यह तो अनैतिक राजनीति का अमृतकाल है 

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राजनीति में बहुत से लोग नैतिकता ढूंढ रहे हैं। आम लोगों में कितनी नैतिकता बैठी है यह तो जांच का विषय हो सकता है लेकिन एक बात तो तय है कि नैतिकता को मापने का कोई न तो तराजू है और न ही कोई पैरामीटर। सबके अपने हिसाब से नैतिकता का पैमाना है। बड़े लोगों की अपनी नैतिकता अलग होती है लेकिन आम लोगों की नैतिकता कुछ और ही। जिस तरह से धर्म की व्याख्या अलग-अलग तरीके से की जाती है ठीक उसी तरह से नैतिकता की भी परिभाषा दी जा सकती है।

अगर मूर्खों की भाषा में बात की जाए तो नैतिकता का सीधा मतलब तो यही होता है कि जो काम समाज और देश के लिए अहितकर हो, परिवार और जाति और धर्म के खिलाफ हो और जीवन मूल्य के प्रति भी सराहनीय नहीं हो उसे आप अनैतिक कह सकते हैं लेकिन यही बात राजनीति में सही नहीं हो सकती। 

राजनीति तो अपने हिसाब से चलती है। मौजूदा दौर की राजनीति अनैतिक खेल का ही नाम है और इसका एक ही उद्देश्य होता है सफलता। चुनाव के दौरान जीत और जीत के बाद फिर सत्ता पर कब्जा। लोकतंत्र के नाम पर ही यह सब होता है और हर बात में संविधान का हवाला भी दिया जाता है कि जब किसी भी व्यक्ति को बोलने की आजादी दी गई है तो फिर उसे बोलने से कौन रोक सकता है। जब बोलने से कोई किसी को नहीं रोक सकता तो फिर किसी के बोल पर बवाल क्यों मचता है? मानहानि की बातें कब और क्यों होने लगती हैं? और फिर यही कानून उस हर बोलने वाले पर भी लागू क्यों नहीं होता?

ऐसे बहुत से सवाल उठते हैं। उठते भी रहेंगे लेकिन मौजूदा समय में इसका निराकरण तो दिखता नहीं। इस खेल में जनता भी उतनी ही दोषी है जो किसी की बात को सुनकर भी प्रतिकार नहीं करती। सच तो यही है कि जनता जिसकी भक्ति करती है या यूं कहें कि जिसके मोह फांस, लोभ, लालच और ठगी के जाल में फंसी होती है उसकी हर बात उसे भाती है और वह जिसके खिलाफ होती है उसकी हर बात और बयान उसे धोखा ही लगता है। 

आज इस बात की चर्चा इसलिए की जा रही है कि तमाम विरोध और इल्जाम के बाद भी देश के चुनाव में बड़ी संख्या में अपराधी किस्म के लोग चुनाव लड़ने मैदान में उतर चुके हैं। कई -कई मामले इन नेताओं पर दर्ज हैं और बड़ी बात तो यह है कि इनमें से बड़ी संख्या में लोग चुनाव भी जीतेंगे और संसद तक भी पहुंचेंगे। सरकार में भी शामिल होंगे या फिर विपक्ष में बैठकर देश की नीतियों पर चर्चा करेंगे। जिस अपराध में वे आरोपी हैं उसी अपराध की वे संसद के भीतर और बाहर व्याख्या भी करते आएंगे।

लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस खेल में कोई एक दल तो शामिल है नहीं। क्या बीजेपी, क्या कांग्रेस और क्या सपा और राजद ,बसपा से लेकर दक्षिण के सभी दलों के नेता अपराध से जुड़े लोगों को मैदान में उतार रहे हैं और उतार दिए हैं। ऐसे में अब जनता को ही यह सोचने की जरूरत है कि इस अनैतिक  राजनीति का सच क्या है ?

मध्यप्रदेश के गुना -शिवपुरी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया। आजकल बीजेपी की राजनीति करते हैं। करना भी चाहिए। लोकतंत्र में कोई भी व्यक्ति कहीं भी किसी पार्टी के साथ जुड़कर राजनीति कर सकता है और करता भी है। ऐसे में सिंधिया बीजेपी की राजनीति कर रहे हैं तो इसपर कोई सवाल भला कौन उठा सकता है। लेकिन यूपी के सीएम योगी जी जब उनकी सभा में प्रचार के लिए पहुंचे तो खूब हुंकार भरते दिखे। उन्होंने अपने भाषण में खूब मजमा भी लगाया। क्या -क्या नहीं कहा। कैसी -कैसी बातें उन्होंने कीं जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। उन्होंने जजिया टैक्स का भी बखान किया।

