मुंबई। महाराष्ट्र में कल चुनाव प्रचार का आखिरी दिन था। लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में सबसे बड़ा जो मुद्दा उठाया वह धारावी का था। उन्होंने कहा कि मोदी जी जो ‘एक हैं तो सेफ हैं’ का नारा दिया है वह कुछ और नहीं बल्कि अडानी को सेफ करने की बात कर रहे हैं। और यह काम उन्होंने धारावी को अडानी को सौंपने के जरिये कर दिया है। इस कड़ी में उनकी मानें तो अडानी को एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा आय होने जा रही है। मौजूदा महाराष्ट्र चुनाव की यही सच्चाई है। धारावी का पुनर्विकास सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है।
इन पंक्तियों के लेखक ने भी अपने चुनावी दौरे के दौरान धारावी इलाके का दौरा किया। तकरीबन 650 एकड़ में फैली धारावी कभी मिट्टी हुआ करती थी लेकिन अब उसकी जमीन हीरा हो गयी है। और सोने के भाव बिकने वाली मुंबई की जमीनों में यह अव्वल मानी जा रही है। लिहाजा इस पर सभी की निगाह लगी हुई है। अभी तक फिल्मों के नजरिये से अगर आप धारावी को देख रहे हैं तो आप कुछ भूल कर रहे हैं। जिसमें धारावी एक स्लम इलाका हुआ करती थी जिसमें खुले नाले बजबजा रहे होते थे और पतली गलियां और छत के नाम पर पालीथिन और तिरपालों का बाग सजा हुआ करता था। जहां माफिया सरदारों और अपराधियों के गैंग पनपते और पला करते थे। लेकिन अब यह इतिहास का विषय हो गया है।

धारावी को अब उसकी अपनी छोटी-छोटी फैक्टरियों और कारखानों के लिए जाना जाता है। हर दूसरे घर में वहां या तो कोई कारखाना चलता है या फिर किसी सामान की दुकान है। पता चला मालिक पिता ने नीचे दुकान कर रखी है और ऊपर के तल्लों को अपने अलग-अलग बेटों को परिवारों के साथ रहने के लिए दे रखा है। और अब पालिथिन और तिरपालें गुजरे जमाने की बात हो गयी हैं उनका स्थान ईंट और पत्थरों ने ले लिया है। यानि पक्के मकान हैं और उन पर पक्का छत है। यह बदलाव कुछ उसी तरह का है जैसे किसी जमाने में गांवों में दलित बस्तियों या फिर गरीबों के घर छप्पर और खपरैल के हुआ करते थे लेकिन समय बदलने के साथ अब वे भी पक्के मकानों में तब्दील हो गए हैं।
शायद ही अपवाद स्वरूप कुछ घर पुराने बचे हों जिनमें यह बदलाव न आ पाया हो। कमोबेश उसी तर्ज पर एशिया की इस सबसे बड़ी कथित झुग्गी में भी बदलाव आ गया है। अब वह उस रूप में कोई झुग्गी नहीं रही बल्कि पूरा इलाका औद्योगिक क्षेत्र और पक्के मकानों वाले रिहाइशी इलाके में बदल गया है। चूंकि यह इलाका मुंबई के बिल्कुल बीचों-बीच स्थित है इसलिए यहां की जमीनों की कीमत आसमान छूने लगी है। और इसको किसी न किसी तरीके से हड़पने की होड़ शुरू हो गयी है।
यह बात सही है कि मुंबई के इस इलाके के विकास की जरूरत है और उस पर सरकार को फिर से काम करना चाहिए। वैसे तो इस योजना पर काम 2004 में ही शुरू हो गया था। लेकिन ठोस रूप से उस प्रोजेक्ट पर अमल उस समय लाया गया जब सूबे में महाविकास अघाड़ी की सरकार बनी। इस तरह से इस काम को 2018 में शुरू कर दिया गया। धारावी पुनर्विकास योजना (डीआरपी) के तहत उसमें टेंडर भी निकाला गया था और दुबई आधारित सेकलिंक नाम की एक कंपनी ने उसकी बोली जीती थी। जिसमें सात हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा वह खर्च करने के लिए तैयार थी और यह सारा काम सरकार के निर्देशों और निगरानी में होना तय हुआ था।

