झारखंड: कोयलांचल में भूमिगत आग के ऊपर जीवन मरण के बीच झूलते लोग

Estimated read time 1 min read

झारखंड। धनबाद जिले के कोयलांचल इलाके में लोग जमीन के नीचे बनीं कोयला खदानों में लगी आग के ऊपर रहने को मजबूर हैं। जीवन मरण से जूझते लोगों को आए दिन दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता है। ऐसी ही एक दुर्घटना कोयलांचल के लोदना बाजार- बागडिगी- जयरामपुर मुख्य मार्ग पर चार नंबर बूढ़ा बाबा शिव मंदिर के पास हुई। जहां 16 फरवरी को जमीन के नीचे बनी खदान के धंस जाने से बने गोफ (बड़ा गड्ढा) में एक सांड समा गया और उसकी मौत हो गयी।

स्थानीय लोगों के अनुसार 16 फरवरी सुबह यहां एक छोटी सी दरार दिखाई दी, जो धीरे धीरे बढ़ती गई और एक बड़े गोफ (गड्ढ़े) का रूप धारण कर ली। साथ ही उससे गैस का रिसाव भी होने लगा। धीरे-धीरे मुख्य मार्ग के बीचों-बीच 12 फीट लंबा व 6 फीट चौड़ा गड्ढा बन गया। उसी जगह दो सांड आपस में भिड़ गये और एक सांड गड्ढे में गिर गया।

राहगीरों ने शोर मचाया तो स्थानीय लोग सांड को गोफ (गड्ढे) से निकालने के लिए रस्सी लेकर पहुंचे, लेकिन गोफ से निकल रही गैस और वहां का तापमान अधिक होने से कोई उधर जाने की हिम्मत नहीं जुटा सका। थोड़ी देर में सांड गोफ (गड्ढे) में गुम हो गया।

इस इस इलाके में गोफ एक बड़े गड्ढे को कहते हैं जो जमीन के नीचे बनी खदान के धंस जाने की वजह से बनता है। दरअसल गोफ वहां बनने की ज्यादा संभावना रहती है जहां भूमिगत खदान से कोयला निकालने के बाद उसे बालू से नहीं भरा गया है। बताते चलें कि कोल कंपनियों द्वारा खनन के बाद 40 प्रतिशत पिलर छोड़ने के बाद जो 60 प्रतिशत खाली क्षेत्र बचा है, उसमें बालू भरा जाना था।

खदान धंसने से बना गोफ (बड़ा गड्ढा)

80 के दशक में खनन के बाद खाली जगहों को बालू से भरने का ठेका कई लोगों को दिया गया था, लेकिन कहीं भी बालू नहीं भरा गया। जब यह मामला सामने आया तो इसकी जांच के लिए कोल इंडिया की ओर से 80 के दशक में ही पीके दास को कोलकाता से ऑडिटर के रूप में भेजा गया।

जब पीके दास ने जांच शुरू की तो पहले उन्हें मैनेज करने की कोशिश की गई, लेकिन जब उन्होंने किसी की नहीं सुनी तो उनकी हत्या कर लाश को रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया गया। यह उस वक्त दास हत्याकांड के रूप काफी चर्चे में रहा।

लेकिन इस हत्याकांड का दुखद पहलू यह रहा कि मामले की सीबीआई जांच के बाद भी हत्यारों को नहीं पकड़ा जा सका। तब के माफिया समझे जाने वाले नौरंगदेव सिंह के भाई रामचंद्र सिंह को मामले में सीबीआई ने गिरफ्तार तो किया लेकिन उससे कुछ उगलवा नहीं सकी और सबूत के अभाव में वह छूट गया।

यानी उस वक्त खदानों में जो बालू नहीं भरा जा सका वह आज भी ज्यों का त्यों है। नतीजतन कोयलांचल के कई इलाकों में गोफ (बड़े गड्ढे) बन जाते हैं और भूमिगत आग बढ़ती जा रही है, जो अपने आप में बालू घोटाले की कहानी को बयां करने के लिए काफी है।

