तेलंगाना चुनाव चर्चा: बीआरएस और कांग्रेस में मुख्य मुकाबला

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नई दिल्ली। यूं तो तेलंगाना विधानसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा निर्वाचन आयोग ने अभी नहीं की है लेकिन राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के साथ ही इसी वर्ष के अंत तक चुनाव होने की संभावना है। स्वतंत्र भारत के इस 29वें राज्य के रूप में तेलंगाना का गठन 2013 में हुआ था।

चुनाव तिथि घोषित होने के पहले ही मुख्यमंत्री एवं भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के अध्यक्ष के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने अप्रत्याशित रूप से एक ही बार में कुल 119 सीटों में से 115 पर उम्मीदवारों की 21 अगस्त को घोषणा कर दी। इनमें सिर्फ सात नए चेहरे है। उन्होंने 2018 के पिछले चुनाव में जीते अपने 63 विधायकों में से 4 कैबिनेट मंत्री और विधानसभा स्पीकर समेत 14 के टिकट काटे थे। तब बीआरएस का नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) था। केसीआर दो सीटों गजवेल और कामारेड्डी से, उनके पुत्र एवं राज्य सरकार में मंत्री केटी रामाराव (केटीआर), सिरसिला से चुनाव लड़ेंगे। केसीआर 16 अक्टूबर को वारंगल में पार्टी घोषणापत्र जारी करेंगे।

कांग्रेस ने उम्मीदवारों की सूची तय करने के लिए संभावित प्रत्याशियों से आवेदन मांगे हैं जिसे प्रदेश स्क्रीनिंग कमेटी जांच कर केंद्रीय चुनाव समिति को भेजेगी और फिर उसे नवगठित कांग्रेस कार्य समिति (CWC) अपनी मंजूरी देगी।

भाजपा तीसरे नंबर की पार्टी है और उसका मनोबल कर्नाटक के हालिया चुनाव में हार से गिरा हुआ है। उसे सभी 119 सीटों के लिए चेहरों की तलाश है।

एक हालिया सर्वे के मुताबिक तेलंगाना में मुख्यमंत्री पद के लिए केसीआर लोगों की पहली पसंद हैं। बीआरएस नेता बी विनोद के अनुसार भले किसी विधायक के खिलाफ नाराजगी हो पर लोग केसीआर के लिए ही वोट देंगे। वह अपने विधायकों के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी को बचा सकते है। केसीआर ने स्वर्णिम तेलंगाना का निर्माण करने के पुराने नारे, राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने, किसानों के लिए रायथु बंधु, रायथु बीमा, अनुसूचित जाति के लिए दलित बंधु, पिछड़ी जातियों के लिए बीसीबंधु, बुजुर्गों, विधवाओं, विकलांगों और वंचित तबकों के लिए पेंशन जैसी योजनाओं के दम पर नया चुनाव लड़ने का इरादा किया है। केसीआर का अपना आकलन है कि बीआरएस 95 से 105 सीटें जीतेगी। उन्होंने हैदराबाद से लोकसभा सदस्य असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) को मित्र पार्टी बताया।

बीआरएस प्रत्याशियों की लिस्ट में सिरपुर से कोनेरू कोनप्पा, चेन्नूर (एससी) से बाल्का सुमन, बेल्लमपल्ली (एससी) से दुर्गम चिन्नैया, मंचेरिल से नदीपेल्ली दिवाकर राव, आसिफाबाद (एसटी) से कोवा लक्ष्मी, खानापुर (एसटी) से भुक्या जॉनसन राठौड़ नाइक, आदिलाबाद से जोगु रमन्ना, बोथ (एसटी) से अनिल जाधव, निर्मल से अल्लोला इंद्रकरण रेड्डी, मडहोल से गद्दीगारी विट्ठल रेड्डी, बांसवाड़ा से पोचारम श्रीनिवास रेड्डी, बोधन से मोहम्मद शकील आमिर शामिल हैं। इनके अलावा जुक्कल (एससी) से हनमंत शिंदे, येल्लारेड्डी से जाजला सुरेंद्र, निजामाबाद शहरी से बिगाला गणेश गुप्ता, निजामाबाद ग्रामीण से गोवर्धन बाजीरेड्डी, बालकोंडा से वेमुला प्रशांत रेड्डी को टिकट मिला है। केसीआर ने स्वर्णिम तेलंगाना का निर्माण करने के पुराने नारे पर नया चुनाव लड़ने का इरादा किया है।

तेलंगाना स्वतंत्र भारत का 29 वां राज्य है जिसका गठन लंबे आंदोलन के बाद कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की मनमोहन सिंह सरकार ने कुछ हड़बड़ी में 2013 में आंध्र प्रदेश का विभाजन कर किया था। वहां की दूसरी विधानसभा के चुनाव उसके निर्धारित कार्यकाल पूरा होने के करीब सात माह पहले कराये गए। दक्षिण भारत के इस राज्य में चुनाव पूर्वोत्तर भारत के मिजोरम और उत्तर भारत के तीन राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के साथ ही कराये गए। इन राज्यों में मतदान की तारीख अलग-अलग थी पर मतगणना एकसाथ 11 दिसम्बर को कर उसी दिन परिणामों की घोषणा कर दी गई। मतदान, इलेकट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से और मतगणना भी ईवीएम से ही हुई।

