कोई मूर्ख आदमी भी पूछ सकता है कि जब पहलगाम हमले के बाद भारत को पाकिस्तान से बदला लेना चाहिए और अपनी अदम्य साहस और ताकत का इजहार करना चाहिए तब सरकार की नजर पाकिस्तान से हटकर जातीय गणना पर कैसे चली गई? लेकिन इस सवाल का जवाब भला कौन देगा ? किसकी मजाल है कि सवाल करे भी। जिस मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा गया वह मीडिया तो चेरी बनी हुई है और नक्कारखाने में तूती की आवाज बन कर रह गई है। भारत में मीडिया की हालत कैसी है उसकी बानगी अभी हाल में ही देखने को मिली है।
अभी हाल में ही वैश्विक स्तर पर भारतीय मीडिया की स्थिति को दर्शाने वाली वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता रैंकिंग में भारत की स्थिति का आकलन किया गया है। इस रैंकिंग में दुनिया के 180 देशों की रैंकिंग में भारत की रैंकिंग 151 वें स्थान पर पहुंच गई है। यानी कि भारत की मीडिया की स्वतंत्रता 180 देशों में ऊपर से 151 वें नंबर पर है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो भारत की मीडिया से 150 देशों की मीडिया ज्यादा स्वतंत्र है। भारत की मीडिया की इस स्थिति को काफी गंभीर माना गया है।
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा जारी 2025 विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत को 180 देशों में से 151 वें स्थान पर रखा गया है। हालांकि यह 2024 में 159 वें स्थान और 2023 में 161 वें स्थान से थोड़ा सुधार दर्शाता है, लेकिन देश अभी भी सूचकांक की सबसे ”बहुत गंभीर ” श्रेणी में आता है। अगर भारतीय प्रेस की स्वतंत्रता इस हालत में पहुँच गई है तब मौजूदा मोदी सरकार से कौन पूछ सकता है कि आपने पहलगाम का बदला अभी तक क्यों नहीं लिया? इस मसले पर सरकार आगे क्या कुछ करेगी इस पर देशी नजर बनी रहेगी लेकिन अभी पहलगाम हमले के बाद जिस तरह से जातीय गणना का भूत सामने आया है वह भी कम दिलचस्प नहीं।
मोटे तौर पर कोई भी कह सकता है कि मोदी और बीजेपी को सत्ता में बने रहने के लिए कुछ भी कर सकती है। अपने बयान को तिलांजलि दे सकती है और मुकर चुके मुद्दों को फिर से ला सकती है और जनता के बीच यह सिद्ध भी कर सकती है कि वह पहले जिन मुद्दों का विरोध कर रही थी, वह विरोध नहीं था। दरअसल उस मुद्दे पर अध्ययन किया जा रहा था। मंथन चल रहा था और शोध किये जा रहे थे। जातीय गणना की कहानी को आप इसी रूप में देख सकते हैं। याद कीजिये विधायिकाओं में महिला आरक्षण का सबसे ज्यादा विरोध यही बीजेपी कर रही थी। यह विरोध सालों से चल रहा था लेकिन जब बीजेपी को लगा कि विपक्ष के इस मुद्दे को हड़प लिया जाए तो झट से उसने महिला आरक्षण का ऐलान भी कर दिया। भले ही वह आरक्षण कब से लागू होगा यह कौन जानता है ?
