कोरोना कॉल में बीएड और बीईओ की परीक्षा से छात्रों की जान को संकट, इनौस ने कहा टाले जाएं इम्तेहान

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इंकलाबी नौजवान सभा (इनौस ) ने नौ अगस्त को होने वाली बीएड और 16 अगस्त को होने वाली बीईओ की परीक्षा को यथाशीघ्र टालने की मांग की है। इनौस के प्रदेश सचिव सुनील मौर्य ने कहा कि  कोरोना महामारी का संकट पूरे प्रदेश पर है। इससे छात्रों की जान जाने का खतरा तक है। साथ ही यातायात न होने की वजह से 200 किलोमीटर से अधिक दूरी पर बनाए गए सेंट्र तक पहुंचना बहुत मुश्किल होगा।

उन्होंने कहा कि प्रवेश पत्र आने के बाद छात्रों का सेंटर बहुत दूर बनाए जाने की शिकायत भी लगातार आ रही है। दूर सेंटर होने से छात्राओं को भी खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। इस परिस्थिति में परीक्षा होती है तो कई लोगों को पैसे के अभाव में भी परीक्षा छोड़ने पर मजबूर होना पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि परीक्षा को स्थगित कर सभी को परीक्षा देने का मौका बाद में दिया जाए। उन्होंने मांग न पूरी न होने पर छात्रों को लॉकडाउन में विरोध प्रदर्शन करने पर मजबूर होना पड़ेगा।

उधर, इनौस ने छात्र-नौजवानों की समस्याओं पर प्रधानमंत्री को एक पत्र भी लिखा है।

प्रधानमंत्री के नाम पत्र

माननीय
प्रधानमंत्री
श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी
भारत सरकार

महोदय,
देश में आज भ्रष्टाचार खत्म करने, रोजगार देकर देश के विकास से बड़ा कोई सवाल नहीं है। हमें यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि कोरोना महामारी के दौरान भी आप उत्तर प्रदेश के लिए समय निकाल कर आ रहे हैं। आपको उत्तर प्रदेश की चिंता होनी भी चाहिए, क्योंकि आप यहीं से सांसद बनकर देश के प्रधानमंत्री हैं। हम सोचते थे कि आप आकर सबसे पहले बनारस जाएंगे, क्योंकि वहां के लोगों का हाल सम्पूर्ण प्रदेश की जनता की तरह ही ठीक नहीं है। आपके द्वारा गोद लिए गए गांव की स्थिति भी सुधरी नहीं, ऐसी एक रिपोर्ट मुझ तक पहुंची थी। वैसे जब पता चला कि आप बनारस नहीं पहुंच रहे हैं तो दुःख हुआ।

चलो कोई बात नहीं, बनारस तो उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है। यह अलग बात है कि आप वहां से सांसद हैं लेकिन उत्तर प्रदेश राज्य को चलाने की जिम्मेदारी भी जनता ने आपकी ही पार्टी के युवा नेता माननीय योगी आदित्यनाथ जी के हाथ में ही दी है। वैसे अलग-अलग जिलों में जाना संभव नहीं हो पाता और इतने व्यस्त कार्यक्रम में से कम समय निकालकर उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों के सभी जिलों में जाना तो एकदम संभव नहीं है।

वैसे कोरोना ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एकता मजबूत करने के लिए विदेशी दौरों को रोक न दिया होता तो आपका यहां आने का समय निकाल पाना भी मुश्किल होता। उत्तर प्रदेश आने से अच्छा होता अभी का समय बिहार को दिया जाता क्योंकि वहां का संकट और बड़ा है, जल्द ही चुनाव भी हैं। साथ ही साथ आपको भी वहां के मुख्यमंत्री उतने काबिल भी नहीं लगते होंगे जितने कि उत्तर प्रदेश के। आखिर बिहार के भविष्य की बात है। चलिए अब बिहार की छोड़ते हैं, वहां तो वैसे भी बहार है।

बात करेंगे उत्तर प्रदेश की, यह तो आपकी ऊंची सोच का ही नतीजा है कि आपने ‘एकहि साधे सब सधे’ की समझदारी भरा कदम उठाते हुए माननीय मुख्यमंत्री योगी जी से ही सवाल जवाब करने का तथा अपने वादे को पूरा करने के लिए चल रहे कार्यों को शीघ्र पूरा करने में आ रही समस्याओं के निराकरण की योजना बनाई।

