कल 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस था। यह तारीख़ महिलाओं की उपलब्धियों, योगदानों और संघर्षों को सम्मानित करने के लिए समर्पित है। यह तारीख़ दुनिया भर में लिंग समानता के लिए चल रही लड़ाई की हमें हर साल याद दिलाती है।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत 20वीं सदी की शुरुआत में हुई, जब दुनिया के कई हिस्सों में महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष तेज़ होने लगा। महिलाओं के मुद्दों के लिए एक दिन मनाने का विचार 1910 में दूसरी अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी महिला कांग्रेस के दौरान आया था।जर्मन मार्क्सवादी और नारीवादी क्लारा ज़ेटकिन ने महिलाओं के समान अधिकारों, जिसमें वोट देने का अधिकार भी शामिल था, की मांग करने के लिए एक वैश्विक दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा। पहला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 19 मार्च 1911 को ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में मनाया गया, जहां महिलाएं बेहतर कार्य परिस्थितियों, मतदान अधिकारों और लिंग भेदभाव को समाप्त करने के लिए एकत्रित हुईं।
वर्षों के दौरान इस दिन को मनाने का तरीका इस तरह विकसित होता रहा कि महिलाओं के अधिकारों से संबंधित विभिन्न मुद्दे इसमें शामिल होते रहे, जैसे कि प्रजनन अधिकार, लिंग आधारित हिंसा, और समान काम के लिए समान वेतन। यह दिन महिला अधिकारों के समर्थन और उनके सभी क्षेत्रों में उपलब्धियों का उत्सव मनाने के लिए एक केंद्रीय बिंदु के रूप में कार्य करता है। हर साल एक थीम चुनी जाती है, जो महिलाओं के अधिकारों से संबंधित एक विशेष मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करती है। इसमें महिलाओं और पुरुषों को लिंग समानता को बढ़ावा देने के लिए क़दम उठाने का आह्वान किया जाता है।
अपने मूल में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस लिंग समानता के महत्व पर ही ज़ोर देता है। वर्षों की हुई प्रगति के बावजूद महिलाएं अब भी दुनिया के कई हिस्सों में प्रणालीगत असमानता का सामना करती हैं। महिलाएं नेतृत्व की भूमिका में कम प्रतिनिधित्व पाती हैं, अक्सर समान काम के लिए पुरुषों से कम वेतन पाती हैं, और लिंग आधारित हिंसा और भेदभाव का सामना करती हैं। यह दिन उस आह्वान के रूप में कार्य करता है, जिसमें व्यक्तियों, संगठनों और सरकारों से महिलाओं के लिए एक अधिक न्यायपूर्ण और समानतापूर्ण दुनिया हासिल करने का आग्रह करता है।
महिलाओं ने वैज्ञानिक आविष्कारों से लेकर राजनीतिक क्रांतियों, कलात्मक उपलब्धियों और अन्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं। यह दिन केवल संघर्षों को स्वीकार करने के बारे में नहीं है, बल्कि हर क्षेत्र और संस्कृति में महिलाओं की शक्ति और दृढ़ संकल्प का उत्सव मनाने के बारे में भी है याद दिलाता है।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस यह भी याद दिलाने के रूप में कार्य करता है कि कितनी प्रगति हुई है और लिंग समानता की दिशा में अभी कितना लंबा रास्ता तय करना बाक़ी है। यह एक ऐसा दिन है, जब हम न केवल महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाते हैं, बल्कि लिंग समानता की प्राप्ति के लिए नए सिरे से वैश्विक प्रतिबद्धता को दोहराते हैं।
