तकनीकी तौर पर भारत-पाक जंग की अभी भी शुरुआत नहीं हुई है। चार दिन पहले जब भारतीय सेना ने पीओके और सीमा से सटे पाकिस्तानी क्षेत्रों में जैशे मोहम्मद, लश्करे तैयबा के प्रशिक्षण शिविरों को अपना निशाना बनाया था, तो बार इस बात को दोहराया था कि उसने नागरिक ठिकानों और सैन्य प्रतिष्ठानों पर कोई हमला नहीं किया है। बदले में पाकिस्तान की ओर से भी अब ऐसे ही दावे किये जा रहे हैं, जिसे भारतीय विदेश सचिव और सेना की ओर से कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह रोज सुबह 10:30 बजे ब्रीफ कर देश के सामने उजागर करती हैं।
आज विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने अपने वक्तव्य में उल्लेख किया कि पाकिस्तानी प्रचार तंत्र का यह दावा कि भारतीय बुद्धिजीवियों का एक हिस्सा भी भारत की कार्यवाई की आलोचना कर रहा है, जिसे वह अपने पक्ष को मजबूत करने में इस्तेमाल करने की कोशिश में है, वह असल में भारतीय लोकतंत्र की मजबूती को बताता है। सुनने में यह अजीब लग सकता है, लेकिन वैश्विक भूराजनीति में आंतरिक लोकतंत्र को फलता-फूलता दिखाने के पाने फायदे हैं।
हकीकत तो यह है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू होने से पहले ही कई सोशल मीडिया और यूट्यूब चैनलों को प्रतिबंधित किये जाने की पहल शुरू हो चुकी थी। 8 मई को सोशल मीडिया X के ग्लोबल गवर्नमेंट अफेयर्स हैंडल ने सूचित किया कि भारत सरकार ने 8000 अकाउंट को भारत में प्रतिबंधित करने के निर्देश दिए हैं। X ने इस निर्देश का पालन करते हुए अपनी असहमति जताई है, लेकिन भारत से बाहर इन हैंडल्स के पोस्ट देखे जा सकते हैं। इसके पीछे सरकार का यह तर्क माना जा रहा है कि भारत-पाक तनाव की स्थिति में इन एकाउंट्स से फेक और भारत विरोधी खबरें चलाई जा सकती हैं।
लेकिन दो दिन पहले भारतीय कथित राष्ट्रीय मीडिया ने भारत-पाक सीमा संघर्ष को जिस तरह से बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया, उसने फेक खबरों के मामले में पूरी दुनिया को सकते की हालत में डाल दिया। खुद भारतीय सेना को आगे आकर कहना पड़ा कि नेशनल टेलीविज़न पर चलने वाली खबरें सही नहीं हैं। रक्षा मंत्रालय की ओर से सभी मीडिया चैनलों और डिजिटल मीडिया से जुड़े लोगों को एडवाइजरी जारी करनी पड़ी, हालाँकि इसे अलग तरीके से निरुपित किया गया, लेकिन टीआरपी के भूखे इन चैनलों को एक संदेश देने की कोशिश तो जरुर सफल हुई।
इस युद्धोन्माद का शिकार आम लोग ही नहीं हुए, बल्कि सरकार में बैठे वे केंद्रीय मंत्री तक हो गये, जिनके कंधों पर देश ने बेहद भारी जिम्मेदारी सौंप रखी है। आजतक, टाइम्स नाउ, रिपब्लिक भारत और ज़ी न्यूज़ न्यूज़ चैनलों के लिए युद्ध के हालात अपनी टीआरपी को सबसे ऊपर रखने का सुनहरा अवसर होता है, जिसमें देशभक्ति और दुश्मन को नेस्तनाबूद किये जाने की झूठी खबरों से चैनल तेजी से लोकप्रिय होता है, और जो चैनल जितना अधिक दर्शकों देखा जायेगा, उसे उतनी ही बड़ी मात्रा में विज्ञापन मिलेंगे।
इन फेक खबरों का शिकार केंद्रीय मंत्री, किरेन रिजिजू तक हो गये, जिनका काम ही संसदीय मंत्री होने के नाते सर्वदलीय बैठक के बारे में मीडिया ब्रीफिंग में रहा है। उन्होंने अपने सोशल मीडिया हैंडल से लिख डाला कि भारतीय सेना ने कराची पर किया हमला। यहां अभी भारत सरकार का स्टैंड यहीं तक सीमित है कि हमारी सेना ने सिर्फ पहलगाम आतंकी हमले के दोषी आतंकियों के पाक सीमा से सटे ठिकानों को ही अपना टार्गेट बनाया है, जिसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय किसी भी तरह से अंतरराष्ट्रीय सीमा के उल्लंघन और एक्ट ऑफ़ वॉर की श्रेणी में न रखे।
केंद्रीय मंत्री को कुछ समय बाद अहसास हुआ और उन्होंने पोस्ट डिलीट कर दी। लेकिन लोगों ने स्क्रीनशॉट सहेज कर रख लिया था। किरेन रिजिजू जी ने एक नए पोस्ट में आरोप लगाते हुए कहा, “यह शरारती काम कौन कर रहा है? यह हम सबके लिए गंभीर समय है। यह राजनीति करने का समय नहीं है। कोई फ़र्जी अकाउंट बनाकर पत्रकारों के ज़रिए शेयर कर रहा है!”
