नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला

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नई दिल्ली। 2020 में हुए दिल्ली दंगों के मामले में आरोपित स्टूडेंट्स एक्टिविस्ट देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा को राहत मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली पुलिस की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमे तीनों कार्यकर्ताओं को हाईकोर्ट की तरफ से जमानत दिए जाने का विरोध किया गया था। उच्च न्यायालय ने कहा कि “इस मामले को जीवित रखने का कोई उद्देश्य नहीं है।” दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली दंगों में आरोपित तीनों अभियुक्तों को 15 जून 2021 को जमानत दे दी थी।

जिसके बाद दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर तीनों आरोपियों को जमानत दिए जाने के दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने आदेश में तीखी टिप्पणियां भी कीं थी। जिस पर दिल्ली पुलिस ने ऐतराज जताया था। सुप्रीम कोर्ट ने 18 जून 2021 को दिल्ली पुलिस की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए कहा था कि तीनों को जमानत देने वाला दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश नजीर नहीं माना जाएगा। हालांकि, कोर्ट ने उस वक्त हाई कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक नहीं लगाई थी और तीनों की जमानत जारी रखी थी।

दिल्ली में वर्ष 2020 में सीएए प्रदर्शन के दौरान सांप्रदायिक दंगे हुए थे। दिल्ली पुलिस के मुताबिक दंगों में 50 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी और करीब 700 लोग घायल हुए थे।

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एस के कौल और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि “प्रतिवादी लगभग दो साल से जमानत पर हैं। हम इस मामले को जीवित रखने का कोई उद्देश्य नहीं देखते हैं।” न्यायमूर्ति कौल ने मौखिक रूप से यह भी टिप्पणी की कि “रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं आया है जिससे यह कहा जा सके कि जमानत रद्द कर दी जानी चाहिए।”

दिल्ली पुलिस ने अपनी अपील में जमानत आदेश में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम, 1967 के संबंध में हाई कोर्ट की टिप्पणियों पर चिंता जताई थी। इसका उल्लेख करते हुए, एससी बेंच ने मंगलवार को अपने आदेश में कहा कि “हम हालांकि यह स्पष्ट करते हैं कि हाईकोर्ट की ओर से लिए गए निर्णय में किए गए अवलोकन केवल जमानत देने के उद्देश्य से हैं और इसे विचार की अभिव्यक्ति के रूप में नहीं माना जाएगा।

हमने अपने दिनांक 18.6.2021 के आदेश में पहले ही देखा है कि विवादित निर्णय को एक मिसाल के रूप में नहीं माना जाना चाहिए और किसी भी कार्यवाही में किसी भी पक्ष द्वारा उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। हमारा विचार है कि इस मामले में किसी और आदेश की आवश्यकता नहीं है।” कोर्ट ने कहा कि, “आरोपित आदेश UAPA अधिनियम के अलग-अलग प्रावधानों की व्याख्या करते हुए ज़मानत पर एक बेहद विस्तृत आदेश है।

हमारे विचार में इस तरह के मामलों में केवल यह जांच करने की आवश्यकता है कि तथ्यात्मक परिदृश्य में एक अभियुक्त जमानत का हकदार है या नहीं। यह वह तर्क है जिसने हमें 18.6.2021 को नोटिस जारी करते हुए यह देखने के लिए राजी किया कि विवादित निर्णय को एक मिसाल के रूप में नहीं माना जाना चाहिए और किसी भी अन्य कार्यवाही में किसी भी पक्ष द्वारा इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। जमानत मामले में कानून की घोषणा पर फैसले के इस्तेमाल के खिलाफ राज्य की रक्षा करने का विचार था।”

मंगलवार को इस मामले पर सुनवाई करते हुए, दिल्ली पुलिस ने अदालत से यह कहते हुए इसे स्थगित करने का आग्रह किया कि पेश होने वाले सरकारी कानून अधिकारी को कुछ व्यक्तिगत कठिनाई थी। प्रार्थना को खारिज करते हुए, अदालत ने कहा “हम अंत में ध्यान दे सकते हैं कि एक बार फिर से स्थगन का अनुरोध किया गया था और हमने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि इस मामले में वास्तव में कुछ भी नहीं बचा है और इस प्रकार हम अनुरोध को समायोजित करने के इच्छुक नहीं थे।”

(कुमुद प्रसाद जनचौक की सब एडिटर हैं।)

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