नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा के बाद उत्तराखण्ड कांग्रेस की रार थमने के बजाय बढ़ती जा रही है। ताजा विद्रोह के चलते पार्टी में 2016 के घटनाक्रम की पुनारावृत्ति की नौबत आ गयी है। समझा जाता है कि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व प्रतिपक्ष के नेता प्रीतम सिंह के नेतृत्व में कम से कम 6 कांग्रेस विधायक पार्टी छोड़ कर भाजपा का दामन थाम सकते हैं। इन असन्तुष्टों ने आगे की रणनीति तैयार करने के लिये आज धारचुला के विधायक हरीश धामी के आवास पर बैठक बुलाई है। अपनी कांग्रेस मुक्त भारत मुहिम के तहत भाजपा भी कांग्रेस के इस घमासान को हवा दे रही है।
सुविज्ञ सूत्रों के अनुसार प्रतिपक्ष के नेता रहे चकराता से वरिष्ठ कांग्रेस विधायक प्रीतम सिंह कांग्रेस छोड़ने का मन बना चुके हैं। उनके साथ लगभग 5 कांग्रेस विधायक माने जा रहे हैं। जबकि उत्तराखण्ड में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हरीश रावत राज्य की राजनीति से किनाराकसी कर दिल्ली जाने का संकेत दे चुके हैं। प्रीतम सिंह के साथ जो विधायक माने जा रहे हैं, उनमें धारचुला के हरीश धामी, द्वाराहाट के मदन बिष्ट, अल्मोड़ा के मनोज तिवारी, लोहाघाट के खुशहाल सिंह अधिकारी बताये जा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार असन्तुष्टों की यह बैठक देहरादून के राजपुर रोड स्थित हरीश धामी के फ्लैट पर बुलाई गयी है।
सूत्रों के अनुसार दलबदल कानून से बचने के लिये 19 सदस्यीय कांग्रेस विधायक दल में कम से कम 13 विधायकों के साथ ही विभाजन माना जायेगा और असन्तुष्टों के साथ इतने कांग्रेस विधायकों का जाना संभव नहीं लगता है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस छोड़ने पर असन्तुष्टों को विधानसभा से भी इस्तीफा देना पड़ेगा और उपचुनाव में अगर भाजपा ने टिकट दे भी दिया तो दुबारा जीतने की कोई गारण्टी नहीं है। इनमें से मदन बिष्ट गत विधानसभा चुनाव में अनिल शाही से मात्र 181 मतों से और अल्मोड़ा से मनोज तिवारी कैलाश शर्मा से 127 मतों से चुनाव जीत पाये थे। प्रीतम के संभावित समर्थकों ने जहां से चुनाव जीते हैं वहां भाजपा के कैलाश शर्मा और पूरण सिंह जैसे दमदार नेता हैं, जो इनको कभी सहन नहीं करेंगे।
गढ़वाल के पांच जिलों से जीते हुये एकमात्र कांग्रेस विधायक राजेन्द्र सिंह भण्डारी का कहना है कि वह कांग्रेस के सिपाही हैं। उनका कहना है कि 2016 में जब इतने अधिक प्रलोभन दिये जा रहे थे तब उन्होंने कांग्रेस नहीं छोड़ी अब क्यों छोड़ेंगे। इसी प्रकार ममता रोकश के असन्तुष्टों में शामिल होने की खबर को झुठलाते हुये एक पूर्व कांग्रेस विधायक का कहना था कि गत दिवस उनके सामने ममता राकेश ने नये प्रतिपक्ष के नेता से भेंट कर शुभकामनाएं दीं। उक्त पूर्व विधायक के अनुसार मदन बिष्ट कल अपने निर्वाचन क्षेत्र में थे, इसलिये उनका प्रस्तावित बैठक में शामिल होना संभव नहीं लगता। कांग्रेस सूत्रों के अनुसार संख्या बल की कमी के कारण असन्तुष्टों की मुहिम की जल्दी ही हवा निकल जायेगी। कांग्रेस के सूत्रों का यह भी कहना है कि अगर असन्तुष्ट भाजपा में जाते हैं तो इस बेमौसम दल बदल का न तो उन्हें पूरा दाम मिलेगा और ना ही अपेक्षित ईनाम मिलेगा। वैसे भी भाजपा में गये हरक सिंह और यशपाल आर्य जैसे कांग्रेसियों को वापस लौटना पड़ा और सतपाल महाराज जैसे जो नेता वपस नहीं लौटे उन्हें अपमान के घूंट पीने पड़ रहे हैं।
कांग्रेस में विद्रोह की चर्चाओं को हाल ही में हवा तब लगी जबकि प्रीतम सिंह ने नये पार्टी पदाधिकारियों की घोषणा के तत्काल बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात की। हालांकि इस मुलाकात को नये राज्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति से जोड़ा जा रहा है। फिर भी जानकारों का मानना है कि आनन फानन में नये सूचना आयुक्त की नियुक्ति भी मिलीभगत के बगैर संभव नहीं थी। क्योंकि यह नियुक्ति तब हुयी जबकि प्रीतम सिंह प्रतिपक्ष के नेता नहीं रह गये थे और बिना प्रतिपक्ष के नेता की सहमति या असहमति के नियुक्ति संभव नहीं थी। जानकारों के अनुसार अर्जुन सिंह पहले सचिवालय सेवा के अधिकारी हैं, जिन्हें इस पद पर नियुक्त किया गया है। वह प्रीतम सिंह के बहनोई हैं।
अगर उनके लिये बैक डेट में नियुक्ति की औपचारिकताएं पूरी की गयी हैं तो यह भी पिछले प्रतिपक्ष के नेता और मुख्यमंत्री के आत्मीय संबंधों के बिना संभव नहीं है। अर्जुन सिंह के लिये गुपचुप तरीके से प्रक्रिया शुरू करना भी संदेह को उत्पन्न करता है। नियमानुसार इस पद के लिये बाकायदा विज्ञापन छपा कर आवेदन आमंत्रित किये जाते हैं, जो कि इस नियुक्ति में नहीं किया गया। अगर अर्जुन सिंह का चयन आचार संहिता लगने से पहले हो गया था तो सरकार नियुक्ति का आदेश उसी समय निकाल सकती थी। क्योंकि सरकार ने अंतिम क्षणों में कई अन्य नियुक्तियां की थीं जिनके लिये राज्यपाल से अनुमोदन लिया गया था। उस समय भी बैक डेट नियुक्तियों का आरोप लगा था। अगर उनका चयन 23 मार्च के बाद हुआ तो तब अर्जुन सिंह की नियुक्ति पर नये प्रतिपक्ष के नेता की सहमति या असहमति अनिवार्य थी। इसीलिये अर्जुन सिंह की नियुक्ति को लेकर भी कांग्रेस के अन्दर प्रीतम सिंह पर अंगुली उठ रही है।
(देहरादून से वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत की रिपोर्ट।)
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