Friday, March 29, 2024

राजा रंजीत सिंह के बाद अब पाकिस्तान में राजा दाहिर की प्रतिमा लगाने की उठी माँग

अहमदाबाद। पूरा विश्व कोरोना की आपदा में जकड़ा हुआ है। कोरोना से न तो भारत बचा है न ही पाकिस्तान। लॉक डाउन के चलते जनता के पास पूरा-पूरा समय है। लोग सोशल मीडिया के माध्यम से अपने अपने विचारों का अदान प्रदान कर रहे हैं। पाकिस्तान से एक ऐसी खबर आ रही है जिसने भारत के लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया है। पाकिस्तान के ट्विटर पर #RajaDahirIsOurNationalHero ट्रेंड करने के साथ ही यह बहस छिड़ गई है कि पाकिस्तान का हीरो मोहम्मद बिन क़ासिम कैसे हो सकता है जो अरब आक्रांता था। जबकि राजा दाहिर धरती पुत्र है। यह बहस उस पाकिस्तान में हो रही है। जिसकी मिसाइलों का नाम गज़नी, गौरी, अब्दाली है।

बात दसवें रमज़ान की है। सिंध प्रांत के कुछ लिबरल पाकिस्तानियों ने राजा दाहिर की पुण्य तिथि मनाई। दाहिर को धरती पुत्र और इंसाफपरस्त राजा बताया। साथ ही सरकार से मांग की कि जिस प्रकार से पंजाब में पंजाबी राजा रंजीत सिंह की पीतल की मूर्ति लाहौर में लगाई गई है। उसी प्रकार से सिंध में राजा दाहिर के सम्मान में भी मूर्ति लगाई जाए। आठवीं सदी के दसवें रमज़ान के दिन अरब जनरल मोहम्मद बिन कासिम ने राजा दाहिर को पराजित कर उसकी हत्या कर दी थी। राजा दाहिर सिंध के अंतिम ब्राह्मण राजा थे। 

पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हमीदमीर ने अपने ट्विटर एकाउंट से उर्दू भाषा में लिखते हैं, ” मोहम्मद बिन क़ासिम की बर्रे सगीर आमद से 78 क़ब्ल यहाँ इस्लाम आ चुका था। वह इस्लाम फैलाने नहीं आये थे। सिंध पर हमले के वक़्त उनकी उम्र 18 की नहीं 28 साल थी। मुल्तान की फतेह के बाद खलीफा वलीद बिन अब्दुल मलिक का इंतकाल हो गया था। और नये खलीफा सुलेमान बिन अब्दुल मलिक ने उनकी गिरफ्तारी का हुक्म दे दिया उनकी मौत तशद्दुद् से हुई।” मीर अपने अगले ट्वीट में लिखते हैं, “मोहम्मद बिन क़ासिम ने राजा दाहिर को शिकस्त दी और आपका हीरो बन गया। लेकिन इस हीरो की मौत किसी हिंदू के हाथों नहीं हुई बल्कि मुसलमानों के हाथों हुई।” वसीम पालीजो अपने ट्विटर पर अंग्रेज़ी में लिखते हैं, “सिंध सरकार को भानभोर किले पर अपने हीरो राजा दाहिर को सम्मान देने के लिए उनकी मूर्ति खड़ी करनी चाहिए।”

ऐसा नहीं है कि सभी लोग राजा दाहिर के समर्थन में लिख रहे हैं। बड़ी संख्या में दाहिर को हीरो कहे जाने का विरोध भी हो रहा है। यह तबका मोहम्मद बिन कासिम को हीरो मानता है और राजा दाहिर को नकारा, जातिवादी राजा मानता है। सुल्तान अहमद अली ने एक वीडियो ट्विटर तथा यू ट्यूब पर अपलोड कर राजा दाहिर को राष्ट्रीय हीरो कहे जाने का विरोध किया है। अली के अनुसार ” राजा दाहिर वर्ण व्यवस्था का हामी था जो ऊंच-नीच में यकीन रखता था। राजा दाहिर वर्ण व्यवस्था का पोषक था। जबकि मोहम्मद बिन क़ासिम इस ऊंच-नीच की व्यवस्था को समाप्त करने का हीरो है।

