में बसा है, जिसमें से लगभग 200 एकड़ जंगल पर आग लग गई थी। शंका के आधार पर यह बात सामने आई कि संभवतः महुआ चुनने वाले लोगों ने यह आग लगाई होगी।

दरअसल महुआ जब चूकर नीचे जमीन पर गिरता है तो वह पेड़ों से गिरे पत्तों से ढंक जाता है, जिसके कारण महुआ चुनने वालों को परेशानी होती है और महुआ चुनने में उन्हें ज्यादा समय लग जाता है। इस झंझट से बचने के लिए और साफ जमीन पर महुआ जल्दी जल्दी चुन सकें, इसलिए वो पत्तों में आग लगा देते हैं, वही आग हवा के कारण तेजी से जंगल में फैल जाती है।

सुनील कहते हैं कि ग्रामीण अभी भी जंगल और पर्यावरण के संबंध को नहीं समझते हैं। हकीकत यह है कि जंगल में आग लगने से छोटे छोटे पौधे जलकर राख हो जाते हैं। दुर्लभ जड़ी बूटियां भस्म हो जाती हैं। बड़े पेड़ झुलसकर ठूंठ हो जाते हैं। जंगली कीड़े मकोड़े जो इन्सानों के लिए फायदेमंद होते हैं वे भी जलकर मर जाते हैं।

वे आगे बताते हैं कि इस वन में पिछले वर्ष भी आग लगने की घटना हुई थी। बुजुर्ग बताते हैं कि आग लगने से ही इस जंगल में बांस की झाड़ी खत्म हुई है।

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जंगल बचाने के अभियान में निकले लोग

किस्मत केरकेट्टा ने बताया कि पहले चटानिया में पूरी गर्मी पानी की कमी नहीं होती थी। लेकिन अब पेड़ कटने से मौसम चक्र में बदलाव आ रहा है और गर्मी के शुरू होने के समय में ही पानी का अभाव हो रहा है। ऐसे में जंगली जानवर तो पानी के लिए परेशान रहेंगे ही, इन्सानों को भी पीने के पानी की किल्लत उठानी पड़ सकती है।

जंगल से पेड़ काटने और आग लगाने की घटना को लेकर 18 मार्च को बांडी खजूरी में ग्राम सभा की एक बैठक की गई और इस बैठक में ग्राम सभा द्वारा जो निर्णय लिए गए उसके आलोक में कहा गया है कि –

  • जंगल सभी गांव के लोगों को मिलकर बचाना होगा।
  • सूखी लकड़ियों एवं गैर इमारती लकड़ियों को जलावन के लिए इस्तेमाल करें।
  • शादी के लिए लकड़ी लाना हो तो ग्राम सभा को आवेदन दें।
  • जो भी नियम विरुद्ध काम करेगा उससे एक सखुआ पेड़ पर 1,000 रू जुर्माना लिया जाएगा।
  • नव कोपल पौधों को बकरी एवं गायों के लिए न काटें।
  • फैसले के बाद जो लकड़ी काटेंगे उन पर जुर्माना लगाया जाएगा।

(झारखंड के गढ़वा से विशद कुमार की रिपोर्ट)

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