यानि मंत्री जी का दावा था कि कोई उनका फेक अकाउंट बनाकर उनके नाम से कराची पर भारतीय नौसेना के हमले की झूठी खबर चला रहा है। लेकिन ऑल्ट न्यूज़ के जुबैर अहमद ने उनके दावे को ख़ारिज करते हुए उनकी मीडिया ब्रीफिंग का स्क्रीनशॉट लगाकर बता दिया है कि इसे आपके अकाउंट को हैंडल करने वाले ने ही डिलीट किया है। कुछ कहना है तो उसे कहिये, किसी भी पत्रकार को नहीं।
अब इसका जवाब केंद्रीय मंत्री क्या ही दे सकते हैं। संभवतः, इन्हीं सब बातों और कल से पाकिस्तानी सैन्य कार्यवाही में आई तेजी के साथ-साथ सीमा पार से फेक खबरों के आक्रमण को देखते हुए प्रेस इन्फोर्मेशन ब्यूरो को मोर्चे पर उतरना पड़ा है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद पाकिस्तानी सेना ने जम्मू के पुंछ, राजौरी और पंजाब के सीमावर्ती इलाकों में भारी गोलाबारी कर नागरिक आबादी को अपने निशाने पर लेने की कोशिश की। लेकिन कल से उसने एक के बाद एक जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और यहां तक कि गुजरात के सीमावर्ती क्षेत्रों में हमले तेज कर दिए थे, और साथ ही ऐसा लगता है कि भारतीय गोदी मीडिया के मुकाबले में अपनी साइबर सेना को तैनात कर दिया है।
पीआईबी की ओर से पाकिस्तानी सोशल मीडिया हँडल की ओर से वायरल की जा रही फर्जी खबरों का एक के बाद एक खंडन किया जा रहा है। यह अलग बात है कि अलज़जीरा की एक रिपोर्ट के अलावा रायटर्स, CNN सहित पश्चिमी मीडिया में भारत-पाक संघर्ष से निकलने वाले कई निष्कर्षों पर कोई खंडन नहीं किया गया है।
लेकिन इस तथ्य से तो कोई इंकार नहीं कर सकता कि पाकिस्तान की सीमा से सटे विभिन्न इलाकों में आम लोगों के बीच दहशत का आलम है। इंडियन आयल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम खुद आगे आकर आम लोगों को विश्वास दिला रही हैं कि देश में पेट्रोल, डीजल और गैस की कोई कमी नहीं है। पर यह भी सच है कि पश्चिमी सीमा के पास के लगभग सभी हवाईअड्डे ठप पड़ चुके हैं, जिसके चलते हजारों यात्रियों की यात्रा और जरुरी काम अटक चुके हैं।
कल एयर इंडिया की ओर से एक बयान जारी कर कहा गया है कि, “भारत में कई हवाई अड्डों के लगातार बंद रहने के बारे में विमानन अधिकारियों की अधिसूचना के बाद, जम्मू, श्रीनगर, लेह, जोधपुर, अमृतसर, चंडीगढ़, भुज, जामनगर और राजकोट जैसे स्टेशनों से आने-जाने वाली एयर इंडिया की उड़ानें आगे की जानकारी मिलने तक 15 मई को 0529 बजे IST तक रद्द की जा रही हैं। इस अवधि के दौरान यात्रा के लिए वैध टिकट रखने वाले ग्राहकों को पुनर्निर्धारण शुल्क पर एक बार छूट या रद्दीकरण के लिए पूर्ण धन वापसी की पेशकश की जाएगी।
अधिक जानकारी के लिए, कृपया हमारे संपर्क केंद्र पर 011-69329333 / 011-69329999 पर कॉल करें या हमारी वेबसाइट http://airindia।com पर जाएँ।”