राजा दाहिर सती के नाम पर विधवाओं को जिंदा जलाकर मारने वाले का नाम है राजा दाहिर। जबकि बिन क़ासिम ने पहली बार इस प्रथा का विरोध किया बल्कि इस प्रथा को सिंध से समाप्त किया।” अली अपनी बात को साबित करने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना की दिव्यराष्ट्र का भी सहारा लेते हुए कहते है, “हिंदू मुस्लिम दो अलग कौमें हैं एक कौम का हीरो दूसरी कौम का हीरो नहीं हो सकता। फिर हम राजा दाहिर को अपना हीरो कैसे तस्लीम कर सकते हैं। “

कौन है राजा दाहिर सेन

राजा दाहिर और बिन क़ासिम के इतिहास का मुख्य स्रोत चचनामा है। जिसके बारे में माना जाता है कि मुख्तार तकाफी परिवार ने लिखा है। जिसका फ़ारसी भाषा में अनुवाद अली कूफी द्वारा किया गया है। इसी ग्रंथ को भारत के भी अधिकतर इतिहासकार प्रमाणिक मानते हैं। चचनामा के अनुसार राजा दाहिर के पिता का नाम चाच था और वो कश्मीरी ब्राह्मण थे। राजा राय साहसी द्वितीय के शासन काल में चाच राजा साहसी के मुख्य सलाहकार एवं प्रधान मंत्री थे। साहसी के देहांत के बाद उनकी पत्नी रानी सुहानदी से चाच ने प्रेम विवाह कर लिया। राजा के देहांत के बाद जब साहसी के भाई समकालीन चित्तौड़ के राजा महीरथ को भाई के देहांत अथवा प्रेम विवाह का पता चला तो महीरथ अपनी सेना के साथ सिंध पर हमला कर दिया।

इस युद्ध में चाच अपने भाई चंद्र सेन के साथ मिलकर महीरथ को पराजित कर महीरथ सहित 5000 विरोधियों को मौत के घाट उतार दिया। बचे को जेल में डाल दिया। और संपूर्ण सत्ता अपने हाथ में ले ली। चाच ने भाई चंद्र जो भगत भी था, को प्रधान मंत्री बनाया। 632 AD में रायवंश के समापन के साथ ब्राह्मण वंश का आरंभ हुआ। 671AD में चाच का देहांत हुआ तो शासन की बाग डोर भाई चंद्र सेन के हाथ आ गई। आठ वर्ष बाद चंद्र सेन का भी देहांत हो गया। जिसके बाद सत्ता चाच के बेटों ने संभाल ली। चाच वंश का शासन पूर्व में कश्मीर, दक्षिण में सूरत, पश्चिम में मकरान, दिबल (वर्तमान में कराची) और उत्तर में कंधार, फरदान तक फैला था। 

राजा दाहिर का जन्म 663 AD में सिंध के अलोर में हुआ था। पिता का नाम चाच था। माता का नाम सुहानदी था। 679 AD में सिंध की सत्ता दो भागों में बंटी। एक राजधानी ब्रह्मनाबाद और दूसरे की आरोड़ हुई। राजा दाहिर अपना शासन ब्रह्मनाबाद से चलाता था। जबकि उसका भाई राजसेन आरोड़ से। 

चाचनामा के अनुसार राजा दाहिर ने ज्योतिषियों और सलाहकार मंत्रियों के कहने पर अपनी बहन से ही विवाह कर लिया था। दाहिर ज्योतिष में बहुत यकीन रखता था। भाटिया राज के राजा सोहन राय ने राजा दाहिर से उनकी बहन माई रानी का हाथ मांगा तो दाहिर ने पंडितों और ज्योतिषियों से कुंडली देखने को कहा तो ज्योतिषियों ने बताया, ” आपकी बहन से जो शादी करेगा वह आपकी हत्या कर पूरे सिंध का राजा बनेगा।” राजा दाहिर ज्योतिष में यकीन करता था। इसलिए इसका हल निकालने के लिए कहा तो ज्योतिषियों ने राजा को अपनी ही बहन से विवाह की सलाह दे डाली। राजा दाहिर ने अपने सबसे भरोसेमंद मंत्री जिसका नाम बुद्धिमन था, से मशविरा किया तो बुद्धिमन से सलाह दी कि ” यह ज़रूरी नहीं कि विवाह के बाद शारीरिक संबंध बनाए जाएं। केवल विवाह कर रानी बनाकर बहन को महल में ही रख लें। इस प्रकार से राजपाट भी बच जायेगा।” मंत्री की सलाह पर दाहिर ने अपनी सगी बहन से विवाह कर लिया। 