जमीन के नीचे खदानों में लगी आग का धुंआ

बता दें कि शिव मंदिर के पास गोफ के बनने की जानकारी जनता मजदूर संघ (कुंती गुट) के हेमंत पासवान व केआईएमपी नेता सह क्षेत्रीय सुरक्षा समिति सदस्य के बिहारी लाल चौहान ने लोदना जीएम बीके सिन्हा, सुरक्षा अधिकारी डीके मीणा और लोदना ओपी प्रभारी संजीव कुमार सिंह को दी थी, लेकिन कई घंटे बाद भी कोई अधिकारी या पुलिस मौके पर नहीं पहुंची। अंत में स्थानीय लोगों ने गोफ स्थल को चारों तरफ पत्थर से घेराबंदी कर रास्ता बंद कर दिया।

गोफ स्थल के आस पास करीब दो हजार की आबादी निवास करती है। इसी रास्ते से लोगों का आना-जाना रहता है। स्थानीय निवासी बिहारी लाल चौहान ने बताया कि सुबह 11 बजे गोफ से गैस रिसाव की सूचना उन्होंने पीओ अरुण पांडेय को दी थी। लेकिन किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया। यही हालात रहे तो कभी भी किसी बड़ी दुर्घटना की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

प्रसंग वश बता दें कि यह वही इलाका है जहां साल 2001 में बागडिगी कोलियरी हादसे में 29 लोगों ने जान गंवाई थी। 2 फरवरी 2001 को बारह नंबर खदान के बांध की दीवार टूटने के बाद पानी खदान में घुस गया था। 29 लोगों की जान इस हादसे में गई थी। घटना के बाद खदान परिसर में फंसे श्रमिकों व मरने वालों के परिजनों की चीत्कार से हर कलेजा दहल उठा था। खाकी और खादी की फौज कई दिनों तक यहां रही थी।

खान में फंसे मजदूरों को निकालने के लिए मुंबई से गोताखोरों की टीम आई थी। घटना के चार दिन बीतने के बाद जब खदान में फंसे श्रमिकों के बचने की संभावना क्षीण हो गई तो उनके परिजनों ने शव निकालने की अपील की। पांच फरवरी की रात बारह बजे गोताखोरों की टीम ने एक बैग में भरकर पहला शव खदान से बाहर निकाला था। क्षत-विक्षत हो चुकी लाश की पहचान कैप लैंप नंबर से की गई थी।

बागडिगी कोलियरी हादसे में शहीद 29 मजदूरों को स्मारक

हाल ही में धनबाद के कोयलांचल में स्थित बस्ताकोला इलाके में भूमिगत आग के बढ़ने से आसपास के दो दर्जन से अधिक घरों में दरार बढ़ गयी है। परियोजना की आग से बस्ती में गैस रिसाव होने लगा है। आग के बढ़ने से घनुडीह माडा कॉलोनी, मल्लाह बस्ती, गांधी चबूतरा, शिव मंदिर के पीछे, लालटेनगंज और घनुडीह के इलाके प्रभावित हुए हैं।

आग और गैस रिसाव का सबसे अधिक असर बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ रहा है। एक साल पहले माडा प्रबंधन ने घनुडीह माडा कॉलोनी को असुरक्षित क्षेत्र घोषित कर सुरक्षित स्थान पर शिफ्टिंग का आदेश दिया था, पर लोगों ने इसका विरोध किया।

वहीं कोयलांचल के धनबाद-चंद्रपुरा रेलवे लाइन और कुसुंडा तेलुलमारी रेल लाइन के बीच स्थित बसेरिया चार नंबर बस्ती की बड़ी आबादी भूमिगत कोयला में लगी आग के ऊपर रहने को मजबूर हैं। उन्हें वहां से हटने की नोटिस तो भेजी जाती है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि वे कहां जाएं? क्योंकि इसकी कोई वैकल्पिक व्यवस्था अभी तक नहीं हो पाई है।

