हरियाणाः कृषि अध्यादेशों के खिलाफ़ किसानों में उबाल, पिपली रैली पर पुलिस लाठीचार्ज

केंद्र सरकार द्वारा पारित तीन अध्यादेश के खिलाफ़ किसानों में जबरदस्त उबाल है। कुरुक्षेत्र के पिपली में बुलाई गई ‘किसान बचाओ, मंडी बचाओ’ रैली में हरियाणा पुलिस ने लाठीचार्ज किया है। रैली में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में किसान घरों से निकले थे। रैली को किसी भी कीमत पर रोकने के लिए हरियाणा प्रशासन ने पहले से ही तैयारियां कर रखी थीं। जो जहां मिला उसे वहीं से गिरफ्तार कर लिया गया। हरियाणा के 17 किसान संगठनों ने आज 10 सितंबर को अनाज मंडी पिपली में महारैली की अपील की थी।

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केंद्र सरकार के तीन अध्यादेश के खिलाफ पिपली में आयोजित किसान रैली के लिए प्रदेश भर में किसानों को रोका गया। हरियाणा में जगह-जगह पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश। हर जगह किसान बड़ी संख्या में एकजुट होकर विरोध कर रहे हैं। किसान पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। पिपली में बड़ी संख्या में पिछली रात से ही पुलिस तैनात कर दी गई थी।

सिरसा में पुलिस ने आढ़तियों और मजदूरों को नाकाबंदी करके रोका। सिरसा के आढ़तियों और मजदूरों को कुरुक्षेत्र के पिपली में महारैली में नहीं जाने दिया। सिरसा से किसान बड़ी संख्या में रैली में जाने के लिए निकले थे। पुलिस ने उन्हें वहीं रोक दिया। आढ़तियों ने गिरफ्तारी देकर प्रतिरोध दर्ज करवाया। 

मंजीत सिंह पन्नू ने कहा, “किसान पुत्रों, सरकार डराएगी कि बाहर निकले तो करोना खा जाएगा, अगर नहीं निकले तो सरकार खा जाएगी।”

हरियाणा के डबवाली में पिपली किसान रैली में जाने वाले किसानों को टोल प्लाजा पर रोक दिया। किसानों ने वहीं टोल पर ही धरना दे दिया। किसानों को रोकने के लिए रास्तों पर जगह-जगह पुलिस ने नाकेबंदी कर रखी थी। पिपली में कल से ही धारा 144 लगा दी गई थी। 

मुख्य नेताओं को किया गिरफ्तार
10 सितंबर को कुरुक्षेत्र में ‘किसान बचाओ, मंडी बचाओ’ रैली के एलान के बाद उपायुक्त ने बुधवार को पिपली अनाज मंडी बाजार में पांच या अधिक लोगों के जमावड़े को प्रतिबंधित करते हुए धारा 144 लगा दी थी।

खुद उपायुक्त शरनदीप कौर ने प्रशासन के स्टैंड पर प्रतिक्रिया देते हुए मीडिया से कहा, “भारतीय किसान यूनियन ने एक रैली का आह्वान किया है, लेकिन कोविड के कारण, जिला प्रशासन द्वारा कोई अनुमति नहीं दी गई है। हम जनता से आग्रह कर रहे हैं कि वे घर पर रहें और रैली स्थल तक न पहुंचें। कानून-व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के लिए धारा 144 लगा दी गई है। इसके अलावा, तीन-टीयर सुरक्षा व्यवस्था की गई है। थानेसर, पिहोवा, शाहाबाद और लाडवा में ड्यूटी मजिस्ट्रेट नियुक्त किए गए हैं और 54 नाके स्थापित किए गए हैं। रिजर्व पुलिस बल के साथ, लगभग 600 पुलिस कर्मी और अधिकारी ड्यूटी पर रहेंगे। हमने किसान नेताओं से रैली के लिए अपना आह्वान वापस लेने की अपील की है।”

उधर, कांग्रेस के केंद्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ट्वीट करके इस जानकारी को साझा किया था।

कुरुक्षेत्र रैली से पहले किसान नेताओं की ग़ैरक़ानूनी धर-पकड़ शुरू की गई। उकलाना में आढ़ती एसोसिएशन के प्रधान धूप सिंह बॉथम को पुलिस ने हिरासत में लिया।

किसान के खेतों का डेथ वारंट है सरकार के तीन अध्यादेश
भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “केंद्र सरकार द्वारा तीन अध्यादेश जारी किए गए हैं। वे हमारे देश की खेती का डेथ वारंट हैं। मंडियों के आढ़तियों और मुनीमों, पल्लेदारों का कारोबार छीनने का षडयंत्र रचा गया है। पूरे देश का कृषि व्यवसाय अडानी और अंबानी जैसे चंद लोगों के हवाले किया जा रहा है और इसका सीधा फायदा अमेरिका को जाएगा।