तो सच यही है कि बीजेपी को आज लग गया है कि जातीय गणना जरूरी है। ऐसा नहीं हुआ तो आने वाले समय में उसकी राजनीति कमजोर हो सकती है। कई राज्यों की सरकारें भी जा सकती हैं और फिर अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी की हार भी हो सकती है। बीजेपी की मुश्किल यह है कि उसे चुनावी हार से बहुत डर लगता है। वह जानती है कि अगर पार्टी को हार का झटका लगना शुरू हो गया तो फिर कोई भी ताकत उसे फिर से सत्ता में लौटा नहीं सकती।
बीजेपी यह भी जानती है कि दो से चार राज्यों में पार्टी की हार होती गई तो पार्टी के भीतर कोई नेता नहीं बचेगा। और वह इसलिए कि पार्टी के अधिकतर नेता किसी विचारधारा से नहीं जुड़े हैं। उनका जुड़ाव केवल सत्ता और लाभ से है। फिर बीजेपी में आज जितने नेता चहकते दिख रहे हैं उनमें से ज्यादातर आयातित हैं जो समय के साथ कभी भी निकल सकते हैं और बीजेपी पर वार भी कर सकते हैं। इसलिए बीजेपी को हार से बहुत डर लगता है।
जातीय गणना की घोषणा के बाद बिहार में क्या कुछ हो रहा है और नीतीश कुमार की मुस्कुराहट कितनी बढ़ गई है इस पर हम बात करेंगे लेकिन इससे पहले यह ज़रूरी है कि जब से जातीय गणना का ऐलान मोदी सरकार की तरफ से किया गया है तब से बीजेपी के वे सभी नेता इस ऐलान के समर्थन में खड़े हो गए हैं जो कुछ दिन पहले तक ही इसे गलत, बेकार और समाज को तोड़ने वाला बता रहे थे। जातीय राजनीति पर सवाल खड़ा कर रहे थे और धार्मिक राजनीति को आगे बढ़ाने का दम्भ भर रहे थे।
बीजेपी पिछले दस सालों में हिन्दू और मुसलमान यानी धार्मिक राजनीति के जरिए खूब सफल होती रही है और उसे लग रहा था कि हिंदुत्व की राजनीति ही उसका बेड़ा पार करती रहेगी। लेकिन बिहार, यूपी और बंगाल में बदले राजनीतिक मिजाज ने बीजेपी के होश उड़ा दिए हैं। बीजेपी को लगने लगा है कि अब उसे कमंडल के साथ मंडल की भी जरूरत है और वक्त रहते इस जरूरत को पूरा नहीं किया गया तो खेल ख़त्म हो सकता है और खेल ख़त्म हुआ तो मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
अब जातीय गणना पर बीजेपी के दोहरे चरित्र वाले नेताओं के बोल को देख सकते हैं। केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर जब हरियाणा के मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने कहा था कि बीजेपी ने कभी भी देश में जाति आधारित राजनीति का समर्थन नहीं किया और हरियाणा में जाति जनगणना कराने का सवाल ही नहीं पैदा होता। उन्होंने एक्स पर लिखा था कि, “हरियाणा में जाति आधारित जनगणना की कोई मांग नहीं उठी है, और हमने पहले ही समाज के जरूरतमंद लोगों की पहचान कर रखी है।“ लेकिन बुधवार को खट्टर ने एक्स पर केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा जाति जनगणना का फैसला लिए जाने को ऐतिहासिक कदम करार दिया। उन्होंने कहा कि राजनीतिक मामलों की केंद्रीय कैबिनेट कमेटी ने क्रांतिकारी कदम उठाया जिससे समाज में समानता आएगी और कमजोर तबकों के उत्थान का काम होगा। उन्होंने इस कदम के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूरि-भूरि प्रशंसा भी की।
अपने बयानों से पलटी मारने वाले केवल खट्टर ही नहीं हैं। मोदी मंत्रिमंडल के सबसे बेहतरीन और विकास पुरुष कहे जाने वाले नितिन गडकरी को ही लीजिये। उन्होंने कहा था कि ”जो करेगा जाति की बात, उसको मरूंगा कस के लात।’’ लेकिन अब जैसे ही मोदी कैबिनेट ने जातिगत गणना का ऐलान किया, गडकरी के सुर भी बदल गए। उन्होंने लिखा कि, “सामाजिक न्याय की दिशा में मोदी सरकार का यह ऐतिहासिक फैसला है। इस फैसले का आधार मोदी सरकार की समावेशी नीति और जाति आधारित जनगणना कराकर वंचित तबकों को उनका हक दिलाना है।”
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा अभी हाल तक जाति जनगणना की मांग को असंगत करार देते रहे हैं। लेकिन कैबिनेट के फैसले के बाद उन्होंने भी इसे ऐतिहासिक बताने में देर नहीं की। उन्होंने लिखा, “यह अत्यंत महत्वपूर्ण फैसला है, इससे आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक आधार पर पिछड़े तबके को मुख्यधारा में लाने का काम होगा। ”
इसी तरह केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी लिखा कि, “मोदी सरकार सामाजिक न्याय के लिए वचनबद्ध है, इसी के तहत यह ऐतिहासिक फैसला लिया गया है। इस फैसले से आर्थिक और सामाजिक तौर पर पिछड़े तबकों को मुख्यधारा में लाकर उनका उत्थान किया जाएगा।”