उसमें किसी भी तरह का अनावश्यक निजी लाभ नहीं होता। लेकिन सूबे में महायुति की नई सरकार के गठन के साथ ही पूरा खेल बदल गया। धारावी में अचानक उद्योगपति अडानी प्रकट हो गए। और सरकार ने पूरे प्रोजेक्ट को ही बदलने का ऐलान कर दिया। उसने 2022 में एक नयी निविदा जारी की और उसकी नीलामी में दुबई की कंपनी को हिस्सा ही नहीं लेने दिया गया। कुछ छोटी-मोटी कंपनियां ज़रूर आयीं लेकिन वह अडानी का मुकाबला नहीं कर सकीं। इस तरह से धारावी के प्रोजेक्ट को पहले से भी कम तकरीबन 5 हजार करोड़ की कीमत पर अडानी के हवाले कर दिया गया।
और फिर स्लम रिहैबिलिटेशन प्रोजेक्ट (एसआरए) के तहत धारावी पुनर्विकास प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड (डीआरपीपीएल) नाम की कंपनी बनायी गयी। जिसमें अडानी का 80 फीसदी हिस्सा है जबकि सरकार की हिस्सेदारी महज 20 फीसदी है। इस तरह से पूरा प्रोजेक्ट अडानी के हवाले कर दिया गया। इलाके में तकरीबन 10 लाख लोग रहते हैं। दिलचस्प बात यह है कि इसके पुनर्विकास के नाम पर अडानी की इस कंपनी को मुलुंड समेत तीन और स्थानों पर 1800 एकड़ से ऊपर जमीन दे दी गयी है। इस तरह से धारावी के पुनर्विकास के नाम पर अडानी को तकरीबन 2400 एकड़ जमीन मुफ्त में मिल रही है।
कहने को तो इन सारी जमीनों पर बिल्डिंग बनेगी और तमाम किस्म की सुविधाएं होंगी जिसमें अडानी धारावी के लोगों को बसाएंगे। लेकिन खेल भी यहीं शुरू हो गया है। अडानी की कोशिश यह है कि सबसे पहले धारावी के वैध लोगों की संख्या को कम किया जाए। इस तरह से सर्वे के दौरान बड़े हिस्से को अवैध घोषित किए जाने की शुरुआत हो चुकी है। लेकिन इसका विरोध भी शुरू हो गया है। ‘अडानी हटाओ, धारावी बचाओ’ के नाम से लोग गोलबंद होना शुरू हो गए हैं।

आंदोलन की नेता साम्या करोड़े ने ‘जनचौक’ को बताया कि 2004 में बना प्रोजेक्ट 2022 तक कागजों पर ही रहा। पहले इसमें तीन क्लस्टर थे अब 5 क्लस्टर हो गए हैं। उन्होंने बताया कि 2018 में दुबई की सेकलिंक कंपनी ने इस नीलामी को जीता था। लेकिन रेलवे की एक हिस्से में जमीन थी। जिसके चलते विवाद हो गया क्योंकि केंद्र सरकार वह जमीन देने के लिए तैयार ही नहीं हुई। साम्या का कहना था कि सेकलिंक से भी आधी कीमत पर प्रोजेक्ट को अडानी को दिया जाना एक तरह की मैचफिक्सिंग है। जो बीजेपी सरकार और अडानी के बीच की गयी है।
‘अडानी हटाओ, धारावी बचाओ’ आंदोलन के नेताओं का कहना है कि कट ऑफ डेट कोई नहीं होनी चाहिए। मौजूदा समय तक रहने वाले लोगों को इसके दायरे में शामिल किया जाना चाहिए। लेकिन अडानी की कंपनी ने यह बात नहीं मानी है और उसने 1 जनवरी, 2000 को कट ऑफ डेट रखा है। यानि 1 जनवरी, 2000 के पहले तक रहने वाले लोग ही वैध निवासी माने जाएंगे और वही दूसरी जगहों पर फ्लैट पाने के हकदार होंगे।

