Atal bhujal yojana

पात्रता के बावजूद केंद्र की अटल भूजल योजना का हिस्सा क्यों नहीं बना पंजाब?

अटल भूजल योजना में पंजाब को शामिल न किया जाना खासा हैरान करने वाला है। इस योजना के लिए 7 राज्यों गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान और महाराष्ट्र को तो शामिल किया गया है लेकिन पंजाब को नहीं। जबकि यकीनन पंजाब की स्थिति शामिल किए गए राज्यों से ज्यादा गंभीर है। राज्य के 22 में से 20 जिले गिरते भूजल की गंभीर समस्या का सामना कर रहे हैं और 6000 करोड़ रुपए की अटल भूजल योजना की ताजा घोषणा करने वाली केंद्र सरकार इससे बखूबी वाकिफ भी है।
केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा 2019 में पंजाब के तमाम जिलों का मैदानी दौरा करने के बाद पाया था कि राज्य के तीन चौथाई से ज्यादा ब्लाकों में भूजल के गिरते स्तर की वजह से पानी की भारी किल्लत है। इनमें से कुछ इलाकों की स्थिति निहायत नाजुक है। सेंट्रल ग्राउंडवाटर बोर्ड की ताजा रिपोर्ट में भी यह तथ्य शुमार है। फिर भी केंद्र सरकार ने अटल भूजल योजना में पंजाब की उपेक्षा की है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह इस बाबत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर पंजाब को भी इस योजना में जगह देने को कहा है। मुख्यमंत्री ने भी हैरानी जताई है कि विकट समस्या से गुजर रहे पंजाब को बाहर क्यों रखा गया है?
अपने पत्र में मुख्यमंत्री ने जोर देकर कहा है कि पंजाब के पास प्राकृतिक संसाधन के रूप में भूजल का स्तर काफी गिर चुका है। राज्य के देश के लिए अनाज रक्षा यकीनी बनाने के लिए खेती, खासकर धान की पैदावार के लिए अपने अमूल्य प्राकृतिक संसाधन की भारी कीमत चुकानी पड़ी। सतही पानी की उपलब्धता में भी पिछले कुछ दशकों के दौरान कमी आई है। इस तथ्य के आधार पर जल संरक्षण के लिए तत्काल मदद हेतु पंजाब का केस बहुत मजबूत है। कैप्टन का कहना है कि उन्होंने पहले भी इस मसले की तरफ प्रधानमंत्री का ध्यान दिलाते हुए जल संसाधनों के संरक्षण के लिए केंद्रीय सहायता की कई बार मांग की है।
गौरतलब है कि पंजाब में महज 27 फ़ीसदी रकबे को नहरी पानी मिलता है जबकि 73 फ़ीसदी रकबे जमीन की सिंचाई भूजल के जरिए होती है। इसलिए भूजल का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। कृषि अर्थशास्त्री और वैज्ञानिक बार-बार इस तरफ इशारा करते रहे हैं कि राज्य का फसली चक्र नहीं बदला तो वो दिन दूर नहीं, पंजाब जब समूचे तौर पर बंजर हो जाएगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुई जौहल कमेटी की रिपोर्ट में भी इस पर खासा जोर दिया कियाहै। कुछ बड़े कृषि अर्थशास्त्रियों और वैज्ञानिकों ने भी अचरज प्रकट किया है कि पंजाब को अटल भूजल योजना से आखिर बाहर कैसे रखा गया?
सरगोशियां हैं कि इसके पीछे राजनैतिक कारण हो सकते हैं क्योंकि पंजाब से केंद्र सरकार की हालिया कुछ विवादास्पद नीतियों के खिलाफ विरोध की आवाज अन्य राज्यों की अपेक्षा सबसे ज्यादा बुलंद हुई है। इस पर भी हैरानी प्रकट की जा रही है कि पंजाब के पड़ोसी राज्यों हरियाणा और राजस्थान को अटल भूजल योजना का हिस्सा बनाया गया है लेकिन पंजाब को दरकिनार कर दिया गया है। जबकि पंजाब इन दोनों राज्यों से ज्यादा कृषि उत्पादन में अपना योगदान देता है। दीगर है कि परंपरागत फसली चक्र भी पंजाब को तबाह कर रहा है और इससे निकलने के लिए फौरी तौर पर केंद्र से जो मदद मिलनी चाहिए, वह नहीं हासिल हो रही। पंजाब की कृषि भूजल पर ज्यादा निर्भर है। कृषि अर्थशास्त्रियों और वैज्ञानिकों का कहना है कि बदतर होती स्थितियों के बावजूद पंजाब की राष्ट्रीय स्तर पर अनाज पैदावार में अहम हिस्सेदारी है। इसके मद्देनजर तत्काल इससे 6000 करोड़ रुपए की अटल भूजल योजना में शिखर पर रखा जाना चाहिए। लगता है बंजर होते पंजाब की परवाह केंद्र को नहीं है। सियासी हलकों में पूछा जा रहा है कि कहीं यह भेदभाव ‘बदले’ के तहत तो नही?
दरअसल, पंजाब के किसान गेहूं–धान के फसली चक्र और सरकारी नीतियों में बेतहाशा उलझे हुए हैं। इन दोनों फसलों को कम से कम समर्थन मूल्य पर खरीदा जाता है। बाकी फसलों को खरीदने की गारंटी ना होने के चलते वे किसानों के लिए फायदेमंद नहीं रहतीं। अनाज की जरूरत पूरी होने के कारण केंद्र सरकार अब समर्थन मूल्य की बाबत धूल मूल की नीति अपनाए हुए है। पानी लगातार नीचे के स्तर पर चलते जाने की वजह से और वातावरण संकट के कारण किसान और कृषि मजदूर कर्ज के कुचक्र में बुरी तरह उलझते जा रहे हैं और उनकी आत्महत्याओं में खौफनाक इजाफा हो रहा है।
अटल भूजल योजना में पंजाब की उपेक्षा के पीछे बेशक जो वजह हो लेकिन पंजाब सरकार का खुद का रवैया भी इसके लिए कहीं न कहीं जिम्मेदार है। राज्य सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि प्रदेश के बड़े अफसर केंद्र द्वारा बुलाई बैठकों में खुद जाने की बजाए अपने कनिष्ठ अधिकारियों को भेजते हैं। एक आला अधिकारी ने भी अनौपचारिक तौर पर इस बात को माना और कहा कि अटल भूजल योजना के लिए वक्त रहते पंजाब को अपना पक्ष मजबूती के साथ रखना चाहिए था। यह नहीं भूलना चाहिए कि राज्य में कांग्रेस की सरकार है और केंद्र में शासन व्यवस्था भाजपा के हाथों में है। कदम कदम पर अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए।

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