सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों के निजीकरण और प्रस्तावित बैंकिंग क़ानून संशोधन विधेयक के विरोध में अलग-अलग सरकारी बैंकों के क़रीब 10 लाख कर्मचारी आज से दो दिवसीय (16,17 दिसंबर) हड़ताल पर हैं। देश के सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के बैंकों के कर्मचारी अपने-अपने शहरों, कस्बों व गांवों में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और विरोध मॉर्च निकाल रहे हैं।
बता दें कि बैंक यूनियनों के अंब्रेला संगठन यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस (यूएफबीयू) ने हड़ताल का आह्वान किया है। कल फोरम द्वारा सदस्य-संघों को भेजे गए एक परिपत्र में कहा गया कि, “… सरकार हमारे द्वारा वांछित कोई आश्वासन नहीं दे सकी। इसलिए, हमें हड़ताल के साथ आगे बढ़ने की ज़रूरत है।”

UFBU में नौ कर्मचारी निकाय शामिल हैं। हालांकि केवल सात निकाय ही दो दिवसीय आंदोलन का हिस्सा हैं।
यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस (UFBU) के प्रदेश संयोजक महेश मिश्रा ने विज्ञप्ति जारी कर बताया है कि इस हड़ताल में सार्वजनिक क्षेत्र की 4,000 से भी अधिक शाखाओं के कर्मचारी शामिल हो रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंक बंद रहेंगे। हम सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण के सरकार के कदम का विरोध कर रहे हैं। सात यूनियन (मंच का हिस्सा) हड़ताल पर हैं। शिवसेना से संबद्ध संघ (संयुक्त मंच का हिस्सा नहीं) भी स्वतंत्र रूप से हड़ताल पर है।
यूएफबीयू के सदस्यों में अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए), अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ (एआईबीओसी), राष्ट्रीय बैंक कर्मचारी परिसंघ (एनसीबीई), अखिल भारतीय बैंक अधिकारी संघ (एआईबीओए), बैंक कर्मचारी परिसंघ (बीईएफआई) शामिल हैं। ), इंडियन नेशनल बैंक एम्प्लॉइज फेडरेशन (INBEF), इंडियन नेशनल बैंक ऑफिसर्स कांग्रेस (INBOC), नेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स (NOBW), और नेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ बैंक ऑफिसर्स (NOBO) शामिल हैं।
इस दो दिवसीय हड़ताल के मद्देनज़र भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) सहित अधिकांश बैंकों ने पहले ही अपने ग्राहकों को चेक क्लीयरेंस और फंड ट्रांसफर जैसे बैंकिंग कार्यों के प्रभावित होने को लेकर आगाह कर दिया ।
दिल्ली के जंतर मंतर से लेकर मुंबई के आज़ाद मैदान तक हजारों की संख्या में बैंककर्मियों ने एकजुट होकर विरोध मॉर्च और सभा का आयोजन किया है।
देहरादून में बैंक कर्मचारी एश्ले हाल चौक पर एकत्र होकर केंद्र सरकार की नीतियों का विरोध कर रहे हैं। उत्तराखंड ग्रामीण बैंकों ने दो दिवसीय हड़ताल को नैतिक समर्थन देने का फैसला लिया है।
बैंक संगठन के नेताओं के बयान
यूएफबीयू के संयोजक समदर्शी बड़थ्वाल ने कहा कि बैंकों का निजीकरण कर सरकार कॉर्पोरेट पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाना चाहती है। इसके विरोध में 16-17 दिसंबर को बैंककर्मी हड़ताल कर रहे हैं। कहा कि सरकारी बैंक आम नागरिकों को सस्ती बैंकिंग सेवा उपलब्ध कराते हैं। लेकिन इन बैंकों का निजीकरण होने से जहां एक ओर लोगों को महंगी बैंकिंग सेवाएं मिलेंगी उसके साथ ही इसका रोजगार पर भी बुरा असर पड़ेगा।

एआईबीओसी के महासचिव संजय दास ने मीडिया से कहा है कि अगर सरकार ने बैंकों को बेचने का विचार नहीं छोड़ा तो दो दिवसीय हड़ताल के अलावा अन्य कई आंदोलनकारी कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। उन्होंने आगे कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण के इस कदम से अर्थव्यवस्था के प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को नुकसान होगा और स्वयं सहायता समूहों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ऋण प्रवाह भी प्रभावित होगा।
एआईबीईए के महासचिव सीएच वेंकटचलम ने मीडिया से कहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक देश के आर्थिक विकास में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। चूंकि निजी बैंक केंद्र की मदद नहीं कर रहे थे, इसलिए प्रमुख निजी बैंकों का 1969 में राष्ट्रीयकरण किया गया था। उसके बाद, बैंकों का बड़े पैमाने पर विकास हुआ। उन्हें और मजबूत करने के बजाय, केंद्र सरकार उनका निजीकरण करने की कोशिश कर रही है।
ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन (AIBOC) के जनरल सेक्रेट्री सौम्य दत्ता के मुताबिक बुधवार को अतिरिक्त चीफ लेबर कमिश्नर के साथ समझौते की मीटिंग नाकाम रही। लिहाजा यूनियन ने हड़ताल पर जाने का फैसला किया है। सरकार ने 2021-22 के बजट में इस साल दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण का फैसला किया है। इसके ख़िलाफ़ यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स (UFBU) ने 16 और 17 दिसंबर को हड़ताल करने का फैसला किया है।
यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस (यूएफबीयू) के संयोजक संजीव के बंदलिश ने कहा कि यह कदम भविष्य को “सुरक्षित” करने के लिए है। “हम मानते हैं कि लोगों को दो दिनों के लिए दर्द सहना होगा, लेकिन यह भविष्य में हमारे दिनों को सुरक्षित करने के लिए है।”
यूएफबीयू, पश्चिम बंगाल के संयोजक गौतम नेगी ने मीडिया को जानकारी दी है कि 12 राष्ट्रीयकृत बैंक, सभी शाखाएं बंद रहेंगी। निजी बैंक, सहकारी बैंक भी बंद रहेंगे।” नियोगी ने आरोप लगाया कि बैंकिंग कानूनों में संशोधन से बैंकों के निजीकरण का रास्ता खुल जाएगा और यह बाद में जमा को असुरक्षित बना देगा, क़र्ज महंगा कर देगा और रोज़गार के अवसरों को प्रभावित कर सकता है।
बैंक अधिनियम में संशोधन करेगी सरकार
यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस (UFBU) के प्रदेश संयोजक महेश मिश्रा मीडिया को बताते हैं कि सरकार संसद के इसी सत्र में एक ऐसा कानून ला रही है, जिससे भविष्य में किसी भी सरकारी बैंक के निजीकरण का रास्ता साफ हो जाएगा। निजीकरण होने से सबसे अधिक दिक्कत कर्मचारियों को ही होगी। ऐसे में ही बैंक कर्मचारी और तमाम अधिकारी सरकार के खिलाफ लामबंद हो गए हैं और 16-17 दिसंबर को देशव्यापी हड़ताल कर रहे हैं।
एआईबीईए के जनरल सेक्रेट्री सीएच वेंकटचलम ने कहा हड़ताल के दौरान कहा है कि बैंक यूनियन के प्रतिनिधियों, इंडियन बैंक्स एसोसिएशन और वित्त मंत्रालय ने समझौता बैठक में हिस्सा लिया लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला। उन्होंने कहा कि बैंक यूनियनों की ओर से सरकार से कहा गया था कि अगर वह चालू सत्र में बैंक प्राइवेटाइजेशन बिल को नहीं लाएगी तो बैंक हड़ताल पर नहीं जाएंगे। लेकिन सरकार के प्रतिनिधियों ने कोई वादा नहीं किया है। लिहाजा बैंकों ने दो दिन की हड़ताल का फैसला किया।
इससे पहले भारतीय स्टेट बैंक (SBI) सहित सार्वजनिक क्षेत्र के कई बैंकों ने यूनियनों से दो दिन की राष्ट्रव्यापी हड़ताल पर जाने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया था। देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई ने अपने एक ट्वीट में कर्मचारियों से इस फैसले पर पुनर्विचार करने और हड़ताल में भाग लेने से बचने का आग्रह किया था। बैंक के ट्वीट में कहा गया, ‘‘हम अपने ग्राहकों के हितों को देखते हुए बैंक कर्मचारियों से हड़ताल से दूर रहने का अनुरोध करते हैं। मौजूदा महामारी की स्थिति को देखते हुए हड़ताल की वजह से हितधारकों को बहुत असुविधा होगी।’’ इसके अलावा केनरा बैंक और इंडियन बैंक ने भी कर्मचारियों से अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिये कहा था।
विपक्षी दलों ने बैंककर्मियों की हड़ताल का समर्थन किया
आज सदन में कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने “सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) को कमजोर करने के सरकार के प्रयासों” पर चर्चा करने के लिए लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव नोटिस दिया है।
बैंककर्मियों के दिवसीय हड़ताल को वामदलों समेत, कांग्रेस व डीएमके का समर्थन भी मिला है।
तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रमुक ने बुधवार को बैंक कर्मचारियों द्वारा 16 और 17 दिसंबर को आहूत दो दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल का समर्थन किया। पार्टी महासचिव और राज्य मंत्री दुरई मुरुगन ने हड़ताल की सफलता की कामना की और विरोध को अपनी पार्टी के “कुल समर्थन” की घोषणा की, जिसमें विभिन्न सरकारी बैंकों के करीब नौ लाख कर्मचारी भाग लेंगे।
सीपीआई (एमएल) ने बैंककर्मियों के हड़ताल का समर्थन देते हुए कहा कि “जिस तरह किसानों ने अपने एकजुट संघर्ष और लोकप्रिय समर्थन से जीत हासिल की है, उसी तरह बैंक कर्मचारी भी निजीकरण के खिलाफ लड़ाई में और भारतीय बैंकों और वित्तीय क्षेत्र को बचाने के लिए व्यापक समर्थन और सहयोग के पात्र हैं”।
जबकि सीपीआई एमएल ने समर्थन देते हुए कहा कि “हमारे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण के मोदी के राष्ट्र विरोधी कदम के ख़िलाफ़ हमारे बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों की दो दिवसीय जोरदार हड़ताल जो आज से शुरू होकर कल तक जारी रहेगी”।
बीएसएनएल इंपलाईज यूनियन व भारतीय रेलवे कर्मचारी संघ – आईआरईएफ बैंककर्मियों के हड़ताल का समर्थन किया है।
(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)