वर्ष 2023: देश की आर्थिक-वित्तीय बदहाली की तस्वीर

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हिंदुस्तान की ब्रिटिश हुक्मरानी ने इसकी राजधानी 1932 में कोलकाता से हटा नई दिल्ली कर दी जहां ब्रिटेन के ही वास्तुकार एडविन लुटयन के शिल्प पर नई राजधानी विकसित कर ‘सेंट्रल असेंबली’ का निर्माण 18 मई 1927 को पूरा हुआ। ब्रिटिश दासता से भारत को 14-15 अगस्त की अर्धरात्रि आजादी मिलने पर यह भारतीय संसद में परिणत हो गया। भारत के पुराने संसद भवन के बगल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने टाटा उद्योग समूह की एक कंपनी से सैंकड़ों करोड़ रुपये के ठेके पर नया संसद भवन बनवाया। उसके निम्न सदन यानि लोकसभा में अगले बरस बजट सत्र में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अभिभाषण के बाद सालाना बजट परंपरागत तौर पर एक फरवरी 2024 को पेश होना है। औपचारिकता के निर्वहन के लिए बजट की प्रति उच्च सदन यानि राज्यसभा में भी पेश की होगी। बजट वित्त विधेयक है सो उस पर राज्यसभा की मंजूरी आवश्यक नहीं है।

बजट के पहले भारत का 2023-24 का आर्थिक सवेक्षण पेश होगा। तभी देश की आर्थिक-वित्तीय बदहाली की तस्वीर ‘आधिकारिक’ रूप से साफ होगी। यह सर्वेक्षण और बजट भी पिछले आठ बरस से हिंदुस्तान की राजसत्ता पर कब्जा जमाए मोदी सरकार में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के ही पेश करने की संभावना है। निर्मला जी ने वित्त मंत्री बनने पर कहा था कि वह ऐसा बजट पेश करेंगी जैसा सौ साल में किसी ने नहीं किया।

वह नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में पढ़ी हैं। लेकिन उफ ये लेकिन, उनको देश की आर्थिक दुर्दशा का शायद ज्यादा भान नहीं है। होता तो वह इसके इलाज के लिए बजट के प्रस्ताव खुद तैयार करती। बजट मोदी जी के गौतम अडानी जैसे गुजराती पूंजीपतियों की सुविधा के लिए वित्त आदि मंत्रालयों में तैनात भारतीय प्रशासनिक सेवा आदि के ‘बड़े बाबू’ लोग ही तैयार करेंगे। निर्मला जी को मोदी सरकार में रक्षा मंत्री से वित्त मंत्री बना दिया गया ताकि वह इन सभी कागज पत्तर पर अपना ठप्पा लगाकर किसी ‘लाल बस्ता’ में सदन के पटल पर रखने की उन संवैधानिक दायित्वों का निर्वाह कर सकें जिसके लिए उन्हें भारत के राष्ट्रपति ने मंत्री पद की शपथ दिलवाई थी।

अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी, फिट्ज ने अडानी की कंपनियों के बैलेंसशीट के आधार पर ही उनके बैंकों से लिए कर्ज़ और आय में असमानता की पोल खोल कर आगाह किया है कि यह खतरनाक ख़तरनाक स्थिति है। सोशल मीडिया एक्टिविस्ट कृष्णन अय्यर ने भारतीय मुद्रा में करोड़ रुपये में कर्ज़ और कमाई का चार्ट बनाया जो निम्नवत है।

कंपनी ——————कर्ज़ ——————-कमाई का
अडानी एंटरप्राइजेज——- 41,600—– 10.4 गुना
अडानी ग्रीन ————52,800 ——-15.1 गुना
अडानी पोर्ट ————47,400——- 4.80 गुना
अडानी पॉवर-———– 58,200—— 5.90 गुना
अडानी गैस ————-1,000 ——-1.30 गुना
अडानी ट्रांस ————-29,900 —–7.10 गुना

अडानी एंटरप्राइजेज की सकल कमाई 4160 करोड़ और कर्ज़ 41,600 करोड़ रुपये है। सीधा अर्थ है कि अडानी की कमाई ज़रा भी कम होती है तो कर्ज़ का दबाव बढ़ेगा और फिर उनको बैंकों द्वारा दिए कर्ज़ का डूबना तय है। कर्ज़ चुकाना दूर की बात है, अडानी उनका ब्याज भी नहीं चुका पाएगा। आर्थिक सवेक्षण 1964 तक बजट के साथ पेश किया जाता था। बाद में इसे बजट से अलग यह कह पेश किया जाने लगा कि इससे बजट समझने में मदद मिलेगी।

भारत के संविधान के 26 जनवरी 1950 को गणतंत्र दिवस से पूर्ण बल से लागू होने पर राजसत्ता के हर बरस के वित्तीय राजकाज के ब्योरा पर केन्द्रीय विधायिका की मंजूरी हासिल करने का सांविधिक दायित्व है। यह सर्वेक्षण आम तौर पर केन्द्रीय वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) के निर्देश पर बड़े बाबू लोग संकलित करते है। जून 2014 में बनी मोदी सरकार के लिए यह लोकसभा के 2024 में निर्धारित चुनाव के पहले अंतिम बजट होगा।

संभावना है कि वह संसद में कुछ माह के लिए लेखानुदान मांगे ही पेश करे। पूर्ण बजट नई लोकसभा के चुनाव के बाद नई सरकार पेश करेगी। दीगर बात है कि नई सरकार भाजपा की अगुवाई में नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) की हो या फिर कांग्रेस की अगुवाई में दो दर्जन से ज्यादा दलों के बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के नेता नीतीश कुमार की पहल पर पटना में 2023 में कायम ‘इंडिया अलायंस’ की हो।

