कहने को तो प्रधानमंत्री सत्ता में आने से पहले और बाद में भी यह कहते रहे हैं कि पिछली सरकार ने देश को कर्ज में फंसा दिया है और यहां की जनता के ऊपर भारी कर्ज का बोझ डाल दिया है जिसे उनकी सरकार ख़त्म करके ही दम लेगी। मोदी यह कहते रहे हैं भारत माता और इनकी हम सन्तानों के ऊपर चढ़े कर्ज को जब तक उतार नहीं देंगे तब तक उन्हें चैन नहीं है।
लेकिन जनता के सर से कर्ज का बोझ हटाने आए पीएम मोदी का कमाल यह है कि उन्होंने देश की जनता पर और ज्यादा कर्ज डाल दिया है। जनता को कर्जखोर बना दिया है। आलम यह है कि जनता के ऊपर चढ़े ऋण का जाल अब सदियों तक शायद उतर पाए।
देश और जनता के ऊपर बढ़े कर्ज पर हम बात करेंगे लेकिन उससे पहले एक और हालिया आंकड़े पर बात करने की ज़रूरत है जिससे पता चलता है कि देश किस तरफ जा रहा है और समाज के भीतर विषमता कितनी बढ़ रही है। अभी हाल में ही वैश्विक संपत्ति सलाहकार नाइट फ्रैंक की ‘द वेल्थ रिपोर्ट 2025’ में कहा गया है कि 2024 में भारत में करोड़पतियों की संख्या में 6 फीसदी का इजाफा हुआ है जिससे भारत में करोड़पतियों की संख्या बढ़कर 85,698 हो गई।
जबकि अरबपतियों की संख्या 191 तक पहुंची गई है। यह संख्या 2028 तक बढ़कर 93,753 हो जाने की उम्मीद है, जो भारत के बढ़ते धन परिदृश्य को दर्शाती है। रिपोर्ट बताती है कि भारत में जो करोड़पति बढ़े हैं उनमें से हर करोड़पति की संपत्ति 10 मिलियन डॉलर से अधिक है यानी हर करोड़पति की संपत्ति 87 करोड़ से ज्यादा। पिछले साल ऐसे करोड़पतियों की संख्या 80686 थी।
यह रिपोर्ट बताती है कि हाई नेट इनकम वेल्थ यानी एचएनआईडब्ल्यू आबादी की बढ़ती प्रवृत्ति देश की मजबूत दीर्घकालिक आर्थिक वृद्धि, बढ़ते निवेश अवसरों और विकसित हो रहे लक्जरी बाजार को उजागर करती है, जो भारत को वैश्विक धन सृजन में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करती है।
रिपोर्ट आगे कहती है कि “भारत अब 191 अरबपतियों का घर है, जिनमें से 26 पिछले साल ही इस श्रेणी में शामिल हुए हैं, जबकि 2019 में यह संख्या सिर्फ़ 7 थी।” जाहिर है यह रिपोर्ट मोदी के प्रभाव में है और मोदी सरकार की दुंदुभि विश्वगुरु वाले नारे को चरितार्थ कर रही है।
इसी रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि भारतीय अरबपतियों की संयुक्त संपत्ति 950 बिलियन अमरीकी डॉलर आंकी गई है, जो देश को वैश्विक स्तर पर तीसरे स्थान पर रखती है। जो अमेरिका (5.7 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर) और चीन (1.34 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर) से पीछे है।
नाइट फ्रैंक इंडिया के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक शिशिर बैजल ने कहा, “भारत की बढ़ती संपत्ति इसके आर्थिक लचीलेपन और दीर्घकालिक विकास क्षमता को रेखांकित करती है। देश में उच्च-निवल-मूल्य वाले व्यक्तियों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी जा रही है, जो उद्यमशीलता की गतिशीलता, वैश्विक एकीकरण और उभरते उद्योगों द्वारा संचालित है।”
