गांधी को ठिकाने लगाने का संघ का नया रास्ता

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कल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के मौके पर संघ के हैंडल से कई ट्वीट किए गए। जिसका सार यह था कि भारत को विश्वगुरू बनाने में गांधी की शख्सियत का इस्तेमाल किया जा सकता है। और यह बात संघ मुखिया मोहन भागवत के हवाले से कही गयी थी। इसके अलावा सरकार के मुखिया ने इस मौके पर अहमदाबाद में आयोजित मुख्य कार्यक्रम में देश के खुले शौच से मुक्त होने की घोषणा की। इसके साथ ही संघ की पैदल सेना ने निचले स्तर पर “गोडसे अमर रहे” के नारे को सोशल मीडिया पर ट्रेंड कराया। हालांकि ट्रेंडिंग में समर्थकों से ज्यादा विरोध करने वाले थे। ये तीनों चीजें एक ही परिवार और विचार के लोगों द्वारा की जा रही हैं। और इनके जरिये समझा जा सकता है कि गांधी को लेकर इनका क्या रुख है।

यह गांधी की 150वीं जयंती की शुरुआत थी। अगर सचमुच में कोई सरकार गांधी को लेकर ईमानदार और सच्ची होती तो यह मौका पूरी दुनिया को एक संदेश देने का था। एक ऐसे मौके पर जब पूरी दुनिया युद्धरत है और लोग एक दूसरे का गला काटने पर उतारू हैं। अपना हित और अपना मुनाफा सबसे ऊपर हो गया है। और उसके लिए हर तरह के झूठ और धतकरम करने के लिए तैयार हैं। तब गांधी का सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह का सिद्धांत कितना प्रासंगिक हो गया है यह बात किसी के लिए समझना मुश्किल नहीं है। लेकिन देश की सत्तारूढ़ सरकार ने उन्हें अपने स्वच्छता अभियान तक सीमित कर दिया है।

जैसे गांधी सिर्फ और सिर्फ सफाई के प्रति समर्पित थे और उनका कोई दूसरा पहलू ही नहीं है। होना तो यह चाहिए था कि इस मौके पर दिल्ली में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का आयोजन होता और उसमें देश और दुनिया की बड़ी से बड़ी शख्सियतों को आमंत्रित किया जाता। जिसमें गांधी के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं के साथ ही उनके सभी सिद्धांतों की मीमांसा होती। और उस आयोजन के साथ ही 150वां जयंती समारोह शुरू हो जाता। जिसके बाद उसका देश और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में सिलसिलेवार ढंग से बारी-बारी से आयोजन होता।

लेकिन मौजूदा सरकार को ऐसा कुछ करना ही नहीं था। वह गांधी को लेकर बिल्कुल स्पष्ट है। उसके लिए गांधी एक मजबूरी हैं। जब तक वह जनता के बीच बने रहेंगे तब तक उनका नाम लेते रहना है। इसके साथ ही संघ और बीजेपी एक ऐसी रणनीति पर काम कर रहे हैं जिससे गांधी को देश से खत्म कर दिया जाए। और अगर उनका कुछ जिंदा रहे भी तो वह विदेशों में। गांधी जयंती के मौके पर ऊपर संघ मुखिया, सरकार मुखिया और संघ की पैदल सेना का सामने आया रुख इस बात को और स्पष्ट कर देता है।

मोदी सरकार ने गांधी को सिर्फ और सिर्फ स्वच्छता तक सीमित कर दिया है। वह स्वच्छता अभियान के खात्मे के साथ ही गांधी की प्रासंगिकता को भी समाप्त कर देना चाहती है। किसी ने कभी मोदी के मुंह से गांधी के सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह के दूसरे सिद्धांतों का नाम लेते सुना है। या फिर उस पर विचार-विमर्श करते पाया है? वो ऐसा कर भी नहीं सकते हैं। क्योंकि उनकी अपनी सोच और विचारधारा इसके बिल्कुल उलट है। वह सत्य नहीं बल्कि झूठ और अफवाह में विश्वास करते हैं। अनायास नहीं है इस सरकार के आने के साथ ही देश में झूठ और अविश्वास की आंधी आ गयी। सोशल मीडिया और ह्वाट्सएप यूनिवर्सिटी उसके सबसे बड़े वाहक बन गए। गांधी के अहिंसा के सिद्धांत से उनका 36 का रिश्ता है।