आग के ऊपर बस्ती

इन तमाम अव्यवस्थाओं के बीच कोयलांचल क्षेत्र झरिया मास्टर प्लान के तहत पहले चरण में 70 हाइ रिस्क फायर साइट से 12,323 परिवारों को हटाये जाने की योजना है। इनमें 2,110 लीगल टाइटल होल्डर व 10,213 नन लीगल टाइटल होल्डर शामिल हैं। सर्वाधिक 26 हाइ रिस्क साइट बीसीसीएल के पीबी एरिया में चिह्नित किये गये हैं। वहां से 4,344 नन एलटीएच परिवारों को पुनर्वासित करना है।

इसके अलावा 998 कुसुंडा, 339 पीबी एरिया, 282 ब्लॉक-टू, 214 सिजुआ व 173 कतरास एरिया से एलटीएच परिवार सुरक्षित स्थान पर पुनर्वासित किये जायेंगे, जबकि नन एलटीएच की बात करें तो 2584 लोदना, 1214 सिजुआ, 944 बस्ताकोला व 483 परिवार कतरास एरिया से पुनर्वासित किये जायेंगे।

योजनागत रूप से इसकी तैयारी शुरू हो गयी है। लेकिन इसपर काम शुरू होगा? यह सवालों के घेरे में है।

जगह जगह धधकती जमीन

इन तमाम घटनाक्रम के बीच झरिया में भूमिगत आग की मौजूदा समय में क्या स्थिति है, इसको लेकर नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर हैदराबाद (एनआरएससी) की टीम अध्ययन करेगी। बीसीसीएल ने नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर को यह जिम्मेदारी सौंपते हुए एमओयू साइन कर हैदराबाद भेजा दिया है। योजना के अनुसार अगले सप्ताह इस पर काम शुरू हो जाएगा।

अधिकारिक तौर पर बताया जा रहा है कि 22 साल में झरिया की आग की रफ्तार में काफी कमी आई है। 2004 में 8.9 स्क्वायर किमी में आग फैली थी, जो 2021 की रिपोर्ट में 1.80 स्क्वायर किमी में आ कर सिमट गई।

अब आग की सैटेलाइट के जरिए एरियल व्यू तैयार कर रिपोर्ट बनाई जाएगी। इसके लिए बीसीसीएल 24 लाख 7 हजार रुपये खर्च करेगी। यह अध्ययन 2022-23 से लेकर 2024-25 तक के लिया किया जाएगा। इसके लिए 16 लोकेशन तय किए गए हैं, जो अधिक अग्नि प्रभावित खनन क्षेत्र के दायरे में आ रहे हैं।

आग के ऊपर रहने को मजबूर लोग

पिछला अध्ययन 2021 में किया गया था। इसमें 27 लोकेशन पर सरफेस आग को लेकर अध्ययन किया गया था। जिसके अनुसार आग का दायरा 1.80 स्क्वायर किमी पर सिमट गया है। पहले चरण में 2025 तक 81 क्षेत्र के लोगों को पांच साल में हटाने को लेकर काम किया जा रहा है। इसमें करीब 15 हजार परिवार है। भूमिगत आग के चलते कुल 1 लाख 4 हजार परिवार को शिफ्ट करना है।

आग की स्थिति पर नजर डालें तो..

  • 2004 में 8.9 स्क्वायर किमी, 67 लोकेशन पर अध्ययन किया गया।
  • 2012 में 3.2 स्क्वायर किमी, 32 लोकेशन पर अध्ययन किया गया।
  • 2018 में 3.26 स्क्वायर किमी, 34 लोकेशन पर अध्ययन किया गया।
  • 2021 में 1.80 स्क्वायर किमी 27 लोकेशन पर अध्ययन किया गया।

बीसीसीएल तकनीकी निदेशक संजय कुमार सिंह ने बताया कि नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर हैदराबाद को झरिया भूमिगत आग की स्थिति पर अध्ययन करेगी। इसको लेकर तीन साल तक काम करेगी। भूमिगत आग को लेकर बीसीसीएल प्रबंधन गंभीर है।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author