साम्या का कहना है कि अडानी की इस व्यवस्था के चलते धारावी के 80 फीसदी लोग अवैध हो जाएंगे और केवल 20 फीसदी लोग ही उसकी वैधता के दायरे में आ पाएंगे। 2000 से 2024 एक लंबा समय होता है। इस नजरिये से बड़ी संख्या में अपात्र लोग निकलेंगे। लिहाजा अडानी ने उन्हें फ्लैट का मालिकाना हक देने की जगह बाहर किराए पर रखे जाने की बात कही है। और इसी के नाम पर अडानी को बाहर तकरीबन 1500 एकड़ जमीन दी जा रही है। इसमें मुलुंड डंपिंग ग्राउंड, कुरला की मदर डेरी की जगह और वडाला का सैंटफेंस को सरकार ने चुना है।
और अभी चुनाव से पहले केंद्र सरकार ने 270 एकड़ जमीन महाराष्ट्र सरकार को दे दी है। इस तरह से पूरी धारावी के लोगों को निकाल कर दूसरे इलाकों में बसाने की योजना है। और धारावी की सबसे कीमती जमीन पर कब्जा करने की तैयारी है। साम्या ने इसे पूरी मुंबई को अडानी के हवाले करने का एक स्कैम करार दिया।
उन्होंने बताया कि धारावी से जुड़े इलाके में कॉरपोरेट आफिसेज हैं जिसे बीकेसी के नाम से जाना जाता है। उनका कहना था कि धारावी को बीकेसी का विस्तारित हिस्सा बनाने की तैयारी चल रही है। जिसके तहत यहां के लोगों को निकाल कर बाहर फेंक दिया जाएगा।
इसके साथ ही एक और बड़ा कारनामा इसके जरिये संचालित किया जा रहा है। जिसमें अडानी को मुफ्त में बड़ा मुनाफा दिलाने की तैयारी है। सरकार ने एक और जीओ यानि गवर्नमेंट आर्डर निकाला है जिसके मुताबिक ट्रांसफर ऑफ डेवलपमेंट्स राइट्स (टीडीआर) के तहत मुंबई के बिल्डरों को अपने पचास फीसदी मैटेरियल अडानी की कंपनी से उसके मुंहमांगे रेट पर खरीदने होंगे।

इस कड़ी में साम्या का कहना था कि पूरे प्रोजेक्ट को रद्द कर नये सिरे से नीलामी होनी चाहिए। और उसमें सारी चीजों को पारदर्शी रखा जाना चाहिए। जो धारावी के डेवलपमेंट के एक पूरे मास्टर प्लान के जरिये सामने आना चाहिए। जिसके नक्शे में घर से लेकर दुकान और स्कूल से लेकर अस्पताल तक सब का भौगोलिक चिन्हीकरण हो। यहां तक कि मंदिर और मस्जिद की जगहें भी तय होनी चाहिए। और इस पूरे काम को किसी सरकारी कंपनी द्वारा संचालित किया जाना चाहिए किसी निजी कंपनी की कोई जरूरत नहीं है। धारावी के लोगों का भी यही कहना है कि उन्हें उसी जगह पर घर के बदले घर और दुकान के बदले दुकान दिया जाए और उससे इतर वो किसी भी दूसरी शर्त के लिए तैयार नहीं होंगे।
दिलचस्प बात यह है कि अडानी की कंपनी के कर्मचारी ही सर्वे का काम कर रहे हैं जिसके चलते इलाके में जबर्दस्त रोष है। लोगों को उन पर कई भरोसा नहीं है। इसीलिए ‘अडानी हटाओ, धारावी बचाओ’ आंदोलन के नेताओं ने उनका बहिष्कार करने का ऐलान किया है। बावजूद इसके उनके कर्मचारियों का सर्वे अभियान जारी है। धारावी के लोग सर्वे चाहते हैं लेकिन वह चाहते हैं कि सर्वे सरकारी संस्था करे।
स्थानीय निवासी इरफान ने बताया कि अडानी की कंपनी के लोग अपनी पहचान छुपा कर सर्वे कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि एक सर्वे करने वाले शख्स से जब उन्होंने पूछा कि कहां से हैं तो उसने बताया कि डीआरपी यानि सरकारी कंपनी से। लेकिन जब उन्होंने उसका कार्ड देखा तो वह अडानी की कंपनी का कर्मचारी निकला।

