Tuesday, April 23, 2024

आज़ादी, उपलब्धियां और जनसंघर्ष

स्वतंत्रता प्राप्ति की एक और वर्षगांठ बीत चुकी है। आजादी कैसे प्राप्त हुई? 75 साल में किसी ने क्या पाया, क्या खोया? देशवासी भी खुश हैं कि ठेल थाल कर ज़िंदगी बसर हुए जा रही है। ये कुछ महत्वपूर्ण पहलू हैं जिनकी ओर राजनेता ध्यान नहीं दे रहे हैं या वे ध्यान नहीं देना चाहते हैं। आम आदमी ज़िंदगी गुज़ार रहा है, सरकारों को कोई चिंता नहीं है, इस पहलू पर गौर करना जरूरी है।

स्वतंत्रता संग्राम बहुत बड़ा था। पंजाबी जो अपने स्वभाव और संस्कृति के अनुसार स्वतंत्रता संग्राम में भी हमेशा हमलावरों और ज़ालिमों के खिलाफ डटे रहे, स्वतन्त्रता संग्राम में अगुआ बने रहे। फांसी पर लटकाए गए लड़ाकों में 92 फीसदी पंजाबी थे। काला पानी की सजा काटने वालों की संख्या भी 93 प्रतिशत से कम नहीं थी। अनेकों की संपत्तियाँ कुर्क की गईं। कई लोग जेल गए। अंग्रेजों के लट्ठ खाये। जब आजादी की घोषणा हुई तो पंजाबियों को इसकी बहुत कीमत चुकानी पड़ी। 

पूर्वी से पश्चिमी और पश्चिमी से पूर्वी पंजाब से विस्थापन के समय हुई कत्लोगारत में दस लाख पंजाबियों की जान गई। लाखों हंसते-बसते लोग पाकिस्तान से भारत आए। भारत आकर उन्होंने सिर पर एक छत के लिए जीवन संघर्ष नए सिरे से शुरू किया। पुनर्वास में बरसों गुज़र गए। कोई इसका जिक्र तक नहीं करता। पूछो उनका दर्द जो अपनों को गंवा कर अपने भविष्य के लिए दर-दर भटकते, बरसों लंबे संघर्ष और परिश्रम के बाद अपने पैरों पर खड़े हुए। किसी भी स्वतंत्रता दिवस पर किसी भी राजनीतिक नेता ने दस लाख मारे गए लोगों का या जो पाकिस्तान से विस्थापित हुए उन पंजाबियों का जिक्र नहीं किया। वास्तव में यह देश का नहीं, यह पंजाब या बंगाल का विभाजन था। जो ठेंस पंजाब और बंगाल को लगा, किसी को नहीं लगा। इसके बावजूद पंजाब के साथ हमेशा भेदभाव होता रहा, जो आज भी जारी है।

अभी पंजाब विभाजन की विभीषिका झेल ही रहा था जब देश खाद्य संकट से जूझने लगा। हरित क्रांति जिस शिद्दत के साथ पंजाबियों ने सफल करके देश को खाद्य संकट से उबारा और अधिशेष अनाज वाला देश बनाया, उसकी भी किसी ने सराहना नहीं की। खुद का पानी खत्म कर लिया। पृथ्वी की उर्वरता को नष्ट कर दिया। कृषि दिल्ली वालों ने घाटे का सौदा बना दी। खुद कर्जदार होकर किसान आत्महत्या की राह पर चल निकले। दिल्ली के तख्त को कोई दर्द महसूस नहीं हुआ। चीन और पाकिस्तान के साथ युद्ध की आपदा देश पर पड़ी। पंजाबियों ने 1962, 1965, 1967 और 1971 की लड़ाई लड़ी। उल्टा केंद्र  सरकार ने सेना में भर्ती के लिए पंजाबियों का कोटा कम कर दिया।