अमेरिका के दबाव में आकर डब्ल्युडीयू पर हस्ताक्षर कर दिए गए हैं। इससे देश के किसानों की खेती बिल्कुल बर्बाद हो जाएगी। अमेरिका का मुकाबला हमारा देश का किसान नहीं कर सकता है, क्योंकि हमारे देश के किसान के पास अगर पांच एकड़ जमीन है तो अमेरिका के किसान के पास पांच किलो मीटर जमीन है। हम तीन अध्यादेश का पुरजोर विरोध कर रहें हैं और मांग कर रहे हैं कि सरकार एमएसपी की गारंटी का कानून बनाए, जबकि सरकार बार-बार बयान दे रही है कि हम एमएसपी को नहीं तोड़ रहे हैं।” 

केंद्र सरकार द्वारा थोपे गए तीन अध्यादेश क्या हैं
कोरोनाकाल में जब भारत का कृषि क्षेत्र भारत की जनता के लिए संकटमोचक बना हुआ है, केंद्र सरकार इसे भी किसानों से छीनकर कंपनियों को सौंपने और इसकी संकटमोचक भूमिका को खत्म करने के लिए तीन अध्यादेश ले आई है। ये तीनों अध्यादेश एक तरह से कृषि क्षेत्र में ‘कंपनी एक्ट’ की शुरुआत है।   

1. फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस
ये सरकार द्वारा लाया गया पहला अध्यादेश है जो वन नेशन, वन मार्केट के सिद्धांत पर है। ये अध्यादेश कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) अध्यादेश किसानों को उनकी उपज देश में किसी भी व्यक्ति या संस्था (APMC सहित) को बेचने की इजाजत देता है। किसान अपना प्रोडक्ट खेत में या व्यापारिक प्लेटफॉर्म पर देश में कहीं भी बेच सकते हैं।

व्यापारी को इस कानून के तहत मंडी के बाहर से फसल खरीदने की छूट मिल जाएगी। अनाज, दालों, खाद्य तेल, प्याज, आलू आदि को जरूरी वस्तु अधिनियम से बाहर करके इसकी स्टाक सीमा समाप्त कर दी गई है। सरकार कांट्रेक्ट फॉर्मिंग को बढ़ावा देने की बात कह रही है।

गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि किसान की फसल यदि मंडी के बजाए बाहर खरीदने की छूट मिल जाएगी तो मंडियों में व्यापारियों का होने वाला कंपटीशन खत्म हो जाएगा। फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य समाप्त हो जाएगा। इस कानून से जहां हरियाणा और पंजाब की मंडियां खत्म हो जाएंगी, वहीं किसानों की फसल मंडीकरण से पूर्व पुराने जमाने की तरह औने-पौने दाम पर बिकेंगी। व्यापारी मनमर्जी तरीके से लूट मचाएंगे।

वहीं कुछ खाद्य पदार्थों को जरूरी वस्तु अधिनियम से बाहर करके इनकी स्टॉक सीमा समाप्त कर दी गई है। बड़े उद्योगपति और पूंजीपति लोग इनका अत्यधिक भंडारण करके इन चीजों की कालाबाजारी करेंगे। जैसे कई वर्षों पहले प्याज में किया गया था। इससे वे लोग देश की जनता का खून निचोड़ेंगे। 

2. एसेंशियल एक्ट 1955 में बदलाव
ये दूसरा अध्यादेश है। यह अध्यादेश अनाजों, दलहनों, खाद्य तेल, आलू और प्याज को अनिवार्य वस्तुओं की सूची से हटाकर खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को मुक्त करता है। यह निजी उद्यमियों को भरोसा और उन्हें इस क्षेत्र में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करता है। एसेंशियल एक्ट 1955 को कृषि उपज को जमा करने की अधिकतम सीमा तय करने और कालाबाजारी को रोकने के लिए बनाया गया था। लाए गए अध्यादेश के बाद नई व्यवस्था में स्टॉक सीमा को हटा लिया गया है। इससे जमाखोरी और कालाबाजारी बढ़ेगी और कृषि उत्पादों के दाम बेतहाशा बढ़ेंगे।

3. फॉर्मर्स अग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विस ऑर्डिनेंस
ये अध्यादेश व्यावसायिक कृषि को बढ़ावा देता है। इसके जरिए कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को आगे बढ़ाया जाएगा। कंपनियां खेती करेंगी और किसान मजदूर बनकर रह जाएगा। उसकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं होगी।

किसान यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी इंद्र कहते हैं, “तीसरे अध्यादेश में सरकार कांट्रेक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देगी, जिससे किसान अपनी ही जमीन पर कंपनियों के मजदूर बन जाएंगे और बड़ी बड़ी कंपनियां जमींदार। दरअसल सरकार इन तीनों अध्यादेशों के जरिए कृषि क्षेत्र में कंपनी प्रथा स्थापित कर रही है।”

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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