इरफान ने बताया कि इस तरह से कई जगहों से ऐसे लोगों को भगाया गया। लेकिन ऐसा होता है कि अगले दिन फिर वह चोरी से सर्वे करके चले जाते हैं। उनका आरोप है कि वो जनता को अलग-अलग तरह की लालच देकर भ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि इसको लेकर जनता अब काफी असमंजस की स्थिति में आ गयी है। ज्यादातर लोग विरोध में हैं लेकिन सर्वे में नाम न शामिल होने की स्थिति में भविष्य की तमाम आशंकाओं को लेकर भी भयभीत हैं।
हालांकि इलाके में कुछ बहुमंजिला इमारतें भी दिखीं। जब उनके बारे में पूछा गया तो बताया गया कि ये एसआरए योजना के तहत बनी हैं। और इसमें बाकायदा लोगों ने सरकार की निगरानी में बिल्डरों के साथ अपनी शर्तों के मुताबिक समझौता किया है।
इलाके में न तो ढंग का कोई स्कूल है और न ही अस्पताल। इरफान ने बताया कि यहां से कुछ दूर पर स्थित एक स्कूल में यहां के लोगों के नाम पर बच्चों का प्रवेश होता है जिसका लाभ दूसरे इलाके के लोग लेते हैं। 10 लाख की आबादी है लेकिन एक भी ढंग का अस्पताल नहीं है।

इसको लेकर बाशिंदों में तीखी प्रतिक्रिया है। इकरार खान का कहना था कि बाहर तो किसी भी हालत में नहीं जाएंगे। यहां देंगे तो लेने के लिए तैयार हैं लेकिन बाहर जाने का कोई सवाल ही नहीं है। 25 साल के फैजान खान का कहना था कि मेरा बचपना यहां गुजरा। खेले-कूदे और यहीं बड़े हुए ऐसे में हम धारावी कैसे छोड़ सकते हैं? भूख हड़ताल के लिए तैयार हैं लेकिन धारावी को किसी भी हालत में नहीं छोड़ेंगे। डंपिंग इलाके और वह भी कचरा-पट्टी के बीच घर देंगे। वहां जाने का सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने इसे पैसे और राजनीति का खेल करार दिया।
पास खड़े सात से ज्यादा लोगों ने एक साथ ‘अडानी हटाओ, धारावी बचाओ’ का नारा दिया और सभी ने एक साथ बोला कि पूरी धारावी का यही नारा है।
एक सज्जन ने कहा कि हम जहां हैं वहीं मकान मिलना चाहिए। नहीं तो सीधा पैसा दे दो या फिर जहर दे दो। पास बैठे उनके भतीजे ने सवालिया अंदाज में पूछा कि अगर कोई हीरे की जगह मिट्टी दे तो क्या आप उसे ले लेंगे? धारावी अभी तक स्लम में आती थी अब यह हीरा बन गयी है। और इसके साथ ही अब सब की नजर धारावी पर गड़ गयी है। पहले तो धारावी को कोई पूछता नहीं था।
उन्होंने कहा कि अभी यह साफ नहीं हो रहा है कि ये पैसा देंगे कि जमीन देंगे या फिर कहीं और भेजेंगे। ऐसी हालत में अनिश्चितता और बढ़ गयी है। दूसरी जगह तो कोई जाने वाला नहीं। जहर खा लेंगे लेकिन नहीं जाएंगे। यहां सन 1975 से लोग रह रहे हैं। सभी ने एक सुर में कहा कि चुनाव में जनता इसका पूरा जवाब देगी।
अच्छी बात यह है कि विपक्षी दलों ने अपने-अपने घोषणापत्रों में अडानी के साथ धारावी संबंधी हुए इस करार को रद्द करने का वादा किया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और शिवसेना (यूबीटी) नेता उद्धव ठाकरे इसको लेकर बेहद मुखर हैं।
(मुंबई से रितिक कुमार के साथ महेंद्र मिश्र की रिपोर्ट।)
+ There are no comments
Add yours