ग्राउंड रिपोर्ट: तकनीक बनी दुश्मन, अंगूठा न लगने से राशन से वंचित हो रहे बुजुर्ग

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प्रयागराज। बीपीएल कार्डधारक ग़ुलाब देबी की उम्र क़रीब 70 साल है। कोरोना में उनके पति और बड़ा बेटा गुज़र गया। दूसरा बेटा बेरोज़गार है और छोटा बेटा दिहाड़ी मज़दूर है। गुलाब देवी अकेली और अलग रहती हैं। ऐसे में उनके लिए हर माह राशन ज़रूरी हो जाता है। लेकिन बुढ़ापे के कारण उनका अंगूठा नहीं लग पाता और हर महीने दो से तीन बार दौड़ना पड़ता है अंगूठा लगाने के लिए। उम्रदराज होने के साथ चमड़ा सिकुड़ने और फिंगर प्रिंट घिसने के चलते मशीन डिटेक्ट नहीं कर पाती है। गुलाब देवी बताती हैं कि पहले अंगूठा न लगने पर यह सहूलियत थी कि आधार कार्ड लेकर राशन दे देते थे। लेकिन अब नहीं देते।

कोटेदार कहता है कि अब वो सुविधा खत्म हो गयी है। सरकार ही नहीं दे रही तो वो कैसे दे। बता दें कि अंगूठा न लगने पर आधार कार्ड के ज़रिए पोर्टबिलिटी से राशन वितरण की सुविधा महीने में एक बार देने का प्रावधान रहा है। गुलाब देवी कृषि मज़दूर रही हैं। वो अक्सर बीमार रहती हैं। शरीर में अब उतना दम नहीं है। पर गुज़ारा करने के लिए गांव के संपन्न लोगों का छोटा-मोटा काम कर लेती हैं। जैसे चकली पर किसी का दाल पीस दिया, कटाई के सीजन में गोर्रा बना दिया, बैठने के लिए मोड़ा बना दिया, चावल गेहूं धो, बीन, पछोर दिया। 

ग़ुलाब देबी

अंगूठा न लगने पर क्या वाकई कोई विकल्प नहीं है आपके पास कि आप किसी ग़रीब ज़रूरतमंद बूढ़ी महिला को राशन दे सकें? पूछने पर दो गांवों का कोटा चलाने वाले कोटेदार लालजी कहते हैं कि “नहीं है विकल्प। दो साल पहले तक था विकल्प। महीने के आखिरी तीन-चार दिनों में आधारकार्ड से दे देते थे। लेकिन दो साल से सरकार ने यह विकल्प भी खत्म कर दिया है।”

कोटेदार लालजी अपनी मानवीय भावनाओं का इज़हार करते हुए कहते हैं कि “हमें भी बुरा लगता है जब किसी ज़रूरतमंद या बूढ़े व्यक्ति को राशन नहीं दे पाते। लेकिन क्या करें हमें भी हिसाब देना होता है।” वो बताते हैं कि ‘महीने में 600 के क़रीब लोग अंगूठा लगाते हैं। तीन-चार प्रतिशत लोगों का अंगूठा नहीं लगता है।

शिवराजपुर गांव की उन्नी देवी के हाथों में घट्टे पड़े हुए हैं। वो हथौड़े से गिट्टी फोड़ने का काम करती हैं। गिट्टी फोड़ने से उनके हाथ के अंगूठे घिस गये हैं। इस कारण उन्हें राशन नहीं मिल पाता है। ई-पास मशीन उनका अंगूठा नहीं स्वीकार करती है। इसी तरह लोहारी का पुश्तैनी काम करने वाले गिरधरपुर गांव के शिवपूजन बताते हैं कि घन चलाने और लोहा-लक्कड़ का काम करने के चलते अक्सर उनका अंगूठा नहीं लगता।

शिवपूजन

पैंत्तीस साल की कोमल हाउस वाइफ हैं। वो केवल घरेलू कामकाज करती हैं। बावजूद इसके वह पिछले दो दिनों से ई-पास मशीन पर अंगूठा लगाने के लिए आ रही हैं लेकिन मशीन पर उनके दोनों हाथों का अंगूठा और अंगुलियां नहीं लग रही हैं। तीसरे दिन वो फिर पहुंचीं तो पता चला कि नेटवर्क ही नहीं चल रहा है। कोमल कोई ऐसा काम नहीं करती कि यह दलील दी जाये कि उनका थम्ब इंप्रेशन मिट गया है। यानि अंगूठा न लगने के कई कारण हैं।

फ़जिलापुर गांव के निवासी 76 साल के मुकुंद लाल भारतीया बूढ़े हो चले हैं। आजीवन राजमिस्त्री का काम किया। अब बच्चों से अलग रहते हैं। अंत्योदय कार्डधारक हैं लेकिन बुढ़ापे के चलते अंगूठा नहीं लगता है।