एक और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने गुरुवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में मोदी सरकार के इस फैसले की प्रशंसा की और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसने कभी भी जाति जनगणना को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई क्योंकि वह ऐतिहासिक तौर पर इसके खिलाफ रही है।
केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी इस फैसले के लिये मोदी सरकार की तारीफ की। याद रहे कि चिराग पासवान ने कर्नाटक, तेलंगाना में कांग्रेस सरकारों द्वारा की गई जातिगत सर्वे को गैर पारदर्शी करार दिया था। लेकिन अब वह जाति जनगणना कराए जाने के फैसले को ऐतिहासिक बताते नहीं थकते। असम सीएम हिमंत बिस्वा सरमा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस फैसले पर कहा कि सरकार का यह फैसला 140 करोड़ देशवासियों के हितों को ध्यान में रखते हुए किया गया है। कल तक यही नेता जातिगत गणना को बेकार मानते थे और अब इनके बोल से भाजपा वाले भी हंस रहे हैं।
मोदी सरकार का जातिगत गणना एक बड़ा फैसला है। बिहार, बंगाल और यूपी के साथ ही गुजरात में बीजेपी को सत्ता में आना है। बीजेपी के भीतर और संघ के भीतर भी इस बात पर राय बन जाने के बाद ही इस पर फैसला लिया गया। जानकार कहते हैं कि संघ ने जमीनी स्तर पर कई चुनावी राज्यों का सर्वे किया है जिसमें जातिगत गणना की मांग तेजी से उभरी है। जानकार यह भी कहते हैं कि संघ और बीजेपी को लग गया है कि जिस तरह से कांग्रेस का उभार हो रहा है और कांग्रेस को राहुल गाँधी जैसा जुझारू नेता मिल गया है तभी से बीजेपी की मुश्किलें बढ़ने लगी हैं। जिस तरह से कांग्रेस की पैठ मुसलमानों, दलितों और पिछड़ों में बढ़ती जा रही है उससे बीजेपी और संघ को लगने लगा है कि कई राज्यों में धर्म से ज्यादा जाति को तरजीह दी जा रही है। यही वजह है कि बीजेपी न चाहते हुए भी आँख बंद करके जातीय गणना का ऐलान किया है।
उधर बिहार में जातीय गणना का श्रेय लेने की होड़ लगी हुई है। जहां राजद ने इसे लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के दशकों के संघर्ष की जीत बताया है, वहीं कांग्रेस पार्टी ने इसे राहुल गांधी की उपलब्धि बताया है। दूसरी ओर, सत्तारूढ़ दल जेडीयू और भाजपा ने दावा किया है कि देश में जाति आधारित जनगणना पीएम नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की देन है।आम तौर पर माना जाता है कि जाति की राजनीति के कारण ही भाजपा 2024 में लोकसभा में अपने दम पर बहुमत हासिल करने में विफल रही। बिहार में विधानसभा चुनाव में यह निश्चित रूप से एक बड़ा मुद्दा बनेगा।
पटना में विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच अपने-अपने मतदाताओं को संदेश देने के लिए पोस्टर वार छिड़ गया है। पटना में पार्टी कार्यालय के बाहर होर्डिंग लगाने वाले राजद नेता भाई अरुण ने कहा कि उनकी पार्टी की पुरानी मांग पूरी हो गई है। जनता संघर्ष से वाकिफ है। राजद ने इन होर्डिंग के जरिए केंद्र सरकार को चुनौती भी दी है। होर्डिंग पर कैप्शन में लिखा है, “अगर केंद्र सरकार की नीयत साफ है तो उसे बढ़ी हुई आरक्षण सीमा को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करना चाहिए।”
दूसरी ओर, जदयू ने पटना में नीतीश कुमार को पीएम मोदी के साथ चलते हुए दिखाते हुए होर्डिंग लगाए हैं, जिससे यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि एनडीए आगामी विधानसभा चुनाव में एकजुट होकर लड़ेगा। जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार को श्रेय देने की कोशिश में कैप्शन में लिखा है, ‘नीतीश ने दिखाया (रास्ता), अब देश ने अपनाया।’
पटना स्थित प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में जश्न का माहौल चल रहा है। पूरे जोश के साथ ढोल बजाए जा रहे हैं। जिसका नेतृत्व खुद बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम ढोल के साथ कर रहे हैं। बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लवेरु ने राहुल गांधी को श्रेय देते हुए कहा कि विपक्ष के नेता ने इसके लिए पूरे देश में लड़ाई लड़ी। उन्होंने हर मंच से इसके लिए आवाज उठाई और चुनाव के बाद भी सदन में सरकार पर दबाव बनाते रहे। इसलिए केंद्र सरकार बैकफुट पर गई और जाति जनगणना कराने की मांग मान ली। बिहार विधानसभा चुनाव में अभी छह महीने बाकी हैं, तब तक हर पार्टी इस मुद्दे को भुनाकर अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश करती रहेगी। आगे का अंजाम क्या होगा यह देखना होगा। लेकिन बड़ी बात तो यही है कि बीजेपी को इस बार के चुनाव में कमंडल के साथ मंडल की आ पड़ी है।
(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)