पेंशन बिल के चौराहे पर फंसे मैक्रों, संसद से लेकर सड़क तो लेफ्ट से राइट तक के सारे रास्ते बंद

बात बीते गुरुवार की है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की सरकार ने संसद के ऊपरी सदन में विवादित पेंशन बिल पारित करवा लिया। पिछले दो महीनों से ट्रेड यूनियनों और आम लोगों के गुस्से को भांपते हुए फ्रांसीसी राष्ट्रपति ये जान गए थे उन्हें इसे पारित कराने में खासी दिक्कत आने वाली है, ज़ाहिर है उन्होंने बिना वोटिंग के ही ये कानून पास करवाया। पीएम एलिजाबेथ बोर्न ने आर्टिकल 49.3 का इस्तेमाल करते हुए ऐसा किया। सरकार के पास इस आर्टिकल के तहत बिना वोटिंग के बिल पास कराने का अधिकार है।

एक ओर सरकार संसद में इस बात का ऐलान कर रही थी तो दूसरी ओर विपक्षी राजनेता कह रहे थे… पीएम इस्तीफा दें। कुछ राजनेताओं ने फ्रांसीसी राष्ट्रगान गाते हुए ‘नो 64 इयर्स’ का बोर्ड पकड़ा हुआ था। इस बिल के पारित होते ही देश भर में लोग प्रदर्शन के लिए उमड़ पड़े।

बिल पारित होने के बाद पेरिस समेत कई दूसरे शहरों में जो कुछ हुआ, वो तस्वीरें बताने के लिए काफी हैं कि लोगों में इस बिल को लेकर कितना गुस्सा है। बिल के तहत रिटायरमेंट की उम्र 62 से बढ़ाकर 64 कर दी गई है।

विपक्षी नेता मरील ले पेन ने इमानुएल मैक्रों की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात कही। उन्होंने कहा- सरकार ने स्पेशल पावर का इस्तेमाल करके बिल पारित करवाया। ये सबूत है कि वो कितने कमजोर हैं। प्रधानमंत्री बॉर्न को इस्तीफा दे देना चाहिए।

जैसे ही कानून पास हो गया, तो करीब सात हजार लोग पेरिस में प्लेस डे ला कॉनकॉर्ड पब्लिक स्कावयर पर विरोध प्रदर्शन करने लगे। इस दौरान पुलिस ने आंसू गैस का इस्तेमाल किया और साथ ही 120 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया। पुलिस ने संसद के सामने विरोध कर रहे लोगों को हटाया। लेकिन फ्रांस के कई शहरों में भी लगातार प्रदर्शन हो ही रहे हैं।

देश में पेंशन सुधारों के खिलाफ पेरिस के साथ-साथ अन्य शहरों में एक सप्ताह से प्रदर्शन जारी है। यह विरोध-प्रदर्शन येलो वेस्ट आंदोलन की याद दिला रहे हैं। इसमें फ्रांस में तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के बाद प्रदर्शनकारी पीले रंग की जैकेट में विरोध के लिए सड़कों पर उतर आए थे।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस बीच विरोध-प्रदर्शन के दौरान नीस के साउत शहर लेस रिपब्लिक में एक नेता एरिक सियोटी के ऑफिस में रात भर लूटपाट की गई। सियोटी ने कहा कि सोमवार को होने वाली वोटिंग में प्रदर्शनकारी हिंसा के जरिए मेरा वोट लेना चाहते हैं। उन्होंने आगे कहा कि मैं इनके आगे नहीं झुकूंगा।

बीते दिनों कानून पास होने के बाद एक प्रदर्शनकारी ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा कि “हम हार नहीं मानेंगे। अभी भी उम्मीद है कि सुधार को रद्द किया जा सकता है।” एक अन्य ने रॉयटर्स को बताया कि बिना वोट के कानून को आगे बढ़ाना ‘लोकतंत्र का तिरस्कार है।

कई हफ्तों से सड़कों पर जो कुछ हो रहा है, वो किसी से छिपा हुआ नहीं है। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक हड़ताल की वजह से सभी सरकारी सेवाओं पर असर पड़ा है। वो चाहे परिवहन सेवाएं हों या स्कूल हों। जबकि कूड़ा उठाने वालों के काम नहीं करने से राजधानी पेरिस में कई टन कूड़ा पड़ा देखा जा सकता है।

ईंधन का वितरण भी रोक दिया गया है और आने वाले दिनों में नॉर्मेडी में एक बड़ी रिफाइनरी में उत्पादन बंद करने की योजना है। उदारवादी सीएफडीटी यूनियन के प्रमुख लॉरेंट बर्जर ने कहा, “सरकार या प्रधानमंत्री को बदलने से यह आग नहीं बुझेगी, जब तक सुधार को वापस नहीं ले लिया जाता।”

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लेकिन दिक्कत सिर्फ इतनी भर नहीं है, अब आने वाले दिनों में सरकार को दोहरी दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। एक ओर इस मसले पर एकजुट दिख रही सारी ट्रेड यूनियनों ने 23 मार्च को हड़ताल की घोषणा की है, तो सोमवार को सरकार को ये बिल निचले सदन में पारित करवाना है। जो उसके लिए एक टेढी खीर साबित हो सकता है।

अब देखते हैं कि पेंशन सुधार बिल है क्या? और इसे लेकर दरअसल इतना विरोध क्यों हो रहा है?

