Friday, April 19, 2024

असमिया लोगों को बीजेपी ग़रीब और पिछड़ों से भी ज्यादा निपट मूर्ख मानती है!

‘गुजरात मॉडल’ का नगाड़ा बजाने के बाद संघ-बीजेपी को ‘डबल इंजन’ का झुनझुना बजाने की जैसी लत लग गयी। इसका ताज़ा और शानदार संस्करण इस बार असम और बंगाल के चुनावों में पेश-ए-नज़र है। वैसे अब देश के ज़्यादातर लोग बीजेपी की आदत, फ़ितरत और चस्कों से परिचित हैं। इसीलिए ये देखना दिलचस्प होगा कि इस बार बंगाल और असम के कितने मतदाता ‘आँख से देखकर मक्खी निगलने’ का रास्ता चुनते हैं! 

5 साल में बाढ़-मुक्त असम!

असम के लिए घोषित दस संकल्पों में से पहला वादा तो कोई माई का लाल निभा ही नहीं सकता। इसके मुताबिक, यदि राज्य में बीजेपी की सत्ता क़ायम रही तो ‘अगले पाँच साल में असम को बाढ़-मुक्त बना दिया जाएगा’। ऐसे संकल्प का सपना सिर्फ़ वही बेच सकते हैं जिनकी ‘मोदी है तो मुमकिन है’ वाले नारे में अगाध निष्ठा और आस्था हो। इसी आस्था का ये चिरपरिचित ‘नैरेटिव’ है कि मोदी का विरोध करना, उनकी बातों-दावों को सच-झूठ के पैमाने पर परखने का मतलब ‘राष्ट्र विरोध’ है। 

यानी, मोदी जी ख़ुद साक्षात राष्ट्र हैं। भारत माता के समतुल्य हैं। उनकी मुख़ालफ़त का सीधा और इकलौता मतलब है ‘राष्ट्रद्रोह’ अर्थात् ऐसा अक्षम्य अपराध जिसकी सज़ा कतई माफ़ नहीं हो सकती। मोदी-विरोध को राष्ट्र-विरोध करार देने वालों में सबसे नया और प्रमुख नाम मेट्रो मैन श्रीधरन का है। इन्हें भी बीजेपी ने केरल विधानसभा चुनाव में ‘राज्य के हर मर्ज़ की इकलौती दवा’ बनाकर पेश किया है। बहरहाल, वापस लौटते हैं असम की ओर।

बेहद कम है असम में ढाल

असम में हर साल ब्रह्मपुत्र से होने वाली तबाही का इतिहास ख़ुद असम वजूद जितना ही पुराना है। ऐसा इसकी भौगोलिक स्थिति की वजह है। तिब्बत के दक्षिणी छोर से निकलने वाली ब्रह्मपुत्र नदी का कैचमेंट एरिया यानी बेसिन या वर्षा जल ग्रहण क्षेत्र 6,51,334 वर्ग किलोमीटर में फैला है। बह्मपुत्र अपने उद्गम से लेकर बंगाल की खाड़ी तक पहुँचने में गंगा के मुक़ाबले क़रीब 400 किलोमीटर ज़्यादा लम्बा सफ़र तय करती है। इसमें चीन और भूटान के अलावा उत्तरपूर्व के सभी राज्यों – अरुणाचल, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, मिज़ोरम, नागालैंड और सिक्किम में बहने वाली दर्ज़नों बड़ी और सैकड़ों छोटी सहायक नदियों का बेशुमार पानी बहता है। 

बारिश में ब्रह्मपुत्र अपार मिट्टी-गाद के साथ असम में आती है। जैसे झेलम की मिट्टी से सदियों में कश्मीर घाटी बनी, जैसे गंगा और इसकी सहायक नदियों की मिट्टी से उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, झारखंड और बंगाल बने, वैसे ही ब्रह्मपुत्र की मिट्टी से ही असम की उपजाऊ ज़मीन का निर्माण हुआ है। असम की ज़मीन में ढाल बेहद कम है, इसीलिए बाढ़ के दिनों में ब्रह्मपुत्र का पानी तकरीबन पूरे असम में ऐसे पसर जाता है कि नदी का दूसरा किनारा दिखायी नहीं देता। बाढ़ में ब्रह्मपुत्र किसी समुद्र जैसी अपार जलाकृति वाला स्वरूप धारण कर लेती है क्योंकि तकरीबन पूरा असम ही ब्रह्मपुत्र का ‘रिवर-बेड’ या नदी क्षेत्र है। 