आज महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी से आम आदमी का कचूमर निकला पड़ा है। अमीर और अमीर होते जा रहे हैं, गरीब और गरीब होते जा रहे हैं। सरकारी खजाना कुछ ही बड़े घरानों के लिए खुलता है। कॉरपोरेट घरानों ने हाल ही में तीन से चार लाख करोड़ रुपये की ब्याज की छूट दी गई है। एक आम आदमी को दस हजार रुपये कर्ज चुकाने के लिए बैंकर उसकी जान खा जाते हैं। जब कॉरपोरेट घराने कर्ज नहीं चुकाते तो सरकार हर साल उनका कर्ज बट्टे खाते में डालकर लाखों करोड़ माफ कर देती है। राजनेताओं के चहेते बैंकों से हजारों करोड़ों लेकर भागे, कोई कार्रवाई नहीं हुई।

राजनीति एक धंधा हो गया है। राजनेता करोड़ों रुपये खर्च कर चुनाव जीतते हैं उसके बाद जन संसाधनों को आंख मूंदकर लूट लेते हैं। जांच के नाम पर लोगों को गुमराह करते हैं। फिजूल मुद्दों पर लोगों को भटकाते हैं। झूठ फरेब की राजनीति लोगों को रिझाते हैं। आजादी के 75वें साल में क्या हुआ? धर्म और जाति की राजनीति? देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की राजनीति, हिन्दू मुस्लिम की राजनीति, हिंदू सिख की राजनीति। कोई भी धर्म लोगों से नफरत और भेदभाव की इजाजत नहीं देता लेकिन राजनेताओं ने लोगों को लड़वाने के लिए धर्म आधारित संगठन खड़े कर लिए। 

आम शहरी को दिन गुजारना मुश्किल हुआ पड़ा है। डीजल 60 से 90 रुपये प्रति लीटर हो गया, रसोई गैस सिलेंडर 400 रुपये से बढ़कर 1100 रुपये, खाद 1900 रुपये प्रति बोरी, दाल 120 रुपये से 180 रुपये प्रति किलो हो गई। इस सूरत में आज़ादी दिवस का जश्न मनाना किसे सूझता है? कोई बीमार हो तो सरकारी अस्पतालों में इलाज। प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने की सामर्थ्य नहीं है। सरकारी स्कूलों में कोई पढ़ाई नहीं। 

प्राइवेट शिक्षा महंगी है। कॉलेजों में गरीबों की छात्रवृत्ति योजना राजनीति की बहस का कच्चा माल है। अगर किसी तरह बच्चा पढ़ लिख जाए तो रोजगार नहीं। बच्चे अपना भविष्य सुरक्षित नहीं देखते। माता-पिता की संपत्ति बेचकर और आईलेट्स कर विदेश जा रहे हैं। कानून-व्यवस्था पंख लगाकर उड़ गयी है। गैंगस्टर खेल रहे हैं। फिरौती, लूट-खसोट को सांस लेने की फुर्सत नहीं है। आज़ादी के 75 साल बाद भी 80 करोड़ लोग रोटी के लिए मोहताज हैं।

इन सवालों का उठना स्वाभाविक है कि लोगों के जीने के मुद्दे क्या थाली बजाने और झण्डे लहराने में खो जायेंगे? जनता के मुद्दों से राजनेताओं ने मुँह मोड़ लिया है। हमारा युवा भी भटक गया है। सरकारें चाहती हैं लोग भटकते रहें। युवा पीढ़ी नशे में डूबकर मर जाये।

देश भारत के लोगों का है, केवल झूठे राजनेताओं का नहीं। अब कुछ सकारात्मक कार्रवाई का अहद जरूरी है। नेताओं की चालाकियों को समझें। राजनीतिक आज़ादी के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक आजादी भी जरूरी है। उनके लिए संघर्ष करना समय की जरूरत है।

(बलबीर सिंह राजेवाल किसान नेता हैं।)

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