हम जानते हैं कि आप दूर दृष्टि रखते हैं और आपने योजना बना ली होगी। बावजूद इसके हमारी कुछ बात है जो मुख्यमंत्री महोदय उत्तर प्रदेश नहीं सुन रहे हैं, वैसे यह हमारी बात क्या आपकी ही बात है। आपने ही कहा था कि प्रतिवर्ष दो करोड़ युवाओं को रोजगार दूंगा और सभी नौकरी छह माह में पूरी होंगी यानी फार्म भरने और नियुक्ति पत्र देने में छह माह से ज्यादा समय न लगे और दूसरी बात ‘ना खाऊंगा ना खाने दूंगा’ अर्थात भ्रष्टाचार खत्म करूंगा। आपकी यही बात जो कि हमारी भी है, नहीं सुनी जा रही।

बात हम सबकी है। उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड, उत्तर प्रदेश लोक सेवा, आयोग उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवाचयन आयोग, रेलवे, बैंक पुलिस का फार्म भरने वाले सभी छात्र की बात कहना पत्र में संभव नहीं है। लिहाजा हम एक शिक्षक भर्ती की बात कहना चाहते हैं।

69000 शिक्षक भर्ती की व्यथा
69000 बेसिक शिक्षक भर्ती कोई नई भर्ती नहीं है। यह 1,37,500 शिक्षा मित्रों को शिक्षक पद से हटाने के बाद उत्तर प्रदेश में  रिक्त हुए पदों को भरने के लिए दो चरण में नियुक्त करने के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार दूसरे चरण की नियुक्ति है। पहले चरण में 68500 की नियुक्ति प्रक्रिया जैसे- तैसे संपन्न हुई है और उसमें भी लगभग एक तिहाई सीट अभी खाली ही रह गई है।

69000 शिक्षक भर्ती का फार्म आता है दिसंबर 2018 में और परीक्षा छह जनवरी 2019 को संपन्न होती है। परीक्षा से पूर्व ही छात्रों ने प्रदर्शन कर विज्ञापन में पासिंग मार्क (कटऑफ) लगाने की मांग की, लेकिन उस समय इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। परीक्षा संपन्न होने के दूसरे दिन यानी सात जनवरी को ही नया पासिंग मार्क 60% ओबीसी-एससी-एसटी और 65% जनरल के लिए घोषित कर दिया गया।

इस पासिंग मार्क को अवैध बताते हुए शिक्षा मित्रों ने न्यायालय में चुनौती दे दी। उनका कहना था कि इससे हमारा नुकसान होगा, लिहाजा खत्म कर दिया जाए। जिस पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने सरकार के खिलाफ यानी शिक्षामित्रों के पक्ष में फैसला सुनाया कि यह 60-65 %कटऑफ लगाने का निर्णय गलत है। इस फैसले के खिलाफ सरकार डबल बेंच में गई, जिसमें लगभग एक वर्ष का समय लग गया और डबल बेंच का फैसला मई 2020 में आता है। इसमें सिंगल बेंच के आदेश के उलट सरकार के पक्ष को सही माना और 60-65% पासिंग मार्क के साथ तीन माह के अंदर भर्ती पूरी करने का आदेश दिया। इसके खिलाफ शिक्षामित्र पुनः न्याय के लिए सर्वोच्च न्यायालय जाने का फैसला लेते हैं।

इसी दौरान परीक्षा का परिणाम जारी होता है, जिसमें छात्र पीएनपी द्वारा जारी उत्तर कुंजी के कई सवालों को गलत बताते हुए संशोधन की मांग करते हैं, लेकिन पीएनपी  के जवाब से संतुष्ट नहीं होते है। असंतुष्ट होकर न्यायालय में याचिका दायर करते हैं जिस पर कोर्ट ने काउंसलिंग के दिन तीन जून 2020 को ही भर्ती प्रक्रिया पर स्टे का आदेश पारित करते हुए आंसर की जांच के लिए यूजीसी की कमेटी गठित करने की बात कही।

इसके खिलाफ भी सरकार ने डबल बेंच में अपील किया और फैसला सरकार के पक्ष में आया। इसमें सिंगल बेंच के फैसले को स्टे करते हुए पीएनपी के उत्तर को सही माना। इसके खिलाफ छात्रों ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की है, जिसमें इस मसले को पुनः डबल बेंच में भेज दिया गया कि वहीं पर इसकी पूरी सुनवाई की जाए।

