नई दिल्ली। लेखक, एक्टिविस्ट और कवि वरवर राव को मुंबई के तलोजा जेल से अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा है। 79 वर्षीय वरवर राव को कल रात जेजे अस्पताल में उस समय भर्ती कराना पड़ा जब वह अचानक बेहोश होकर गिर पड़े। डाक्टरों का कहना है कि वरवर राव ने सांस लेने में कुछ परेशानी की शिकायत की थी।
अभी कोरोना के माहौल में जेलों की जो स्थितियां हैं उससे जेल में बंद राजनीतिक कैदियों के लिए खतरा बहुत बढ़ गया है। सुप्रीम कोर्ट पहले ही लोगों को जमानत या फिर पैरोल समेत दूसरे आधारों पर बाहर निकालने का निर्देश दिया है। लेकिन सरकारें उस पर उस भावना के मुताबिक अमल नहीं कर रही हैं। हालांकि जेजे अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया है कि वरवर राव की हालत स्थिर है। उन्होंने बताया कि “लाये जाने के बाद वह तुरंत स्थिर हो गए। उनके सीने का एक्सरे कराया गया था और वह सामान्य हैं। कोविड-19 की टेस्टिंग के लिए उनकी नांक से स्वैब लेकर जांच के लिए भेज दिया गया है। उसका नतीजा कल (यानी आज) आएगा।” अस्पताल के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने यह बात द वायर को बतायी।
राव को तलोजा जेल से 28 मई को ही बाहर निकाल लिया गया था लेकिन हैदराबाद में रहने वाले उनके परिवार को इसकी सूचना एक दिन बाद दी गयी। परिवार के एक सदस्य ने द वायर को बताया कि रात में 8.30 बजे “ स्थानीय चिक्काडपल्ली पुलिस स्टेशन से एक पुलिस वाले ने यह बताने के लिए फोन किया कि उनके स्वास्थ्य को लेकर महाराष्ट्र पुलिस की ओर से एक फोन आया था। फोन छोटा था और इसमें बताया गया था कि उन्हें अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया है। उसने बताया कि उसे और ज्यादा सूचना नहीं है।”
परिवार के सदस्य ने बताया कि फोन आने के बाद उनकी पत्नी बिल्कुल बेसुध हो गयी हैं। एलगार परिषद और भीमा कोरेगांव मामले में वरवर राव को जून 2018 में ही गिरफ्तार कर लिया गया था। और उसके बाद उन्हें पुणे के यरवदा जेल से मुंबई के बाहरी इलाके में स्थित तलोजा जेल में शिफ्ट कर दिया गया था। ऐसा कोविड 19 महामारी के सामने आने के कुछ दिनों पहले ही किया गया था। उसके बाद से लगातार मुंबई की हालत खराब होती जा रही है।
हालांकि जेल के अधिकारी लगातार इस बात का दावा कर रहे थे कि जेलों में बंद कैदियों का पूरा खयाल रखा जा रहा है। और उसमें किसी भी तरह की लापरवाही नहीं बरती जा रही है। लेकिन बताया जा रहा है कि पूरे राज्य स्तर पर जेलों में बंद 170 कैदी कोरोना पाजिटिव पाए गए हैं। तलोजा में इसी तरह के एक अंडरट्रायल कैदी की 9 मई को कोरोना से मौत हो गयी। इसके अलावा यरवदा सेंट्रल जेल और धुले की जिला जेल में भी एक-एक मौतें कोरोना से हुई हैं।
हालांकि महामारी के सामने आने के बाद से सरकार ने महाराष्ट्र में कुल 17000 कैदियों को रिहा किया है। इस सिलसिले में एक हाई पावर कमेटी बनायी गयी है और वह सभी जेलों में बंद कैदियों की संख्या और वहां की क्षमता का अध्ययन कर फैसले ले रही है। हल्के-फुल्के मामलों में बंद कैदियों को तो रिहा कर दिया जा रहा है। लेकिन यूएपीए या फिर मकोका और टाडा जैसे संगीन मामलों में बंद कैदियों को छोड़ने की इजाजत नहीं है।
आप को बता दें कि इस केस को पहले पुणे पुलिस देख रही थी अब केंद्र सरकार ने इसे एनआईए को ट्रांसफर कर दिया है। इसमें राव समेत सात आरोपियों पर पुलिस ने पीएम मोदी की हत्या की साजिश करने का आरोप लगाया है। लेकिन केस से जुड़े तथ्यों में तमाम तरह की विसंगतियां चिन्हित की गयी हैं। मामले में बंद दूसरे लोगों ने स्वास्थ्य के आधार पर जमानत की अर्जी दी थी लेकिन केंद्र की एजेंसी ने उसका पूरी ताकत से विरोध किया।
यह पहली बार नहीं है जब राव को जेल में डाला गया है। इसके पहले 1973 और 1988 में भी उन्हें जेल में बंद किया गया था। इस तरह से अब तक उन्हें तीन बार जेल में बंद किया जा चुका है। तीनों बार ऐसा उनकी साहित्यिक और राजनीतिक गतिविधियों के चलते किया गया था।
इस बीच, मुंबई की एक स्पेशल कोर्ट ने इसी मामले में मुंबई के ही बायकुला महिला जेल में बंद सुधा भारद्वाज की जमानत याचिका को खारिज कर दिया। 59 वर्षीय भारद्वाज वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं और छत्तीसगढ़ में काम कर रही थीं।
अपनी अंतरिम जमानत की अर्जी में भारद्वाज ने कहा था कि उनके संक्रमण का भीषण खतरा है क्योंकि उनकी जेल में एक शख्स कोरोना पॉजिटिव निकला है। और उनकी मौजूदा मेडिकल कंडीशन को देखते हुए उन्हें तत्काल रिहा किया जाए। लेकिन कोर्ट ने उनकी अर्जी को खारिज कर दिया।
(जनचौक डेस्क पर तैयार रिपोर्ट।)
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