बहरहाल, अगले चुनाव से पहले मौजूदा लोकसभा के इस आखरी बजट सत्र के दो हिस्से हो सकते हैं। इसके 31 जनवरी से मध्य फरवरी के हिस्से में आर्थिक सर्वेक्षण और बजट प्रस्ताव पेश कर दिए जाएंगे। संसद के कुछ दिनों अवकाश पर रहने के बाद फिर शुरू सत्र में पहली अप्रैल से नए वित्त वर्ष का आगाज हो जाने पर मध्य अप्रैल तक के दूसरे हिस्से में शेष विधाई कामकाज निपटाए जाएंगे।

कई बरसों तक आर्थिक सर्वेक्षण दो खंड में होता था। अरविन्द सुब्रमणियम सीईए बने तो इसके दो खंड कर दिए गए। उनके उत्तराधिकारी के वी सुब्रमणियम ने नई प्रथा जारी रखी। वित्त वर्ष 2018-19 में एक खंड में भारत की अर्थव्यवस्था के सामने की चुनौतियों पर विश्लेषण और खंड दो में अर्थव्यवस्था के प्रमुख सेक्टरों पर नजर डाली गई थी। अभी पूर्णकालिक सीईए नहीं होने से यह फिर एक खंड में होने की संभावना है।

सर्वेक्षण में देश में मुद्रा की आपूर्ति और प्रसार, बुनियादी ढांचों, निर्यात एवं आयात, कृषि एवं औधयोगिक उत्पादन, उधयोगों के कामगारों और खेत मजदूरों के लिए उपलब्ध रोजगार, आम लोगों के इस्तेमाल की विभिन्न चीजों की कीमतों की स्थिति आदि उन फ़ैक्टरों की समीक्षा होती है जिनका बजट पर असर पड़ता है। अरविन्द सुब्रमणियम ने महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा के जवाब में जेंडर समानता की अवामी चाहत पर ध्यान केंद्रित करने के लिए 2018 के आर्थिक सर्वेक्षण को गुलाबी रंग में छपवाया था। तब कोरोना महामारी का तीसरा बरस था। आर्थिक सर्वेक्षण की सिफारिशें सरकार के लिए संवैधानिक रूप से बाध्यकारी नहीं है। सरकार चाहे तो वह इसकी सिफारिशें मंजूर या नामंजूर कर सकती है।

निर्मला जी ने अप्रैल 2022 से मार्च 2023 के लिए पेश सर्वेक्षण में नए वित्त वर्ष में आर्थिक विकास की दर में पिछले बरस के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 9.2 फीसद की गिरावट की तुलना में 8.5 फीसद बढ़त होने का अंदाजा लगाया था। उन्होंने इन दावों के समर्थन में सरकारी संस्था राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के आंकड़े दिए थे। उन्होंने हुंकार भरी थी दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था 2023-24 में भारत की ही होगी।

मोदी सरकार, किसानों, युवाओ, छोटे व्यापारियों, कमजोर तबकों के लोगों और महिलाओं को आर्थिक रूप से तबाह करने के बाद गरीबों की बची खुची रोजी-रोटी छीनने के लिए उतावली लगती है। आटा, चावल, मक्का, जौ, दही, लस्सी, छाछ और नारियल पानी ही नहीं अस्पतालों में भर्ती मरीजों के बेड का किराया भी जीएसटी के दायरें में हैं। मोदी सरकार ने अदानी, अंबानी जैसे लंपट कारोंबारियों का 11 लाख करोड़ रुपये का कर्ज माफ कर दिया।

सांसदों का निलंबन

इस बीच, मोदी जी की कृपा से उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति बने जगदीप धनखड़ का सांसदों के खिलाफ आक्रोश फूट पड़ा और उन्होंने 2023 के अंत तक येन केन प्रकारेण राज्यसभा के एक सौ से ज्यादा निर्वाचित सदस्य निलंबित कर दिए। उन्हें संवैधानिक मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है पर सांसदों के निलंबन के खिलाफ देश में तीखी प्रतिक्रिया हुई है।

राजस्थान के झुंझनू में वकालत करने के बाद राजनीति में आए धनखड़ पहले जनता दल से जुड़े और वहीं से 1989 में लोकसभा चुनाव जीते। फिर वह वीपी सिंह सरकार गिरने पर बनी और चार माह ही टिकी चंद्रशेखर सरकार के संसदीय कार्य मंत्री बने। वह दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ वीपी सिंह के साथ रहे, उनके खिलाफ चंद्रशेखर के साथ भी रहे, फिर वह कांग्रेस के भी साथ रहे और फिर कांग्रेस के खिलाफ भाजपा के साथ लग गए। वह 2003 में भाजपा में आकर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल बन गए। उन्हें राज्य की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने उनके अनावश्यक ट्वीट से तंग आकर अपने ट्विटर हैंडल पर ब्लॉक कर दिया था। ऐसा अनोखा ‘गौरव’ किसी और राज्यपाल को नहीं मिला।

बहरहाल, देखना है कि बजट सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण, आर्थिक सर्वेक्षण, बजट, अन्य विधाई और संसदीय कार्यों को लेकर विपक्षी पार्टियां मोदी सरकार को 2024 में हिन्दुस्तानी अवाम पर और ज्यादा कहर बरपाने से कैसे और कितनी हद तक रोक सकती है।

(सीपी झा वरिष्ठ पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं।)

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