उन्होंने कहा कि यह विस्तार न केवल पैमाने में है, बल्कि भारत के अभिजात वर्ग की उभरती हुई निवेश प्राथमिकताओं में भी है, जो रियल एस्टेट से लेकर वैश्विक इक्विटी तक परिसंपत्ति वर्गों में विविधता ला रहे हैं। बैजल ने कहा, “आने वाले दशक में, वैश्विक संपत्ति सृजन में भारत का प्रभाव और मजबूत होगा।”
अब बड़ा सवाल तो यही है कि इन लोगों ने इतनी सम्पत्ति कैसे कमाई है? अब तस्वीर का दूसरा पक्ष भी देख लिया जाए। भारत ही नहीं दुनिया भर में अमीरों और गरीबों के बीच की खाई और गहरी-चौड़ी होती जा रही है। अमीर और पैसे बनाते जा रहे हैं तो गरीबों के हालात में पिछले 35 साल में कोई खास बदलाव ही नहीं आया।
दावोस में चल रहे विश्व आर्थिक मंच के दौरान ऑक्सफैम इंटरनेशनल ने इस बारे में पिछले महीने ही रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में अरबपतियों की संपत्ति सिर्फ 2024 में ही 2000 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 15,000 अरब अमेरिकी डॉलर हो गई, जो 2023 की तुलना में तीन गुना अधिक है।
रिपोर्ट में अरबपतियों की संपत्ति में भारी उछाल और गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या में 1990 के बाद से कोई खास बदलाव नहीं आने की तुलना की गई है। ऑक्सफैम ने कहा कि साल 2024 में एशिया में अरबपतियों की संपत्ति में 299 अरब अमेरिकी डॉलर बढ़ी है। साथ ही उसने अनुमान लगाया कि अब से एक दशक के भीतर कम से कम पांच खरब पति होंगे।
वर्ष 2024 में अरबपतियों की सूची में 204 नए लोग शामिल हुए। औसतन हर सप्ताह करीब चार नाम इसमें शामिल हुए। इस वर्ष केवल एशिया से 41 नए अरबपति सूची में शामिल हुए। ऑक्सफैम ने कहा कि ‘ग्लोबल नॉर्थ’ के सबसे अमीर एक प्रतिशत लोग 2023 में वित्तीय प्रणालियों के जरिये ‘ग्लोबल साउथ’ से प्रति घंटे तीन करोड़ अमेरिकी डॉलर हासिल करेंगे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अरबपतियों की 60 प्रतिशत संपत्ति अब विरासत, एकाधिकार शक्ति या साठगांठ वाले संबंधों से प्राप्त होती है, जो दर्शाता है कि अरबपतियों की अत्यधिक संपत्ति काफी हद तक अनुपयुक्त है। अधिकार समूह ने दुनिया भर की सरकारों से असमानता कम करने, अत्यधिक धन-संपदा को समाप्त करने तथा नए अभिजात्य तंत्र को समाप्त करने के लिए सबसे अमीर लोगों पर ज्यादा टैक्स लगाने का आग्रह किया।
अरबपतियों की संपत्ति 2024 में औसतन 5.7 अरब अमेरिकी डॉलर प्रतिदिन की दर से बढ़ी, जबकि इनकी संख्या 2023 में 2,565 से बढ़कर 2,769 हो गई। इस रिपोर्ट में जो बातें कही गई हैं वही बात भारत पर भी लागू होती है।
अब जरा गरीब भारत की कर्जखोरी को भी देख लिया जाए। इसे देखना इसलिए जरूरी है क्योंकि पीएम मोदी सत्ता में आने से पहले और सत्ता में रहते हुए बार-बार देश और जनता को कर्ज के जाल से निकालने की बात करते रहे हैं।
आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले 9 साल में भारत पर 181% कर्ज बढ़ा है। 2023 तक भारत सरकार पर ₹155 लाख करोड़ का देशी कर्ज चढ़ गया था। कोई पूछ सकता है कि मोदी जी तो दूसरी सरकार के समय में जनता और देश के ऊपर चढ़े कर्ज को निकालने आये थे तब देश पर फिर कर्ज कैसे चढ़ गया? लेकिन इसका जवाब आपको कौन देगा? और किसकी मजाल है इस पर सवाल करने का?