यहां तक कि दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से भी कई फ्लाइट रिशेड्यूल किये जाने की सूचना है। यह सब तब हो रहा है, जब औपचारिक युद्ध शुरू नहीं हुआ है।
लेकिन यह तो रहा मध्य और उच्च वर्ग को हो रही दिक्कतों का प्रश्न। पंजाब के स्थानीय न्यूज़ चैनलों से जानकारी आ रही है कि बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश और बिहार से आकर उद्योगधंधों में काम करने वाले प्रवासी मजदूर पलायन कर रहे हैं। लुधियाना रेलवे स्टेशन पर प्रवासी श्रमिकों की बढ़ती भीड़ की चिंता के पीछे कोविड लॉकडाउन का दंश उन्हें सता रहा है। तनाव के आगे बढ़ने की आशंका को देखते हुए कुछ उद्योगों ने आंशिक बंदी कर दी है, तो कुछ मामलों में श्रमिकों के परिवार वाले उन्हें सकुशल वापस लौटने का आग्रह कर रहे हैं।
कल आईएमऍफ़ ने पाकिस्तान को 1.3 बिलियन डॉलर कर्ज की मंजूरी देकर एकबार फिर डिफ़ॉल्ट होने की स्थिति से उबार लिया है। भारत सरकार की ओर से शुरूआती जोरदार विरोध के बाद वोटिंग के वक्त अनुपस्थिति भी चर्चा का विषय है। इतना ही नहीं पाकिस्तान को रेमिटेंस के तौर पर 3.2 बिलियन डॉलर मिलना भी उसकी लड़खड़ाती अर्थव्यस्था के लिए संजीवनी साबित हो सकता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या इन सबका इस्तेमाल वह खुद को संकट से उबारने पर खर्च करने जा रहा, या भारत के खिलाफ हमले के लिए चीन और तुर्किये से मिसाइलों और ड्रोन की नई खेप में जाया करेगा?
वैश्विक ताकतों में अमेरिका खुद अपने टैरिफ वॉर की घोषणा में उलझा हुआ है, और आश्चर्यजनक रूप से 80 वर्षों में पहली बार वह युद्ध के नाम पर नाक-भौं सिकोड़ रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का यह कहना कि भारत-पाकिस्तान तो सैकड़ों वर्षों से लड़ रहे हैं, या कल उप-राष्ट्रपति जेडी वांस ने भारत-पाक तनाव पर पल्ला झाड़ते हुए यह कहा कि इससे हमारा कोई सरोकार नहीं है, संभव है दोनों दक्षिण एशियाई परमाणु हथियार संपन्न देशों के हुक्मरानों को सोचने पर मजबूर करे।
उधर रुस और चीन द्वितीय विश्व युद्ध और नाजीवाद पर निर्णायक जीत की 80वीं वर्षगाँठ के मौके पर एक-दूसरे के साथ मित्रता और साझेदारी की नई मिसाल कायम करते हुए बहु-ध्रुवीय विश्व की दिशा में एक और मजबूत कदम बढ़ा रहे हैं।
ऐसा जान पड़ता है कि दोनों देशों को आक्रामक रुख दिखाने का एक-एक मौका मिल चुका है। इसके दुष्परिणाम और दुश्मन देश की सामरिक क्षमता का भी मोटा-मोटा अनुमान लग चुका है। इस तनाव को कम करने या युद्ध के मुहाने पर ला खड़ा करने के लिए अगला कदम कौन उठाता है, इसका इंतजार दोनों को होगा।
(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)