तेलंगाना की 2014 में चुनी गई प्रथम विधानसभा का कार्यकाल जुलाई 2019 में समाप्त होना था। नए चुनाव 17 वीं लोकसभा के मई 2019 से पहले निर्धारित चुनाव के साथ कराने की संभावना थी। लेकिन पहली विधानसभा राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री केसीआर के मंत्रिमंडल की सिफारिश पर 6 सितम्बर को भंग कर नया चुनाव कराने का निर्णय किया गया। केसीआर को तेलंगाना के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ कराने में जोखिम नज़र आया क्योंकि उसमें दस राज्यों के साथ आंध्र प्रदेश के भी चुनाव शामिल थे।

चुनावी मोर्चा

तेलंगाना के पहले विधानसभा चुनाव में टीआरएस ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन किया था मगर दूसरे चुनाव में यह टूट गया। राज्य में चुनाव का घमासान रुप देख टीडीपी ने राजनीतिक पलटी मार कर करीब चार दशक के अपने इतिहास में पहली बार कांग्रेस से हाथ मिला ‘महा-कुटुमी’ मोर्चा बनाया जिसमें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और तेलंगाना जन समिति (टीजेएस ) भी शामिल हुए। कांग्रेस ने खुद के लिए 95 सीटें रख 14 टीडीपी और शेष सीटें इस मोर्चा के अन्य दलों के वास्ते छोड़ दी थी। तब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष उत्तम कुमार रेड्डी थे।

तेलंगाना में नई मोर्चाबंदी यहीं ख़तम नहीं हुई। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) ने कांग्रेस और टीडीपी ही नहीं भाकपा से भी अलग चुनावी लड़ाई छेड़ दी। माकपा ने 28 छोटी पार्टियों के संग मिलकर ‘बहुजन लेफ्ट फ्रंट’ (बीएलएफ) नाम का नया चुनावी मोर्चा बनाया। माकपा ने राजस्थान में भी भाजपा और कांग्रेस, दोनों के ही खिलाफ अन्य कम्युनिस्ट और मध्यमार्गी पार्टियों एवं किसान संगठनों के साथ मिल नई मोर्चाबंदी कर ‘राजस्थान लोकतांत्रिक मोर्चा’ का गठन किया था।

किसी ज़माने में तेलंगाना में कम्युनिस्ट पार्टी बड़ी ताकत होती थी। कम्युनिस्टों ने किसानों को संगठित कर हैदराबाद के तत्कालीन निज़ाम और सामंती सत्ता के खिलाफ 1946 से 1951 तक सशत्र संघर्ष किया था जिसका विवरण स्वीडन के नोबेल पुरस्कार विजेता गुन्नार मिर्डल और अल्वा मिर्डल के पुत्र जान मिर्डल की पुस्तक ‘इंडिया वेट्स’ में है। इस पुस्तक में जान मिर्डल की कलाकर्मी पत्नी गन केसल की क्लिक अनेक दुर्लभ तस्वीरें भी है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने भी इस घमासान में कूद कर सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने की घोषणा कर दी। लोकसभा सदस्य असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाले मुस्लिम संगठन, एआईएमआईएम ने भी 8 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए। लेकिन आंध्र के ‘युवजन श्रमिक रायथू’ (वायएसआर) कांग्रेस के नेता वायएस जगनमोहन रेड्डी ने अपनी पार्टी को तेलंगाना के चुनाव से अलग रखा। आंध्र में फिल्म अभिनेता से राजनीतिज्ञ बने पवन कल्याण की ‘जन सेना पार्टी’ भी तेलंगाना चुनाव से अलग ही रही।

बीआरएस

कांग्रेस कहती रही है कि बीआरएस ने भाजपा के साथ ‘गुप्त’ चुनावी समझौता कर लिया है। टीसीआर इसका खंडन कर कहते रहे कि वह आगामी आम चुनाव के में भाजपा और कांग्रेस, दोनों के ही खिलाफ क्षेत्रीय दलों का ‘फेडरल फ्रंट’ बनाने के अपने इरादे को लेकर अटल हैं। उनका कहना है कि वह कोई हड़बड़ी में नहीं और उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव भी अपने बूते पर लड़ेगी। बीआरएस, एनडीए में शामिल नहीं है। स्पष्ट है कि केसीआर चुनावी कदम फूंक -फूंक कर उठा रहे हैं। उन्हें बखूबी पता है कि अल्पसंख्यक मतदाता किसी भी पार्टी की संभावित जीत को हार और निश्चित हार को जीत में तब्दील कर सकते हैं।

खुद केसीआर ने कहा है उनकी पार्टी ‘सेकुलर’ बनी रहेगी और उसके भाजपा के साथ चुनावी गठबंधन करने की कोई संभावना नहीं है। केसीआर कहते रहे हैं कि उनकी पार्टी का एनडीए के प्रति समर्थन मुद्दों पर आधारित है।

