किसानों के समर्थन में वाम दलों का पूरे बिहार में विरोध-प्रदर्शन

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पटना। किसान विरोधी तीनों कृषि कानूनों की वापसी की मांग कर रहे किसानों पर बर्बर दमन के खिलाफ आज बुधवार को पटना में भाकपा-माले सहित अन्य वाम दलों के आह्वान पर बुद्धा स्मृति पार्क में सभा आयोजित हुई। प्रदर्शनकारियों ने डाक बंगला चैराहे पर प्रधानमंत्री का पुतला भी फूंका। प्रतिरोध सभा में बड़ी-बड़ी तख्तियों के साथ माले और वाम दलों के नेता-कार्यकर्ता दिल्ली किसान आंदोलन के समर्थन में नारे लगा रहे थे और तीनों काले कानूनों की वापसी की मांग कर रहे थे। आज के कार्यक्रम में भाकपा-माले, भाकपा और सीपीएम के अलावा राजद के नेताओं ने भी भाग लिया।

इस मौके पर भाकपा माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि वार्ता के नाम पर मोदी ने किसानों को अपमानित किया है। एक तरह का पैटर्न बन गया है कि सरकार पहले ऐसे आंदोलनों को दबाती है, गलत प्रचार करती है, दमन अभियान चलाती है, लेकिन फिर भी जब आंदोलन नहीं रुकता, तब कहती है कि यह सब कुछ विपक्ष के उकसावे पर हो रहा है। कृषि कानूनों के बारे में सरकार कह रही है किसान इसे समझ नहीं पा रहे हैं, तो क्या पंजाब जैसे विकसित प्रदेशों के किसानों को अब खेती-बारी सीखने के लिए आरएसएस की शाखाओं में जाना होगा।

मुख्य रूप से माले महासचिव कॉ. दीपंकर भट्टाचार्य, राजद नेता आलोक मेहता, सीपीआई के नेता कन्हैया कुमार, सीपीएम के राज्य सचिव अवधेष कुमार, माले के राज्य सचिव कुणाल, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समिति के बिहार-झारखंड के प्रभारी राजाराम सिंह, धीरेंद्र झा,  विधायक दल के नेता महबूब आलम, शशि यादव, केडी यादव, उमेष सिंह, अभ्युदय सहित बड़ी संख्या में वाम दलों के नेता और कार्यकर्ता इस दौरान मौजूद रहे।

सभा को उक्त नेताओं के अलावा राजाराम सिंह, अरुण मिश्रा, गजनफर नवाब आदि ने भी संबोधित किया। वाम नेताओं ने कहा कि मोदी सरकार और बिहार की नीतीश सरकार घोर किसान विरोधी है। आज पूरा पंजाब सरकार के खिलाफ लड़ रहा है। कल पूरा देश मोदी सरकार के खिलाफ लड़ेगा। यह भी कहा कि बिहार की नीतीष सरकार केवल डींगें हांकती है, लेकिन उसने 2006 में ही अपने यहां मंडियों को खत्म कर दिया था। आज बिहार के किसानों की हालत सबसे खराब है। आने वाले दिनों में बिहार में भी किसान आंदोलन का नया ज्वार आएगा। बिहार सरकार किसानों के धान खरीद की गारंटी नहीं कर रही है।

वाम नेताओं ने कहा कि बिहार में वाम और जनवादी दलों के नेतृत्व में किसानों का आंदोलन संगठित होने लगा है, यदि समय रहते सरकार ने तीनों काले कानूनों को वापस नहीं लिया, तो पूरे बिहार में आंदेालन चलाया जाएगा।

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