आन्दोलन के बाद कार्ड धारकों को मिला राशन, लेकिन जिनके पास राशन कार्ड नहीं है उनका क्या?

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पिछले 16 अक्टूबर को राशन वितरण में हो रही गड़बड़ी को लेकर लातेहार के गारू प्रखण्ड के ग्रामीणों ने प्रखण्ड कार्यालय का घेराव किया था। वहीं गढवा जिला के चिनिया प्रखण्ड के मसरा गाँव के कोरवा आदिम जनजाति सामुदाय के लोगों को पिछले जुलाई माह से लेकर अक्टूबर माह तक कुल चार माह से राशन नहीं दिया गया था और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत मिलने वाले राशन भी छ:माह से नहीं दिया जा रहा था। जिसे लेकर ग्रामीणों ने आन्दोलन किया, तब डीलर द्वारा दो महीने का राशन देने का प्रस्ताव किया गया, जिसे लाभुक सिरे से खारिज करते हुए पूरे चार माह का पूरा राशन लेने पर अड़े रहे और कोरवा जनजाति के ये लोग साव महाजन को महुआ देकर और उधार लेकर अपना और अपने बच्चों का पेट पालते रहे।

अतः दोनों खबरों को जनचौक ने प्रमुखता से प्रकाशित किया। जिसका असर यह रहा कि 20 अक्टूबर को गढ़वा के चिनिया के लाभुकों को बुलाकर डीलर ने पूरा बकाया राशन दिया।

लेकिन एक बड़ा सवाल वहीं खड़ा है कि जिनका राशन कार्ड नहीं है उनका क्या होगा।बताते चलें कि गांव में कोरवा आदिम जनजाति के 40 परिवार हैं जिन्हें चार महीने से राशन नहीं मिला था। सभी परिवारों के समक्ष कमोबेश भुखमरी की स्थिति थी। गांव के उक्त परिवारों ने बताया कि पिछले जुलाई से लेकर अब तक उन्हें राशन नहीं मिला और न ही प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना का राशन भी छह महीने से नहीं मिला है।

गांव के बुधन कोरवा, रविंद्र कोरवा, सत्येंद्र कोरवा, मनिया कुमारी, मोहरमानी कुंवर, सरस्वती देवी, कुंती देवी कमोदा देवी, प्रेमनी देवी, बसंती देवी, बचिया कुंवर, भुईनी देवी, समतिया देवी, सुषमा देवी सहित कई अन्य राशनकार्ड धारियों ने बताया कि राशन नहीं मिलने से हम भुखमरी का सामना कर रहे थे। घर में कभी खाना बनता है तो कभी नहीं बनता।


अतः राशन और कहीं रोजगार न मिलने के कारण महाजन से उधार लेकर काम चला रहे थे। महाजन से उधार लेने पर 10 रुपये में एक किलोग्राम महुआ देने का सौदा होता था। उसके अलावा महीने में 100 रुपये पर 10 रुपये ब्याज पर कर्ज लेकर घर चलाने को मजबूर थे। अधिसंख्य परिवार महाजन का कर्जदार हो गया है। साथ ही लगातार कर्ज में आदिम जनजाति परिवार डूब रहा है। सरिता देवी कहती है कि कर्ज लेकर परिवार चलाना पड़ रहा था। दिन भर में एक बार ही खाना बनता था। कभी – कभी शाम में बगैर खाए भी सो जाते थे। उसने बताया कि अबकी साल मकई और धान भी नहीं हुआ कि घर का खर्च चल सके। प्रेमनी देवी कहती है कि कंद मूल खाकर हम लोग कभी कभार रह लेते थे। ब्याज पर पैसा लेकर महाजन से अपना खर्च चला रहे थे। यह रहा राशन कार्ड धारी लोगों का हाल।

जबकि बहुतों के पास राशन कार्ड भी नहीं है जिनकी स्थिति को स्वतः समझा जा सकता है। गांव की विनीता का राशनकार्ड नहीं है वे बताती है कि प्रायः घर में नमक भात से ही गुजारा होता है। उसने कहा कि दो चार महीने में कभी-कभार दाल-भात व सब्जी घर में बन पाती है। वहीं उर्मिला देवी बताती है कि घर में राशन नहीं है। जिसके कारण चूल्हा कभी कभी नहीं जलता है। भूख लगने पर जब बच्चे जिद करने लग जाते हैं तो कभी कभी बगल से खाना मांगकर देती हैं, कभी कभी उनके द्वारा इन्कार कर दिए जाने पर बच्चे भूखे रह जाते हैं। उसने बताया मेरा राशन कार्ड भी नहीं है और न ही कोई रोजगार ही है। यह स्थिति कमोबेश हर घर की है। गांव के लोग काम की तलाश में पलायन कर गए हैं, अधिसंख्य घरों में सिर्फ महिलाएं और बच्चे हैं। आदिम जनजाति परिवार की सरिता देवी, अनीता देवी, आनदनी अनीता देवी सहित कई अन्य ग्रामीणों ने कहा कि हम लोग आदिम जनजाति परिवार से हैं। आज तक राशन कार्ड ही नहीं बना। घर की आर्थिक स्थिति बदतर है। अबकी साल धान, मक्का की खेती भी नहीं हुआ है।

इसे जनविरोधी व्यवस्था ही कहा जा सकता है कि आजतक इनका राशन कार्ड में नाम नहीं जुड़ा है। खाद्य सुरक्षा कानून का पूरा हनन हो रहा है। दूसरी तरफ आज भी मनरेगा में काम का मांग नहीं किया जाता है। लोगों को जानकारी का अभाव  किसी दूसरे का जाबकार्ड में काम करवाया जाता है और मजदूरों से पोस मशीन ( POS एक कम्प्यूटराइज्ड मशीन है जिसका उपयोग कैश रजिस्टर के स्थान पर किया जाता है। POS मशीन डेबिट/क्रेडिट कार्ड को पढ़ना, खरीदी की पुष्टि करना और ग्राहक को सामान की रसीद देने का काम करती है। मगर, यह काम व्यापार तथा लोकेशन के हिसाब से परिवर्तित हो सकता है। इस पोस मशीन का फुल फॉर्म Point of Sale होता है, में बिना जानकारी दिए अंगूठा लगाकर पैसे का निकासी किया जाता है।

वहीं जिनके पास ग्रीन राशन कार्ड है, उन्हें ग्रीन राशन कार्ड में राशन नहीं आने की बात कहकर राशन डीलरों द्वारा राशन नहीं दिया जाता है, जबकि मशीन में अंगूठा लगवा लिया जाता है।
(विशद कुमार स्वतंत्र पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं।)

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