हिंडालको ने असहमति की आवाज दबाने को रचा एक और कुचक्र

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हिंडालको प्रबंधन ने मुख्य द्वार पर दसियों सालों से लगे नोटिस बोर्ड को हटा दिया है। इस संदर्भ में पुलिस-प्रशासन को प्रबंधन ने जो जवाब दिया है वह हास्यास्पद और अवैधानिक है। प्रबंधन का तर्क है कि नोटिस बोर्ड से दुर्घटना होने का डर है, लेकिन प्रबंधन यह नहीं बताता कि 70 के दशक से भी पहले लगे इस नोटिस बोर्ड के कारण कितनी बार दुर्घटना हुई, कितने लोग घायल हुए और कितने मृत हुए।

वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष दिनकर कपूर ने बताया कि मजदूरों ने हिंडालको के कई लोगों से पूछा तो पता लगा कि एक भी दुर्घटना नहीं हुई है। दूसरा तर्क देते हुए प्रबंधन कहता है कि बाहरी लोग मजदूरों को इस नोटिस बोर्ड पर सूचना लगाकर भड़काते हैं। यह भी हास्यास्पद तर्क है। वास्तव में तो संविधान की धारा 19 हर भारतीय नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देती है, जिसमें असहमति का अधिकार निहित है। नोटिस बोर्ड जो फैक्ट्री एक्ट की धारा 108 के तहत मुख्य द्वार पर लगा था। ठेका मजदूर यूनियन के नेता और सभासद नौशाद के पत्र पर कार्रवाई करते हुए अपर श्रमायुक्त ने भी आदेश दिया कि इस कानून का अनुपालन हिंडालको करे।

दरअसल यह नोटिस बोर्ड असहमति और अभिव्यक्ति के अधिकार को सुनिश्चित करता था और उस पर लगी नोटिसें प्रबंधन को भी औद्योगिक विवाद के सम्बंध में सूचना देकर उसे हल करने में मदद करती थी। औद्योगिक शांति स्थापित करती थी। नोटिस बोर्ड हटाकर वास्तव में प्रबंधन औद्योगिक अशांति को पैदा करने की उकसावामूलक कार्रवाई कर रहा है। इसके आने वाले दिनों में गंभीर नतीजे निकलेगें।

दिनकर ने कहा कि मजदूरों ने हिंडालको प्रबंधन को सलाह दी है कि वह अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला करने की अवैधानिक कार्रवाई वापस लें। नोटिस बोर्ड दोबारा लगाया जाए। बेहतर लोकतांत्रिक वातावरण ही बेहतर उत्पादन और हिंडालको के विकास के लिए अति आवश्यक है।

सभासद और ठेका मजदूर के नेता नौशाद, यूनियन के जिलाध्यक्ष तेजधारी धारी गुप्ता, यूनियन के जिला मंत्री कृपाशंकर पनिका, पूर्व सभासद कामरेड मारी, ओपी सिंह आदि ने हिंडालको के मजदूरों और रेनुकूट के आम जनता से अपील है कि शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से चल रहे इस सत्याग्रह आंदोलन की हर संभव मदद करें। मजदूरों की आवाज को दबाने के हिंडालको के हर प्रयास को अपनी एकता के बदौलत विफल कर दें।

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