अब ज़रा इस डाटा को देखिए। देश के 14 प्रधानमंत्रियों ने मिलकर 67 साल में कुल 55 लाख करोड़ रुपए का कर्ज लिया था। जब मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और जब 2014 सत्ता में आने के लिए चुनावी रंग में रंगे थे तो कहते थे कि देश के पूर्व प्रधानमंत्रियों ने देश का कबाड़ा कर दिया। सत्ता में आने पर ठीक कर दूंगा।
लेकिन सच तो यही है कि पिछले 9 साल में मोदी जी ने देश का कर्जा तिगुना कर दिया। 100 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा कर्ज उन्होंने मात्र 9 साल में ले लिया। 2014 में सरकार पर कुल कर्ज 55 लाख करोड़ रुपए था, जो अब बढ़कर 155 लाख करोड़ हो गया है।
भारत सरकार पर कितना कर्ज है, ये बात केंद्रीय सरकार ने बजट की आधिकारिक वेबसाइट पर बताया है। केंद्र सरकार के मुताबिक 31 मार्च 2023 तक भारत सरकार पर 155 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। 2024 मार्च तक ये बढ़कर 172 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने का अनुमान लगाया गया था।
20 मार्च 2023 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सांसद नागेश्वर राव के एक सवाल का लिखित जवाब दिया है। सांसद नागेश्वर राव ने सरकारी कर्ज के बारे में सवाल पूछा था। इसके जवाब में वित्त मंत्री सीतारमण ने भी कहा कि 31 मार्च 2023 तक भारत सरकार पर 155 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। इस हिसाब से देखें तो पिछले 9 साल में देश पर 181% कर्ज बढ़ा है।
2004 में जब मनमोहन सिंह की सरकार बनी तो भारत सरकार पर कुल कर्ज 17 लाख करोड़ रुपए था। 2014 तक तीन गुना से ज्यादा बढ़कर ये 55 लाख करोड़ रुपए हो गया। इस समय भारत सरकार पर कुल कर्ज 155 लाख करोड़ रुपए है। वित्त वर्ष 2014-15 के मुताबिक तब भारत सरकार पर कुल कर्ज 55 लाख करोड़ रुपए था। 2014 में देश की कुल जनसंख्या 130 करोड़ मान ली जाए तो उस समय हर भारतीय पर औसत कर्ज करीब 42 हजार रुपए था।
2023 में भारत सरकार पर कुल कर्ज बढ़कर 155 लाख करोड़ रुपए हो गया है। भारत की कुल आबादी 140 करोड़ मान लें तो आज के समय में हर भारतीय पर 1 लाख रुपए से ज्यादा कर्ज है। याद रहे अभी तो 2024 में लिए गए कर्ज की कहानी नहीं कही जा रही है।
इसी तरह अब अगर विदेशी कर्ज की बात करें तो 2014-15 में भारत पर विदेशी कर्ज 31 लाख करोड़ रुपए था। अब 2023 में भारत पर विदेशी कर्ज बढ़कर 50 लाख करोड़ रुपए हो गए।
2014 के बाद से अब तक मोदी सरकार ने विदेश से कुल 19 लाख करोड़ रुपए का कर्ज लिया है, जबकि 2005 से 2013 तक 9 साल में यूपीए सरकार ने करीब 21 लाख करोड़ रुपए विदेशी कर्ज लिया। 2005 में देश पर विदेशी कर्ज 10 लाख करोड़ था, जो 2013 में बढ़कर 31 लाख करोड़ हुआ। यानी, 9 साल में 21 लाख करोड़ रुपए विदेशी कर्ज बढ़ा।
कोई सवाल कर सकता है कि कर्ज के ये पैसे कहां जा रहे हैं ? सरकार तो कहती है कि विकास कामों के लिए कर्ज लिए जा रहे हैं। यहां तक तो ठीक है। लेकिन सरकार ये नहीं कहती कि सत्ता में बने रहने के लिए देश के लोगों को रेवड़ी बांटकर सरकार जनता को न सिर्फ भिखारी बना रही है बल्कि उसे कर्ज के जाल में भी फंसा रही है।
80 करोड़ लोगों को हर महीने मुफ्त अनाज, करीब 10 करोड़ महिलाओं को उज्ज्वला योजना के तहत मुफ्त गैस सिलेंडर, करीब 9 करोड़ किसानों को सालाना 6 हजार रुपए मुफ्त बांटने की योजना और पीएम आवास योजना के तहत दो करोड़ लोगों को घर बनाने में आर्थिक सहायता ये कुछ ऐसी रेवड़ियां हैं जो देश और जनता को कर्ज खोर बना रही हैं।
सत्ता में बनी रहने का बीजेपी का यह खेल लुभा भी रहा है और भ्रमित भी कर रहा है। देश की लोभी और पंगु जनता बीजेपी के जाल में ऐसे फंस गयी है जहां से निकलना कठिन है। जिस देश में अमीरी और गरीबी के बीच बढ़ती असमानता और कर्ज में डूबी जनता हो उस देश का ना कोई सम्मान करता है और न ही उस देश का भविष्य ही उज्ज्वल होता है। यह बात सनातनी सत्य है लेकिन एक सनातनी सरकार ऐसा ही कर रही है। राजनीति का यही खेल जनता समझ नहीं पा रही है या समझ भी पा रही है तो वह लोभ के सामने विवश जो है।
(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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