कहा जो काम मुगलों के जमाने में औरंगजेब हिन्दुओं पर कर गए थे वही काम कांग्रेस वाले करने को आतुर हैं। कांग्रेस और इंडिया गठबंधन वाले देश के भीतर हिन्दुओं पर जजिया टैक्स लगाने को आतुर हैं। उस टैक्स का नाम भले ही जजिया नहीं है और उसका नाम विरासत टैक्स है लेकिन इस टैक्स के पीछे भी वही कहानी है। हिन्दुओं से कर लेकर मुसलमानों को बांटने की बात है। 

योगी जी यहीं नहीं रुके। आगे बढ़ते गए और राम मंदिर का बखान करने लगे। लोग खूब ठहाके लगाते रहे और योगी जी बोलते रहे। राम मंदिर पर ध्रुवीकरण की खूब कोशिश की गई लेकिन आखिर इसके खिलाफ बोलेगा कौन ? क्या चुनाव आयोग कुछ बोल सकता है ?कभी नहीं। यहाँ चुनाव आयोग की नैतिकता ही दांव पर लगी दिख रही है। याद रहे जब सिंधिया कांग्रेस के भीतर हुआ करते थे तब यही बीजेपी के लोग उनके बारे में क्या -क्या करते दिखते थे यह कौन नहीं जानता। खुद योगी जी भी कई बार सिंधिया परिवार की राजनीति को पूर्व में परिभाषित करते रहे हैं। अब वह सब बयान गायब है। अनैतिक राजनीति क इससे बड़ा सबूत क्या हो सकता है ?

 मामला फिर बिहार का आया। शनिवार को पीएम मोदी बिहार पहुंचे। खूब हुंकार भरे और लोगों को खूब ज्ञान भी देते रहे। पीएम मोदी ने वहां जाकर 22 साल पुराने गोधरा कांड की चर्चा करने लगे। अभी तक देश के भीतर गोधरा कांड के लिए तत्कालीन गुजरात सरकार को ही दोषी ठहराया जाता रहा है लेकिन आज पीएम मोदी ने एक नई बात का खुलासा किया।

उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार जब रेल मंत्री थे गोधरा कांड हुआ था। कांड के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद जब 2004 में कांग्रेस की सरकार बनी तो लालू यादव रेल मंत्री बने। उन्होंने सोनिया गाँधी के इशारे पर गोधरा कांड को लेकर एक यूसी बनर्जी जांच कमेटी बनाई। साल भर बाद कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दी जिसमें कहा गया कि साबरमती एक्सप्रेस में जिन 60 लोगों की मौत हुई वे सब साधु तो थे लेकिन वे ट्रेन के भीतर धूम्रपान कर रहे थे और फिर ट्रेन में आग लग गई। हालांकि आग कैसे लगी इसका कोई कारण नहीं बताया गया। 

   मोदी ने यह भी कहा कि शहजादे के पिता यानी तेजस्वी के पिता ने मुसलमानों को बचाने के लिए ही यह सब रिपोर्ट तैयार कराया था ताकि जिन लोगों ने ट्रेन में आग लगाई उन्हें बचाया जा सके। उन्होंने लालू यादव पर कई तरह की बातें भी कहीं। उन्होंने यहाँ तक कहा कि लालू यादव सामाजिक न्याय का मुखौटा ओढ़कर जेल की हवा खा रहे हैं और जमानत पर घूम रहे हैं।

ये सभी लोग मुसलमानों को बचाने की राजनीति तो करते हैं लेकिन मुसलमानों के लिए कुछ करते नहीं। पता नहीं मोदी जी इन बातों का जिक्र किस सन्दर्भ में कर रहे थे यह कहा नहीं जा सकता। इसमें पीएम की नैतिकता कहाँ खो गई है इसे कौन जाने!

कह सकते हैं कि झूठ की राजनीति आज सबसे ज्यादा कुलांचें मार रही है। मकसद सिर्फ एक ही है। मकसद यही है कि किसी भी तरह से चुनाव को कैसे जीता जाए और चुनाव जीतने के लिए ध्रुवीकरण को कैसे मजबूत किया जाए। कोई मुसलमानों को पक्ष में लाने को आतुर है तो कोई सभी हिन्दुओं को पाले में खड़ा करने को आतुर।

इस पूरे खेल में समाज, देश और परिवार ही खंडित क्यों न हो जाए। अनैतिक राजनीति के सहारे चुनाव जीतकर अगर कोई सत्ता के पास पहुंचता भी है तो उस नेता से कोई ऐसी अपेक्षा कर सकता है कि वह जनता और देश के साथ न्याय करेगा? जनतंत्र का मालिक अगर जनता ही है तो एक बार उसे अनैतिक राजनीति और चरित्रहीन नेताओं के कथा वाचन पर नजर ज़रूर डालने की जरूरत है। और इस पर अंकुश नहीं लगा तो लोकतंत्र के नाम पर चल रहा यह खेल आगे और भी वीभत्स होगा।

(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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