गांधी चीटीं मारने को भी हिंसा की श्रेणी में रखते थे जबकि मोदी समेत पूरा संघ शस्त्र की पूजा करता है। और अगर कोई सत्य है ही नहीं तो फिर उसके लिए आग्रह का सवाल की कहां उठता है। लिहाजा संघ और बीजेपी गांधी के इन सभी बुनियादी सिद्धातों से मुक्त हो चुके हैं। लेकिन चूंकि ये सिद्धांत आम जीवन में रच-बस गए हैं और एक सामान्य मानवीय प्रवृत्ति के स्वाभाविक और अभिन्न हिस्से बने होते हैं। लिहाजा उन्हें उनके मन से निकाल पाना बहुत मुश्किल होता है। यही कारण है कि उन्हें मजबूरन गांधी का नाम लेना पड़ता है। वरना गोडसे और उनके गुरू सावरकर ही उनके आदर्श हैं। जिसमें एक ने गांधी की हत्या की थी जबकि दूसरा उसकी साजिश में शामिल था।

दरअसल संघ और बीजेपी ने गांधी को निपटाने का रास्ता निकाल लिया है। मोदी देश में उन्हें स्वच्छता के बहाने अप्रासंगिक करने में लगे हैं। जबकि हकीकत यह है कि देश से बाहर जाने पर वह गांधी का पूरा इस्तेमाल करते हैं। यानी वह संघ की लाइन पर ही काम कर रहे हैं। जिसमें गांधी को एक प्रक्रिया में विश्व गुरू का ब्रांड अंबेसडर बना दिया जाएगा। महात्मा बुद्ध के साथ ब्राह्मण धर्म ने जैसा किया था यह कुछ उसी तरह का प्रयोग है। इतिहास इस बात का गवाह है कि पुष्यमित्र शुंग के नेतृत्व में बड़े स्तर पर देश में बौद्धों का कत्लेआम हुआ था। और कुछ अपनी अंदरूनी कमियों और फिर हिंदू धर्म के इन ध्वजावाहकों के हिंसक हमलों के चलते उसे विदेश में ही शरण लेनी पड़ी।

इसका नतीजा यह हुआ कि दूसरे देशों में बौद्ध धर्म तो खूब फला-फूला लेकिन भारत में वह बिल्कुल समाप्त हो गया। और आखिर में हिंदू धर्म के आकाओं ने महात्मा बुद्ध को दसवां अवतार घोषित कर पूरे धर्म को अपने में समाहित कर लिया। गांधी को लेकर संघ कुछ इसी रणनीति पर काम कर रहा है। अनायास नहीं देश में अपनी विचारधारा से इतर और दूसरे धर्मों के लोगों की बड़े स्तर पर मॉब लिंचिंग की जा रही है। यह सब कुछ उसी सोची-समझी रणनीति के हिस्से हैं। अगर किसी को लगता है कि यह स्वत:स्फूर्त ढंग से हो रहा है तो उसके भोलेपन पर सिर्फ तरस ही खाया जा सकता है।

लेकिन गांधी को खत्म करना इतना आसान नहीं है। क्योंकि गांधी सिर्फ व्यक्ति नहीं बल्कि जीवन की एक प्रवृत्ति हैं। और कोई भी इंसान जो सच्चा और ईमानदार बनना चाहता है वह गांधी के रास्ते पर जाए बगैर संभव ही नहीं है। और सच्चाई यही है कि हर व्यक्ति की कम से कम ऐसा बनने और नहीं बन पाता है तो ऐसा दिखाने की चाहत होती है। लिहाजा हर सच्चे और झूठे के भी आदर्श गांधी बने रहेंगे। और उसको उनकी जेहनियत से मिटाना तकरीबन असंभव है।

(यह लेख जनचौक के संस्थापक संपादक महेंद्र मिश्र ने लिखा है।)   

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