नई दिल्ली। बैंकों के मर्जर के खिलाफ बैंककर्मियों और उनके संगठनों ने आज देशभर में विरोध प्रदर्शन किया। दिल्ली से लेकर चेन्नई और कोलकाता से लेकर तिरुअनंतपुरम तक बैंककर्मी हाथों में काली पट्टियां बांधकर इसके विरोध में सड़कों पर उतरे। उनका कहना था कि न केवल यह गलत फैसला है बल्कि बहुत गलत समय पर लिया गया है।
बैंककर्मियों ने कहा कि दस बैंकों का चार बैंकों में मर्जर नहीं बल्कि छह बैंकों की सीधे-सीधे बंदी है। यह फैसला आम जनता को नुकसान के साथ रोजगार के अवसरों में कटौती करेगा। उन्होंने इसे दिनदहाड़े हत्या करार दिया।

ऑल इंडिया बैंक इंप्ल्वाई एसोसिएशन (एआईबीईए) के महासचिव सीएच वेंकटचलैया ने सरकार से अपने इस फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि ऐसा न होने पर बैंकिंग सेक्टर के सभी कर्मचारी आने वाले दिनों में धारावाहिक आंदोलन चलाने के लिए बाध्य होंगे। उन्होंने कहा कि 1969 में जिन समाजवादी सपनों के साथ इन बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था मोदी सरकार ने उस पर पानी फेर दिया है। उन्होंने कहा कि पिछले 50 सालों में बैंकों ने देश के विकास में जो योगदान दिया है उसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलेगी। लेकिन सरकार ने उसका यह सिला दिया है।
एक आंकड़े के मुताबिक 1969 में बैंकों की केवल 8000 शाखाएं थीं जो इस समय बढ़कर 90 हजार हो गयी हैं। इनमें 40 हजार शाखाएं ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। वेंकटचलैया ने कहा कि सरकार के इस फैसले का सबसे ज्यादा नुकसान ग्रामीण क्षेत्रों को उठाना पड़ेगा। क्योंकि आने वाले दिनों में सरकार इन सभी बैंकों को निजी हाथों में दे देगी। सच्चाई यह है कि कोई भी निजी बैंक ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं जाना चाहता है। लिहाजा इसकी आखिरी मार उसी हिस्से को सहनी पड़ेगी।

उनका कहना था कि जब 2008 में पूरी दुनिया मंदी के दौर से गुजर रही थी तब भारत को मंदी के मुंह में जाने से इन्हीं बैंकों ने बताया था। लेकिन आज उनके उन सभी योगदानों को भुला दिया गया।
जो बैंक खत्म किए गए हैं उनकी बाजार में अच्छी खासी साख थी। इलाहाबाद बैंक, आंध्रा बैंक, कारपोरेशन बैंक, सिंडिकेट बैंक और यूनाइटेड बैंक आफ इंडिया तथा ओरियंटल बैंक आफ कामर्स को भला कौन नहीं जानता। शायद उनकी यह साख ही उनके खात्मे का कारण बनी। क्योंकि सरकार निजी बैंकों को प्रोत्साहन देना चाहती है लेकिन सरकारी बैंकों के रहते कोई उनकी तरफ मुंह नहीं करना चाहता है। लिहाजा सरकार ने निजी बैंकों की खातिर रास्ता प्रशस्त करने के लिए सरकारी बैंकों को जड़ से ही काट दिया गया।
बैंक कर्मचारियों के नेता जेपी शर्मा ने कहा कि अगर कोई यह कहता है कि मर्जर के बाद बैंक अपने बैड लोन को दुरुस्त करने में कामयाब हो जाएंगे तो यह बिल्कुल सफेद झूठ है। क्योंकि तमाम बैंकों के एसबीआई में मर्जर के बाद एसबीआई के बैड लोन की रकम और बढ़ गयी है। अगर कोई एक बैंक नीरव मोदी के फ्राड को नहीं पता कर पाता तो क्या वह और बड़ा होने पर इस काम को कर सकेगा? अभी जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में आवश्यकतानुसार और बैंकों की शाखाएं खोली जानी थीं उससे पहले ही सरकार ने उस रास्ते को बंद कर दिया।
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