नागरिक के दैनिक जीवन की बेहतरी के लिए योजनाओं की रूपरेखा व पढ़ाई-दवाई पर कोई राजनीतिक दल ठोस समयबद्ध कार्य योजना प्रस्तुत नहीं कर रहा है। टेलीविजन पर प्रायोजित वाकयुद्ध का अभिनय एक दूसरे वर्ग के अज्ञानी लोगों के मन में उबाल ला रहा है, बावजूद इसके कि यह खुला सत्य है कि बकवास के लिए धन दिया जाता है। चीखने चिल्लाने वाले एंकर क्या इतने अबौद्धिक हैं कि उन्हें ज्ञात नहीं कि वे ऐसा क्यों बोल रहे हैं? फिल्मों में खलनायक से इसी प्रकार का अभिनय कराया जाता है।
“श्रेष्ठ का क्लब” द्वारा प्रचारित मुगलों के अत्याचार के किस्से हिंदुओं में जागृति पैदा नहीं कर रहे हैं बल्कि चिढ़न में थोड़ी बहुत समझ वाला भी ऐसी पोस्टों को पढ़ता नहीं है। भारत को ऑक्सीजन सप्लाई करने वाला देश स्वयं कुछ नहीं कह रहा है, संभव है कि ऑक्सीजन देने को वह देश अपना उत्तरदायित्व मानता हो, परंतु भारत में कुछ बेवजह ऐसा एहसान जता रहे हैं जैसे मदद उनके घर से हुई हो। उनके समाज के समझदार लोग भी ऐसे व्यक्तियों को नसमझ मान इग्नोर कर रहे हैं।
भारत के प्रबुद्ध हिंदू-मुस्लिमों द्वारा धार्मिक अवसाद की बातों को इग्नोर करना ही देश की एकता व अखंडता को कायम किए हुए है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम से उत्तेजना पैदा करने वाले भाषणों का मिथक टूटते हुए देखा जा सकता है। टीएमसी को 48 प्रतिशत वोट केवल मुसलमानों के कारण नहीं मिले। भाजपा को टीएमसी से दस प्रतिशत कम मत मिलने का अर्थ साफ सिग्नल है कि एक संप्रदाय की आलोचना से दूसरा संप्रदाय वोट नहीं देता। लम्बे समय तक राज करने वाली कांग्रेस 3 प्रतिशत की पसंद तथा विचारधारा में सबसे पुख्ता कैडर रखने वाले वाम को 6 प्रतिशत वोट बता रहे हैं कि इन पार्टियों से कुछ गलती हुई है।
कांग्रेस व वाम के सिमटने का सीधा कारण दो विपरीत विचारधाराओं की मित्रता उनके वफादार कार्यकर्ताओं को पसंद नहीं आई। भाजपा ने पूरे वेग से सांप्रदायिक प्रचार किया परंतु क्या कोई बौद्धिक व्यक्ति इन बातों को पसंद करेगा कि 2 मई के बाद इन्हें घर से निकाल….। ये बातें मोहल्ला कार्यकर्ताओं ने नहीं बल्कि ओहदेदारों व संवैधानिक पदों पर आसीन नेताओं अपने भाषणों में कही थी। जब उत्तर प्रदेश के मुखिया पं.बंगाल में जाकर दंगाई व भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकने की बात करते तो लोग आपस में कहते कि पहले अपने यहां सुधारो। जनता इन जुमलों का विश्वास नहीं करेगी कि फलॉ पार्टी शासन में आई तो आकाश पाताल तक से अपराधी पकड़ लायेंगे क्योंकि अपने उम्मीदवारों की सूची में ऐसे लोग विद्यमान हैं।
असम में सीएए भाजपा को उल्टा पड़ा क्योंकि इससे डेढ़ करोड़ हिंदू बंगाल से आ सकते हैं। दक्षिण में धर्मभीरु हिंदुओं के बीच बीजेपी जगह नहीं बना पाई क्योंकि वे उकसावे को पसंद नहीं करते हैं।
इससे पहले उप्र., बिहार, हरियाणा में बीजेपी शासन पूरी तरह फेल है। केंद्र कुव्यवस्था का पर्याय बन चुका है। सात-आठ सौ वर्ष पहले की दुश्मनी को हम आपकी बात मान कर अब केवल इसलिए निभाएं कि इससे बीजेपी सरकार में बनी रहेगी तथा कुव्यवस्था के साथ राष्ट्र की धरोहरें बेची जाती रहेंगी। हमारे प्रत्येक संत के प्रवचन हमें प्रेम का संदेश देते हैं। हम विश्व गुरु इसलिए थे कि हमारा साहित्य, हमारे धर्मग्रंथ पीढ़ियों की शत्रुता को भूल जाना चाहते हैं। हम हजारों वर्ष पुराने महाभारत युद्ध से यही सीखते हैं कि अंत में श्मशान बन गयी युद्ध भूमि पर विजेता ने राज का औचित्य न देश प्रस्थान किया। लंका युद्ध के बाद राम ने बच रहे लंकेश राज परिवार को शत्रु नहीं मित्र कह कर संबोधित किया। उन्होंने लंका पर स्वयं राज न कर स्पष्ट संदेश दिया कि जो भी हुआ नारी की मर्यादा की रक्षा के लिए हुआ। “राज जीतने की इच्छा से अगिनत प्राणों की आहुति नहीं ली गयी।”
हमारा साहित्य हमारी फिल्में पुश्तैनी दुश्मनी को वर्तमान पीढ़ी द्वारा फेंक देने के लिए संदेश देते हैं। चलचित्रों में दो चरित्रों की शत्रुता को उनकी संतानों द्वारा प्यार से दिया जाता है। याद रखना है तो क्रूरता को क्यों याद रखते हो बल्कि हिंदू मुसलमानों ने मिल कर देश के लिए जो त्याग किया वह याद रखो।
बंगाल में हिंदू महासभा व मुस्लिम लीग ने मिल कर सरकार चलाई। इस तथ्य को भाजपा के विरुद्ध प्रचार करने के बजाय सकारात्मक मोहब्बत में देखा जाय। कश्मीर में भी ऐसा हुआ कि भाजपा ने महबूबा मुफ्ती से मिलकर सरकार चलाई। बेहतर होता कि तथाकथित “श्रेष्ठ क्लब” या अन्य ऐसे ही संगठन कहें कि उन्हें हिंदू-मुस्लिम की मिली जुली सरकार चलाने का अनुभव है। खलनायक के चरित्र की गणना भी वही कहानीकार करता है जिसने नायक-नायिका के चरित्र की गणना की है। भाजपा भारत को पुनः विश्व गुरु बनाना चाहती है तो उसे कहना चाहिए कि क्या फर्क पड़ता है, बाबर ने क्या किया, हमें तो आज के जुम्मन की दोस्ती पसंद है।
विश्व के विभिन्न भागों में रहने वाले इंसान मूर्ख नहीं हैं जो जहरीली फुंकारों से गर्म हो रहे राष्ट्र को विश्व गुरु स्वीकार करें। जिस प्रकार बिना पढ़ा व्यक्ति टीचर नहीं हो सकता उसी प्रकार कुव्यवस्था से ग्रस्त कोई भी राष्ट्र गुरु नहीं हो सकता। हम विश्व में आदर्श बनें इसके लिए हमें आदर्श संहिता, सर्वकल्याण की नीति तथा अंतिम व्यक्ति तक प्रसन्नता की धारा के लिए कार्य करना होगा।
(गोपाल अग्रवाल समाजवादी चिंतक हैं और आजकल मेरठ में रहते हैं।)
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