Thursday, March 28, 2024

कोरोना से निपटने के लिए केंद्रीय योजना बनाने में योगी सरकार रही असफल

सेरावां निवासी सूर्य नारायण तिवारी पिछले 20 सालों से लगातार मलमास महीने में पंड़िला महादेव मंदिर में निशान चढ़ाते आए हैं। निसान के एक दिन पहले रामचरित मानस का अखंड पाठ और 12 मौजे के गांव में पांच हजार लोगों का भंडारा कराते आए हैं। हर तीसरे साल होने वाला ये आयोजन उनके लिए धार्मिक आस्था के साथ-साथ अपने धन-वैभव के प्रदर्शन का भी एक जरिया था, लेकिन इस साल कोविड-19 वैश्विक महामारी के प्रकोप और लॉकडाउन की कुछ बंदिशों की वजह से वो लगातार दुखी थे, क्या अब की बार मलमास ऐसे ही चला जाएगा, लेकिन योगी सरकार द्वारा 21 सितंबर से अंत्येष्टि, शादी-विवाह और धार्मिक तथा सामाजिक आयोजनों में 100 लोगों के शामिल होने का दिशा-निर्देश जारी करने के बाद उन्होंने राहत की सांस ली है।

दूसरी ओर महाराष्ट्र 8,08,306 कर्नाटक 3,51,481, तमिलनाड़ु 4,33,969, के बाद उत्तरप्रदेश 2,35,757 कोविड-19 संक्रमितों की संख्या के लिहाज से चौथे नंबर पर है। उत्तर प्रदेश में कोविड-19 की कम जांच दर के बावजूद कोरोना के मामले लगातार भयावह रूप लेते जा रहे हैं। प्रदेश में अब तक 3542 लोगों की कोरोना से मौत हो चुकी है।

एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश की योगी सरकार को डांट भी पिलाई, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसके उलट 21 सितंबर से अंत्येष्टि, शादी विवाह और धार्मिक तथा सामाजिक आयोजनों में 100 लोगों के शामिल होने का दिशा निर्देश जारी कर दिया।

कोर्ट ने ताजिया निकालने की याचिका ख़ारिज की
उत्तर प्रदेश में कोरोना के बढ़ते मामले को देखते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मुहर्रम के दौरान ताजिया का जुलूस निकालने और ताजिया दफनाने की अनुमति दिए जाने की मांग वाली याचिकाओं को 30 अगस्त शनिवार को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि मुहर्रम के दौरान जुलूस निकालने पर किसी तरह की रोक, धर्म का पालन करने के उनके मौलिक अधिकार का हनन है, जबकि इसी अवधि में राज्य सरकार द्वारा कई अन्य धार्मिक गतिविधियों की अनुमति दी गई, लेकिन केवल मुहर्रम के जुलूस की अनुमति नहीं दी गई, जोकि राज्य सरकार की तरफ से भेदभावपूर्ण कार्रवाई है याचिकाकर्ताओं ने ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा निकालने की अनुमति दिए जाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी हवाला दिया। रोशन खान और कई अन्य द्वारा दायर इन याचिकाओं पर सुनवाई न्यायमूर्ति एसके गुप्ता और न्यायमूर्ति शमीम अहमद की पीठ ने की।

कोरोना मनुष्य जीवन के लिए ख़तरा तो हुक्काबार क्यों हैं खुले
लखनऊ विश्वविद्यालय के कानून के छात्र हरदोविंद पांडेय की याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में हुक्का बार पर रोक लगा दी है। 25 अगस्त को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यूपी के मुख्य सचिव राजेंद्र तिवारी को आदेश दिया कि किसी भी रेस्टोरेंट और कैफे में हुक्का बार चलाने की अनुमति न दी जाए। कोर्ट ने 30 सितंबर तक इस आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट तलब की है। न्यायमूर्ति शशिकांत गुप्ता और शमीम अहमद की खंडपीठ ने इस मामले में अधिवक्ता विनायक मित्तल को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया है।

कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा, “लॉकडाउन के बावजूद कोरोना जंगल में आग की तरह फैलता जा रहा है। यह मानव जीवन के अस्तित्व के लिए ख़तरा बना गया है। हम घने अंधेरे जंगल के बीच खड़े हैं। कल क्या होगा इसका पता नहीं है। यदि रेस्टोरेंट और कैफे में हुक्का बार पर प्रतिबंध नहीं लगाया तो यह सामुदायिक संक्रमण का रूप ले लेगा।”

हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव से पूछा, लापरवाह अधिकारियों पर क्यों नहीं हुई कार्रवाई
25 अगस्त को ही इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस अजित कुमार की खंडपीठ ने सात जिलों लखनऊ, कानपुर नगर, प्रयागराज, वाराणसी, बरेली, गोरखपुर और झांसी में कोरोना की स्थिति पर संज्ञान लेते हुए प्रदेश में कोरोना संक्रमितों की मौत के बढ़ रहे आंकड़ों पर चिंता जाहिर की है। यूपी सरकार को हाई कोर्ट ने लॉकडाउन लगाने की भी सलाह दी है। साथ ही यूपी के मुख्य सचिव से जवाब तलब किया है। कोर्ट ने मुख्य सचिव को हलफनामा दाखिल कर बताने को कहा है कि क्या सरकार के पास संक्रमण की रोकथाम के लिए कभी भी कोई केंद्रीय योजना रही है या जिलों के प्रशासनिक अधिकारी अपने-अपने तरीके से आदेश पारित कर रहे हैं।

हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव से पूछा है कि आखिर लापरवाह अधिकारियों पर क्यों कार्रवाई नहीं हुई। साथ ही कोरोना से निपटने का एक्शन प्लान भी पेश करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि जिला प्रशासन भीड़ लगाने वालों पर नियंत्रण करने में नाकाम रहा है। पुलिस ने बिना मास्क लगाकर निकलने वालों और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने वालों पर जुर्माना लगाया, लेकिन फिर भी लोग अपनी जान की परवाह नहीं कर रहे हैं। तमाम उपायों के बावजूद कोरोना वायरस के बढ़ते हुए संक्रमण को देखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि हमारी राय में लॉकडाउन से कम कोई उपाय संक्रमण रोकने में कारगर साबित नहीं होगा।

हाईकोर्ट ने कोरोना से निपटने के योगी सरकार के तरीके पर जताई नाराज़गी
इसके एक सप्ताह बाद ही 31 अगस्त को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में कोरोना के बढ़ते मामलों के बावजूद ठोस कदम न उठाने पर सरकार की खिंचाई की है। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजित कुमार की बेंच ने क्वारंटीन सेंटरों की दुर्दशा और अस्पतालों में इलाज की बेहतर सुविधाओं को लेकर दायर जनहित याचिका पर सरकार से पूछा है कि सरकार क्या कदम उठाएगी, जिससे ऐसे लोगों पर असर पड़े और लोग गाइडलाइन का पालन करने लगें।

कोर्ट ने मुख्य सचिव की ओर से दाखिल हलफनामे में कोविड-19 की राष्ट्रीय गाइडलाइन एक और दो का पालन करने के लिए उठाए गए किसी कदम की जानकारी न देने पर नाराजगी जताई है। हाईकोर्ट ने एक दिन का समय देते हुए पूछा है कि सोशल डिस्टेन्सिंग और मास्क पहनने के नियम का पालन कैसे कराएंगे?

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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