इन सब बातों के अलावा ‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा’ की बात यहां पर भी है। इस भर्ती में भ्रष्टाचार का खेल जमकर खेला गया। 69000 शिक्षक भर्ती की परीक्षा 06 जनवरी 2019 को संपन्न हुई। उसके एक  दिन पूर्व पांच जनवरी 2019 को ही चारों प्रश्न पत्र के आंसर सोशल मीडिया पर वायरल हो गए और व्यापक पैमाने पर सेटिंग इस भर्ती परीक्षा में दिखाई दी।

इस भर्ती परीक्षा में एसटीएफ ने कई जिलों में एफआईआर दर्ज की और दर्जनों लोगों की गिरफ्तारी भी की गई, लेकिन उसका क्या हुआ आज तक सामने नहीं आया। भर्ती  में भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रतियोगियों ने छह जनवरी 2019 से ही आवाज उठाना शुरू कर दिया था। प्रतियोगियों ने न्याय मोर्चा के बैनर तले संगठित होकर दो महीने तक लगातार पीएनपी पर प्रदर्शन किया, लेकिन प्रशासन और सरकार कुछ भी ध्यान देने के लिए तैयार नहीं हुई।

मामले में नया मोड़ तब आया जब छह जून 2020 को एक अभ्यर्थी की शिकायत पर सोरांव प्रयागराज के थाने में पैसा लेकर नौकरी न दिलाने यानि धोखाधड़ी की  एफआईआर दर्ज हुआ। इसके बाद कई ऐसे अभ्यर्थी पकड़ में आए जो पैसा देकर सेलेक्शन पाए थे। इसमें डेढ़ सौ में 142 नंबर पाने वाला अभ्यर्थी राष्ट्रपति का नाम तक नहीं बता पाया। भर्ती में भ्रष्टाचार के कथित मुख्य सरगना केएल पटेल समेत 11 लोग गिरफ्तार किए गए हैं। कई लोग अभी भी गिरफ्तारी से दूर हैं, जिसमें भट्ठा संचालक मायापति दुबे और स्कूल प्रबंधक चंद्रमा यादव का नाम प्रमुख है।

कहा जा रहा है कि इनकी गिरफ्तारी इसलिए नहीं हो पा रही, क्योंकि इनके ऊपर मंत्रियों का हाथ है। मामला उजागर होने के लगभग एक सप्ताह के अंदर ही इस पूरे मसले को एसटीएफ को सौंप दिया गया, लेकिन तब से इसमें कोई भी गिरफ़्तारी नहीं हुई। अब तक कुछ कार्रवाई आगे न बढ़ने यानि आरोपियों की गिरफ़्तारी न होने से ऐसा लगता है कि एसटीएफ मामले को हल करने के बजाय मामले को दबाने के लिए ही लगाई गई है।

छात्रों ने इसी बीच भ्रष्टाचार की सीबीआई जांच कराने और परीक्षा रद्द कराने की मांग पर लखनऊ खंडपीठ में याचिका भी दायर की, लेकिन उसमें भी सरकार अपना पक्ष रखने में देरी कर रही है। मामला शिक्षा का है, बच्चों के भविष्य का है, समाज का है, देश का है और ‘ना खाऊंगा ना खाने दूंगा’ का है।

बात तो एमआरसी (मेरिटोरियस रिजर्व कटेगरी) यानी सामाजिक न्याय पर, कानून व्यवस्था, महिलाओं पर हिंसा, बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी लिखना था, लेकिन पत्र बड़ा हो जाएगा लिहाजा इस पर विस्तृत बात नहीं। तब और नहीं जब यह पता चला कि शायद आप मुख्यमंत्री से तो इन सब सवालों पर बात भी न कर पाएं, क्योंकि आप लखनऊ नहीं अयोध्या जा रहे हैं। आप कहीं भी जाइए, आप प्रधानमंत्री हैं। बस हमारी बातों पर भी ध्यान दे दीजिए।  जहां जी चाहे वहां जाइए लेकिन जनता के दुःखों से ऊपर मत जाइए।

पत्र पढ़ने के लिए शुक्रिया
जवाब का इंतजार रहेगा।

द्वारा…
उत्तर प्रदेश के युवाओं की तरफ से  
सुनील मौर्य
संयोजक
69000 शिक्षक भर्ती न्याय मोर्चा, उत्तर प्रदेश

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