नगालैंड: गोलियां चलाने से पहले सैन्य बलों द्वारा नहीं की गई थी मजदूरों की पहचान की कोशिश

“नगालैंड में कोयला खदान मजदूरों पर गोलियां चलाने से पहले सैन्य बलों ने उनकी पहचान सुनिश्चित नहीं की गई थी। और सीधे गोलियां चला दी।” – यह दावा राज्य के पुलिस महानिदेशक टी जॉन लॉन्गकुमार और कमिश्नर रोविलातो मोर ने एक संयुक्त रिपोर्ट में किया है। जिसे राज्य सरकार को भेजा गया है।

इस रिपोर्ट में दोनों शीर्ष अधिकारियों ने चश्मदीद गवाहों के बयान के आधार पर यह भी लिखा है कि गांव वालों ने सेना की विशेष टुकड़ी को छह शव चुपके से पिकअप वैन में डालकर अपने बेस कैंप तक ले जाने का प्रयास करते हुए देखा।

रिपोर्ट में बताया गया है कि  “चार दिसंबर की शाम क़रीब चार बजकर दस मिनट पर जब आठ ग्रामीण तिरू स्थित कोयला खदान से एक पिकअप ट्रक से घर लौट रहे थे, सैन्य बलों (असम की 21वीं पारा स्पेशल फोर्स) ने घात लगाकर उन्हें घेर लिया और बिना किसी तरह की पहचान का प्रयास किए गोलियां चलाने लगे। सभी पीड़ित निर्दोष नागरिक थे, जो कोयला खदान में काम करते थे। इनमें से छह घटनास्थल पर ही मारे गए जबकि दो गंभीर रूप से घायल हो गये”।

लाशों को शिविर में ले भागने का प्रयास

राज्य के पुलिस महानिदेशक टी जॉन लॉन्गकुमार और कमिश्नर रोविलातो मोर ने एक संयुक्त रिपोर्ट में आगे बताया है कि ” गोलियों की आवाज़ सुनकर ग्रामीण घटनास्थल पर पहुंचे, जहां उन्होंने पिकअप ट्रक को खड़ा पाया और देखा कि सैन्य बल छह शवों को तारपोलीन में लपेट कर एक अन्य पिकअप में लादने का प्रयास कर रहे हैं। उनकी मंशा इन शवों को अपने आधार शिविर पर ले जाने की थी”।

फिर प्रतिहिंसा में मारे 8 मजदूर

रिपोर्ट में कहा गया है कि “शवों को देखकर गुस्साए ग्रामीणों ने सैन्य बलों के तीन वाहनों में आग लगा दी। जवाबी हिंसा में सुरक्षा बलों ने फिर से गोलियां चलाईं और इसमें 7 अन्य ग्रामीणों की मौत हो गई। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, इस बार भी सुरक्षा बलों ने अंधाधुंध गोलियां चलाईं और घटनास्थल से असम की ओर भागने का प्रयास करने लगे”। 

हॉर्नबिल महोत्सव को मंगलवार को समाप्त

वहीं नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो के मंत्रिमंडल ने या 14 नागरिकों की हत्या के विरोध स्वरूप हॉर्नबिल महोत्सव को मंगलवार को समाप्त करने का फैसला लिया। 10 दिवसीय हॉर्नबिल महोत्सव राजधानी कोहिमा के समीप किसामा में नगा हेरिटेज गांव में आयोजित किया जा रहा था। यह महोत्सव 10 दिसंबर को खत्म होना था। राज्य सरकार ने सोमवार को आयोजन स्थल पर एक दिन का कार्यक्रम रद्द किया था। वहीं, पूर्वी नगालैंड और राज्य के अन्य हिस्सों की कई जनजातियों ने मोन जिले में आम नागरिकों की मौत पर सभी गतिविधियों को निलंबित कर दिया।

अफ्स्फा क़ानून रद्द करने की मांग

राज्य सरकार ने सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) कानून (अफ्स्पा) रद्द करने की मांग करते हुए केंद्र को पत्र लिखने का भी फैसला किया है। इस बीच राज्य के मोन जिले में मंगलवार को आम तौर पर शांति रही लेकिन तनाव अब भी बना हुआ है।

राज्य मंत्रिमंडल को इन हत्याओं के बाद की घटनाओं की जानकारी भी दी गई। मंत्रिमंडल को बताया गया कि घटना की जांच के लिए पुलिस महानिदेशक स्तर के अधिकारी की अध्यक्षता में एसआईटी गठन किया गया है। इसे एक महीने के अंदर जांच पूरी करने का निर्देश दिया गया है।

सेना ने नगालैंड के मोन जिले में हुई फायरिंग की घटना की जांच के लिए कोर्ट ऑफ एनक्वायरी (सीओआई) गठित कर दी है। मेजर जनरल रैंक के अधिकारी की अगुआई में सीओआई की जांच पूरी की जाएगी। सेना सूत्रों के मुताबिक इस जांच में पता चलेगा कि 21 पारा स्पेशल फोर्सेज ने किस तरह की खुफिया जानकारी के आधार पर और किन हालात में उस एनकाउंटर को अंजाम दिया जिसकी परिणति में 14 लोगों की जान गई।

7 दिन के शोक की घोषणा

वहीं नगालैंड के मोन जिले में जनजातीय समुदायों की सर्वोच्च संस्था कोनयाक यूनियन (केयू) ने 14 नागरिकों की सैन्य बलों द्वारा हत्या के विरोध में मंगलवार को जिले में एक दिन का बंद रखा और अगले सात दिन तक शोक मनाने की घोषणा की है। केयू ने सुरक्षा बलों से अनुरोध किया है कि शोक की इस अवधि में कोनयाक क्षेत्र में गश्त न करें।

यूनियन ने भी चेतावनी दी है कि यदि कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने इसका पालन नहीं किया तो वहां होने वाली किसी भी अप्रिय घटना के लिए वह खुद जिम्मेदार होंगे। यूनियन ने सोमवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भी पत्र लिखकर घटना के लिए जिम्मेदार सैन्य कर्मियों की पहचान करने के लिए विशेष जांच दल गठित करने का आग्रह किया था। आम नागरिकों की रक्षा में विफल रहने के कारण 27 असम राइफल्स को तत्काल मोन जिला खाली करने और राज्य से अफ्स्पा हटाने की मांग भी यूनियन ने की है।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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