यूपी: 181 वीमेन हेल्पलाइन बंद करने पर हाईकोर्ट ने मांगा सरकार से जवाब

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लखनऊ। प्रदेश में महिलाओं पर बढ़ रही हिंसा और हमलों की परिस्थितियों में महिलाओं की सुरक्षा के लिए पिछले चार वर्षों से चलाए जा रहे 181 वीमेन हेल्पलाइन कार्यक्रम को सरकार द्वारा बंद करने के खिलाफ दायर यूपी वर्कर्स फ्रंट की जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। मामला हाईकोर्ट की लखनऊ खण्डपीठ मे हैं। कोर्ट न दोनों सरकारों को जवाब के लिए चार हफ्ते का समय दिया है।

लखनऊ खण्डपीठ के न्यायमूर्ति रंजन रे और सौरभ लवानिया की पीठ ने आज यह आदेश बहस सुनने के बाद दिया है। वर्कर्स फ्रंट की तरफ से अधिवक्ता नितिन मिश्रा और विजय कुमार द्विवेदी ने बहस की। जनहित याचिका के बारे में जानकारी देते हुए वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष व याचिकाकर्ता दिनकर कपूर ने प्रेस को बताया कि उत्तर प्रदेश महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा के मामले में देश में शीर्ष स्थान पर है।

हाथरस, बंदायू, नोएडा, लखीमपुर खीरी से लेकर मुख्यमंत्री के गृह जनपद गोरखपुर तक में महिलाओं के साथ बर्बर हिंसा, बलात्कार, छेड़खानी और वीभत्स हत्या की घटनाएं हो रही हैं। इन हिंसा की घटनाओं में पुलिस और प्रशासन हमलावरों के पक्ष में खड़ा दिखता है, यहां तक कि पीड़िता की ही चरित्र हत्या करने में लगा रहता है। इन परिस्थितियों में भी सरकार ने निर्भया कांड के बाद महिला सुरक्षा के लिए बनी जस्टिस वर्मा कमेटी की संस्तुतियों के आधार पर पूरे देश में शुरू की गई सार्वभौमिक ‘181 वीमेन हेल्पलाइन’ को बंद कर उसे पुलिस की सामान्य हेल्पलाइन 112 में समाहित कर दिया था।

सरकार ने इसमें काम करने वाली महिलाओं को काम से निकाल दिया और उनके वेतन तक का भुगतान नहीं किया था। याचिका में कहा गया है कि जमीनी स्तर पर महिलाओं को रेस्क्यू वैन व एक काल के जरिए महिलाओं द्वारा तत्काल मदद और स्वास्थ्य, सुरक्षा, संरक्षण आदि सुविधाएं एकीकृत रूप से देने वाले 181 वीमेन हेल्पलाइन कार्यक्रम को सरकार ने विधि के विरूद्ध व मनमर्जीपूर्ण ढंग से बंद कर दिया है। प्रदेश सरकार ने भारत सरकार के बनाए यूनिवर्सिलाइजेशन आफ वीमेन हेल्पलाइन की गाइडलाइन्स और अपनी सरकार के ही द्वारा निर्मित प्रोटोकाल का सरासर उल्लंघन किया है।

इस गाइड लाइन व प्रोटोकाल में साफ लिखा है कि बलात्कार, घरेलू हिंसा, यौन हिंसा और सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से पीड़ित महिला पुलिस के साथ सहज नहीं महसूस करती है जिसके कारण उसके लिए इस कार्यक्रम को संचालित किया जा रहा है। लेकिन ‘नम्बर एक-लाभ अनेक’ वाले महिलाओं द्वारा संचालित इस कार्यक्रम को बंद कर सरकार ने पुनः पीड़ित महिलाओं को पुलिस के पास ही भेज दिया।

इसका परिणाम है कि पीड़ित महिला की प्रदेश में थानों में एफआईआर तक दर्ज नहीं हो पा रही है और उनके पास राहत के लिए अन्य कोई संस्था नहीं है। इससे उनके मानवाधिकारों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है। याचिका में यह भी कहा गया कि एक तरफ महिलाओं को वास्तविक लाभ देने वाली संस्थाओं को बंद किया जा रहा है वहीं सरकार महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान व आत्मनिर्भरता के लिए ‘मिशन शक्ति अभियान’ के नाम पर करोड़ों रुपया प्रचार में बहा रही है। ऐसी स्थिति में प्रदेश महिलाओं की सुरक्षा के लिए 181 वीमेन हेल्पलाइन कार्यक्रम को पूरी क्षमता से चलाने की अपील न्यायालय में की गई है जिसे स्वीकार कर न्यायालय ने सरकार से जवाब मांगा है।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)
 

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