उदयनिधि स्टालिन विवाद: द्रविड़ राजनीति के मूल में है तर्कवाद और नास्तिकता

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नई दिल्ली। डीएमके नेता और तमिलनाडु सरकार में युवा कल्याण मंत्री उदयनिधि के बयान- “सनातन धर्म सामाजिक न्याय का विरोधी है इसे खत्म करना होगा”- पर राजनीतिक विवाद बढ़ता ही जा रहा है। इंडिया गठबंधन के परवान चढ़ने और दिनोंदिन उसके मजबूत होने की खबर के बीच संघ-भाजपा खेमे में पहले से ही बेचैनी है। संघ-भाजपा के रणनीतिकार और मोदी सरकार इंडिया गठबंधन में शामिल नेताओं को किसी न किसी मामले में फंसाकर ‘भ्रष्टाचारी’ बताने और ‘हिंदू विरोधी’ साबित करने की रणनीति बनाने में लगे ही थे कि उनको घर बैठे द्रविड़ नेता उदयनिधि स्टालिन का बयान हाथ लग गया। अब फिर देरी किस बात की थी। संघ-भाजपा के नेता इंडिया गठबंधन में प्रमुख भूमिका निभा रहे एमके स्टालिन के पुत्र उदयनिधि स्टालिन को निशाने पर लेते हुए पूरे इंडिया गठबंधन को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश में लग गए।

संघ-भाजपा ने कहा कि “विपक्षी गठबंधन-इंडिया का प्राथमिक एजेंडा हिंदू धर्म का विनाश करना है, डीएमके उसका अंग है।”

दरअसल, उदयनिधि स्टालिन ने शनिवार (2 सितंबर) को तमिलनाडु प्रोग्रेसिव राइटर्स एंड आर्टिस्ट एसोसिएशन की एक बैठक में भाषण देते हुए द्रविड़ राजनीति और आदर्शों का हवाला देते हुए हिंदू धर्म की कुरीतियों पर प्रहार किया। उन्होंने कहा कि “सनातन का मतलब क्या है?” यह शाश्वत है अर्थात इसे बदला नहीं जा सकता; कोई भी कोई सवाल नहीं उठा सकता और यही अर्थ है” उन्होंने कहा, सनातन ने लोगों को जाति के आधार पर बांटा।

उदयनिधि ने बाद में एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट किया: “मैं किसी भी मंच पर पेरियार और अंबेडकर के व्यापक लेखन को प्रस्तुत करने के लिए तैयार हूं, जिन्होंने सनातन धर्म और समाज पर इसके नकारात्मक प्रभाव पर गहन शोध किया।”

ऐसा नहीं है कि सनातन धर्म के बारे में दक्षिण भारत से इस तरह की आवाज पहली बार आई है। आजादी से पहले और बाद में दक्षिण भारत में समाज सुधार के कई आंदोलन चले। जिसमें अंधविश्वास, कर्मकांड, आस्था और पोंगापंथ पर करारा प्रहार करते हुए तर्कवाद और नास्तिकता को बढ़ावा दिया गया। तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) की जड़ें ईवी रामास्वामी ‘पेरियार’ द्वारा शुरू किए गए सेल्फ रेस्पेक्ट मूवमेंट (Self-Respect Movement -1925) में हैं।

20वीं सदी की शुरुआत में आत्मसम्मान आंदोलन ने जाति और धर्म का विरोध किया और खुद को सामाजिक बुराइयों के खिलाफ एक तर्कवादी आंदोलन के रूप में स्थापित किया। वर्षों से इन आदर्शों ने राज्य की राजनीति को प्रभावित किया है, जिसमें द्रमुक और अन्नाद्रमुक दोनों शामिल हैं, जो आंदोलन से निकले थे।

आत्म-सम्मान आंदोलन और तमिलनाडु की राजनीति पर इसका प्रभाव

दक्षिण भारत में ब्राह्मणवाद के विरोध में ईवी रामास्वामी ‘पेरियार’ ने 1925 में आत्मसम्मान आंदोलन शुरू किया। पेरियार जाति और धर्म के घोर विरोधी थे। उन्होंने जाति और लिंग से संबंधित विशेषाधिकारों और भेदभाव का विरोध किया। और सामाजिक सुधारों से साथ तमिल राष्ट्र की विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान पर जोर देते हुए हिंदी के वर्चस्व का विरोध किया।

आत्मसम्मान आंदोलन के पहले मद्रास प्रेसिडेंसी में 1916 में जस्टिस पार्टी की स्थापना की गई थी। जस्टिस पार्टी भी ब्राह्मणवाद की विरोधी थी। 1938 में जस्टिस पार्टी और आत्म-सम्मान आंदोलन एक साथ आये। उसके चंद सालों बाद 1944 में ‘द्रविड़ कषगम’ नामक राजनीतिक संगठन अस्तित्व में आया। द्रविड़ कषगम ब्राह्मण विरोधी, कांग्रेस विरोधी और आर्य विरोधी (उत्तर भारतीय) थे।