पूरा असम है ब्रह्मपुत्र का ‘रिवर-बेड’

ब्रह्मपुत्र: कहर है तो लाटरी भी

असम का यही मैदानी भाग बेहद उपजाऊ है। इसीलिए सदियों से यहाँ कृषि आधारित अर्थव्यवस्था और सभ्यता पनपती और उजड़ती रही। असमिया जनजीवन का और संस्कृति का अभिन्न अंग है ब्रह्मपुत्र की बाढ़। इसका कम ढलान वाला ‘रिवर-बेड’ हर साल कहीं हज़ारों हेक्टेयर ज़मीन की कटाई कर लेता है तो कहीं और मनुष्य को नयी और उपजाऊ ज़मीन की सौगात भी देता है। अलबत्ता, नदी के कटान में ज़मीन गँवाने वाले और नयी ज़मीन पाने वाले लोग अलग-अलग होते हैं। इसीलिए किसी के लिए ब्रह्मपुत्र की बाढ़ कहर बनकर टूटती है तो किसी की लाटरी भी लग जाती है। वैसे कटान सभी नदियों का स्थायी स्वभाव है, लेकिन ब्रह्मपुत्र का खेल बड़े पैमाने पर ही होता है।

बाढ़-मुक्त असम का नुस्ख़ा

बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में असम को बाढ़ मुक्त करने के लिए दो नुस्ख़े बताये हैं। पहला, नये जलाशय बनाना और दूसरा, ब्रह्मपुत्र की खुदाई करके उसे गहरा बनाकर उसके पानी को फैलने से रोकना। हालाँकि, भौगोलिक और वैज्ञानिक सच तो ये है कि असम को सालाना बाढ़ से पाँच तो क्या 50 साल में भी सुरक्षित बना पाना असम्भव है। भारत सरकार यदि अपने सारे संसाधन सिर्फ़ ब्रह्मपुत्र के जल-प्रबन्धन पर भी झोंक दे, फिर भी असम को पाँच साल में बाढ़-मुक्त नहीं किया जा सकता।

क्यों झूठा है बीजेपी का संकल्प?

पाँच साल में दुनिया की कोई ताकत इतने सारे विशालकाय जलाशय नहीं बना सकती, जिससे ब्रह्मपुत्र के अथाह पानी को सम्भाला जा सके। इसी तरह, एक साल में ब्रह्मपुत्र को खोदकर उससे जितनी भी मिट्टी निकाली जा सकती है, उससे ज़्यादा अगले साल ब्रह्मपुत्र अपने साथ बहाकर ले आएगी। ज़ाहिर है, नदी की खुदाई का नुस्ख़ा भी कभी कामयाब नहीं हो सकता। लिहाज़ा, बीजेपी पूरी तरह से झूठे सपने बेचकर चुनावी बाज़ी जीतना चाहती है।

पाँच साल असम में टिकाऊ सरकार चलाने के दौरान बीजेपी ने कभी असमिया लोगों को ये नहीं बताया कि अब तक वो कितने फ़ीसदी असम को बाढ़ से मुक्त कर चुकी है? कितना काम अभी बकाया है जिसे पूरा करके चमत्कार दिखाने के लिए वो पाँच साल की मोहलत माँग रही है? क्या बीते पाँच साल में ‘डबल इंजन’ वाली सोनोवाल सरकार से असम धन्य नहीं हो पाया? क्या 2020 में असम के 70 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित नहीं हुए? क्या इस बाढ़ में सौ से ज़्यादा लोगों की मौत नहीं हुई थी? तब असमिया समाज के ‘अच्छे दिन’ कहाँ घास चर रहे थे?

क्या बीजेपी के पास ‘अलादीन का चिराग़’ है?