केसीआर

केसीआर का पूरा नाम कल्वाकुन्तला चंद्रशेखर राव है। वह 2 जून 2014 को राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बने। उन्होंने टीआरएस का गठन 27 अप्रैल 2001 को किया था। टीआरएस ने 2004 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस से गठबंधन कर लड़ा। वह केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन यूपीए में शामिल थी। केसीआर, मनमोहन सिंह सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे थे। वह बाद में टीआरएस, यूपीए से अलग हो गई।

केसीआर ने अपना राजनीतिक करियर दिवंगत संजय गांधी के नेतृत्व में युवक कांग्रेस से शुरु किया था। वह आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम पार्टी के संस्थापक एनटी रामाराव की सरकार में और एन. चंद्रबाबू नायडू की भी पहले की सरकार में मंत्री रहे हैं। केंद्र में एनडीए की सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा और ख़ास कर प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनके सम्बन्ध मित्रवत रहे हैं।

टीआरएस ने कई मौकों पर मोदी सरकार का साथ दिया है। उसने राज्यसभा उपसभापति के चुनाव में एनडीए में शामिल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दल-यूनाइटेड प्रत्याशी हरिवंश सिंह का समर्थन किया था। टीआरएस ने मोदी सरकार के विरुद्ध पिछली लोकसभा के मानसून सत्र में कई दलों द्वारा पेश अविश्वास प्रस्ताव पर मत-विभाजन में भाग नहीं लेकर मोदी सरकार का साथ दिया था।

टीआरएस ने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पिछले चुनाव में भी भाजपा के प्रत्याशियों का समर्थन किया था। माना जाता है कि केसीआर ‘घाट-घाट की राजनीति का पानी पिये हुए है’। उनके पुत्र केटी रामाराव राजन्ना जिला की सिरसिला सीट से विधायक है और पुत्री के. कविता निज़ामाबाद से लोकसभा सदस्य है। उनके भतीजे हरीश राव भी राज्य में मंत्री हैं। केसीआर खुद सिद्दीपेट जिला के अपने परम्परागत गजवेल विधान सभा सीट से चुनाव लड़ते रहे है।

राहुल गांधी

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राज्य में 2018 के चुनाव प्रचार के दौरान केसीआर पर आरोपों की झड़ी लगा दी थी। मुख्यमंत्री राव ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया और अपने परिवार का प्रभुत्व जमाया है। उनका कहना था कि राज्य पर दो लाख करोड़ रूपये का क़र्ज़ है। प्रत्येक तेलंगानावासी पर 60 हज़ार रूपये का कर्ज है। राज्य में टीआरएस शासन में 4500 किसानों को आत्महत्या करने पर विवश होना पड़ा। उन्होंने कहा कांग्रेस के राज्य की सत्ता में में आने पर किसानों के दो लाख रूपये तक के कर्ज माफ कर दिए जाएंगे, साल भर में एक लाख सरकारी नौकरियों की रिक्ति भरी जाएगी और आदिवासियों के हितों की रक्षा की जाएगी। गौरतलब है कि इसी बरस तेलंगाना में राहुल गांधी की एक रैली के दौरान हाल में दिवंगत हुए पूर्व कम्युनिस्ट नेता एवं लोक गायक गद्दर उनसे गले मिले थे।

पृथक तेलंगाना

तेलुगु, उर्दू भाषी पृथक तेलंगाना राज्य का गठन 2013 में केंद्र में यूपीअए की मनमोहन सिंह सरकार के द्वितीय शासन-काल में किया गया था। कांग्रेस और भाजपा को छोड़ आंध्र प्रदेश के लगभग सभी दल इसके विरोध में थे। आंध्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री एन. किरण कुमार रेड्डी ने आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम के विरोध में फरवरी 2014 में मुख्यमंत्री पद और कांग्रेस से भी इस्तीफा देकर अलग पार्टी बना ली। वह बाद में कांग्रेस में लौट आये। किरण रेड्डी सरकार के इस्तीफा देने के बाद आंध्र प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर उसका विभाजन कर दिया गया। तेलंगाना में आंध्र के 10 उत्तर पश्चिमी जिलों को शामिल किया गया। प्रदेश की राजधानी हैदराबाद को दस साल के लिए तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की संयुक्त राजधानी बनाया गया।

तेलंगाना विधान सभा की कुल 119 सीटें हैं। तेलंगाना के प्रथम मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) केसीआर ने समय से नया चुनाव कराना श्रेयस्कर माना तो इसके गहरे अंतर्निहित राजनीतिक कारण थे। टीडीपी ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में 2014 का पिछ्ला चुनाव भाजपा के साथ गठबंधन कर लड़ा था।

बहरहाल कहना यह है कि राज्य के नए चुनाव में बीआरएस के खिलाफ कांग्रेस की क्या मोरचाबंदी होती है और क्या गुल खिलाती है।

(लेखक जनचौक के लिए लिखते रहे स्वतंत्र पत्रकार हैं और हाल ही में तेलंगाना से दिल्ली लौटे हैं।)

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