नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने 1990 के एक हिरासत में मौत के मामले में उम्र कैद की सजा काटते हुए ज़मानत और सजा पर रोक की मांग की थी। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने राहत देने से इनकार करते हुए यह भी निर्देश दिया कि उनकी अपील की सुनवाई में तेजी लाई जाए।
न्यायमूर्ति मेहता ने आदेश पढ़ते हुए कहा, “हम अपीलकर्ता संजीव कुमार भट्ट को ज़मानत पर रिहा करने के इच्छुक नहीं हैं। हालांकि, हम यह स्पष्ट करते हैं कि ऊपर दी गई टिप्पणियाँ केवल ज़मानत की याचिका तक सीमित हैं और इनका अपीलकर्ता तथा सह-आरोपियों की अपीलों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। संजीव कुमार भट्ट द्वारा ज़मानत की मांग को खारिज किया जाता है। अपील की सुनवाई शीघ्र कराने का निर्देश दिया जाता है।”
यह मामला वर्ष 1990 का है, जब संजीव भट्ट गुजरात के जामनगर में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात थे। उस दौरान जामजोधपुर कस्बे में हुए एक सांप्रदायिक दंगे के दौरान उन्होंने कड़े टाडा (आतंकवादी एवं विध्वंसकारी गतिविधियाँ रोकथाम) अधिनियम के तहत लगभग 133 लोगों को हिरासत में लिया था।
18 नवंबर 1990 को, हिरासत में लिए गए व्यक्तियों में से एक, प्रभुदास वैष्णानी, रिहा होने के बाद अस्पताल में मृत्यु को प्राप्त हो गया। आरोप है कि उसकी मृत्यु हिरासत के दौरान हुई कथित प्रताड़ना के कारण हुई थी। मृतक के भाई अमृतलाल वैष्णानी की शिकायत पर संजीव भट्ट सहित सात पुलिसकर्मियों के खिलाफ हिरासत में मौत का मामला दर्ज किया गया, जिसके बाद जांच गुजरात राज्य की अपराध जांच विभाग (CID) गांधीनगर शाखा को सौंप दी गई।
1995 में, सीआईडी के जांच अधिकारी ने संजीव भट्ट के विरुद्ध अभियोजन की स्वीकृति सरकार से मांगी, जैसा कि सरकारी कर्मचारी के विरुद्ध सेवा काल में अभियोजन के लिए अनिवार्य होता है। हालांकि, सरकार ने स्वीकृति नहीं दी। इसके बाद सीआईडी ने अदालत में ‘समरी रिपोर्ट’ (यानी बंद करने की रिपोर्ट) दाखिल की। लेकिन दिसंबर 1995 में अदालत ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया और संजीव भट्ट तथा अन्य छह आरोपियों के विरुद्ध आरोपों का संज्ञान लिया।
इस मामले में 1995 में ‘ए-समरी रिपोर्ट’ दाखिल की गई थी, जब गुजरात सरकार ने भट्ट के अभियोजन की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। हालांकि, मई से जुलाई 2011 के बीच भट्ट ने 2002 के दंगों के संबंध में नानावटी और मेहता आयोग के समक्ष जो गवाही दी, उसके बाद राज्य सरकार ने उन्हें दी गई सुरक्षा वापस ले ली और जाम नगर की अदालत ने शीघ्र ही आरोप तय करने की प्रक्रिया शुरू कर दी।
जून 2019 में जामनगर की सत्र अदालत ने संजीव भट्ट को उम्रकैद की सजा सुनाई, जिसे बाद में गुजरात हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने भी बरकरार रखा।
(जनचौक की रिपोर्ट। कुछ इनपुट इंडियन एक्सप्रेस से लिया गया है।)
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