काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) स्थित चिकित्सा विज्ञान संस्थान के सर सुंदरलाल अस्पताल में एक चिकित्सक तेजी से बढ़ रहे हृदय रोगियों को बचाने के लिए अपनी जिंदगी को दांव पर लगाकर अकेले लड़ाई लड़ रहा है। प्रोफेसर ओमशंकर, पूर्वांचल में हर कोई जानता है नाम इनका। इन दिनों वो आमरण अनशन पर हैं। वे हृदय रोगियों की जिंदगी बचाने के लिए कुल 86 बेड की डिमांड कर रहे हैं। मौजूदा समय में बीएचयू में हृदय रोगियों के लिए सिर्फ 45 बेड हैं। इन रोगियों के सस्ते इलाज के लिए प्रो. ओमशंकर सुपरस्पेशियलिटी ब्लॉक में 41 और बेड की डिमांड कर रहे हैं, जो उनके विभाग के मरीजों के लिए बनाए गए थे। आरोप है कि कुलपति एस के जैन की शह पर सर सुंदरलाल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक प्रो.के के गुप्ता ने इसे सर्जिकल ओंकोलॉजी, कैंसर के सर्जिकल उपचार केंद्र को दे दिया है। बनारस में कैंसर के मरीजों के लिए पहले से ही दो अस्पताल मौजूद हैं।
बीएचयू के कुलपति एस के जैन और बीजेपी सरकार इनकी डिमांड पूरी करने के लिए तैयार नहीं है। जानते हैं क्यों? दरअसल, महामारी के तत्काल बाद हृदय रोग विभाग के प्रोफेसर ओमशंकर ने कोविशील्ड बनाने वाली उस दवा कंपनी की पोल खोलनी शुरू कर दी थी जिसने टीका सप्लाई का ठेका पाने के बदले में भारतीय जनता पार्टी को चुनाव में करीब 52 करोड़ का चंदा दिया था। यही नहीं, प्रो.ओमशंकर ने मेडिकल की पढ़ाई करने वाले अपने स्टूडेंट्स के जरिये कोविशील्ड और कोवैक्सीन के प्रभाव पर रिसर्च शुरू करा दिया था। देश में जब चुनावी चंदे के मामले में कोविशील्ड बनाने वाली कंपनी घिरी तो प्रो.ओमशंकर केंद्र सरकार की बखिया उधेड़नी शुरू कर दी। साथ ही यह भी बताना शुरू कर दिया कि इन दिनों चलते-फिरते, नाचते-गाते और जिम करते जिन लोगों की मौतें हो रही हैं उनका किलर कोई और नहीं, कोविड का वो टीका ही है।

बीएचयू के सरसुंदर लाल अस्पताल में डा.ओमशंकर हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष हैं। वो पूर्वांचल के इकलौते ऐसे डॉक्टर हैं जो हर तरह की दिल की बीमारी के इलाज की काबिलियत रखते हैं। बीएचयू के सरसुंदर लाल अस्पताल को एम्स का दर्जा दिलाने के लिए वो तीन मर्तबा अनशन कर चुके हैं। चौथी दफा, हृदय रोगियों के लिए बनाए गए बेड को दिलाने और बीएचयू के बेईमान अफसरों के खिलाफ जांच व कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। डॉक्टर ओमशंकर के विभाग में सभी आवश्यक और अत्याधुनिक उपकरण हैं, लेकिन बेड नहीं होने की वजह से अब तक करीब 33 हजार मरीजों को भर्ती नहीं कर सके। पता नहीं, कितनों की जान बची और कितनों को अपनी जिंदगी बचाने के लिए घर-मकान गिरवी रखना पड़ा।
बीजेपी की मुश्किल यह भी है कि कोरोना के टीके को लेकर कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय ने कुछ दिन पहले ही सरकार को घेरा था। मीडिया को बुलाकर उन्होंने कार्डियक अरेस्ट से आए दिन हो रही मौतों के लिए बीजेपी सरकार को जिम्मेदार बताया था। इस बीच यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष विकास सिंह ने अपने अधिवक्ता गोपाल कृष्ण के जरिए कोरोना वैक्सीन के साइड इफेक्ट को लेकर अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट/अपर सिविल जज (सीडी प्रथम) की अदालत में एक परिवाद दाखिल किया है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सीरम इंस्टीट्यूट कंपनी, उसके चेयरमैन, सीईओ, एस्ट्राजेन कंपनी और उसके चेयरमैन समेत 28 लोगों को प्रतिवादी बनाया गया है। कोर्ट में यह प्रार्थना-पत्र मानव अधिकार अधिनियम 1993 के तहत दिया गया है।
