पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट।

वकील के हाईकोर्ट जज़ की शपथ के रास्ते में आ गया एक ‘डिस्को डांस’

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस कृष्ण मुरारी की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम ने जज के रूप में नियुक्ति के लिए पिछले साल वकील प्रताप सिंह के नाम की सिफारिश हाईकोर्ट की बेंच के लिए उच्चतम न्यायालय को भेजी थी। लेकिन मोदी सरकार ने उच्चतम न्यायालय को सिफारिश वापस भेज दी है और कहा है कि प्रताप सिंह पंजाब और हरियाणा के जज बनने लायक नहीं हैं।

दरअसल प्रताप सिंह का एक पुराना वीडियो व्हाट्सएप ग्रुप पर वायरल हो गया है जिसमें 1980 के दशक में बॉलीवुड के नंबर ‘मैं एक डिस्को डांसर हूं’ गाने की धुन पर झूमते अधिवक्ता प्रताप सिंह (केंद्र) दिखाई दे रहे थे, जिसके हाथ में ग्लास था। वकील का कहना है कि वह वीडियो में नहीं है। अब ऐसा प्रतीत होता है कि मोदी सरकार ने भी वीडियो देखा है, और उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम को सिफारिश वापस लौटा दी है।

‘द प्रिंट’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने प्रताप सिंह की फ़ाइल लौटाते हुए कहा है कि प्रताप सिंह के पास उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने के लिए आवश्यक साख नहीं है। केंद्र सरकार के नोट के साथ वह वीडियो भी संदर्भित किया गया है जिसमें हाथ में ग्लास लेकर प्रताप सिंह नाच रहे हैं। साथ ही यह तथ्य भी है कि छात्र जीवन में उनके खिलाफ कुछ आपराधिक मामले दर्ज थे। हालांकि सिंह को बाद में उन मामलों में बरी कर दिया गया था।

पिछले साल तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश कृष्ण मुरारी की अध्यक्षता वाली पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट कॉलेजियम ने वकील प्रताप सिंह के नाम की सिफारिश हाईकोर्ट की बेंच के लिए उच्चतम न्यायालय को भेजी  थी।

प्रताप सिंह का कहना है कि इस तरह के एक वीडियो को प्रसारित किया जा रहा था हालाँकि उन्होंने उसमें ख़ुद के होने की बात से इंकार किया है। उन्होंने कहा कि जो वीडियो उनके नाम के साथ फ्लैश किया जा रहा है, वह केवल उनकी छवि को धूमिल करने के लिए किया जा रहा है। केवल निशाना बनाने के लिए। यह वीडियो उनका नहीं है ।

प्रताप सिंह बार काउंसिल ऑफ पंजाब एंड हरियाणा के पूर्व अध्यक्ष हैं और वर्तमान में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्य हैं, जो देश में वकीलों की वैधानिक नियामक और अनुशासनात्मक निकाय है।बताया जा रहा है कि कथित वीडियो बार काउंसिल ऑफ पंजाब एंड हरियाणा के ऑडिटोरियम में आयोजित एक कार्यक्रम का है, और वकील मंच पर नाचते हुए दिखाई दे रहे हैं।

अब नामों पर चर्चा करने के लिए उच्चतम न्यायालय का कॉलेजियम सिंह के मामले पर पुनर्विचार करेगा और चाहे तो सिफारिश निरस्त कर दे  या फिर से सरकार के पास भेज दे। यह भी पता चला है कि अकेला सिंह का नाम ही नहीं है जो सरकार को अस्वीकार्य है। केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय ने राजेश भारद्वाज, पंकज जैन और हेमंत बस्सी के नामों को मंजूरी दे दी है, लेकिन अधिवक्ता संत पाल सिंह सिद्धू के नाम को लाल झंडी दिखा दी है, जिसकी सिफारिश पिछले साल पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के कॉलेजियम ने की थी। सरकार का कहना है कि सिद्धू हाईकोर्ट बेंच में नियुक्ति के पात्र नहीं हैं।

इस बीच, नरेंद्र मोदी सरकार ने उच्चतम न्यायालय  कॉलेजियम को सूचित किया है कि वह वकील कमल सहगल की उम्मीदवारी पर फिर से विचार करना चाहती है, जिनका नाम पिछले साल उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम द्वारा सरकार के पास भेजा गया था, लेकिन केंद्र द्वारा इस पर विचार नहीं किया गया था । सहगल उत्तर प्रदेश कैडर के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी नवनीत सहगल के भाई हैं।

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के तत्कालीन चीफ जस्टिस कृष्ण मुरारी की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम ने वर्ष 2011 से 13 के बीच रद्द नामों को फिर से  नियुक्ति के लिए वर्ष 2019 में उच्चतम न्यायालय में भेज दिया था। अब क्या ऐसा सम्भव है की एक उच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा वर्ष 2011 से 2013 के बीच जिन नामों को उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम द्वारा रद्द कर दिया गया हो उन्हीं चार नामों को वर्ष 2019 में संबंधित उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा उच्चतम न्यायालय को भेजा गया और उच्चतम न्यायालय ने उसे मंजूरी देकर नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार के पास भेज दिया।

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के लिए जस गुरुप्रीत सिंह पुरी, सुवीर सहगल, गिरीश अग्निहोत्री, अलका सरीन और कमल सहगल  का नाम भेजा गया था। इनमें से जसगु रुप्रीत सिंह पुरी (जेएस पुरी) का नाम वर्ष 2011 में भी उच्च न्यायालय द्वारा भेजा गया था जिसे उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा रद्द कर दिया गया था। इसी तरह सुवीर सहगल (आत्मज जस्टिस धर्मवीर सहगल) का नाम भी वर्ष 2011 की सूची में था जिसे उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा रद्द कर दिया गया था। इसी तरह वर्ष 2012 में हरियाणा के तत्कालीन एडवोकेट जनरल कमल सहगल और वर्ष 2013 में गिरीश अग्निहोत्री का नाम पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के कॉलेजियम ने भेजा था और उसे  उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा रद्द कर दिया गया था।

इनमें से गुरप्रीत सिंह पुरी के नाम पर उच्चतम न्यायालय की  कॉलोजियम ने 25 जुलाई को मुहर लगाते हुए उनकी हाईकोर्ट जज के तौर पर नियुक्त किए जाने की केंद्र सरकार को सिफारिश भेज दी थी। हालांकि तब उनके साथ ही सुवीर सहगल, गिरीश अग्निहोत्री, अलका सरीन, कमल सहगल की नियुक्ति की सिफारिश भी की गई थी। इनमें से सुवीर सहगल, गिरीश अग्निहोत्री और अलका सरीन की नियुक्ति को राष्ट्रपति ने स्वीकृति दे दी थी जबकि जस गुरप्रीत सिंह पुरी और कमल सहगल के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया गया था।

राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद 24 अक्तूबर को सुवीर सहगल, गिरीश अग्निहोत्री, अलका सरीन पद की शपथ ले चुके हैं। बाद में केंद्र सरकार द्वारा नाम क्लियर करने के बाद 22 नवम्बर  2019 को जस गुरप्रीत सिंह पुरी को हाईकोर्ट के एडिशनल जज के तौर पर शपथ दिलाई गई। केवल कमल सहगल का नाम बचा रह गया था जिस पर अब केंद्र सरकार अपनी मुहर लगाना चाहती है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ क़ानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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शमशाद पठान के फ़ेसबुक वाल से साभार।

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