प्रशांत भूषण ने एक रुपये जुर्माना भरने के साथ दाखिल की पुनर्विचार याचिका

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अदालत की अवमानना मामले में दोषी प्रशांत भूषण ने 1 रुपये का जुर्माना बैंक ड्राफ्ट के रूप में आज भरा। इसके बाद उन्होंने फैसलों को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय  में पुनर्विचार याचिका दाखिल की। उन्होंने एक रुपया जमा कराते हुए उच्चतम न्यायालय के फैसले पर कहा था कि हमने फैसला स्वीकार नहीं किया है। प्रशांत भूषण ने कहा कि जस्टिस अरुण मिश्रा को अवमानना मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए थी, क्योंकि उन्होंने पहले जनहित याचिकाओं को खारिज कर दिया था, जिसमें सहारा डायरी में सामने आए राज नेताओं को कथित भुगतान की याचिका भी शामिल थी।

याचिका में भूषण ने उच्चतम न्यायालय से अपने 14 अगस्त के फैसले पर फिर से विचार करने को कहा है जिसमें उन्हें चीफ जस्टिस एसए बोबडे  और उच्चतम न्यायालय पर ट्वीट करने पर अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया गया था।याचिका में प्रशांत ने पुनर्विचार याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई का भी आग्रह किया है।

प्रशांत ने कहा है कि जस्टिस अरुण मिश्रा को अवमानना मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि उन्होंने पहले जनहित याचिकाओं को खारिज कर दिया था जिसमें सहारा डायरी में सामने आए राजनेताओं को कथित भुगतान की याचिका भी शामिल थी। उन्हें ये उचित आशंका थी कि उनको जस्टिस अरुण मिश्रा से निष्पक्ष सुनवाई नहीं मिलेगी, जिन्होंने दो ट्वीट्स के लिए भूषण को अदालत की अवमानना का दोषी मानने वाली पीठ का नेतृत्व किया था। संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए एक वकील द्वारा अवमानना के लिए उनके खिलाफ दायर याचिका को उन्हें नहीं दिया गया। दरअसल उच्चतम न्यायालय ने वकील द्वारा दाखिल याचिका को स्वत: संज्ञान मुकदमे में बदल दिया था।

प्रशांत भूषण ने उच्चतम न्यायालय में शनिवार को भी एक रिट याचिका दायर की थी।इस याचिका में मांग की गई है कि मूल आपराधिक अवमानना मामलों में सजा के खिलाफ अपील का अधिकार एक बड़ी और अलग पीठ द्वारा सुना जाए। यह याचिका वकील कामिनी जायसवाल के माध्यम से दायर की गई है। इस याचिका में कहा गया है कि अपील का अधिकार संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत इसकी गारंटी भी है। याचिका में कहा गया है कि यह गलत सजा के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करेगा और वास्तव में बचाव के रूप में सत्य के प्रावधान को सक्षम करेगा।

उच्चतम न्यायालय ने 31 अगस्त को अपनी अवमानना के मामले में वकील प्रशांत भूषण को 1 रुपया जुर्माने की सजा दी थी और कहा था कि अगर प्रशांत भूषण यह जुर्माना 15 सितंबर तक जमा नहीं कराएंगे, तो उन्हें 3 महीने के लिए जेल भेजा जाएगा। 3 साल तक वकालत पर भी पाबंदी लग जाएगी। 27 जून और 29 जून को प्रशांत भूषण ने वर्तमान चीफ जस्टिस और 4 पूर्व चीफ जस्टिस पर 2 विवादित ट्वीट किए थे। कोर्ट ने इस पर संज्ञान लेते हुए उनसे जवाब मांगा था। उन्होंने अपने बयान पर सफाई देते हुए जो जवाब दाखिल किया, उसमें जजों पर और ज्यादा इल्जाम लगा दिए। कोर्ट ने इस स्पष्टीकरण को अस्वीकार करते हुए 14 अगस्त को उन्हें अवमानना का दोषी करार दिया। कोर्ट ने उन्हें बिना शर्त माफी मांगने के लिए समय दिया, लेकिन भूषण ने इससे मना कर दिया।

जुर्माना अदा करने के लिए उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री में प्रवेश करने से पहले, भूषण ने अदालत परिसर के बाहर मीडिया को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि जुर्माना भरने के लिए उन्हें देश के कई कोनों से योगदान मिला, और उन लोगों को कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए ऐसे योगदान से “सत्य निधि” बनाया जाएगा, जिन्हें असहमतिपूर्ण राय व्यक्त करने के लिए राज्य द्वारा जेल में डाला गया हो। उन्होंने कहा कि सरकार असंतोष के स्वर को शांत करने के लिए सभी साधनों का उपयोग कर रही है। ‘सत्य निधि’ का उपयोग उन व्यक्तियों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के लिए किया जाएगा जो राज्य के उत्पीड़न का सामना करते हैं। उन्होंने कल रात दिल्ली पुलिस द्वारा जेएनयू छात्र उमर खालिद की गिरफ्तारी पर भी चिंता व्यक्त की।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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