11 मई से अनशन पर ओमशंकर
प्रोफेसर ओमशंकर बीती 11 मई से सरसुंदर लाल अस्पताल परिसर स्थित हृदय रोग विभाग के कक्ष संख्या 14 में आमरण अनशन कर रहे है। साथ ही वहां मरीजों का इलाज भी कर रहे हैं। उनका मानना है कि रिसर्च से साफ हो चुका है कि कोरोना के दौरान लगाए गए टीकों के चलते दिल के मरीजों में इजाफा हुआ है। दिल की बीमारी के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। रिसर्च से पता चला है कि कोविशील्ड और कोवैक्सीन का टीका लगवाने वालों पर इसका घातक असर हो रहा है। कोविशील्ड को लेकर विवाद पहले से ही चल रहा है कि इसे लगाने से कुछ मरीजों में थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम यानी टीटीएस हो सकता है। इस बीमारी से शरीर में खून के थक्के जम जाते हैं और प्लेटलेट्स की संख्या गिर जाती है। स्ट्रोक और हार्ट बीट थमने जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।
भारत में बनने वाली पहली कोरोना वैक्सीन कोविशील्ड है। इसे पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ने बनाया है, जिसका फॉर्मूला ब्रिटिश फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका से लिया गया था। एस्ट्राजेनेका ने अब ब्रिटिश अदालत में माना कि उनकी वैक्सीन के गंभीर साइड इफेक्ट्स हैं। प्रोफेसर ओमशंकर कहते हैं, “कोविड की तरह ही नए दौर का कार्डियक अरेस्ट लोगों की जान ले रहा है। मांसपेशियों की ब्लॉकेज के चलते जब हार्ट ख़ून को पंप करना बंद कर देता है तब कार्डियक अरेस्ट होता है। पहले सीने में दर्द, घबराहट और पसीना आने वाले मरीजों में कार्डियक अरेस्ट के लक्षण उभरने लगते थे। मैं तभी से कोविशील्ड वैक्सीन लगाए जाने का विरोध कर रहा हूं, जब अखबारों में मोदी सरकार की ओर से बड़े-बड़े इश्तिहार छपवाए जा रहे थे। हमने इस वैक्सीन का एक डोज भी नहीं लिया था। मैंने पहले ही बता दिया था कि यह वैक्सीन सुरक्षित नहीं है। इंसान के शरीर पर इसका काफी बुरा असर पड़ रहा है। भारत में 67.18 फीसदी लोगों ने कोरोना वैक्सीन की कंप्लीट डोज लगवा रखी है। ऐसे लोगों का जीवन खतरे में है।”

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने कोविशील्ड के बाद कोवैक्सीन पर रिसर्च के बाद इससे साइड इफेक्ट्स का दावा किया है। इकोनॉमिक टाइम्स ने साइंस जर्नल स्प्रिंगरलिंक में प्रकाशित एक रिसर्च के हवाले से कहा है कि बीएचयू की स्टडी में हिस्सा लेने वाले लगभग एक तिहाई लोगों में कोवैक्सीन के साइड इफेक्ट्स देखे गए हैं। इन लोगों में सांस संबंधी इन्फेक्शन, ब्लड क्लॉटिंग और स्किन से जुड़ी बीमारियां देखी गईं। शोधकर्ताओं ने पाया कि टीनएजर्स, खास तौर पर किशोरियों और किसी भी एलर्जी का सामना कर रहे लोगों को कोवैक्सीन से खतरा है। हालांकि कुछ दिन पहले कोवैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक ने कहा था कि उनकी बनाई हुई वैक्सीन सुरक्षित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कोवैक्सीन के दो डोज लगवाए थे।
बीएचयू की स्टडीः वैक्सीन का असर घातक