इन तमाम प्रतिबद्धताओं और सोच के बीच शायद ही कभी क्लारा ज़ेटकिन की चर्चा होती है। क्लारा ज़ेटकिन का जन्म 5 जुलाई 1857 को जर्मनी के वीडेराउ, सैक्सनी में हुआ था। उनका परिवार राजनीतिक रूप से जागरूक था।उनके पिता एक शिक्षक थे और उनकी मां प्रगतिशील विचारों वाली थीं। शिक्षा के दौरान ही क्लारा समाजवादी विचारों से प्रभावित हुईं और 1870 के दशक के अंत में जर्मन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (SPD) में शामिल हो गईं।
हालांकि, उस समय जर्मनी के चांसलर ओटो वॉन बिस्मार्क ने “एंटी-सोशलिस्ट क़ानून” (1878–1890) लागू कर दिए थे, जिससे समाजवादी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इस कारण, ज़ेटकिन को स्विट्जरलैंड और फिर फ़्रांस में शरण लेनी पड़ी। पेरिस में रहते हुए वे समाजवादी और नारीवादी आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेने लगीं।
क्लारा ज़ेटकिन की नारीवादी और समाजवादी विचारधारा
क्लारा ज़ेटकिन का मानना था कि महिलाओं की मुक्ति केवल समाजवादी आंदोलन के माध्यम से ही संभव है। वे पूंजीवादी समाज को महिलाओं के शोषण का मुख्य कारण मानती थीं और तर्क देती थीं कि महिलाओं के आर्थिक शोषण के बिना पूंजीवाद टिक नहीं सकता।
उन्होंने 1891 में “डाई ग्लाइशहाइट” (Die Gleichheit) नामक पत्रिका का संपादन शुरू किया, जो जर्मनी में महिलाओं के अधिकारों की प्रमुख पत्रिका बन गई। उनके लेखों और भाषणों ने महिलाओं के मतदान के अधिकार, समान वेतन, श्रमिक अधिकारों और शिक्षा की मांग को बल दिया।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की जड़
अमेरिकी श्रमिक आंदोलन का प्रभाव
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International Women’s Day – IWD) की जड़ें अमेरिका के श्रमिक आंदोलनों से जुड़ी हैं। 19वीं और 20वीं शताब्दी की शुरुआत में महिलाओं ने बेहतर वेतन, कम कार्य घंटे और कार्यस्थल में बेहतर परिस्थितियों के लिए कई हड़तालें और प्रदर्शन किए।
1908 में न्यूयॉर्क में 15,000 महिला कपड़ा श्रमिकों ने मार्च किया और अपने अधिकारों की मांग की। इस आंदोलन से प्रेरित होकर सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका (SPA) ने 28 फ़रवरी 1909 को “राष्ट्रीय महिला दिवस” घोषित कर दिया।
1910 में क्लारा ज़ेटकिन का प्रस्ताव
1910 में कोपेनहेगन (डेनमार्क) में दूसरे अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी महिला सम्मेलन में क्लारा ज़ेटकिन ने एक अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने सुझाव दिया कि प्रत्येक वर्ष महिलाओं के अधिकारों, मतदान, और श्रमिक मुद्दों को उजागर करने के लिए एक दिन समर्पित किया जाए।
उनके इस प्रस्ताव के पीछे के तीन प्रमुख कारण थे:
अमेरिका में महिलाओं के श्रमिक आंदोलन से प्रेरणा
यूरोप में महिलाओं को मतदान का अधिकार दिलाने का आंदोलन
पूंजीवाद के खिलाफ महिलाओं की मुक्ति की समाजवादी सोच
ज़ेटकिन के इस प्रस्ताव को 17 देशों के 100 से अधिक प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया। लेकिन, तब तक कोई निश्चित तिथि तय नहीं हो पायी थी।
पहली बार महिला दिवस का आयोजन (1911)
19 मार्च 1911 को पहली बार जर्मनी, ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और स्विट्जरलैंड में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। इस दिन को 1848 की जर्मन क्रांति की याद में चुना गया था, जिसमें सुधारों का वादा किया गया था, लेकिन महिलाओं को उनके अधिकार नहीं मिले थे।