क्या असमिया लोग इतने नासमझ हैं कि वो मान लेंगे कि इस बार बीजेपी के हाथ ‘अलादीन का चिराग़’ लग गया है? इसीलिए प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, मुख्यमंत्री, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ही नहीं तमाम छोटे-बड़े नेता अपने भाषणों में असम को पाँच साल में बाढ़ मुक्त बना देने का झुनझुना बजा रहे हैं। वैसे असम के हरेक चुनाव में जनता को बाढ़ से राहत दिलाने का सब्ज़बाग़ दिखाया जाता है। सभी पार्टियाँ ऐसी चुनावी रस्म-अदायगी करती हैं, लेकिन वो ‘डबल इंजन’ ही क्या जो पाँच साल में असम को बाढ़ मुक्त नहीं कर सके! इसीलिए बीजेपी ने इसका पैंतरा फेंका है। वैसे बीते हरेक चुनाव में भी बीजेपी ने असम को बाढ़ मुक्त बनाने का लॉलीपॉप बेचा है। ‘पाँच साल’ वाली बात नयी है।

NRC को हाँ, CAA को ना!

असमिया समाज को बरगलाने के लिए बीजेपी का एक और संकल्प भी है कि वो असम में NRC (National Register of Citizen) को लागू करके दिखाएगी। हालाँकि, पार्टी ये कभी नहीं बताती कि 31 अगस्त 2019 को प्रकाशित ‘फ़ाइनल असम NRC’ से जो 19 लाख लोग बाहर हुए हैं, आख़िर उनका भविष्य क्या होगा? ख़ुद असम सरकार के आला मंत्री बारम्बार कह चुके हैं कि वो मौजूदा NRC को लागू नहीं होने देंगे क्योंकि इसमें तमाम ख़ामियाँ हैं? कौन बताएगा कि ये ख़ामियाँ ‘डबल इंजन’ की हैं या इसके लिए विदेशी ताक़तें ज़िम्मेदार हैं?

बुलेट ट्रेन की तरह ‘तेज़ी से फ़ैसले लेने वाला’ ‘डबल इंजन’ दो साल में 19 लाख अवैध असमियों के लिए Rejection Orders भी नहीं कर सका, जिसे राज्य के Foreigners’ Tribunals (FTs) में चुनौती दी जा सके। अलबत्ता, संकल्प पत्र कहता है कि बीजेपी NRC को लागू करने को लेकर प्रतिबद्ध है, वचनबद्ध है। संकल्प पत्र का एक दिलचस्प पहलू ये भी है कि बीजेपी ने असम में विवादित CAA (नागरिकता संशोधन क़ानून) का ज़िक्र तक नहीं किया। जबकि पड़ोसी राज्य बंगाल में भगवा पार्टी का पहला संकल्प नयी सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में ही CAA को लागू करने का है।

अद्भुत है बीजेपी की महिमा!

बाक़ी, जनता जानती ही है कि गंगा साफ़ हो चुकी है, किसानों की आमदनी भी 2022 में रातों-रात दोगुनी हो ही जाएगी, सालाना दो करोड़ रोज़गार का सपना साकार हुए भी अरसा हो गया, सबके खाते में 15-15 लाख रुपये भी आये, नसीब वाले की वजह से पेट्रोल भी सस्ता होने का रिकॉर्ड लगातार तोड़ ही रहा है, काला धन विदेश से आकर विकास में विलीन हो गया, भ्रष्टाचार अब सिर्फ़ राजनीतिक विरोधियों तक ही सीमित है, सीमा पर अमन-चैन है ही, आतंकवाद और नक्सलवाद का सफ़ाया हो चुका है, विश्व-गुरु के क़दमों में गिरकर चीन पनाह माँग रहा है और काँग्रेस मुक्त़ भारत के साथ ही ग़रीबी और बेकारी से भी देश मुक्त हो ही चुका है। 

सर्वत्र रामराज्य है। इसीलिए रेलवे का निजीकरण ज़रूरी है। 300 सरकारी कम्पनियों को बेचने की तैयारी है। क्योंकि सरकार का काम कारोबार करना नहीं बल्कि उसे बेच डालना है। कुल मिलाकर, बीजेपी को साफ़ दिख रहा है कि सारे महत्वपूर्ण काम तो हो ही चुके हैं, लिहाज़ा अब पाँच साल में असम को बाढ़-मुक्त करना कौन सी बड़ी बात है! संघ-बीजेपी को लगता है कि यदि तमाम झाँसे देश में हिट हो सकते हैं तो ‘पाँच साल में बाढ़-मुक्त असम’ तो ऊँट के मुँह में जीरा जैसा है। ज़ाहिर है, असमिया लोग ग़रीब और पिछड़े भले हों लेकिन बीजेपी उन्हें निपट मूर्ख ही मानती है तभी तो झाँसा देकर चुनाव जीतने की रणनीति बनाती है।

(मुकेश कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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