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, “कोवैक्सीन पर शोध करने वाले शंख शुभ्रा चक्रवर्ती कहते हैं, “हमने उन लोगों का डेटा कलेक्ट किया, जिन्हें वैक्सीन लगे एक साल हो गया था। कोवैक्सीन लगवाने वाले कुल 1,024 लोगों का हमने अध्ययन किया, जिनमें 635 किशोर और 291 वयस्क थे। इनमें 304 (47.9 फीसदी) किशोरों और 124 (42.6 फीसदी) वयस्कों में सांस संबंधी इन्फेक्शन की जानकारी दी। इन लोगों में सर्दी, खांसी जैसी समस्याएं हैं। अध्ययन के दौरान यह भी जानकारी मिली कि टीनएजर्स में स्किन से जुड़ी बीमारियां (10.5 फीसदी), नर्वस सिस्टम से जुड़े डिसऑर्डर (4.7 फीसदी) और जनरल डिसऑर्डर (10.2 फीसदी) पाई गईं। वयस्कों में जनरल डिसऑर्डर (8.9 फीसदी), मांसपेशियों और हड्डियों से जुड़े डिसऑर्डर (5.8 फीसदी और नर्वस सिस्टम से जुड़े डिसऑर्डर (5.5 फीसदी) मामले सामने आए हैं।”
कोवैक्सीन के साइड इफेक्ट्स पर हुए अध्ययन के मुताबिक 4.6 फीसदी किशोरियों में मासिक धर्म संबंधी अनियमितताएं सामने आई हैं। अध्ययन में शामिल किशोरियों की आंखों से जुड़ी असामान्यताएं 2.7 फीसदी और हाइपोथायरायडिज्म 0.6 फीसदी भी देखा गया। वहीं, 0.3 फीसदी में स्ट्रोक और 0.1 फीसदी प्रतिभागियों में गुलियन बेरी सिंड्रोम (जीबीएस) की पहचान भी हुई है। दरअसल, गुलियन बेरी सिंड्रोम ऐसी बीमारी है जो शरीर के बड़े हिस्से को हौले-हौले धीरे-धीरे लकवे के रोगियों की तरह कर देती है। यह एक रेयर न्यूरोलॉजिकल बीमारी है।
बीएचयू के अध्ययन में यह भी कहा गया कि जिन टीनएजर्स और महिला वयस्कों को पहले से कोई एलर्जी थी और जिन्हें वैक्सीनेशन के बाद टाइफाइड हुआ, उन्हें खतरा ज्यादा था। भारत बायोटेक ने दावा किया था कि कोवैक्सीन के चलते किसी बीमारी का केस सामने नहीं आया। दो मई 2024 को कंपनी ने कहा था कि कोवैक्सीन बनाने से लगाने तक लगातार इसकी सेफ्टी मॉनिटरिंग की गई थी, जिसकी रिपोर्ट में कोवैक्सीन खरी उतरी थी। इस वैक्सीन का बेहतरीन सेफ्टी रिकॉर्ड सामने आया है। ब्लड क्लॉटिंग, थ्रॉम्बोसाइटोपीनिया, पेरिकार्डिटिस, मायोकार्डिटिस जैसी किसी बीमारी के मरीज चिह्नित नहीं हुए हैं। कंपनी ने यह भी कहा था कि सुरक्षा हमारी प्राथमिकताएं हैं। हम सभी दवाएं मरीजों की जिंदगी की हिफाजत के लिए बनाते हैं।
कोरोना वैक्सीन की कंपनियां झूठी
बीएचयू के हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष प्रो.ओमशंकर दवा कंपनियों के दावों को झूठ का पुलिंदा बताते हैं। वह कहते हैं, “कोरोना वैक्सीन लेने वाले मरीजों के खून में थक्का जमने के केस बढ़ने लगे हैं। कई रोगियों के ब्रेन से खून का संचार नहीं हो पाने की शिकायत है। इस वजह से लोग थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (टीटीएस) की जद में आ गए। शुरुआती रिसर्च में यह बात सामने आई है कि वैक्सीन की वजह से दिल की नसों में कहीं न कहीं स्वेलिंग हो रही है, जिससे ब्लड क्लॉटिंग हो रही है। वैक्सीन ले चुके लोगों के दिल में कब क्लॉटिंग शुरू हो जाए, कहा नहीं जा सकता। इस संकट को खत्म करने के लिए सरकार को ठोस इंतजाम करने होंगे। रिसर्च से पता चला है कि ज्यादा मेहनत का काम करने पर हार्ट फेल हो जा रहा। वैक्सीन लेने के बाद से ही हार्ट अटैक के मामले तेजी से बढ़े हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि अभी तक भारत में कोविड की वैक्सीन पर विस्तार से स्टडी हुई ही नहीं।”
