मनरेगा बजट में कटौती: मोदी सरकार का मज़दूर विरोधी चेहरा आया सामने

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2 फरवरी, मनरेगा दिवस पर पश्चिमी सिंहभूम ज़िले के सोनुआ प्रखंड के अनेक मज़दूरों ने पोड़ाहाट और लोंजो गावों में जनसभा कर मनरेगा पर हो रहे व्यापक हमलों पर चर्चा की। जनसभा के बाद मजदूरों ने प्रखंड कार्यालय जाकर अपना विरोध दर्ज कराया और प्रधानमंत्री को संबोधित संलग्न मांग पत्र बीडीओ को सौंपा। मनरेगा दिवस पर झारखंड समेत देश भर में झारखंड नरेगा वॉच और नरेगा संघर्ष मोर्चा के आह्वान पर हजारों मजदूरों ने सड़क पर विरोध प्रदर्शन किया।

इस विरोध प्रदर्शन में स्पष्ट रूप से कहा गया कि 2023-24 में मनरेगा के लिए आवंटित बेहद कम बजट ने मोदी सरकार के मज़दूर विरोधी चेहरे को उजागर कर दिया है। यह पिछले 17 सालों में जीडीपी के अनुपात में (शुरू के दो सालों को छोड़ कर) सबसे कम बजट है। यह बजट पिछले साल के बजट से भी 33% कम है। एक ओर लगातार महंगाई में बढ़ोतरी हो रही है तो वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार ग्रामीण मज़दूरों के रोज़गार की जीवन रेखा को ख़त्म करने पर तुली हुई है।

सभा में मज़दूरों ने पर्याप्त काम न मिलने और समय पर भुगतान न मिलने की जानकारी दी। कानून लागू होने के 17 साल बाद भी समय पर भुगतान मिलना मज़दूरों के लिए किसी सपने से कम नहीं है। आरोप है कि सरकार द्वारा मज़दूरों से बंधुआ मज़दूरी करवाई जा रही है। प्रखंड और ज़िला में मनरेगा में व्यापक ठेकेदारी चल रही है। कहना गलत ना होगा कि मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार को राजनैतिक और प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त है। 

मनरेगा की तुच्छ मज़दूरी दर, जो कि राज्य के न्यूनतम दर से बहुत कम है, भी सरकार की मज़दूर विरोधी मंशा को दर्शाती है। सरकार ने हाल ही में हाजिरी के लिए एक मोबाइल एप-आधारित व्यवस्था -NMMS ( National Mobile Monitoring System)–को अनिवार्य किया है, जिससे मज़दूरों के काम और भुगतान के अधिकार के उल्लंघन के साथ-साथ व्यापक परेशानी हो रही है।

पिछले कुछ सालों में मनरेगा को ऐसी तकनीकि जाल में फंसाया गया है कि मज़दूरों के लिए पारदर्शिता न के बराबर हो गयी है एवं स्थानीय प्रशासन की जवाबदेही भी ख़त्म हो गयी है। ऐसा लगता है कि मोदी सरकार केवल मनरेगा नहीं, बल्कि मनरेगा मज़दूरों को ही ख़त्म करना चाहती है।

बता दें कि झारखंड के सोनुआ प्रखंड के मनरेगा मज़दूर, खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच, पश्चिमी सिंहभूम, झारखंड नरेगा वॉच और नरेगा संघर्ष मोर्चा की ओर से केंद्र सरकार से मांग किया गया कि मनरेगा को ख़त्म करने की न सोचे एवं मनरेगा को पूर्ण रूप से लागू करते हुए निम्नलिखित मांगों पर कार्यवाई करे:

• मनरेगा के लिए पर्याप्त बजट का आवंटन किया जाए ताकि सभी मज़दूरों को कम-से-कम 100 दिनों का काम मिले।

• ऐप-आधारित उपस्थिति प्रणाली (NMMS) को रद्द किया जाए।

• मनरेगा मज़दूरी दर को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार न्यूनतम मज़दूरी दर (महंगाई दर को जोड़ते हुए) के बराबर (800रु प्रति दिन) किया जाए।

• किसी भी परिस्थिति में 7 दिनों के अन्दर मज़दूरी भुगतान सुनिश्चित किया जाए। सभी लंबित भुगतान का मुआवज़ा सहित भुगतान किया जाए।

• मनरेगा से तकनीकि प्रणाली को हटाया जाए एवं पहले के अनुसार विकेंद्रीकृत मैन्युअल व्यवस्था लागू की जाए।

• सामाजिक अंकेक्षण व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाए।

आयोजित कार्यक्रम में मज़दूरों के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच, पश्चिमी सिंहभूम के प्रतिनधि भी शामिल थे। कार्यक्रम में दुलूराम कुंकल, मनोज नायक, प्यारी देवगम, कौशल्या हेंब्रम, रामचंद्र माझी, संदीप प्रधान, सिराज दत्त, सुरेंद्र अंगरिया समेत कई लोगों ने अपनी बात रखी।

बता दें कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा/MNREGA) भारत में लागू एक रोजगार गारंटी योजना है, जिसे 2 अक्टूबर 2009 को विधान द्वारा अधिनियमित किया गया। यह योजना प्रत्येक वित्तीय वर्ष में किसी भी ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को 100 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराती है। 

(वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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