जौनपुर में हिरासत में मौत की जांच सीबीआई ही करेगी, सुप्रीम कोर्ट का दखल देने से इनकार

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उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें जौनपुर, उत्तर प्रदेश के एक 24 वर्षीय व्यक्ति की कथित हिरासत में मौत की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को ट्रांसफर कर दी गई थी। जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने उच्च न्यायालय के 8 सितंबर के आदेश के खिलाफ उत्तर प्रदेश प्राधिकरण द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उच्च न्यायालय ने प्रथम दृष्टया पाया कि आईपीएस स्तर के एक अधिकारी की मृतक की हत्या/मृत्यु में कुछ संलिप्तता है।

हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में निर्देश दिया कि सीबीआई उच्च न्यायालय के फैसले में किए गए किसी भी अवलोकन से प्रभावित हुए बिना स्वतंत्र रूप से और कानून के अनुसार मामले की जांच करेगी। पीठ ने कहा कि हमें सीबीआई द्वारा मामले की जांच के लिए हाईकोर्ट के निर्देश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं मिलता है। हालांकि, तथ्यों पर विचार करते हुए इस मामले में, हम निर्देश देते हैं कि सीबीआई उच्च न्यायालय के फैसले में किए गए किसी भी अवलोकन से प्रभावित हुए बिना स्वतंत्र रूप से और कानून के अनुसार मामले की जांच करेगी।

यह मामला लगभग 24 वर्ष की आयु के एक युवा लड़के की कथित हिरासत में मौत से संबंधित है, जिसे कथित तौर पर उसे झूठा फंसाने के इरादे से पुलिस दल द्वारा जबरन उसके घर से पुलिस थाने ले जाया गया था, और उसके बाद उसे हिरासत में लिया गया था। इस मामले में जब शिकायतकर्ता,मृतक का भाई,अपने भाई से मिलने थाने गया तो उसे अपने भाई (मृतक) से मिलने नहीं दिया गया और अगली सुबह सूचना मिली कि उसके भाई की पुलिस हिरासत में मौत हो गई है क्योंकि उसकी पुलिसकर्मियों द्वारा हत्या कर दी गई।

इसके बाद आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ धारा 302, 394, 452 और 504 आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया गया। उधर, पुलिस का दावा है कि मृतक को उस समय पकड़ लिया गया था जब वह मोटरसाइकिल चला रहा था, जिससे वह गिर गया और घायल हो गया और लोगों ने उसकी पिटाई कर दी। आगे कहा गया कि जब उन्हें एक सब इंस्पेक्टर और दो कांस्टेबलों के साथ प्राथमिक उपचार के लिए भेजा गया, तो सीएचसी के डॉक्टर ने उसे जिला अस्पताल, जौनपुर में इलाज के लिए रेफर कर दिया और जब तक वो जिला अस्पताल पहुंचता, तब तक उसकी मौत हो चुकी थी।

हाईकोर्ट ने कहा था कि पुलिस की पूरी कोशिश है कि किसी तरह आरोपी को क्लीन चिट दे दी जाए और इसके लिए महत्वपूर्ण सबूत छोड़े जा रहे हैं और कुछ सबूत बनाए जा रहे हैं और छेड़छाड़ की जा रही है। लेकिन फिलहाल हम कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं क्योंकि निष्पक्ष जांच चल रही है। अभी तक एक स्वतंत्र और निष्पक्ष एजेंसी द्वारा किया जाना है।

यद्यपि हाईकोर्ट का मत था कि अभियुक्त द्वारा किए गए अपराध का खुलासा करने और साजिश में उच्च अधिकारियों की संलिप्तता, साक्ष्य के हिस्सों को नष्ट करने और अभियुक्त के बचाव के लिए झूठे सबूत बनाने के लिए रिकॉर्ड पर पर्याप्त सामग्री है। हाईकोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की थी कि क्या आरोपी पुलिसकर्मियों ने हत्या और अन्य अपराधों का कृत्य किया है और क्या तत्कालीन पुलिस अधीक्षक, जौनपुर और अंचल अधिकारी, जौनपुर जांच को प्रभावित कर रहे थे और झूठे सबूत बना रहे थे, यह जांच का विषय है। नतीजतन हाईकोर्ट ने जांच सीबीआई को स्थानांतरित कर दी थी।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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