प्रो.ओमशंकर यह भी कहते हैं, “भारत में किसी वैक्सीन को तभी मंज़ूरी मिलती है, जब तथ्यों के आधार पर ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया (डीसीजीआई) ये फ़ैसला करता है कि वैक्सीन इस्तेमाल के लिए सुरक्षित और असरदार है। इसी तरह दूसरे देशों में भी ऐसे नियामक होते हैं जो वैक्सीन के इस्तेमाल को मंज़ूरी देते हैं। मंज़ूरी के बाद भी वैक्सीन के असर पर नज़र रखी जाती है, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि आगे इसका कोई दुष्प्रभाव या दीर्घकालिक जोखिम नहीं है। फाइज़र-बायोएनटेक की वैक्सीन (और मॉडर्ना) इम्यून रिस्पॉन्स के लिए कुछ आनुवंशिक कोड का इस्तेमाल करती है और इसे mRNA वैक्सीन कहा जाता है। ये मानव कोशिकाओं में बदलाव नहीं करता है, बल्कि शरीर को कोविड के ख़िलाफ़ इम्यूनिटी बनाने का निर्देश देता है। ऑक्सफ़र्ड-एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन में एक ऐसे वायरस का उपयोग किया जाता है, जिससे कोई नुक़सान नहीं होता और जो कोविड वायरस की तरह ही दिखता है। वैक्सीन में कई बार एल्युमिनियम जैसे अन्य तत्व होते हैं, जो वैक्सीन को स्थिर या अधिक प्रभावी बनाते हैं।”
खतरे में हैं तमाम जिंदगियां
हृदय रोग विशेषज्ञ के मुताबिक, “कोविशील्ड वैक्सीन कोविड-19 का फैलाव रोकने में कितनी कारगर रही, इसका कोई प्रामाणिक साक्ष्य मौजूद नहीं है। जबकि कोविशील्ड और कोवैक्सीन के साइड इफेक्ट से होने वाली मौतों ने हर किसी को चिंता में डाल दिया है। जब कोविशील्ड वैक्सीन आई थी तभी मैंने विरोध किया था। सोशल मीडिया और ओपीडी में मरीजों को लगातार सलाह देता रहा कि वो वैक्सीन न लगवाएं। खुद में सुरक्षित रहें और इम्यूनिटी बेहतर रखें। तब बीएचयू के तमाम डॉक्टर्स ने मेरे खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी थी। उस समय हमें कोई पागल करार दे रहा था तो कोई हमें नेता। कुछ ने तो हमें देशद्रोही तक बना दिया था। जनता पर इंजेक्शन थोपा जाना संगठित अपराध है, जिसमें चुनावी चंदा लेकर वैक्सीन लगाने की अनुमति देने वाले नेता और दवा कंपनियों के लोग शामिल हैं। कार्डियक अरेस्ट से होने वाली मौतों का गंभीरता से पोस्टमॉर्टम होना चाहिए और मौत की वजहों का साइंटिफिक साक्ष्य जुटाया जाना चाहिए। जब तक यह मर्ज पकड़ में नहीं आएगा, तब तक यह समस्या बनी रहेगी।”
प्रो. ओमशंकर ने साल 2019 वाराणसी में एम्स और स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार में शामिल करने को लेकर भी आमरण अनशन किया था। आज दस साल बीत गए लेकिन काशीवासियों को न तो एम्स मिला और न ही देशवासियों को स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार। मोदी सरकार के विकास की परिभाषा ‘ट्रिलियन इकोनॉमी’ और कुछ गिने चुने पूंजीपतियों के विकास तक ही सीमित दिखती है, जबकि इसे इस देश के सभी नागरिकों के प्रति व्यक्ति सालाना में बढ़ोतरी द्वारा नापा जाना चाहिए।
सरकार को अपने असंतुलित विकास के संकुचित पूंजीवादी विकास मॉडल को त्यागकर, शिक्षा और स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार वाले सर्वांगीण विकास के मॉडल को अपनाना चाहिए। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना का मूल मकसद शिक्षा द्वारा गरीबी मिटाने को मिटाना था। सरकार के विकास मॉडल में दो और बड़ी खामियां देखने को मिली- पहला है देश, संस्थान और अधिकारियों में बेतहाशा बढ़ता भ्रष्टाचार और दूसरा है देश, संस्थान और अधिकारियों में बढ़ता प्रशासनिक अराजकता जिससे यह लोकतंत्र रोज कमजोर होता जा रहा है।
