विनेश, साक्षी और बजरंग का इमोशनल पत्र: देश में हमारा कुछ नहीं बचा, मेडल गंगा में प्रवाहित कर देंगे

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नई दिल्ली। पिछले 2 दिनों से देश इस उहापोह से गुजर रहा था कि जंतर-मंतर से उखाड़ दिए जाने और राजधानी की सड़कों पर घसीटकर बसों और पुलिस वैन में ठूंस कर विभिन्न थानों में हिरासत में रखे जाने के बाद दिल्ली की सीमाओं पर फेंक दिए गये महिला पहलवानों के पास अब क्या विकल्प बचा है?

महिला खिलाड़ियों ने मोदी राज से न्याय की आस की थी, लेकिन उन्हें दिल्ली की सड़कों पर अपराधियों की तरह घसीटा गया। मान-सम्मान की जगह अपमान के घूंट पीकर 2 दिन बाद मंगलवार को महिला पहलवानों ने एक ऐसी घोषणा की है, जो देश की मर चुकी अंतरात्मा को झिंझोड़ने के लिए काफी होनी चाहिए।

विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपने जख्मों का खुलासा करते हुए एक पत्र जारी किया है, जिसमें उन्होंने ऐलान किया है कि वे अपने जीते गये सभी पदक हरिद्वार में जाकर गंगा में तिरोहित करेंगे। इसके साथ ही सभी खिलाड़ी अब जंतर-मंतर के बजाय इंडिया गेट पर ‘आमरण अनशन’ पर बैठेंगे।

विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पूनिया द्वारा सोशल मीडिया पर जारी पूरा पत्र पढ़िए…

“28 मई को जो हुआ वह आप सबने देखा। पुलिस ने हम लोगों के साथ क्या व्यवहार किया। हमें कितनी बर्बरता से गिरफ्तार किया। हम शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे। हमारे आंदोलन की जगह को भी पुलिस ने तहस-नहस कर हमसे छीन लिया और अगले दिन गंभीर मामलों में हमारे ऊपर ही एफआईआर दर्ज कर दी गई। क्या महिला पहलवानों ने अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के लिए न्याय मांगकर कोई अपराध कर दिया है।

पुलिस और तंत्र हमारे साथ अपराधियों जैसा व्यवहार कर रही है, जबकि उत्पीड़क खुली सभाओं में हमारे ऊपर फब्तियां कस रहा है। टीवी पर महिला पहलवानों को असहज कर देने वाली अपनी घटनाओं को कबूल करके उनको ठहाकों में तब्दील कर दे रहा है। यहां तक कि पास्को एक्ट को बदलवाने की बात सरेआम कर रहा है। हम महिला पहलवान अंदर से इतना ऐसा महसूस कर रही हैं कि इस देश में हमारा कुछ बचा नहीं है। हमें वे पल याद आ रहे हैं जब हमने ओलंपिक, वर्ल्ड चैंपियनशिप में मेडल जीते थे।

अब लग रहा है कि क्यों जीते थे। क्या इसलिए जीते थे कि तंत्र हमारे साथ ऐसा घटिया व्यवहार करे। हमें घसीटे और फिर हमें ही अपराधी बना दे।

कल पूरा दिन हमारी कई महिला पहलवान खेतों में छिपती फिरी हैं। तंत्र को पकड़ना उत्पीड़क को चाहिए था, लेकिन वह पीड़ित महिलाओं को उनका धरना खत्म करवाने, उन्हें तोड़ने और डराने में लगा हुआ है।

अब लग रहा है कि हमारे गले में सजे इन मेडलों का कोई मतलब नहीं रह गया है। इनको लौटाने की सोचने भर से हमें मौत लग रही थी, लेकिन अपने आत्म सम्मान के साथ समझौता करके भी क्या जीना।

यह सवाल आया कि किसे लौटाएं। हमारी ऱाष्ट्रपति को, जो खुद एक महिला हैं। मन ने ना कहा, क्योंकि वह हमसे सिर्फ 2 किलोमीटर दूर बैठी सिर्फ देखती रहीं, लेकिन कुछ भी बोली नहीं।

हमारे प्रधानमंत्री को, जो हमें अपने घर की बेटियां बताते थे। मन नहीं माना, क्योंकि उन्होंने एक बार भी अपने घर की बेटियों की सुध-बुध नहीं ली। बल्कि नयी संसद के उद्घाटन में हमारे उत्पीड़क को बुलाया और वह तेज सफेदी वाली चमकदार कपड़ों में फोटो खिंचवा रहा था। उसकी सफेदी हमें चुभ रही थी। मानो कह रही हो कि मैं ही तंत्र हूं।