प्रधानमंत्री एलिजाबेथ बोर्न ने बताया कि नई पेंशन योजना के प्रस्तावों के तहत 2027 से लोगों को पूरी पेंशन लेने के लिए कुल 43 साल काम करना होगा। अभी तक यह समय 42 साल था। दरअसल लोगों का मानना है कि

  • इस कानून से पब्लिक सेक्टर में लोगों की सुविधाएं कम हो जाएंगी।
  • पूरी पेंशन पाने की सुविधा पाने के लिए लोगों के काम के सालों में बढ़ोतरी हो जाएगी।
  • लोगों को कहना है कि इससे कम सैलेरी पाने वाले और बिना मशीन के किए जाने वाले कामों में लगे लोगों पर ज्यादा असर पड़ेगा।

हालांकि देखने वाली बात ये भी है कि नई पेंशन योजना मैक्रों सरकार के चुनावी मैनिफेस्टो का हिस्सा रही है। मैक्रों ने साल 2019 में यानि अपने पहले कार्यकाल में ही फ्रेंच पेंशन सिस्टम में बदलाव को लेकर एक प्लान रखा था। मैक्रों ने उस वक्त कहा था कि रेल और ऊर्जा के 42 स्पेशल प्रावधानों से छुटकारा पाने के बाद ही सिस्टम को आर्थिक रूप ये बेहतर बनाया जा सकता है।

हालांकि उस वक्त उन्होंने रिटायरमेंट की उम्र की बात ही नहीं की थी। उस दौरान भी मैक्रों को अभूतपूर्व प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था। विरोध प्रदर्शन की वो कड़ी 1968 के वाइल्डकैट स्टोपेज के विरोध के बाद अब तक काे सबसे लंबे विरोध प्रदर्शन की तरह सामने आई थी। हारकर राष्ट्रपति को 2020 में इस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डालना पड़ा।

पेंशन कानून के खिलाफ प्रदर्शन

दरअसल शेयर आउट पेंशन सिस्टम की सुरक्षा के लिए सरकार के अपने तर्क हैं। सरकार का कहना है कि काम करने वालों और रिटायर्ड लोगों के बीच का अनुपात बेहद तेजी से कम हो रहा है। जिसे देखते हुए रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने पर विचार
किया जा रहा है।

सरकार ये भी तर्क दे रही है कि ज्यादातर यूरोपियन देशों ने रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाई है। इटली और जर्मनी में रिटायरमेंट की उम्र 67 साल है, स्पेन में 65 साल है तो ब्रिटेन में ये उम्र 66 साल है। हालांकि इन सारे तर्कों के बावजूद आम लोग फ्रांसीसी सरकार के इस कदम के बेहद खिलाफ़ हैं।

पिछले दो महीने से लगातार ना सिर्फ ट्रेड यूनियन बल्कि आम लोग इसका खासा विरोध कर रहे हैं। IFOP पोल के मुताबिक, 68% लोग इस योजना का विरोध कर रहे हैं।

राजधानी पेरिस समेत कई शहरों के विरोध प्रदर्शन का हाल किसी से छुपा नहीं है। 23 मार्च को बुलाई गई हड़ताल जहां विरोध का तीखा रूप दिखा सकती हैं वो भी खासकर तब जबकि ट्रेड यूनियन सीएफडीटी के नेता लौरां बर्गर ने एक बयान में कहा कि सरकार ने विशेष संवैधानिक अनुच्छेद 49.3 का सहारा लेकर यह दिखा दिया है कि उसके पास रियाटरमेंट की उम्र दो साल बढ़ाने के प्रस्ताव को पारित कराने लायक समर्थन संसद में नहीं है।

तो वहीं ट्रेड यूनियन सीजीटी के प्रमुख फिलिप मार्तिनेज ने एलान किया कि अब देश में और भी अधिक बड़े पैमाने पर हड़तालें आयोजित की जाएंगी।

संसद पेंशन बिल का विरोध

राजनीति की डगर पर भी मैक्रों की राह कितनी कठिन है ये बात इसी से पता चलती है कि वामपंथी सांसदों के साथ-साथ धुर दक्षिणपंथी नेशनल रैली पार्टी के सांसदों ने भी इस बिल का विरोध किया है। नेशनल रैली की नेता मेरी ली पेन ने प्रधानमंत्री से तुरंत इस्तीफा देने की मांग की है।

उन्होंने एक ट्वीट में कहा कि राष्ट्रपति का कदम प्रधानमंत्री के गाल पर भी एक तमाचा है। मैक्रों सरकार फ्रांस के लोगों को वह दे रही है, जो लोग नहीं चाहते। जबकि सरकार का दावा है कि उसने यह कदम पेंशन फंड को खतरे में पड़ने से बचाने के लिए उठाया है।

अब इस पर अब वोटिंग होनी है। मालूम हो कि विपक्षी सांसदों ने शुक्रवार को संसद में दो बार अविश्वास प्रस्ताव दाखिल किया था। सरकार इन दो चुनौतियों से पार कैसे पाएगी, ये देखना वाकई दिलचस्प होगा और वो भी तब जबकि लेफ्ट के साथ साथ वो राइट के भी निशाने पर हैं।

(एजेंसी इनपुट्स)

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