जब विवाह की खबर दाहिर के भाई राजसेन को पता चली तो वह आग बबूला हो उठा और सेना लेकर ब्रह्मनाबाद पहुंचा। लेकिन राजा दाहिर की मजबूत सेना देख समझौते पर राज़ी हो गया। परंतु उसी दरमियान राजसेन बीमार पड़ गया और चार दिन बाद चेचक की बीमारी से उसकी मृत्यु हो गई। अब पूरे सिंध पर राजा दाहिर का शासन था। दाहिर ने राज्य को सनातन हिंदू वैदिक धर्म शासन घोषित कर दिया।

यह वह समय था। जब इस्लामी लश्कर मूसा बिन नसीर की आगवानी में अफ्रीका और तारिक बिन ज़्याद की अगवानी में स्पेन और यूरोप में विजय पताका फहरा रहे थे। भारत के साथ अरबों के व्यापारिक संबंध थे। बहुत से अरब व्यापारी

मल्लापुरम और सरंदीप (श्रीलंका) में आबाद भी हो गए थे। अरब खजूर, अरबी घोड़े भारत लाते और यहाँ से हाथी, रेशमी कपड़े, मसाले अरब ले जाते। 710-11 में सरंदीप से अरब जा रहे व्यापरियों को देबल (कराची) बंदरगाह के आस-पास अरब जहाज़ को लूट लिया। जहाज़ लूटने तथा अरब महिलाओं, बच्चों और पुरुषों को बंदी बनाए जाने की  खबर इराक के गवर्नर हज्जाज़ बिन यूसुफ को मिली तो बिन यूसुफ ने सिंध के राजा दाहिर को पत्र लिख कर लूट का माल और अरब के बंदियों को छुड़वा कर  अरब भेजने तथा लुटेरों को सज़ा देने को कहा। इस पर दाहिर ने जवाबी पत्र में कहा कि समुद्री लुटेरों पर उनका बस नहीं चलता है। इसलिए वह कुछ नहीं कर सकते। (उस समय अरब बहुत ही शक्तिशाली माने जाते थे ऐसे में अरब व्यापारियों के जहाज़ को लूटना एक बड़ी घटना थी।

इतिहास में जहाज़ लूटने पर दो बातें हैं एक जहाज़ को समुद्री लुटेरों ने लूटा था। दूसरा जहाज़ को देबल के गवर्नर ने राजा दाहिर की सहमति से लूटा था। क्योंकि अरब विजय के बाद ब्रह्मनाबाद के कैद खाने से अरब कैदी मिले थे।) राजा दाहिर के जवाबी पत्र से नाराज हज्जाज़ बिन यूसुफ ने बनी उम्मैयद खलीफा वलीद बिन अब्दुल मलिक से अनुमति लेकर अपने भतीजे मोहम्मद बिन क़ासिम को सिपहसालार बनाकर 12000 सिपाहियों के साथ सिंध पर आक्रमण करने भेज दिया। 6000 घुड़ सवार, तीन हजार पैदल और तीन हज़ार ऊंटों पर रसद के साथ सिंध की ओर चल पड़े। राजा दाहिर ने भीम सिंह के साथ 20000 का लश्कर अरबों के मुकाबले में लसबीला की पहाड़ियों में भेजा। भीम सिंह लसबीला के किले पर जो पहाड़ियों के बीच था, अरब हमलावरों का इंतज़ार करने लगा।

बिन कासिम के जासूस ने किले पर भीम सिंह के लश्कर के जमावड़े की खबर दी तो उसने रणनीति बदलते हुए किले से कुछ कोस दूर आराम करने के बाद 500 सिपाहियों के साथ झाड़ियों में छिप गया और बाकी लश्कर को रास्ता बदल कर सिंध की ओर जाने का हुकुम दिया। भीम सिंह को जानकारी मिली कि कासिम के लश्कर ने रास्ता बदल दिया तो 300 सिपाहियों को किले की सुरक्षा में छोड़ कर वह अरब लश्कर के पीछे लग गया। भीम सिंह के सिपाही किले से आगे निकले तो कासिम ने पैदल तीर बाज़ों के साथ लसबीला के किले पर हमला कर दिया।