द्रविड़ कषगम में अलगाव और डीएमके का गठन

पेरियार के नेतृत्व में चले आंदोलन में सीएन अन्नादुराई से लेकर एम करुणानिधि और एमजी रामचंद्रन जैसे बड़े नेता शामिल थे। पेरियार अपने ब्राह्मणवाद विरोधी और समाज सुधार के आंदोलन के रास्ते से सामाजिक परिवर्तन को अपना लक्ष्य बनाए थे और चुनाव में उतरने के सख्त खिलाफ थे। लेकिन संगठन के दूसरे नेता चुनाव लड़ने के पक्ष में थे। लिहाजा 1967 में पेरियार के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक, सी एन अन्नादुरई, इन्हीं वैचारिक मतभेदों के कारण उनसे अलग हो गए। अन्नादुरई की DMK चुनावी प्रक्रिया में शामिल हुई। पार्टी का आदर्श सामाजिक लोकतंत्र और तमिल सांस्कृतिक राष्ट्रवाद था। और फिर उनके नेतृत्व में डीएमके की सरकार बनी।

1969 में, अन्नादुराई की मृत्यु के बाद, एम करुणानिधि ने DMK की कमान संभाली। 1972 में, उनके और अभिनेता-राजनेता एम जी रामचन्द्रन के बीच मतभेद के कारण पार्टी में विभाजन हो गया। एमजीआर ने अपने प्रशंसकों को संगठन की आधारशिला बनाकर अन्नाद्रमुक का गठन किया।

1977 में एमजीआर सत्ता में आए और 1987 में अपनी मृत्यु तक अपराजित रहे। उन्होंने पार्टी की विचारधारा के रूप में सोशल वेलफेयर को अपनाया जो तमिल राजनीति के मूल तर्कवादी और ब्राह्मण विरोधी स्वर को कुछ हद तक कमजोर कर दिया।

हिंदू धर्म और जाति पर पेरियार के क्या विचार थे?

तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में ब्राह्मणों ने ब्रिटिश शासन का शुरुआती फायदा उठाया और नए शासकों की शिक्षक, वकील, डॉक्टर, क्लर्क और सिविल सेवक के रूप में सेवा करने के लिए अंग्रेजी सीखी। अंग्रेज सरकार और उभरती हुई कांग्रेस पार्टी में भी उनका अच्छा प्रतिनिधित्व था और उन्हें पारंपरिक रूप से समाज में उच्च सामाजिक दर्जा प्राप्त था। राज की नीतियों ने उन्हें आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से भी प्रभावशाली बना दिया। जिससे जीवन के सभी क्षेत्रों में ब्राह्मण आधिपत्य का खतरा था जिसे जोतिराव फुले और बी आर अंबेडकर और दक्षिण भारत में ई वी रामास्वामी ने पहचाना। और आंदोलन शुरू किया।

पेरियार ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से अपने मूल विश्वासों का प्रचार किया, जो समाज के कुछ वर्गों को हाशिए पर धकेलने वाली हिंदू धार्मिक प्रथाओं की तीखी आलोचना करते थे।

पेरियार ने समाज में नास्तिकता और समाजवाद की वकालत करने वाले लेखों- जैसे कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स की ‘द कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो’, भगत सिंह की ‘मैं नास्तिक क्यों हूं’, बर्ट्रेंड रसेल की ‘मैं ईसाई क्यों नहीं हूं’ का तमिल भाषा में अनुवाद प्रकाशित किया।

पेरियार ने 7 जून 1931 को अपने पार्टी पेपर कुडियारासु में लिखा था कि गैर-ब्राह्मण और अछूत जातियां, गरीब और श्रमिक वर्ग, यदि वे समानता और समाजवाद चाहते हैं, तो उन्हें पहले हिंदू धर्म को नष्ट करने की जरूरत है। पेरियार ने रामायण जैसे हिंदू महाकाव्यों के आलोचनात्मक लेख भी लिखे।

उन्होंने 1969 में अपने मिशन का वर्णन करते हुए कहा: “मैं मानव समाज का सुधारक हूं। मुझे देश, भगवान, धर्म, भाषा या राज्य की परवाह नहीं है। मैं केवल मानव समाज के कल्याण और विकास के बारे में चिंतित हूं।”

सीएन अन्नादुराई ने धर्म के मामले पर उदारवादी रुख अपनाया। उन्होंने बाद में कहा, “मैं न तो गणेश की मूर्ति तोड़ूंगा और न ही नारियल (कोई धार्मिक भेंट चढ़ाऊंगा)।” उनके शिष्य और बाद में मुख्यमंत्री एम करुणानिधि भी नास्तिक थे।

उदयनिधि ने शनिवार को अपने भाषण में पेरियार द्वारा पहले कही गई बातों को अपनी बात और डीएमके के राजनीति से जोड़ा। उन्होंने कहा कि “सनातन ने महिलाओं के साथ क्या किया? इसने उन महिलाओं को आग में धकेल दिया, जिन्होंने अपने पतियों को खो दिया था (सती की तत्कालीन प्रथा), इसने विधवाओं के सिर मुंडवा दिए और उन्हें सफेद साड़ी पहनाई… द्रविड़म (द्रमुक शासन द्वारा अपनाई गई द्रविड़ विचारधारा) ने क्या किया? इसने बसों में महिलाओं के लिए किराया-मुक्त यात्रा की सुविधा दी, छात्राओं को कॉलेज की शिक्षा के लिए 1,000 रुपये की मासिक सहायता दी।

उदयनिधि ने अपने भाषण के अंत में कहा था कि “आइए हम तमिलनाडु के सभी 39 संसदीय क्षेत्रों और पुडुचेरी के एक क्षेत्र (2024 के लोकसभा चुनाव में) में जीत हासिल करने का संकल्प लें। सनातन को गिरने दो, द्रविड़म को जीतने दो।”

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

प्रदीप सिंह https://www.janchowk.com

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

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