इस चमकदार तंत्र में हमारी जगह कहां हैं, भारत के बेटियों की जगह कहां है? क्या हम सिर्फ नारे बनकर या सत्ता में आने भर का एजेंडा बनकर रह गई हैं।

ये मेडल अब हमें नहीं चाहिए, क्योंकि इन्हें पहनाकर, हमें मुखौटा बनाकर सिर्फ अपना प्रचार करता है यह तेज सफेदी वाला तंत्र। और फिर हमारा शोषण करता है। हम उस शोषण के खिलाफ बोलें तो हमें जेल में डालने की तैयारी कर लेता है।

इन मेडलों को हम गंगा में बहाने जा रहे हैं, क्योंकि वह गंगा मां हैं। जितना पवित्र हम गंगा को मानते हैं उतनी ही पवित्रता से हमने मेहनत कर इन मेडलों को हासिल किया था। ये मेडल सारे देश के लिए ही पवित्र हैं और पवित्र मेडल को रखने की सही जगह पवित्र मां गंगा ही हो सकती हैं, न कि हमें मुखौटा बना फायदा लेने के बाद हमारे उत्पीड़क के साथ खड़ा हो जाने वाला हमारा अपवित्र तंत्र।

मेडल हमारी जान हैं, हमारी आत्मा हैं। इनके गंगा में बह जाने के बाद हमारे जीने का भी कोई मतलब रह नहीं जाएगा। इसलिए हम इंडिया गेट पर आमरण अनशन पर बैठ जाएंगे। इंडिया गेट हमारे उन शहीदों की जगह है जिन्होंने देश के लिए अपनी देह त्याग दी। हम उनके जितने पवित्र तो नहीं हैं लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलते वक्त हमारी भावना भी उन सैनिकों जैसी ही थी।

अपवित्र तंत्र अपना काम कर रहा है और हम अपना काम कर रहे हैं। अब लोक को सोचना होगा कि वह अपनी इन बेटियों के साथ खड़े हैं या इन बेटियों का उत्पीड़न करने वाले उस तेज सफेदी वाले तंत्र के साथ।

आज शाम 6 बजे हम हरिद्वार में अपने मेडल गंगा में प्रवाहित कर देंगे।

इस महान देश के हम सदा आभारी रहेंगे।”

क्या महिला खिलाड़ियों की पीड़ा समझेगा देश?

कल तक देश की शान कही जाने वाली इन महिला पहलवान खिलाड़ियों को यही गुमान था कि देश ही नहीं दुनियाभर से देश के लिए मेडल लाने से उनका रुतबा सरकार की निगाह में आम नागरिकों से ऊपर है। यही वजह है कि जनवरी माह में जब वे पहली बार धरने पर बैठे, तो केंद्र सरकार के आश्वासन पर उन्होंने अपना धरना उठा दिया था।

लेकिन 3 महीनों तक जब मोदी सरकार ने अपने सांसद बृज भूषण सिंह की करतूतों पर कोई कार्रवाई नहीं की तो एक बार फिर अप्रैल में विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया के नेतृत्व में महिला खिलाड़ियों के लिए न्याय की मांग के लिए एक नए संकल्प के साथ खिलाड़ी इकट्ठा हुए। लेकिन इस बार वे पहले की तुलना में राजनीतिक रूप से परिपक्व हो चुके थे। अब उन्हें इस बात का मुगालता नहीं रह गया था कि सरकार के लिए वे देश की शान हैं, और सरकार आसानी से उनकी मांगों पर कार्रवाई करेगी।

लेकिन उन्हें अभी बहुत कुछ सीखना बाकी था, जो उन्होंने एक माह से भी अधिक समय से अपने ऊपर लगने वाले अनगिनत इल्जामों, सरकार के असली स्वरूप और मीडिया की असलियत से समझ ली है। लेकिन शायद उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि सरकार उनके साथ इस प्रकार का दुर्व्यवहार करेगी, जैसा दो दिन पहले महिला महापंचायत के लिए अड़े पहलवान खिलाड़ियों को झेलना पड़ा।

खिलाड़ियों की पीड़ा यह भी बताती है कि वे देश की जागरूक आबादी और विशेषकर महिलाओं और युवाओं से इससे बेहतर रिस्पॉन्स की उम्मीद कर रही थीं, जो सरकार के मीडिया दुष्प्रचार और नैरेटिव के जाल से अभी भी बाहर निकल नहीं पाए। उनका यह कदम निश्चित तौर पर बड़े हिस्से को झकझोरने में कामयाब होगा।

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