इस दिन 10 लाख से अधिक महिलाओं और पुरुषों ने प्रदर्शन किए, लेकिन अब भी इसकी कोई स्थायी तारीख़ तय नहीं हो पायी थी।
8 मार्च: एक ऐतिहासिक मोड़ (1917 की रूसी क्रांति)
रूसी महिलाओं की क्रांति में भूमिका
8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में तय करने में सबसे बड़ा योगदान 1917 की रूसी क्रांति का था। 8 मार्च 1917 को रूस की राजधानी पेत्रोग्राद (अब सेंट पीटर्सबर्ग) में टेक्सटाइल मिल की महिलाओं ने खाद्य संकट, खराब कार्य परिस्थितियों और प्रथम विश्व युद्ध के ख़िलाफ़ हड़ताल की। यह प्रदर्शन जल्द ही व्यापक हड़तालों में बदल गया, जिससे ज़ार निकोलस II को सत्ता छोड़नी पड़ी और रूस में क्रांति हो गई।
1921 में सोवियत सरकार ने आधिकारिक रूप से 8 मार्च को “महिला दिवस” घोषित कर दिया।
महिला दिवस का वैश्विक विस्तार
1920-1940: यह मुख्य रूप से समाजवादी और साम्यवादी देशों में मनाया जाता था।
1950-1970: पश्चिमी देशों में नारीवादी आंदोलनों ने इसे फिर से अपनाया।
1975: संयुक्त राष्ट्र (UN) ने 8 मार्च को “अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” के रूप में मान्यता दे दी।
1980 से अब तक: अब यह दुनिया भर में अलग-अलग तरीक़ों से मनाया जाता है- कहीं प्रदर्शन, कहीं सांस्कृतिक कार्यक्रम, और कहीं महिला अधिकारों की मांग के रूप में मनाया जाता है।
क्लारा ज़ेटकिन की विरासत और 8 मार्च का महत्व
क्लारा ज़ेटकिन ने 1910 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का विचार पेश किया, जो आगे चलकर महिला अधिकारों के लिए वैश्विक संघर्ष का प्रतीक बन गया।
8 मार्च की तारीख़ का चुनाव मुख्य रूप से 1917 की रूसी महिलाओं के क्रांतिकारी प्रदर्शन से प्रेरित था, जिसने ज़ारशाही को गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
क्लारा ज़ेटकिन का मानना था कि महिलाओं के समान अधिकार केवल वोट देने तक सीमित नहीं होने चाहिए, बल्कि उन्हें समान शिक्षा, समान कार्य अवसर और समान वेतन भी मिलना चाहिए। उन्होंने हमेशा महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा की वकालत की और समाज में उनके समकक्ष स्थान के लिए संघर्ष किया।
क्लारा ज़ेटकिन ने प्रथम विश्व युद्ध के ख़िलाफ़ मज़बूत आवाज़ उठाई और युद्ध को श्रमिक वर्ग के लिए हानिकारक बताया। उन्होंने युद्ध के कारण उत्पन्न होने वाली असमानताओं और संघर्षों पर अपना विरोध प्रकट किया। इसके साथ ही वह महिला और श्रमिक आंदोलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय एकता की पुरज़ोर समर्थन किया।
क्लारा ज़ेटकिन ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में सोवियत रूस का दौरा किया और वहां के राजनीतिक वातावरण का अध्ययन किया। उनका निधन 20 जून 1933 को सोवियत संघ में ही हो गया,लेकिन क्लारा ज़ेटकिन की विरासत आज भी दुनिया भर के कार्यकर्ताओं को इस बात के लिए प्रेरित करती है कि महिलाओं के अधिकारों का संघर्ष अभी ख़त्म नहीं हुआ है,क्योंकि उनके साथ भेदभाव इस अल्ट्रा मॉडर्न होती दुनिया में भी जारी है।
(उपेंद्र चौधरी वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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