अरब तीर बाज़ों के आगे भीम सिंह के 300 सैनिक टिक नहीं पाए और बिन कासिम ने किला जीत लिया। किले पर हमले की खबर मिलते ही भीमसिंह अपने सैनिकों के साथ वापस आया तो किले से बिन कासिम के सैनिकों ने भीम सिंह के सैनिकों पर तीर बरसाना शुरू कर दिया। जो अरब सिपाही रास्ता बदलकर सिंध जा रहे थे। लौट कर भीम सिंह की सेना पर टूट पड़े। जिस पहाड़ी में भीम सिंह अरब सैनिकों को घेरना चाहते थे। उसमें खुद ही घिर गए। दोनों के बीच जबरदस्त युद्ध हुआ अंततः बिन कासिम की विजय हुई। लसबीला के बाद कासिम ने देबल का रुख किया।

देबल विजय के बाद ब्रह्मनाबाद और अरोड़ को भी जीत लिया। ब्रह्मनाबाद राजा दाहिर की राजधानी थी। जिसके चलते सबसे मजबूत किला यही था। राजा दाहिर के पास एक लाख की सेना थी। लेकिन बिन कासिम की मदद सिंध के मल्लाह कर रहे थे जो नीची जाति के समझे जाते थे। राजा दाहिर की वर्ण व्यवस्था से नाराज़ थे। इसी प्रकार से लोहाना, जाट, गुज्जर इत्यादि ने बिन कासिम की मदद की थी। 20 जून 712 को दसवां रमज़ान था। इसी दिन अरबों ने राजा दाहिर को पराजित कर बिन क़ासिम ने दाहिर और उसके बेटों को भी क़त्ल कर दिया। इसी के साथ सिंध में 80 साल के ब्राह्मण शासन का अंत हो गया। इतिहासकारों की मानें तो राजा दाहिर के पास भले ही एक लाख से अधिक सेनाएं थी। लेकिन सक्षम नहीं थीं। वह ज्योतिषी और पंडितों पर अधिक भरोसा करता था। लसबीना के बाद ब्रह्मनाबाद में घमासान युद्ध हुआ। जब जंग चल रही थी तो कुछ बौद्ध जो राजा दाहिर से संतुष्ट नहीं थे दाहिर की अंध श्रद्धा के बारे में कासिम को बताए और कहा सामने बने बड़े मंदिर के झंडे को गिरा दो क्योंकि यहाँ के लोगों की श्रद्धा है जब तक मंदिर का यह झंडा लहराता रहेगा उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता।

कासिम ने तुरंत तीर अंदाजों को झंडे का निशाना लगाने को कहा। झंडा गिरते ही दाहिर के सैनिकों ने हार मान ली। दाहिर भी ब्रह्मनाबाद छोड़ आरोड़ भाग गया। लेकिन बिन क़ासिम की फौज उसका पीछा कर आरोड़ पहुँच गयी। वहां का गवर्नर दाहिर का बेटा ही था। इन दोनों का  क़त्ल कर अरबों ने सिंध पर क़ब्ज़ा कर लिया। राजा दाहिर को न्यायप्रिय राजा माना गया है। उसके काल में तीन प्रकार का न्यायालय था। कोलास, सरपनास और गनास। महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई राजा खुद करता था। मोहम्मद बिन क़ासिम को पाकिस्तान में स्कूली किताबों में नेशनल हीरो की तरह पढ़ाया जाता है। और राजा दाहिर भारत और पाकिस्तान दोनों में एक पराजित राजा की तरह इतिहास में जिंदा रखा गया।

यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान में राजा दाहिर के समर्थन में आवाज़ बुलंद हुई हो 2010 में अवामी नेशनल पार्टी के लीडर हाजी अदील ने पाकिस्तान की जमीन की रक्षा करते करते जान देने वाले राजा दाहिर को हीरो का दर्जा देने की मांग की थी। अदील का कहना था, ” मोहम्मद बिन क़ासिम पाकिस्तान का पहला नागरिक कैसे हो सकता है जिसने आठवीं सदी मे पाकिस्तान पर हमला कर तलवार से विजय प्राप्त किया। और तो और पाकिस्तान का जन्म आठवीं सदी में नहीं 1947 में हुआ हो। “

( जनचौक संवाददाता कलीम सिद्दीक़ी की रिपोर्ट।)

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