(गोपनीयता के उद्देश्य से कंपनी का नाम हटा दिया गया है।)
(मूल अंग्रेजी पत्र के प्रमुख हिस्सों का सारांश हिंदी में)
यह पत्र हमारी कंपनी के उन भरोसेमंद अधिकारियों के लिए है, जो शुरू से हमारे साथ हैं। आप सब जानते हैं कि किस तरह एक एक ईंट रखकर आप सबने लंबे अरसे में यह इमारत खड़ी की। हर सुख दुख में हम साथ रहे।
फ़िलहाल देश में आर्थिक मंदी के कारण हमारे निवेशकों का भरोसा गिरा है और हर प्रयास के बावजूद हमारे सामने कई चुनौतियां हैं। ऐसे में कंपनी को टिके रहने के लिए कुछ कठोर कदम उठाने को विवश होना पड़ा है। सबके सहयोग से ही हम इस संकट का हल निकाल सकेंगे।
फ़िलहाल हम तृतीय वर्ग और चतुर्थ वर्ग के कर्मियों की संख्या सीमित रखकर सैलरी कॉस्ट कम कर रहे हैं। डेली वेजर, टेम्प्रोरी कर्मियों को हटाने के कारण आप लोगों पर कुछ काम का बोझ बढ़ सकता है। लेकिन अनुरोध है कि किसी भी काम को छोटा न समझें और यहां तक कि स्वच्छता संबंधी कार्यों में भी खुद निदेशक मंडल के सदस्य भी आपको सहयोग करेंगे।
कॉस्ट करटेल करके खर्च सीमित करने हेतु वाहनों और ड्राइवर इत्यादि की सेवा फ़िलहाल नहीं मिल पाएगी। गत मार्च माह में जिस वेतन वृद्धि का आश्वासन दिया गया था, उसे फ़िलहाल टाल दिए जाने में आपलोगों की सहमति आवश्यक है। ऑफिस के कैंटीन से चाय कॉफी अब निशुल्क देना संभव नहीं हो पाएगा।
हमें अपने कुछ रीजनल ऑफिस बंद करने पड़ रहे हैं। वहाँ के कुछ स्टाफ को मुख्यालय में एडजस्ट करने की स्थिति में कुछ अधिकारियों के व्यक्तिगत चैम्बर को शेयर्ड चैम्बर में बदलने पर भी आप सबका सुझाव चाहिए।
संभव है कि इन मामूली बदलावों से कुछ सदस्यों को पीड़ा हो। ऐसे लोग किसी भी वक्त कंपनी छोड़कर जा सकते हैं। कारण यह, कि इंसान की पहचान बुरे वक्त में ही होती है।
अंतिम बात। कंपनी रहेगी, तभी हम रहेंगे। इसलिये कंपनी का टर्न ओवर बढ़ाना अब सिर्फ सेल्स टीम का जिम्मा नहीं। सभी यूनिट के लोग अपने रिश्तेदारों, दोस्तों, पड़ोसियों के घर विजिट करके सेल्स टीम को नए कांटेक्ट दिलाने का प्रयास करें। आपका प्रमोशन और कंपनी में टिके रहना इस बात पर निर्भर करेगा कि आपकी वजह से टर्नओवर कितना बढ़ा? जो लोग इस लायक नहीं, वे कंपनी के लायक नहीं।
आशा है, हम लोग जल्द ही इस संकट से मुक्ति प्राप्त कर लेंगे। नोटबंदी और जीएसटी तो महज एक बहाना है, असल चुनौती हमें अपना खर्च घटाना और लाभ बढ़ाना है।
सबको शुभकामना।
निदेशक मंडल
(यह कोई वास्तविक पत्र नहीं है। दरअसल यह एक व्यंग्य है।)