प्रशांत भूषण।

अवमानना मामले में बड़ी और अलग पीठ सुने अपील, प्रशांत भूषण ने दायर की नयी याचिका

अवमानना केस में दोषी ठहराए जाने के बाद वकील प्रशांत भूषण ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल करके मांग की है कि मूल आपराधिक अवमानना मामलों में सजा के खिलाफ अपील का अधिकार एक बड़ी और अलग पीठ द्वारा सुना जाए। उन्होंने कहा कि इस मामले में खुद कोर्ट ही अभियोजक और निर्णयकर्ता होता है ऐसे में सही फैसला नहीं होता। इसलिए अलग बेंच में सुनवाई का अधिकार दिया जाना चाहिए।

न्यायपालिका के खिलाफ अवमानना वाले ट्वीट के लिए प्रशांत भूषण को दोषी करार दिया गया था और एक रुपया जुर्माने की सजा दी गई थी। भूषण (को 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में 15 सितंबर तक जुर्माना राशि जमा करने का निर्देश दिया गया था। आदेश का पालन नहीं करने पर तीन महीने जेल की सजा और तीन साल के लिए वकालत करने पर रोक लग जाएगी)।

वकील कामिनी जायसवाल के माध्यम से दाखिल नई याचिका में प्रशांत भूषण ने अनुरोध किया है कि इस अदालत द्वारा आपराधिक अवमानना के मामले में याचिकाकर्ता समेत दोषी व्यक्ति को बड़ी और अलग पीठ में अपील करने का अधिकार’ प्रदान करने का निर्णय किया जाए। भूषण ने याचिका में आपराधिक अवमानना मामले में प्रक्रियागत बदलाव का सुझाव देते हुए एकतरफा, रोषपूर्ण और दूसरे की भावनाओं पर विचार किए बिना किए गए फैसले’ की आशंका को दूर करने का अनुरोध किया है ।

याचिका में कहा गया है कि ऐसे मामलों में शीर्ष न्यायालय एक पक्ष होने के साथ अभियोजक, गवाह और न्यायाधीश भी होता है इसलिए पक्षपात की आशंका पैदा होती है। याचिका में कहा गया है कि संविधान के तहत अपील करने का हक एक मौलिक अधिकार है और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत भी यह प्रदत्त है। इसलिए यह ‘गलत तरीके से दोषी ठहराए जाने के खिलाफ रक्षा प्रदान करेगा।’

याचिका में आपराधिक अवमानना के मूल मामले में दोष सिद्धि के खिलाफ अपील का मौका देने के लिए’ नियमों और दिशा-निर्देशों की रूपरेखा तय करने को लेकर भी अनुरोध किया गया है। मौजूदा वैधानिक व्यवस्था के मुताबिक, आपराधिक मामलों में दोषी करार दिए गए व्यक्ति को फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का अधिकार है और आम तौर पर चैंबर के भीतर याचिका पर सुनवाई होती है और इसमें दोषी व्यक्ति को नहीं सुना जाता है।

संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद-19 (भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी) और अनुच्छेद-21 (जीवन के अधिकार) के तहत दायर याचिका में कानून एवं न्याय मंत्रालय और शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री को पक्षकार बनाया गया है। इसमें मूल आपराधिक अवमानना मामले में दोषी ठहराए जाने के खिलाफ इंट्रा-कोर्ट अपील मुहैया कराने के लिए नियम और दिशानिर्देश भी तैयार करने के निर्देश देने की मांग की गई है।

याचिका में कहा गया है कि अवमानना के मूल मामले में दोष सिद्धि के खिलाफ अपील का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक हक है और स्वाभाविक न्याय के सिद्धांतों से यह निकला है। इस तरह का अधिकार नहीं होना जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। अपने ट्वीट के लिए दर्ज अवमानना मामले के अलावा भूषण 2009 के एक अन्य अवमानना मामले का भी सामना कर रहे हैं।

याचिका में कहा गया है कि अपील का अधिकार संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत इसकी गारंटी भी है।याचिका में कहा गया है कि यह गलत सजा के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करेगा और वास्तव में बचाव के रूप में सत्य के प्रावधान को सक्षम करेगा।

प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से प्रशांत भूषण को मनाने की कोशिश हुई कि वो माफी मांगकर इस मामले को खत्म करें लेकिन उन्होंने खेद व्यक्त नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रशांत भूषण ने कोर्ट का हिस्सा होते हुए भी इसकी गरिमा को गिराने वाला काम किया। हमने पर्याप्त मौके दिए, समझाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने अटॉर्नी जनरल की सलाह को भी खारिज करते हुए माफी मांगने से इनकार कर दिया।

63 वर्षीय प्रशांत भूषण ने यह कहते हुए पीछे हटने या माफी मांगने से इनकार कर दिया था कि यह उनकी अंतरात्मा और न्यायालय की अवमानना होगी। उनके वकील ने तर्क दिया है कि अदालत को प्रशांत भूषण की अत्यधिक आलोचना झेलनी चाहिए क्योंकि अदालत के कंधे इस बोझ को उठाने के लिए काफी हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।) 

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