प्रो.ओमशंकर कहते हैं कि “भारत में जितनी तेजी से आबादी बढ़ रही है, उससे तेज रफ्तार से हृदय रोगी बढ़ रहे हैं। मौजूदा समय में हृदय रोग अब किलर नंबर-1 बन गया है। भारत में कोरोना के दौरान दो सालों में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 5 लाख से ज़्यादा लोगों की मौतें हुईं। इस महामारी से दुनिया भर में जब 65 लाख लोगों की जानें गईं तो भूचाल आ गया, लेकिन भारत में हर साल 60 से 65 लाख लोग हृदय रोग से मर रहे हैं, जिसकी न कहीं चर्चा हो रही है, न ही कोई चिंतित नजर आ रहा है।”
“आंकड़ों को देखें तो भारत में कोरोना के मुकाबले हृदय रोगों से मरने वालों की तादाद बीस गुना ज्यादा है। हृदय रोग से जान गंवाने वालों में आधे से अधिक लोग 50 साल से कम उम्र के होते हैं। हार्ट अटैक से पीड़ित लोगों में एक तिहाई आबादी ऐसी है जिनकी उम्र 40 साल से कम है। एक दशक पहले बीएचयू की ओपीडी में रोजाना सिर्फ 50 मरीज आते थे और इस समय 350 मरीज आ रहे हैं। हृदय रोग विभाग के लिए पहले से आवंटित 45 बेड को घटाकर 41 करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। यह स्थिति तब है जब दिल की बीमारी खौफनाक ढंग से अपना शिकंजा कसती जा रही है।”
मोदी के खिलाफ परिवाद दाखिल
बनारस में कोरोना महामारी के समय लगाई गई वैक्सीन से हो रहे साइड इफेक्ट को लेकर अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट/अपर सिविल जज (सीडी प्रथम) की अदालत में एक परिवाद दाखिल किया गया है, जिसमें पीएम मोदी और उन सभी दवा कंपनियों को प्रतिवादी बनाया गया है जिनके टीके लोगों को लगाए गए थे। अदालत ने अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (एमपी-एमएलए) की कोर्ट रिक्त होने के वजह से इसे प्रकीर्ण वाद के रूप में दर्ज करने का आदेश देते सुनवाई की तिथि 23 मई तय की है। यह वाद यूथ कांग्रेस के जिलाध्यक्ष विकास सिंह ने अपने अधिवक्ता गोपाल कृष्ण द्वारा दर्ज कराया है।
प्रार्थना-पत्र में आरोप लगाया गया है कि, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सीरम इंस्टीट्यूट कंपनी, उसके चेयरमैन, सीईओ, एस्ट्राजेन कंपनी, और उसके चेयरमैन समेत सभी 28 विपक्षीगणों ने आपस में मिलीभगत करते हुए बिना किसी परीक्षण के कोविशील्ड का वैक्सीन लगवा दिया। वैक्सिनेशन के लिए कोरोना का डर दिखाया गया और जबरिया टीके लगवाए गए। साथ ही मुनाफा लूटा गया। वैक्सीन बनाने वाली कंपनी ने प्रधानमंत्री को उस लाभ में हिस्सेदार बनाया और बीजेपी को चुनावी चंदा के रूप में एक कंपनी ने बड़ी धनराशि दी। इसके बाद कंपनी को कोविशील्ड का टीका लगाने की अनुमति दी गई।”

परिवाद में यह भी आरोप है लगाया गया है कि विपक्षीगण जानते थे कि इस दवा का साइड इफेक्ट्स होगा। इसके बावजूद जानबूझकर लोगों को मौत के मुंह में धकेला गया। परिवाद में कोर्ट से मांग की गई है कि इस मामले की गंभीरता को देखते हुए न्यायहित और लोक हित में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सभी 28 विपक्षीगण को बतौर आरोपी तलब कर उन्हे दंडित किया जाए। यह भी मांग की गई है कि इस मामले में जितने भी लोग कोविड वैक्सीन से प्रभावित हुए हैं और इस दवा के साइड इफेक्ट से पीड़ित है सभी को क्षतिपूर्ति दिलाई जाए।
जान-बूझकर किया जा रहा परेशान