संतलाल राजगीरी का काम करते हैं। अक्सर सीमेंट बालू मिलाने, ढ़ोने, थमाने के चलते उनके हाथों की दशा बद से बदतर हो जाती है। ऐसे में उन्हें भी घंटों लाइन में लगने के बावजूद राशन नहीं मिल पाता क्योंकि मशीन पर अंगूठा ही नहीं लगता है। 

संतलाल

एनएसओ के आंकडों के मुताबिक साल 2021 तक देश में बजुर्गों की संख्या 14 करोड़ है। कुछ सरकारी पेंशनभोगी और उच्च वर्ग को छोड़ भी दें तो 80 प्रतिशत बुजुर्ग निम्न वर्ग या हाशिये के समाज के हैं। इनमें से कइयों को वृद्धा पेंशन भी नहीं मिलती है। ई-पास मशीन पर अंगूठा लगने की अनिवार्यता ने बुजुर्गों को खाद्य सुरक्षा की गांरटी से वंचित कर दिया है। एक अनुमान के मुताबिक लगभग 80-90 प्रतिशत बुजुर्गों का अंगूठा ईपीओएस (इलेक्ट्रॉनिक प्वाइंट ऑफ सेल) मशीन नहीं डिटेक्ट कर रही है। राशन के लिए घंटों लाइन में लगने के बाद जब नबंर आता है और आखिर में अंगूठा नहीं लगता तो अपनी बेबसी पर गुस्सा आता है।

वंचित समाज से होने के चलते इन बुजुर्गों के पास कोई संचित सम्पत्ति नहीं होती। न ही ये कोई शारीरिक श्रम कर पाने की हालत में होते हैं। कम आय और बेरोज़गार होने के चलते अक्सर वंचित समाज के परिवारों में बेटों के बीच झगड़ा होता है कि बुजुर्ग मां-बाप को कौन रखेगा। आखिर में बुजुर्ग सब बच्चों से अलग होकर अकेले ही रहने, बनाने-खाने को अभिशप्त हो जाते हैं। ऐसे में ‘तकनीकि’ ने उन्हें उनके खाद्य सुरक्षा अधिकार से वंचित कर दिया है।

एनएफएसए के तहत राशन कार्ड ज़ारी किए जाते हैं। आर्थिक रूप से कमज़ोर, बेरोज़गार, महिला और बुजुर्ग अंत्योदय कार्ड पाने के लिए पात्र होते हैं। इस कार्ड पर 35 किलो अनाज (15 किलो गेहूं और 10 किलो चावल) प्रतिमाह प्रति परिवार 3 रुपये/किलो चावल और 2 रुपये/किलो गेहूं दिया जाता है। जबकि अन्नपूर्णा राशन कार्ड केवल ग़रीब और 65 साल के ऊपर के बुजुर्ग को ज़ारी किया जाता है। इस कार्ड पर 10 किलो राशन प्रतिमाह दिया जाता है। अंत्योदय कार्ड ग़रीबी रेखा के नीचे के लोगों के लिए, अन्नपूर्णा 65 वर्ष की आयु के ऊपर के बुजुर्गों के लिए है।  

ईपीओएस मशीन

सामाजिक कार्यकर्ता धर्मेंद्र यादव बताते हैं कि कई बार अंगूठा लग भी जाता है तो गांव का आदमी नहीं समझ पाता कि लगा कि नहीं लगा। ऐसे में कोटेदार उनका हक़ हड़प जाता है। बुजुर्ग उनका सॉफ्ट टारगेट बन जाते हैं। विशेषकर बीपीएल, अंत्योदय कार्ड धारक क्योंकि इऩ कार्ड पर ज़्यादा राशन मिलता है।

धर्मेंद्र दावा करते हैं कि कई बार कोटेदार कहता है कि राशन आया ही नहीं। जब एक महीने में दो बार राशन मिलता था तब अक्सर एक बार का राशन कोटेदार ग़ायब कर देता। उनकी बात की पुष्टि मेजा में एक कोटेदार के ख़िलाफ़ हुई एक कार्रवाई से भी होती है। मेजा तहसील के चौकठा तेवरियान के कोटेदार के ख़िलाफ़ आपूर्ति अधीक्षक ने एफआईआर दर्ज़ करवाई है।

दरअसल वितरण में गड़बड़ी के चलते पकरी सेवार गांव के कोटेदार को निलंबित कर दिया गया था और गांव के ग्रामीणों को चौकठा तेवरियान गांव के कोटेदार के साथ जोड़ दिया गया था। लेकिन पकरी सेवार गांव के एक भी ग्रामीण को कोटेदार ने अनाज नहीं दिया। जांच के बाद पाया गया कि कोटेदार ने 177.64 क्विंटल चावल और 34.50 क्विटंल गेहूं, 24 किलो चीनी की चोर-बाज़ारी की है। यह तो एक नज़ीर है। सरकारी राशन कोटा हासिल करने के लिए बहुत जुगाड़ और पैसे निवेश किये जाते हैं, इससे पता चलता है कि कोटेदार कैसे और कितनी अनियमितता बरतते हैं।  

(प्रयागराज से सुशील मानव की रिपोर्ट)

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