साहित्य की प्रगतिशील-क्रांतिकारी विरासत के प्रति अटूट आस्था के प्रतिनिधि थे गुंजन जी : माले

पटना। भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने जन संस्कृति मंच के पूर्व राज्य अध्यक्ष, वर्तमान राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक-कवि और संपादक रामनिहाल गुंजन के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। अपने शोक संदेश में कहा कि 86 साल की उम्र में 19 अप्रैल की सुबह लगभग 5 बजे उनके आवास न्यू शीतल टोला आरा में उनका निधन हुआ।

रामनिहाल गुंजन का जन्म पटना जिले के भरतपुरा गांव के एक कृषक परिवार में 9 नवंबर 1936 को हुआ था। उनकी पहली कविता 1955 में मासिक पत्रिका ‘नागरिक’ में छपी थी, जिसका शीर्षक ‘कवि’ था। ‘बच्चे जो कविता के बाहर हैं’ (1988), ‘इस संकट काल में’ (1999), ‘समयांतर तथा अन्य कविताएं’ (2015) और ‘समय के शब्द’ (2018) उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए। लेकिन उनकी प्रमुख पहचान आलोचक के रूप में ही है।

उनकी पहली आलोचनात्मक पुस्तक ‘विश्व कविता की क्रांतिकारी विरासत’ भी 1988 में प्रकाशित हुई थी। इसके अतिरिक्त ‘हिंदी आलोचना और इतिहास दृष्टि’ (1988), ‘रचना और परंपरा’ (1989), ‘राहुल सांकृत्यायन: व्यक्ति और विचार’ (1995), ‘निराला: आत्मसंघर्ष और दृष्टि’ (1998), ‘शमशेर नागार्जुन मुक्तिबोध’ (1999), ‘प्रखर आलोचक रामविलास शर्मा ’ (2000), ‘हिंदी कविता का जनतंत्र’ (2012) ‘कविता और संस्कृति’ (2013), और ‘रामचंद्र शुक्ल और हिंदी नवजागरण’ (2018) नामक आलोचना की उनकी दस पुस्तकें प्रकाशित हुईं। अभी भी इनके लगभग दो सौ आलोचनात्मक लेख अप्रकाशित या असंकलित हैं।

पिछले कई दशक से हिंदी की सारी प्रतिष्ठित, अव्यावसायिक और वैकल्पिक पत्रिकाओं में इनके आलोचनात्मक लेख अनवरत प्रकाशित होते रहे हैं। उन्होंने हिंदी में संभवतः पहली बार अंटोनियो ग्राम्शी के लेखों का अनुवाद और संपादन किया था, जो ‘साहित्य, संस्कृति और विचारधारा’ के नाम से प्रकाशित हुआ था। उन्होंने जार्ज थामसन की पुस्तक ‘मार्क्सिज्म एंड पोएट्री’ का अनुवाद और संपादन भी ‘मार्क्सवाद और कविता’ (1985) नाम से किया है। गार्गी प्रकाशन से ये पुस्तकें तीन वर्ष पूर्व फिर से छपीं और काफी चर्चित रहीं। हाल में गार्गी प्रकाशन ने उनकी दो और पुस्तकें ‘राहुल सांकृत्यायन: व्यक्ति और विचार’ तथा ‘विश्व कविता की क्रांतिकारी विरासत’ को फिर से प्रकाशित किया।

रामवृक्ष बेनीपुरी, आचार्य नलिन विलोचन शर्मा, यशपाल, रांगेय राघव, भीष्म साहनी, डॉ. सुरेंद्र चौधरी और डॉ. चंद्रभूषण तिवारी पर ‘नया मानदंड’ पत्रिका के सात महत्वपूर्ण अंकों तथा बाबा नागार्जुन, वेदनंदन सहाय, भगवती राकेश, रामेश्वर नाथ तिवारी और विजेंद्र अनिल के व्यक्तित्व और रचनाकर्म से संबंधित पुस्तकों का उन्होंने संपादन भी किया। 1970 के आसपास उन्होंने ‘विचार’ पत्रिका का संपादन और प्रकाशन भी किया था। उन्होंने भोजपुरी की रचनाओं पर भी भोजपुरी भाषा में आलोचनात्मक लेख लिखे और कविताओं का सृजन किया, जो अभी असंकलित हैं। 

रामनिहाल गुंजन विश्व साहित्य और हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील-जनवादी और क्रांतिकारी विरासत को हिंदी आलोचना में दर्ज करने वाले आलोचक रहे। उनकी आलोचना-दृष्टि मुख्यतः प्रगतिशील-जनवादी-नवजनवादी कविताओं की वैचारिकी के निरूपण पर ही ज्यादा केंद्रित रही। भोजपुर के सामंतवाद विरोधी किसान आंदोलन और नवजनवादी सांस्कृतिक मोर्चा और जन संस्कृति मंच के साथ उनका गहरा जुड़ाव रहा। वे जसम, बिहार के राज्य अध्यक्ष रहे। फिलहाल जसम के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे।

यह प्रगतिशील-जनवादी-क्रांतिकारी साहित्य-संसार के लिए अपूरणीय क्षति है।

(भाकपा माले, बिहार द्वारा प्रेस जारी विज्ञप्ति पर आधारित)

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