कोविड वैक्सीन के खिलाफ मुखर आवाज उठाने की वजह से हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर ओमशंकर की डिमांड पूरी नहीं की जा रही है। बीएचयू का सरसुंदर लाल चिकित्सालय, पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र का सबसे बड़ा अस्पताल है और यहां सिर्फ पूर्वांचल ही नहीं, बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड के मरीज भी इलाज कराने आते हैं। बीजेपी सरकार ने कुछ बरस पहले ही इसे एम्स का दर्जा दिया था। प्रोफेसर ओमशंकर ऐसे शख्स हैं जो काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान को एम्स का दर्जा देने के लिए तीन मर्तबा आमरण अनशन कर चुके हैं। चौथी मर्तबा सुपरस्पेशियलिटी ब्लॉक में मरीजों के लिए विस्तर आवंटित करने की मांग को लेकर वह आमरण अनशन पर बैठे हैं। अपने अनूठे आंदोलन और ईमानदारी की अलख जगाने की वजह से उन्हें 14 महीने तक अवैतनिक निलंबन का दंश भी झेलना पड़ा था।
वरिष्ठ पत्रकार राजीव सिंह कहते हैं, “”बीएचयू से लौटने वाले तमाम मरीजों की मौतें हो चुकी है। यह लड़ाई मेरी निजी नहीं, बल्कि जनता और उनके स्वास्थ्य के अधिकार की है। मरीज इलाज के लिए जब बीएचयू में आता है, उसे बेड नहीं मिलता है तो लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। यह बात हर किसी को समझनी चाहिए कि यह मेरी नहीं, जनहित की लड़ाई है। लेकिन सरकार और यहां का चिकित्सकीय प्रशासन इस कदर असंवेदनशील है कि इलाज के नाम पर दुर्व्यवस्था, भ्रष्टाचार, बेईमानी की तरफ से आंखें बंद किए हुए हैं। ऊंचे ओहदों पर बैठे बीएचयू के कई जिम्मेदार लोग करप्शन में शामिल हैं। जरूरत इस बात की है कि सर सुंदर लाल अस्पताल की नए सिरे से ओवरहालिंग की जाए और बेईमानों को बाहर का रास्ता दिखाया जाए, ताकि महामना की बगिया को लूटने वाले भ्रष्टाचारी बेनकाब हो सकें।”
राजीव यह भी कहते हैं, “प्रो.ओमशंकर की मुहिम का नतीजा था कि बीएचयू में चिकित्सकीय सुविधाओं के विस्तार के लिए सरकार ने एक हजार करोड़ रुपये की मंजूरी दी। मरीजों के लिए जब सुविधाओं के विस्तार देने का वक्त आया तो आरोप है कि हृदय रोग विभाग की अनदेखी की जाने लगी। हृदय रोग विभाग के 41 बेडों पर चिकित्सा अधीक्षक प्रो. केके गुप्ता लंबे समय तक डिजिटल लाक लगाए रहे। नतीजा अनगिनत मरीजों की जानें चली गईं। जिन हृदय रोगियों को लौटाया गया वो किस हाल में रहे होंगे समझा जा सकता है? वो या तो मौत के मुंह में समा गए होंगे (जिनकी जानें बचाई जा सकती थीं) अथवा अपना इलाज निजी अस्पतालों में कराने के बाद कंगाली व भुखमरी के दौर से गुजर रहे होंगे।”
“बीएचयू के प्रोफेसर ओमशंकर का आमरण अनशन पर अब बड़ा मुद्दा बनाता जा रहा है। मुद्दा यह है कि बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल के हृदय रोग विभाग में पर्याप्त विस्तर नहीं है। नतीजा, रोगियों को बैरंग लौटाना पड़ रहा है। हृदय विभाग के लिए आवंटित बेड को अंको सर्जरी विभाग को दे दिया गया, जिसके लिए बनारस में पहले से ही दो संस्थान मौजूद हैं। आमरण अनशन पर बैठने वाले प्रो. ओमशंकर, बीएचयू के हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष हैं। प्रो.ओमशंकर लगातार यह बात दोहरा रहे हैं कि महामारी के दौर में कोविशील्ड इंजेक्शन लगने के बाद जिस रफ्तार से दिल के मरीज बढ़ रहे हैं, उस हिसाब से अस्पताल में विस्तर नहीं हैं। हम चाहकर भी मरीजों का इलाज नहीं कर पा रहे हैं और गंभीर मरीजों को बैरंग वापस लौटना पड़ रहा है।”
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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