चुनाव में ईवीएम के दुरुपयोग और वोटर लिस्ट में यकायक वृद्धि होने के मामले अदालत में विचाराधीन हैं ही। चुनाव कैसे जीते गए उसके खुलासे से घबराए नए चुनाव आयुक्त ने जो नई पैंतरेबाजी से भाजपा को जिताने और यश कमाने की तरकीब निकाली है उसका व्यापक स्तर पर विरोध दर्ज कराया जा रहा है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो इसे सीएए से भी घातक बताया है। विदित हो, भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने चुनावी राज्य बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के निर्देश जारी किए हैं। इसका मतलब है कि बिहार के लिए मतदाता सूची नए सिरे से तैयार की जाएगी।
आरोप लगाया जा रहा है कि एक बार जब नाम मतदाता सूची से हटा दिए जाएंगे, तो अगला कदम इन लोगों को सामाजिक कल्याण योजनाओं के लाभ से वंचित करना भी हो सकता है। यह बीजेपी-आरएसएस की जनविरोधी सोच के अनुरूप है, जिसे दत्तात्रेय होसबाले ने संविधान की प्रस्तावना से समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने की वकालत करके अभिव्यक्त किया है। तेजस्वी ने कहा कि निर्वाचन आयोग के लिए सिर्फ 25 दिनों में इतनी बड़ी कवायद करना असंभव है, जैसा कि उसने प्रस्तावित किया है। अगर वास्तव में यह संभव है, तो मैं केंद्र को चुनौती देता हूं कि वह दो महीने के भीतर जाति जनगणना कराए।
बिहार में मतदाता सूची में संशोधन करने के, भारत के चुनाव आयोग के फ़ैसले ने तीखी राजनीतिक बहस छेड़ दी है। आलोचकों का तर्क है कि इससे करोड़ों मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं, जिससे बिहार विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले चुनावी प्रक्रिया की ईमानदारी पर सवाल उठ रहे हैं।
साफ़ तौर से यह एक साजिश है, जो चुनाव आयोग द्वारा भाजपा की जीत तय कर सकती है ।इसके अलावा, यह साज़िश सिर्फ बिहार के वोटरों पर ही नहीं, उनके अधिकारों पर, उनकी पहचान पर, उनकी नागरिकता पर असर डालेगी। बिहार के लोगों के वजूद को खत्म करने की यह सुनियोजित चाल है। उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने के लिए जो पैमाने बनाए गए हैं वे बहुत दिक्कत पैदा करेंगे जिससे आम तौर पर करोड़ों लोगों का मताधिकार खत्म हो जाएगा।
मसलन 1 जुलाई, 1987 से पहले जन्मे लोगों के लिए- उन्हें अपनी जन्म तिथि या स्थान की सत्यता स्थापित करने के लिए कोई एक वैध दस्तावेज देना होगा।दूसरा1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्म हुआ है तो- उन्हें अपने साथ-साथ अपने माता-पिता में से किसी एक का वैध दस्तावेज भी देना होगा। 2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे मतदाताओं के लिए- इनको अपना और अपने माता-पिता के वैध दस्तावेज देने होंगे।
प्रतिपक्ष इसीलिए वोटर लिस्ट की जांच पर सवाल उठा रहा है जब चुनाव हेतु कम समय बचा है तब ये सब क्यों होने की चुनाव आयोग घोषणा कर रहा है। इस पूरी प्रक्रिया को, मानसून के दिनों में बिहार के बाढ़-प्रभावित इलाकों में, एक महीने में कैसे पूरा किया जाएगा? लोकसभा चुनाव के वक्त जब इसी वोटर लिस्ट पर वोट पड़े हैं, तो विधानसभा में क्यों नहीं? साफ है।
ध्यान दीजिए,जब भी BJP पर संकट आता है, वो चुनाव आयोग की तरफ भागते हैं। और चुनाव आयोग जो सवालों के घेरे में है।एक बार फिर भाजपा की गिरफ्त में है।
इंडिया गठबंधन के नेताओं ने इसका विरोध किया है। बिहार में विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलेपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस (इंडिया) ने राज्य विधानसभा चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता सूची में गहन पुनरीक्षण के प्रस्ताव का शुक्रवार को कड़ा विरोध किया। उन्होंने इस कवायद को आगामी राज्य विधानसभा चुनावों में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए की मदद करने के लिए एक षड्यंत्र करार दिया। संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव, कांग्रेस के मीडिया एवं प्रचार विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा और भाकपा (माले) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य सहित अन्य नेताओं ने कहा कि बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण का विरोध किया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल के जनमत सर्वेक्षणों से परेशान हैं, जिनमें दिखाया गया है कि बिहार में एनडीए का प्रदर्शन खराब रहने वाला है। इसलिए, उन्होंने शायद निर्वाचन आयोग का इस्तेमाल मास्टर स्ट्रोक के रूप में किया है। कांग्रेस नेता ने यह भी दावा किया कि निर्वाचन आयोग के लिए बिहार एक प्रयोगशाला है और देश में अन्य जगहों पर भी इसी तरह के प्रयोग हो सकते हैं।
कुल मिलाकर मोदी सरकार की आज्ञा का पालन करते हुए चुनाव आयोग ने बिहार में जो ये नागरिकों के खिलाफ ऐन चुनाव के वक्त निर्णय लिया है वह दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे करोड़ों लोग मतदान से वंचित हो जाएंगे। उनसे आमतौर पर गरीब मतदाता प्रभावित होगा जो भागदौड़ कर इतनी जल्दी दस्तावेज नहीं दे पाएगा। गरीब विरोधी सरकार उनके मतदान का मौलिक अधिकार छीनने की तैयारी में है। इसका डटकर प्रतिकार होना ज़रूरी है क्योंकि हमारा संविधान सबको बराबरी से मत देने का अधिकार देता है। भाजपा सरकार पर अब तक आयातित वोटर ले कर जीत का परचम फहराती रही है इस बार इस नए प्रयोग से कम मतदान कराके चुनाव जीतने की जुगत में है। इस पर तमाम लोगों को मिलकर रणनीति बनाकर दबाव डालना होगा। वरना गुलाम चुनाव आयोग और मोदी सरकार मिलकर भारत में तानाशाही की एक और इबारत लिख देंगे।
(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)